प्रमुख सुर्खियां
- उच्चतम न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि चुनाव आयुक्तों की स्वतंत्रता के संबंध में सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएं केवल मौखिक ही हैं।
- ऐसा कहने के पीछे सर्वोच्च न्यायालय ने यह तर्क दिए कि वर्ष 1950 में चुनाव आयुक्त का कार्यकाल जहाँ 8 वर्षों का हुआ करता था, वहीँ 2004 के बाद से यह घटकर केवल 300 दिन का रह गया है।
महत्वपूर्ण पॉइंट्स
- चुनाव आयोग एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो देश में राज्य और संघ चुनावों की देखरेख करता है।
- इसकी स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी।
- चुनाव आयोग के स्थापना दिवस को राष्ट्रीय मतदाता दिवस के नाम से भी जाना जाता है।
- यह देश में लोकसभा, राज्यसभा, विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्टपति के चुनावों की निगरानी और संचालन करता है।
- यह नगर नियम, नगर पालिका और ग्राम पंचायत के चुनावों को नहीं देखता। इसके लिए संविधान की ओर से राज्य चुनाव आयोग का प्रावधान किया गया है।
चुनाव आयोग के प्रशासनिक कार्य
- संसद के परिसीमन आयोग अधिनियम के अनुसार देश में निर्वाचन क्षेत्रों को निर्धारित करना।
- मतदाता सूची तैयार करना।
- राजनैतिक दलों को मान्यता प्रदान करना।
- राजनैतिक दलों को चुनाव चिन्ह आवंटित करना।
- चुनाव के समय आदर्श आचार संहिता को लागू करना और उसकी सख्त निगरानी करना।
चुनाव आयोग की न्यायायिक शक्तियां
- संविधान द्वारा प्रदत्त राज्य विधानसभा के वर्तमान सदस्यों के विषय में परामर्श देने का अधिकार चुनाव आयोग के पास सुरक्षित है।
- चुनाव के समय भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाए जाने पर सजा सुनाए जाने से पहले कोर्ट चुनाव आयोग उस व्यक्ति के बारे में राय मांगता है।
- चुनाव आयोग के पास राजनैतिक दलों के बंटवारे और गठबंधन सम्बन्धी विवादों को सुलझाने का अधिकार होता है।
- यदि कोई उम्मीदवार चुनाव में किए गए खर्चे का हिसाब देने में असमर्थ रहता है, तो ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग ऐसे उम्मीवार को अयोग्य घोषित कर सकता है।
चुनाव आयोग की सीमाएं
- संविधान के द्वारा चुनाव आयोग के सदस्यों की योग्यता जैसे कानूनी योग्यता या प्रशासनिक योग्यता आदि के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं की गई है।
- संविधान में चुनाव आयोग के सदस्यों का कोई कार्यकाल नहीं निश्चित किया गया है।
- संविधान ने सेवानिवृत्त होने वाले चुनाव आयुक्तों के सम्बन्ध में सरकार द्वारा दिए जाने वाले लाभ के पदों को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं जारी की है।
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