UPSC 2023 : No Confidence Motion UPSC in Hindi : UPSC मेंस के लिए अविश्वास प्रस्ताव पर महत्वपूर्ण शॉर्ट नोट्स 

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No Confidence Motion UPSC in Hindi

हाल ही में मणिपुर राज्य बहुत ही चर्चा में चल रहा है। यहाँ दो समुदायों की और मैतेई के बीच आरक्षण को लेकर विवाद की ख़बरें इन दिनों सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं। मणिपुर हिंसा को ही आधार बनाते हुए संसद में विपक्ष ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग की है। No Confidence Motion UPSC in Hindi, UPSC मेंस की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण टॉपिक है। यहाँ No Confidence Motion UPSC in Hindi टॉपिक पर महत्वपूर्ण शार्ट नोट्स दिए जा रहे हैं।  

मुख्य सुर्खियां 

  • हाल ही में मणिपुर में मैतई और कुकी समुदाय के बीच हुई हिंसा को सरकार की नाकामी बताते हुए विपक्ष द्वारा संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात की गई है।  
  • इससे पहले विपक्ष द्वारा पिछली सरकार में भी मोदी सरकार के खिलाफ NDA का ही भाग रही तेलगु देशम पार्टी के नेता ने वर्ष 2018 में अविश्वास प्रस्ताव संसद में प्रस्तुत किया था।  
  • प्रस्ताव एक प्रकार का औपचारिक प्रस्ताव होता है जो कि किसी सांसद द्वारा संसद में किसी मुद्दे पर चर्चा या बहस के लिए तैयार किया जाता है।  

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अविश्वास प्रस्ताव के बारे में 

यहाँ No Confidence Motion UPSC in Hindi के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य दिए जा रहे हैं : 

  • लोकसभा के प्रक्रि‍या तथा कार्य संचालन नियमावाली के नि‍यम 198(1) से 198(5) तक मंत्रि‍परि‍षद में अवि‍श्‍वास का प्रस्‍ताव प्रस्‍तुत करने हेतु प्रक्रि‍या नि‍र्धारि‍त की गई है। 
  • लोकसभा की प्रक्रिया नियमावली के नियम 198 (1) से 198 (5) तक मंत्रिमंडल द्वारा अविश्वस प्रस्ताव प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है।  
  • यह केवल एक लाइन का प्रस्ताव होता है जिसका सामान्‍य स्‍वरूप इस प्रकार है–यह सदन मंत्रि‍परि‍षद में अवि‍श्‍वास व्यक्त करता है।
  • नियम 198 (1) (क) के तहत अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करने वाले सदस्य को स्पीकर द्वारा बुलाए जाने पर सदन से इस सम्बन्ध में अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य होता है।  
  • नियम 198(1)(ख) के तहत सुबह 10 बजे तक इस प्रस्ताव की लिखित सूचना लोकसभा महासचिव को देनी होती है। इस समय के बाद मिली सूचना को अगले दिन मिली सूचना माना जाता है।
  • नियम 198(2) के तहत प्रस्ताव के पक्ष में कम-से-कम 50 सदस्यों का होना आवश्यक है। यदि इतने सांसद न हों तो अध्यक्ष प्रस्ताव रखने की अनुमति नहीं देते। 
  • नियम 198 (3) के अनुसार लोकसभा के अध्यक्ष से अनुमति प्राप्त हो जाने के बाद इस पर बहस के लिए एक या एक से अधिक दिन या किसी दिन का एक भाग निश्चित किया जाता है।  
  • नियम 198(4) के तहत अध्यक्ष चर्चा के अंतिम दिन मतदान के ज़रिये निर्णय की घोषणा करते हैं।
  • नियम 198 (4) के अनुसार भाषणों की समय सीमा तय करने का अधिकार केवल लोकसभा के स्पीकर के पास होता है।  
  • इसे अनुमति मिलने के बाद सत्ताधारी पार्टी को साबित करना होता है कि उसे संसद में आवश्यक समर्थन मिला हुआ है।  
  • लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव को मंज़ूरी के लिये कम-से-कम 50 सांसदों का समर्थन ज़रूरी होता है।  
  • इसमें वोटिंग के लिये केवल लोकसभा के सांसद ही पात्र होते हैं, राज्यसभा के सांसद वोटिंग प्रक्रिया में भाग नहीं ले सकते।
  • विपक्ष को लोकसभा अध्यक्ष को इसकी सूचना लिखित रूप में देनी होती है।  इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे प्रस्तुत करने के लिए कहते  हैं।  
  • लोकसभा स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंज़ूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा ज़रूरी है।
  • इसके पश्चात अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में स्पीकर मतदान कर सकते हैं या कोई निर्णय ले सकते हैं।  
  • इसके लिये मतदान होने पर सरकार अपने सांसदों के लिये व्हिप जारी कर सकती है, जिसके बाद अपनी पार्टी लाइन से हटकर मतदान करने वाला सांसद अयोग्य माना जा सकता है। 
  • अविश्वास प्रस्ताव में अगर सदन में उपास्थित सदस्यों में से आधे से अधिक सदस्यों ने सरकार के खिलाफ वोट दे दिया तो सरकार गिर जाती है।    
  • अवि‍श्‍वास प्रस्‍ताव को कि‍सी कारण पर आधारि‍त होने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। जब सूचना में कारण उल्‍लि‍खि‍त होते हैं और उन्‍हें सभा में पढ़ा जाता है तब भी वे अवि‍श्‍वास प्रस्‍ताव का भाग नहीं बनते हैं।

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अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव में अंतर

अविश्वास प्रस्ताव और विश्वास प्रस्ताव में अंतर इस प्रकार है : 

  • ये दोनों ही प्रस्ताव संसदीय प्रक्रिया का एक हिस्सा हैं, जिसके अंतर्गत सदन में सरकार के बहुमत को परखा जाता है।  
  • सदन में अविश्वास प्रस्ताव हमेशा विपक्षी दलों द्वारा लाया जाता है, जबकि विश्वास प्रस्ताव अपना बहुमत दिखाने के लिये हमेशा सत्ताधारी दल लेकर आता है। 
  • किन्हीं विशेष परिस्थितियों में राष्ट्रपति भी सरकार से सदन में विश्वास मत अर्जित करने के लिये  कह सकते हैं।
  • अगर सरकार विश्वास मत हासिल कर लेती है तो 15 दिन बाद वापस सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव ला सकती है।
  • संसदीय प्रावधान में वर्णित है कि एक बार अविश्वास प्रस्ताव लाने के छह माह के बाद भी वापस अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है।  
  • चूँकि विश्वास मत सरकार की तरफ से लाया जाता है, इसलिये उक्त कानून इस पर लागू नहीं होता।
  • अगर सरकार सदन में विश्वास प्रस्ताव के दौरान आम बहुमत साबित नहीं कर पाती है तो ऐसी स्थिति में सरकार को या तो इस्तीफ़ा देना होता है या लोकसभा भांग करके विपक्ष राष्ट्रपति से देश में आम चुनाव कराने की मांग कर सकता है।  
  • इसके बाद यह राष्ट्रपति का निर्णय होता है कि वे नई सरकार को सत्ता में बैठने के लिए आमंत्रित करें या वर्तमान सरकार को ही चुनाव होने के बाद परिणाम आने तक वर्तमान सरकार को कार्यवाहक सरकार के रूप में कार्य करने के लिए अनुमति प्रदान करें।  

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