“इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥” पंक्ति का भावार्थ लिखिए।

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इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥ पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
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उत्तर: इस पंक्ति का भावार्थ है कि हम कोई कुम्हड़बतिया या छुईमुई जैसे दुर्बल व्यक्ति नहीं हैं जो आपकी तर्जनी (उंगली) दिखाने मात्र से डर जाएँ और कुम्हला जाएँ। लक्ष्मण इस कथन के माध्यम से परशुराम को व्यंग्यपूर्वक यह बताना चाहते हैं कि वे निर्भीक, साहसी और आत्मविश्वासी हैं। वे केवल बातों या दिखावे से डरने वाले नहीं, बल्कि प्रत्यक्ष युद्ध का सामना करने वाले क्षत्रिय हैं। इस पंक्ति के माध्यम से लक्ष्मण ने परशुराम की क्रोधपूर्ण ललकार का निडरता से उत्तर देते हुए उनकी धमकी का उपहास उड़ाया है।

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