Ram Prasad Bismil Poem : शहीद रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं, जो युवाओं को मातृभूमि की सेवा में समर्पित रहना सिखाएगी

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Ram Prasad Bismil Poem in Hindi

रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं युवाओं को आज भी मातृभूमि की सेवा में समर्पित रहना सिखाती हैं। इतिहास पर प्रकाश डाला जाए तो आप जानेंगे कि रामप्रसाद बिस्मिल उन महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे, जिन्होंने अपने विचारों-अपनी कविताओं के माध्यम से युवाओं को भारत की आजादी के लिए प्रेरित किया। रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं समय-समय पर युवाओं को क्रांति के लिए प्रेरित करती रहीं हैं ताकि भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्रता मिले। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं अवश्य पढ़नी चाहिए ताकि विद्यार्थियों को अपना लक्ष्य चुनने में मदद मिले। इस ब्लॉग के माध्यम से आप Ram Prasad Bismil Poem in Hindi (रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं) पढ़ पाएंगे, जो युवाओं को मातृभूमि की सेवा में समर्पित रहना सिखाएगी।

रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं

Ram Prasad Bismil Poem in Hindi (रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं) आपको देशहित में निर्णय लेने के लिए प्रेरित करेंगी। इस ब्लॉग में लिखित Ram Prasad Bismil Poem in Hindi की सूची कुछ इस प्रकार हैं:

कविता का नामकवि का नाम
ऐ मातृभूमि! तेरी जय होरामप्रसाद बिस्मिल
हे मातृभूमिरामप्रसाद बिस्मिल
तराना-ए-बिस्मिलरामप्रसाद बिस्मिल
न चाहूं मानरामप्रसाद बिस्मिल
गुलामी मिटा दोरामप्रसाद बिस्मिल
आज़ादीरामप्रसाद बिस्मिल
फूलरामप्रसाद बिस्मिल
हमारी ख़्वाहिशरामप्रसाद बिस्मिल
हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने कोरामप्रसाद बिस्मिल

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ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो

रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाएंगी, रामप्रसाद बिस्मिल की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो है। Ram Prasad Bismil Poem in Hindi में कुछ इस प्रकार हैं:

ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो ।
प्रत्येक भक्त तेरा, सुख-शांति-कान्तिमय हो ।।

अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में,
संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो ।

तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो ।।
तेरी प्रसन्नता ही आनन्द का विषय हो ।।

वह भक्ति दे कि 'बिस्मिल' सुख में तुझे न भूले,
वह शक्ति दे कि दुःख में कायर न यह हृदय हो ।।

-रामप्रसाद बिस्मिल

हे मातृभूमि

Ram Prasad Bismil Poem in Hindi के माध्यम से आप मातृभूमि की वंदना करने में सक्षम हो पाएंगे। रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामप्रसाद बिस्मिल की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “हे मातृभूमि” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

माथे पे तू हो चंदन, छाती पे तू हो माला ;
जिह्वा पे गीत तू हो मेरा, तेरा ही नाम गाऊँ ।।

जिससे सपूत उपजें, श्री राम-कृष्ण जैसे;
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

माई समुद्र जिसकी पद रज को नित्य धोकर;
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर;
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मंत्र गाऊँ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं जाऊँ ।।

-रामप्रसाद बिस्मिल

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तराना-ए-बिस्मिल

इस ब्लॉग में लिखित Ram Prasad Bismil Poem in Hindi की लोकप्रिय श्रेणी में “तराना-ए-बिस्मिल” भी आता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

बला से हमको लटकाए अगर सरकार फांसी से,
लटकते आए अक्सर पैकरे-ईसार फांसी से।

लबे-दम भी न खोली ज़ालिमों ने हथकड़ी मेरी,
तमन्ना थी कि करता मैं लिपटकर प्यार फांसी से।

खुली है मुझको लेने के लिए आग़ोशे आज़ादी,
ख़ुशी है, हो गया महबूब का दीदार फांसी से।

कभी ओ बेख़बर तहरीके़-आज़ादी भी रुकती है?
बढ़ा करती है उसकी तेज़ी-ए-रफ़्तार फांसी से।

यहां तक सरफ़रोशाने-वतन बढ़ जाएंगे क़ातिल,
कि लटकाने पड़ेंगे नित मुझे दो-चार फांसी से।

-रामप्रसाद बिस्मिल

न चाहूं मान

रामप्रसाद बिस्मिल की कविता “न चाहूं मान” को Ram Prasad Bismil Poem in Hindi की श्रेणी में बेहद ही लोकप्रिय माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना

करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना

-रामप्रसाद बिस्मिल

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गुलामी मिटा दो

रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं क्रांतिकारियों को एक नया दृष्टिकोण देती रही हैं, रामप्रसाद बिस्मिल की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “गुलामी मिटा दो” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा,
एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।

बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन,
मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा।

यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह,
दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा।

ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में,
हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा।

बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं,
ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा।

जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़,
गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा।

हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों?
शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा।

ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा,
कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।

-रामप्रसाद बिस्मिल

आज़ादी

रामप्रसाद बिस्मिल की कविता “आज़ादी” को Ram Prasad Bismil Poem in Hindi की श्रेणी में बेहद ही लोकप्रिय माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं।
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं।

असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता,
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं।

रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका,
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं।

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त मंे,
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं।

सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं।

यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते,
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?

कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’,
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं।

-रामप्रसाद बिस्मिल

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फूल

रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामप्रसाद बिस्मिल की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “फूल” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

फूल! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल?
फूल! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल?

हो मदान्ध निज निर्माता को गयो हृदय से भूल
रूप-रंग लखि करें चाह सब, को‍उ लखे नहिं शूल

अन्त-समय पद-दलित होयगी निश्चय तेरी धूल
चलत समीर सुहावन जब लौं समय रहे अनुकूल।

फूल! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल?
फूल! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल?

यौवन मद-मत्सर में काट्यो, पर-हित कियो न भूल
अम्ब कहाँ से मिल सकता है यदि बो दिए बबूल

नश्वर देह मिले माटी में होकर नष्ट समूल
प्यारे! घटत आयुक्षण पल-पल जय हरि मंगल मूल

फूल! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल?
फूल! तू व्यर्थ रह्यो क्यों फूल?

-रामप्रसाद बिस्मिल

हमारी ख़्वाहिश

रामप्रसाद बिस्मिल की कविता “हमारी ख़्वाहिश” को Ram Prasad Bismil Poem in Hindi की श्रेणी में बेहद ही लोकप्रिय माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाजू-ए-क़ातिल में है।

रहबरे राहे मुहब्बत, रह न जाना राह में,
लज़्ज़ते सहरा नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है।

वक़्त आने दे, बता देंगे तुझे, ऐ आसमां!
हम अभी-से क्या बताएं, क्या हमारे दिल में है।

अब न अगले वलवले हैं और न अरमानों की भीड़,
एक मिट जाने की हरसरत अब दिले ‘बिस्मिल’ में है।

आज मक़तल में ये क़ातिल कह रहा है बार-बार,
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है!

ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत, तेरे जज़्बों के निसार,
तेरी कुर्बानी का चर्चा गै़र की महफ़िल में है।

-रामप्रसाद बिस्मिल

हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को

रामप्रसाद बिस्मिल की कविता “हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को” को Ram Prasad Bismil Poem in Hindi की श्रेणी में बेहद ही लोकप्रिय माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार हैं:

हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को,
यकायक हमसे छुड़ाया उसी काशाने को।
आसमां क्या यहां बाक़ी था ग़ज़ब ढाने को?
क्या कोई और बहाना न था तरसाने को?

फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी,
क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फरियाद कभी,
याद आएगा किसे ये दिले-नाशाद कभी,
हम कि इस बाग़ में थे, कै़द से आज़ाद कभी,
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को!

दिल फ़िदा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है, वो माता की नज़र करते हैं,
ख़ाना वीरान कहां, देखिए घर करते हैं,
अब रहा अहले-वतन, हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी विराने को!

देखिए कब यह असीराने मुसीबत छूटें,
मादरे-हिंद के अब भाग खुलें या फूटें,
देश-सेवक सभी अब जेल में मूंजे कूटें,
आप यहां ऐश से दिन-रात बहारें लूटें,
क्यों न तरजीह दें, इस जीने से मर जाने को!

कोई माता की उमीदों पे न डाले पानी,
ज़िंदगी भर को हमें भेज दे काले पानी,
मुंह में जल्लाद, हुए जाते हैं छाले पानी,
आबे-खंजर को पिला करके दुआ ले पानी,
भर न क्यों पाए हम, इस उम्र के पैमाने को!

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रहकर,
हमको भी पाला था मां-बाप ने दुख सह-सहकर,
वक़्ते-रुख़सत उन्हें इतना ही न आए कहकर,
गोद में आंसू कभी टपके जो रुख़ से बहकर,
तिफ़्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!

देश-सेवा ही का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की क़समें,
सरफ़रोशी की, अदा होती हैं यो ही रस्में,
भाई ख़ंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं में हैं जल जाने को!

नौजवानो, जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके,
आपके अजबे-बदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद चाक हो, माता का कलेजा फट के,
पर न माथे पे शिकन आए, क़सम खाने को!

अपनी क़िस्मत में अज़ल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था, मिहन रक्खा था, ग़म रक्खा था,
किसको परवाह थी, और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-गुरबत में क़दम रखा था,
दूर तक यादे-वतन आई थी समझाने को!

अपना कुछ ग़म नहीं लेकिन ये ख़याल आता है,
मादरे हिंद पे कब से ये ज़वाल आता है,
देशी आज़ादी का कब हिंद में साल आता है,
क़ौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुंतज़िर रहते हैं हम ख़ाक में मिल जाने को!

मैक़दा किसका है, ये जामो-सबू किसका है?
वार किसका है मेरी जां, यह गुलू किसका है?
जो बहे क़ौम की ख़ातिर वो लहू किसका है?
आसमां साफ़ बता दे, तू अदू किसका है?
क्यों नये रंग बदलता है ये तड़पाने को!

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पूछो,
मरने वालों से ज़रा लुत्फ़े-शहादत पूछो,
चश्मे-मुश्ताक़ से कुछ दीद की हसरत पूछो,
जां निसारों से ज़रा उनकी हक़ीक़त पूछो,
सोज़ कहते हैं किसे, पूछो तो परवाने को!

बात सच है कि इस बात की पीछे ठानें,
देश के वास्ते कुरबान करें सब जानें,
लाख समझाए कोई, एक न उसकी मानें,
कहते हैं, ख़ून से मत अपना गिरेबां सानें,
नासेह, आग लगे तेरे इस समझाने को!

न मयस्सर हुआ राहत में कभी मेल हमें,
जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें,
एक दिन को भी न मंजूर हुई बेल हमें,
याद आएगी अलीपुर की बहुत जेल हमें,
लोग तो भूल ही जाएंगे इस अफ़साने को!

अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली,
एक होती है फ़कीरों की हमेशा बोली,
ख़ून से फाग रचाएगी हमारी टोली,
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली,
कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को!

नौजवानो, यही मौक़ा है, उठो, खुल खेलो,
खि़दमते क़ौम में जो आए बला, तुम झेलो,
देश के सदके में माता को जवानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं, ले लो,
देखें कौन आता है, इर्शाद बजा लाने को!

-रामप्रसाद बिस्मिल

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रामप्रसाद बिस्मिल की प्रमुख रचनाएँ

रामप्रसाद बिस्मिल की प्रमुख रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और लोकप्रिय हैं, जितने वह अपनी रचनाओं के समय रही होंगी। रामप्रसाद बिस्मिल की प्रमुख रचनाएँ कुछ इस प्रकार हैं:

  • ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो
  • मातृ-वन्दना
  • हे मातृभूमि
  • तराना-ए-बिस्मिल
  • कवि
  • गुलामी मिटा दो
  • आज़ादी
  • फूल
  • हमारी ख्वाहिश
  • हैफ़ जिस पे कि हम तैयार थे मर जाने को
  • जब प्राण तन से निकलें
  • हक़ीक़त के वचन
  • प्रार्थना
  • फाँसी की कल्पना
  • भजन
  • भारत जननि

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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप Ram Prasad Bismil Poem in Hindi (रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं) पढ़ पाएंगे, रामप्रसाद बिस्मिल की कविताएं युवाओं को राष्ट्रसेवा करने के लिए प्रेरित करेंगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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