Govardhan Puja Story : इंद्रदेव के घमंड को चूर करने के लिए श्रीकृष्ण ने रची थी लीला, पढ़िए गोवर्धन पूजा की पूरी कहानी

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Govardhan Puja Story in Hindi

गोवर्धन पूजा, जो दीपावली के अगले दिन मनाई जाती है, हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण त्योहार है। इस पर्व के पीछे भगवान श्रीकृष्ण की एक महान लीला की कथा जुड़ी हुई है, जिसमें उन्होंने इंद्रदेव के घमंड को चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की थी। इस घटना ने इंद्र के अहंकार को समाप्त कर दिया और उन्होंने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस ब्लॉग में आप गोवर्धन पूजा की पूरी कहानी (Govardhan Puja Story in Hindi) को विस्तार से जानेंगे और साथ ही इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को भी समझेंगे।

गोवर्धन पूजा की कथा – Govardhan Puja Story in Hindi

पौराणिक कथा के अनुसार, एक दिन श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है, और सभी लोग सुबह से ही पूजन की सामग्री एकत्रित करने में व्यस्त हैं। श्रीकृष्ण ने मां यशोदा से पूछा, “मैय्या, आज ये सभी लोग किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं?” यशोदा जी ने उत्तर दिया, “पुत्र, आज ब्रजवासी इंद्रदेव की पूजा कर रहे हैं।”

श्रीकृष्ण ने हैरानी से पूछा, “इंद्रदेव की पूजा क्यों?” इस पर मां यशोदा ने समझाया, “इंद्रदेव वर्षा करते हैं, जिससे अच्छी फसल होती है और हमारी गायों को चारा मिलता है।” श्रीकृष्ण ने कहा, “वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। असली पूजा तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गायें वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां भी वहीं से मिलती हैं।”

श्रीकृष्ण के कहने पर सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह देखकर गोकुलवासियों पर क्रोधित होकर मूसलधार बारिश शुरू कर दी, तो गांव में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए। लोग अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। ब्रजवासी डर के मारे कहने लगे कि यह सब कृष्ण की बात मानने की वजह से हो रहा है, अब हमें इंद्रदेव के क्रोध का सामना करना ही पड़ेगा। ब्रजवासियों को परेशानी में देखकर श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने परिवार समेत पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा। 

वहीं इंद्र ने लगातार सात दिनों तक बारिश करते रहे, तब ब्रह्मा जी ने इंद्र से कहा कि श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें कृष्ण की पूज करने की सलाह दी। ब्रह्मा जी की बात सुनकर इंद्र को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। इसके साथ ही उन्होंने कृष्ण के प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए अन्नकूट के रूप में 56 प्रकार के भोग अर्पित किए। इसी घटना के बाद से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा शुरू हुई और। इस दौरान लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और “अन्नकूट” के रूप में भगवान को अर्पित करने के लिए विभिन्न प्रकार के पकवान तैयार करते हैं। गोवर्धन पूजा न केवल श्रीकृष्ण की लीलाओं का स्मरण कराती है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि हमें प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए।

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कैसे की जाती है गोवर्धन पूजा?

गोवर्धन पूजा के अवसर पर घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है। इसके बाद गोवर्धन पर्वत को रंग-बिरंगे फूलों, पत्तियों और अन्य सजावटी सामग्री से सजाया जाता है। इस पर सुंदर आकृतियाँ भी बनाई जाती हैं। पर्वत को सजाने के बाद, उसपर दीप, नैवेद्य, तथा फल अर्पित किये जाते हैं। इसके बाद गोवर्धन पर्वत की पूजा विधिपूर्वक की जाती है। पूजा के बाद, भक्त गोबर से बने इस पर्वत की सात बार परिक्रमा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पूजा करने और गायों को गुड़-चना खिलाने से भगवान श्रीकृष्ण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। वहीं पूजा समाप्त होने के बाद, अर्पित किए गए नैवेद्य का प्रसाद भक्तों में वितरित किया जाता है।

गोवर्धन पर्वत गोबर का क्यों बनाया जाता है? 

गोवर्धन पर्वत को गोबर से बनाने का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यहाँ कुछ कारण दिए गए हैं –

  • गोबर, एक प्राकृतिक और पारंपरिक सामग्री है। इसे भारतीय संस्कृति में अत्यंत पवित्र माना जाता है। इसीलिए, गोवर्धन पूजा के अवसर पर गोबर से पर्वत का आकार तैयार किया जाता है।
  • श्री कृष्ण का गायों से गहरा लगाव था। वह उनकी खूब सेवा किया करते थे। ऐसे में गायें के गोबर से बना गोवर्धन पर्वत भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति का प्रतीक है। 
  • भारत के कई ग्रामीण क्षेत्रों में गोबर का उपयोग दैनिक जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे कृषि में खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाना स्थानीय परंपरा को बनाए रखने का एक तरीका है।

FAQs

भगवान कृष्ण ने क्यों उठाया गोवर्धन पर्वत?

जब इंद्रदेव ने गोकुल पर मूसलधार बारिश की, तो गोकुलवासी भगवान कृष्ण से सहायता मांगी। ऐसे में भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया और सभी को इसके नीचे शरण लेने का निर्देश दिया। कृष्ण ने सात दिनों तक पर्वत को थामे रखा, जिससे सभी लोग सुरक्षित रहे। 

गोवर्धन पूजा का रहस्य क्या है?

पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान कृष्ण ने देवराज इंद्र के अहंकार को तोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी, तब इंद्रदेव ने नाराजगी जताते हुए गोकुल पर मूसलधार बारिश भेजी। इसके बाद भगवान कृष्ण ने इस संकट से अपने भक्तों की रक्षा की। तबसे गोवर्धन पूजा मनाने की परंपरा शुरू हुई। 

गोवर्धन पूजा का दूसरा नाम क्या है?

गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। 

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