‘ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।

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'ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा' में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
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उत्तर: इस पंक्ति में लक्ष्मण परशुराम के क्रोध और उनकी युद्ध-भावना का व्यंग्यपूर्वक खंडन करते हैं। वे कहते हैं कि आप व्यर्थ ही धनुष, बाण और फरसा धारण कर रहे हैं, क्योंकि केवल अस्त्र-शस्त्र धारण करने से कोई वीर नहीं बनता। लक्ष्मण परशुराम की कठोर वाणी की तुलना करोड़ों वज्रों से करते हैं, जो केवल शब्दों तक सीमित है। वे संकेत करते हैं कि वीरता शब्दों में नहीं, कर्म में दिखाई जाती है, इसलिए परशुराम का शस्त्रधारण व्यर्थ प्रतीत होता है।

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