रंग, जो हमारी दुनिया को खूबसूरती और जीवंतता प्रदान करते हैं, वे केवल दृश्य सौंदर्य तक सीमित नहीं हैं। हर रंग एक भावना, एक ऊर्जा और एक गहरी कहानी कहता है। हमारी प्रकृति, संस्कृति, परंपराएं और यहां तक कि हमारी भावनाएं भी रंगों के माध्यम से व्यक्त होती हैं। जब ये रंग कविता के रूप में ढलते हैं, तो वे शब्दों की एक ऐसी छवि बनाते हैं, जो पाठकों के मन को सजीव कर देती है। “रंगों पर कविता” एक ऐसा विषय है, जो हमें जीवन के विभिन्न आयामों से परिचित कराता है और हमारे अस्तित्व में मौजूद हर रंग की महत्ता को दर्शाता है। होली का पर्व समाज को सकारात्मकता का संदेश देता है, होली के उत्सव पर लिखी कविताएं रंगों की भूमिका को निर्धारित करने के साथ-साथ, युवाओं को खुश रहने का संदेश देती हैं। इस लेख में आपके लिए रंगों पर कविता दी गई हैं, जिनके माध्यम से आप होली के उत्सव को पूरे हर्षोल्लास के साथ मना सकेंगे। रंगों पर कविता पढ़ने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
This Blog Includes:
रंगों पर कविता
हिंदी साहित्य के आंगन में रहकर आप जीवन के हर पल को पर्वों की तरह मना सकते हो। होली के रंगोत्सव को हर्षोल्लास के साथ मनाने के लिए आपको रंगों पर कविता अवश्य पढ़नी चाहिए। इस ब्लॉग में स्वलिखित रंगों पर कविता के साथ-साथ, अन्य कवियों की भी कविता पढ़ने का अवसर मिलेगा। रंगों पर कविता और उनके कवियों की सूची कुछ इस प्रकार हैं:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
रंगों की बौछार | मयंक विश्नोई |
रंग बरस रहे हैं | मयंक विश्नोई |
रंगों का मिलन | मयंक विश्नोई |
गले मिलते रंग | विनोद दास |
नीला रंग | अंकुर मिश्र |
रंगों का त्यौहार सुहाना | शकुंतला कालरा |
रंग बरसत ब्रज में होरी का | शिवदीन राम जोशी |
रंगता कौन बसंत? | दिनेश शुक्ल |
रे रंग डारि दियो राधा पर | शिवदीन राम जोशी |
रंगों की बौछार
खुशियों के रंगों को एक-दूसरे के लगाएं चेहरों पर छाई उदासी को जड़ से मिटाएं बेबाकी के साथ सब मिलकर जश्न मनाएं होली के पवित्र त्योहार को यादगार बनाएं आशाओं के इस पर्व पर सपनों को सजाएं सपनों को पूरा करने से पहले आओ पंख फैलाएं बचपन के दौर में चलो फिर से लौट जाएं पिचकारियों में पानी भर झूमें-नाचें, गाएं रंगों की बौछार का फिर से लुफ्त उठाएं आपसी मतभेद को आओ प्रेम से भुलाएं -मयंक विश्नोई
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि होली में रंगों की बौछार का महिमामंडन करते हैं। कविता के माध्यम से कवि समाज को प्रेरित करते हैं कि एक-दूसरे को कुछ इस तरह रंग लगाएं कि चेहरों की हर उदासी को आप मिटा सकें। कविता के माध्यम से कवि होली के पर्व को आशाओं का पर्व कहकर संबोधित करते हैं, जिसमें वह समाज को खुले मन से होली का उत्सव मानाने और आपसी भाईचारे को बढ़ाने के लिए प्रेरित करते हैं।
यह भी पढ़ें – खुशियों के रंग में रंगने वाले पर्व होली को मानाने के तरीके भिन्न पर उद्देश्य सबका एक
रंग बरस रहे हैं
नयन सुख की आस में लंबें समय से तरस रहे हैं आशाओं की अंगड़ाई से होली पर रंग बरस रहे हैं उमंग में उत्सव देखकर होलिका दहन कर गीत खुशियों के गाए जा रहें हैं जयकारें धर्म की जय के लगाए जा रहे हैं होली की आहट से हर कली चहक रहे हैं रंगों की खुशबू से शहर की हर गली महक रहे हैं ऋतुओं का बदलना ही उत्सव के समान है होली के रंगों की भी अपनी अलग पहचान है निराशाओं के छाती पर आशाएं चढ़ रही हैं बाजारों में भी होली की चहल-पहल बढ़ रही है भीगने को इनमें कई बार तरस रहे हैं हर्षोल्लास के साथ हम पर होली के रंग बरस रहे हैं -मयंक विश्नोई
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि होली के रंगों की उस बरसात के बारे में बताते हैं जो सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार करती है। कविता में कवि कहते हैं कि आँखें पूरे साल भर रंगों की बरसात का इंतज़ार करती हैं, जो आशाओं की अंगड़ाई लेने के बाद होती है। कविता के माध्यम से कवि होली के इतिहास पर प्रकाश डालने का सफल प्रयास करते हैं। यह कविता होली के उमंग की भावना को दर्शाने का कार्य करती है, जो मानव को खुश रहने के लिए प्रेरित करती है।
रंगों का मिलन
साल-भर बाद आता है ऐसा पल जब होता है रंगों का मिलन मिटा दिए जाते है मतभेद गलतियों को माफ़ कर दिया जाता है नहीं रहते किसी में मनभेद ग़लतफ़हमियों को साफ़ कर दिया जाता है गुलाल के रंगों में रंग जाता है तन और मन होली के महोत्सव में जब होता है रंगों का मिलन -मयंक विश्नोई
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने होली के लिए किए जाने वाले इंतज़ार के बाद होने वाले रंगों के मिलन के बारे में बताया गया है। यह एक छोटी कविता है जिसका उद्देश्य मानव जीवन पर अहम भूमिका निभाने वाले होली के पर्व के महोत्सव के बारे में बताना है। इस कविता के माध्यम से कवि ने होली के महोत्सव को रंगों के मिलन का मुख्य कारण बताया है।
यह भी पढ़ें – होली के त्योहार में बनाएं जाने वाले प्रसिद्ध पकवान
गले मिलते रंग
आह्लाद में डूबे रंग खिलखिला रहे हैं इतने रंग हैं कि फूल भी चुरा रहे हैं रंग आज तितलियों के लिए गले मिल रहे हैं रंग जब मिलता है गले एक रंग दूसरे रंग से बदल जाता है उसका रंग कुछ पहले से जैसे कुछ बदल जाता है आदमी दूसरे आदमी से मिलने के बाद कितने रंग हैं जीवन के क्या फ़र्क़ कर सकते हो तुम गुलाल और रुधिर की लालिमा में निकल आए हैं घोंसले से बाहर लोग आसमान होता जा रहा है लाल एक नाटा लड़का अचानक फेंकता है उचक कर रंग का गुब्बारा भीग जाती है इरफ़ान चचा की दाढ़ी इरफ़ान चचा खिलखिला रहे हैं खिलखिला रहे हैं उनकी दाढ़ी के बाल रंगों की बारिश हो रही है और टपक रहा है रंग मेरी आत्मा के भीतर हवा में गूँज रहा है सिर्फ़ एक शब्द बार-बार प्यार प्यार प्यार और प्यार लाज से छिपा रहा है अपने रंगे हुए गाल -विनोद दास
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि विभिन्न रंगों के मिलन से बनने वाले नए रंगों का वर्णन करते हैं। कविता में कवि रंगों के मिलन को मानवता के मिलन के रूप में देखते हैं। कविता के माध्यम से कवि यह बताना चाहते हैं कि रंगों का मिलन मानवता के मिलन का प्रतीक होता है। कविता का स्पष्ट भाव है कि जब लोग एक-दूसरे के साथ सद्भाव से रहते हैं, और मिलकर काम करते हैं तो वे एक सुंदर दुनिया का निर्माण कर सकते हैं।
नीला रंग
अगर कभी मैं खोज पाया नीला रंग तो वह आसमानी छतों और सागर की दरियों में नहीं होगा होगा वह क़लम से लहूलुहान काग़ज़ की रेखाओं में अगर यह भी न हुआ, मैं खोज निकालूँगा उसे अंतरात्मा की परछाइयों में। मैंने नील से कपड़े धोती माँ के हाथों में नीला रंग देखा है। मैंने देखी है नीली पतंगे, नीले पहाड़, नीले जंगल, और नीला कमल, नीला रक्त भी। काश! यही नीला रंग होता मेरी ज़िंदगी का। -अंकुर मिश्र
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने नीले रंग के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करते हैं। कविता में कवि नीले रंग को विभिन्न भावनाओं, वस्तुओं और अनुभवों से जोड़ते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि समाज को यह बताना चाहते हैं कि नीला रंग जीवन के सभी पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है। कविता में कवि नीले रंग को शांति, दुख, प्यार, आशा और विश्वास का रंग बताते है। कविता का सरल भाषा में यही भाव है कि नीला रंग जीवन की सुंदरता और जटिलता का प्रतीक होता है।
यह भी पढ़ें – होली की पौराणिक कथा, महत्व और रोचक तथ्य
रंगों का त्यौहार सुहाना
आई होली, आई होली,
चारों तरफ़ हँसी-ठिठोली।
धूम मचाती आई टोली,
बच्चे नटखट, गुड़िया भोली।
झटपट पिचकारी ले आई,
उलटी-सीधी ख़ूब घुमाई।
फिर भी नहीं चालानी आई,
अपनी ही चुनरी रंगाई।
मल गुलाल अबीर चमकीले,
चलते बच्चे ढीले-ढीले।
लाल-गुलाबी नीले पीले,
कपड़े पहने सबने गीले।
लड़कों ने हुड़दंग मचाया,
झाँझ मजीर मृदंग बजाया।
इतना गहरा रंग लगाया,
कोई भी पहचान न पाया।
नानी ने गुझिया भिजवाई,
सबने मिलकर ख़ूब उड़ाई।
पुआ-पूड़ी दादी लाई,
जमकर खाई ख़ूब मिठाई।
रंगों का त्यौहार सुहाना,
मिलकर बच्चे गाते गाना,
ऊँच-नीच का भेद न जाना,
जीवन में सीखा मुस्काना।
– शकुंतला कालरा
रंग बरसत ब्रज में होरी का
रंग बरसत ब्रज में होरी का
बरसाने की मस्त गुजरिया, नखरा वृषभानु किशोरी का।।
गुवाल बाल नन्दलाल अनुठा, वादा करे सब से झूठा
माखन चोर रसिक मन मोहन, रूप निहारत गौरी का।।
मारत हैं पिचकारी कान्हा, धूम माचवे और दीवाना
चंग बजा कर रंग उडावे, काम करें बरजोरी का।।
ब्रज जन मस्त मस्त मस्ताना, नांचे कूदे गावे गाना
नन्द महर घर आनंद छाया, खुल गए फाटक मोरी का।।
कहे शिवदीन सगुण सोही निरगुण, परमानन्द होगया सुण-सुण
नांचै नृत्य धुन धमाल, देखो अहीरों की छोरी का।।
– शिवदीन राम जोशी
रंगता कौन बसंत?
कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत?
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।
चूड़ी भरी कलाइयाँ, खनके बाजू-बंद,
फागुन लिखे कपोल पर, रस से भीगे छंद।
फीके सारे पड़ गए, पिचकारी के रंग,
अंग-अंग फागुन रचा, साँसें हुई मृदंग।
धूप हँसी बदली हँसी, हँसी पलाशी शाम,
पहन मूँगिया कंठियाँ, टेसू हँसा ललाम।
कभी इत्र रूमाल दे, कभी फूल दे हाथ,
फागुन बरज़ोरी करे, करे चिरौरी साथ।
नखरीली सरसों हँसी, सुन अलसी की बात,
बूढ़ा पीपल खाँसता, आधी-आधी रात।
बरसाने की गूज़री, नंद-गाँव के ग्वाल,
दोनों के मन बो गया, फागुन कई सवाल।
इधर कशमकश प्रेम की, उधर प्रीत मगरूर,
जो भीगे वह जानता, फागुन के दस्तूर।
पृथ्वी, मौसम, वनस्पति, भौरे, तितली, धूप,
सब पर जादू कर गई, ये फागुन की धूल।
– दिनेश शुक्ल
रे रंग डारि दियो राधा पर
रे रंग डारि दियो राधा पर, प्यारा प्रेमी कृष्ण गोपाल।
तन मन भीगा अंग-अंग भीगा, राधा हुई निहाल।।
गोप्या रंग रंगीली रंग में, ग्वाल सखा कान्हा के संग में।
चंग बजावे रसिया गावे, गांवें राग धमाल।।
श्यामा श्याम यमुन तट साजे, मधुर अनुपम बाजा बाजे।
रंग भरी पिचकारी मारे, हँसे सभी ब्रिजबाल।।
मोर मुकुट पीताम्बर वारा, निरखे गोप्यां रूप तिहारा।
राधा कृष्ण मनोहर जोड़ी, काटत जग जंजाल।।
शिवदीन रंगमय बादल छाया, मनमोहन प्रभू रंग रचाया।
गुण गावां गावां गुण कृष्णा, मोहे बरषाने ले चाल।।
– शिवदीन राम जोशी
संबंधित आर्टिकल
- Holika Dahan in Hindi 2025: होलिका कौन थी उसे क्यों जलाया जाता है?
- Holi Kyu Manate Hai 2025: जानिए इसके पीछे की पौराणिक और ऐतिहासिक वजह
- होली की शुभकामनाएं: रंगों के त्योहार पर भेजें प्यार भरे संदेश
- Holika Dahan Story in Hindi: बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बनती होलिका दहन की पौराणिक कथा
- Holi Art and Craft Ideas in Hindi: होली आर्ट और क्राफ्ट आइडियाज से बनाएं त्योहार और भी खास
- होली मनाने के अनोखे और मजेदार तरीके: एक यादगार होली के लिए बेहतरीन आइडियाज
- Holi ke Pakwan: होली के त्योहार में बनाएं जाने वाले प्रसिद्ध पकवान
- Holi Games in Hindi: होली में खेलें ये ऑउटडोर गेम्स, इंडोर गेम्स और पार्टी गेम्स
- Holi Status in Hindi: होली पर शेयर करें दिलो को जोड़ने वाले ये शानदार हिंदी स्टेटस
- Holi Speech in Hindi 2025: होली पर भाषण
आशा है कि इस लेख में दी गई रंगों पर कविता आपको पसंद आई होंगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।