प्रजनन तंत्र

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Reproductive System in Hindi

जिस प्रक्रम द्वारा जीव अपनी संख्या में वृद्धि करते हैं, उसे प्रजनन कहते हैं। प्रजनन जीवों का सर्वप्रमुख लक्षण है। इस पृथ्वी पर जीव-जातियों की सततता प्रजनन के फलस्वरूप ही संभव हो पायी है। इस प्रकार प्रजनन वह प्रक्रम है जिसके द्वारा जीव अपनी ही जैसी अन्य उर्वर सन्तानों की उत्पत्ति करता है और इस प्रकार अपनी संख्या में वृद्धि कर अपनी जाति के अस्तित्व को बराबर बनाए रखकर उसे विलुप्त होने से बचाता है। जीवों के प्रजनन में भाग लेने वाले अंगों प्रजनन अंग तथा एक जीव के सभी प्रजनन अंगों को सम्मिलित रूप से प्रजनन तंत्र कहते हैं। चलिए जानते हैं Reproductive System in Hindi के बारे में।

मानव प्रजनन तंत्र

Reproductive System in Hindi का कार्य संतानोत्पत्ति है। मानव एकलिंगी (Unisexual) प्राणी है, अर्थात् नर और मादा लिंग अलग-अलग जीवों में पाये जाते हैं। जो जीव केवल शुक्राणु उत्पन्न करते हैं उसे नर कहते हैं। जिन जीवों से केवल अण्डाणु की उत्पत्ति होती है, उन्हें मादा कहते हैं। मानव में प्रजनन तंत्र अन्य जन्तुओं की अपेक्षा बहुत अधिक विकसित और जटिल होता है। मानव में अपडे का निषेचन (Fertilization) फैलोपियन नलिका (Fallopian tube) तथा भ्रूणीय तथा (Embryonic development) गर्भाशय (Uterus) में होता है। मानव जरायुज (viviparous) होते हैं अर्थात् ये सीधे शिशु को जन्म देते हैं। मानव में जनन अंग मादा में 12 से 13 वर्ष की उम्र में तथा नर में 15 से 18 वर्ष की उम्र में प्रायः क्रियाशील हो जाते हैं। प्रजनन अंग भी कुछ हार्मोन (Hormone) का स्राव (secretion) करते हैं जो शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन लाते हैं। ऐसे परिवर्तन मादा में प्रायः वक्ष तथा जनन अंगों पर बाल उगने तथा नर में दाढ़ी एवं मूंछ आने से परिलक्षित होता है। मानव में नर तथा मादा प्रजनन अंग पूर्णतया अलग अलग होते हैं।

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नर प्रजनन तंत्र

जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग संयुक्त रूप से नर प्रजनन तंत्र कहलाते हैं। प्रजनन तंत्र में मानव के नर प्रजनन तंत्र में निम्नलिखित लैंगिक अंग एवं उनसे सम्बद्ध अन्य रचनाएँ पायी जाती हैं-

1.वृषण एवं वृषण कोष, 
2. अधिवृषण, 
3. शुक्रवाहिका, 
4. शुक्राशय,
5. मूत्र मार्ग,
6. शिश्न
7. पुरःस्थ या प्रोस्टेट।

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वृषण एवं वृषण कोष

वृषण नर जनन ग्रन्थियाँ हैं जो अण्डाकार होती हैं। इनकी संख्या दो होती है। वृषण नर में पाया जाने वाला प्राथमिक जनन अंग है। वृषण त्वचा की बनी एक थैली जैसी रचना में स्थित रहते हैं जो शरीर के बाहर लटकती रहती है। इसे वृषण कोष (scrotal sae) कहते हैं। वृषण की कोशिकाओं द्वारा नर युग्मक अर्थात् शुक्राणुओं का निर्माण होता है। शुक्राणु (sperm) उत्पादन के लिए आवश्यक ताप शरीर के ताप से कम होता है। यही कारण है कि वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में स्थित होते हैं। एक औसत स्खलन में लगभग एक चम्मच शुक्र स्राव होता है। इसमें शुक्राणुओं की संख्या 20 से 20 लाख तक होती है। शुक्राणु की लम्बाई 5 माइक्रॉन होती है। यह तीन भाग में विभाजित रहता है- सिर, ग्रीवा और पुच्छ। शुक्राणु शरीर में 30 दिन तक जीवित रहते हैं जबकि मैथून के पश्चात स्त्रियों में केवल 72 घण्टे तक ये जीवित रहते हैं। वृषण में एक प्रकार का द्रव भरा रहता है जिसे वृषण द्रव (seminal fluid) कहते हैं।

वृषण का प्रत्येक खण्ड शुक्रजनन नलिकाओं (seminiferous tubules) से भरा रहता है। ये नलिकाएँ छल्लेदार होती है। शुक्रजनन नलिकाओं के बीच अंतराली कोशिकाओं (Interstitial cells) के समूह पाये जाते हैं जो नर जनन हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन (Testosterone) का स्राव करती है। यह हार्मोन गौण लैंगिक लक्षणों (secondary sexual characters) के विकास और नियंत्रण में सहायक होता है। सभी शुक्रजनन नलिकाएँ आपस में मिलकर शुक्र अपवाहिका (vas efferentia) बनाती है। शुक्र-अपवाहिकाएँ मिलकर अन्त में अधिवृषण-वाहिनी (Epididymis duct) बनाती है। वृषण में ही शुक्रजनन नलिकाओं द्वारा शुक्राणु कोशिकाओं की उत्पत्ति होती है। वृषण से शुक्राणु कोशिकाएँ अधिवृषण (Epididyonis) में चली जाती हैं जहाँ वे संचित रहती हैं। वृषण का प्रमुख कार्य शुक्राणुओं का निर्माण करना और नर हार्मोन टेस्टोस्टेरान की उत्पत्ति करना है।

अधिवृषण

यह एक 6 मीटर लम्बी कुण्डलित नलिका होती है जो प्रत्येक वृषण के पीछे स्थित होती है। यह वृषण से अच्छी तरह जुड़ी रहती है। इसका एक छोर वृषण से जुड़ा रहता है तथा दूसरा छोर अधिवृषण से आगे बढ़कर शुक्रवाहिका (vas deferens) बनाता है। अधिवृषण शुक्राणुओं के प्रमुख संग्रह स्थान का कार्य करता है। इसके अतिरिक्त अधिवृषण में शुक्राणुओं का परिपक्वन (Maturation) भी होता है। शुक्राणु यहीं सक्रियता प्राप्त करते हैं।

शुक्रवाहिका 

यह एक पतली नलिका होती है जिसकी भित्तियाँ मांसपेशियों की बनी होती है। अधिवृषण से शुक्राणु शुक्रवाहिका में पहुँचते हैं। शुक्रवाहिका अधिवृषण को शुक्राशय (seminal vesicle) से जोड़ती है। ये शुक्राणुओं को आगे की ओर बढ़ाने का काम करती हैं।

शुक्राशय 

यह एक जोड़ी पतली पेशीयुक्त भितियोंवाली रचना होती है। ये पालियुक्त (Lobed) रचनाएँ होती हैं। यह प्रोस्टेट ग्रन्थियों (Prostate glands) के ऊपर स्थित रहता है। दोनों ओर के शुक्राशय मिलकर स्खलनीय वाहिनी (Ejaculatory duct) का निर्माण करते हैं। शुक्राशय से एक प्रकार का चिपचिपा पदार्थ स्रावित होता है।

 पुरःस्थ (Prostate)

 यह मूत्र मार्ग से मूत्राशय तक सम्बद्ध रहता है। इसका आकार गोल सुपारी जैसा होता है। दोनों पुरःस्थ (Prostate) ग्रन्थियाँ संयुक्त होकर एक सामान्य पुरःस्थ ग्रन्थि का निर्माण करती है। इसमें लगभग दो दर्जन नलिकाएँ होती हैं जो मूत्रमार्ग में खुलती है। Reproductive System in Hindi में पुरःस्थ से एक प्रकार का द्रव स्रावित होता है जिसे पुरःस्थ द्रव (Prostate fluid) कहते हैं। यह द्रव शुक्र (semen) को विशिष्ट गंध प्रदान करता है। पुरःस्थ द्रव शुक्राशय द्रव के साथ मिलकर मूत्रमार्ग में पहुँचते हैं।

शिश्न (Penis) 

शिश्न पुरुषों का संभोग करने वाला अंग होता है। शिश्न के माध्यम से ही शुक्राणु मादा के प्रजनन तंत्र में पहुँचते हैं। मूत्र मार्ग मूत्राशय से प्रारम्भ होकर शिश्न से गुजरकर उसके (शिश्न के) ऊपरी भाग में खुलता है। शिश्न में अत्यधिक रक्त की आपूर्ति होती है। साथ-ही-साथ इसकी पेशियाँ भी विशिष्ट प्रकार की होती है। जो इसे कड़ापन प्रदान करती है। शिश्न शुक्र (semen) को शरीर से बाहर निकालकर मादा की योनि के भीतर तक पहुँचाता है।

Source: Grade booster

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मादा जनन तंत्र

मादा जनन तंत्र में निम्नलिखित जनन अंग होते हैं-

  • अण्डाशय 
  • अण्डवाहिनियाँ 
  • गर्भाशय 
  • योनि

अण्डाशय

 प्रत्येक मादा में एक जोड़ा अंडाशय होता है। ये उदर के निचले भाग में श्रोणिगुहा (Pelvie cavity) में दोनों ओर दाएँ और बाएँ एक-एक स्थित होते हैं। प्रत्येक अंडाशय एक अंडाकार (Oval) रचना होती है। प्रत्येक अंडाशय लगभग 4 सेमी लम्बा, 2.5 सेमी चौड़ा और 1.5 सेमी मोटा होता है। अंडाशय पेरिटोनियम (Peritoneurn) झिल्ली द्वारा उदर (Abdomen) से सटा रहता है। अंडाशय के भीतर अंडाणुओं का अंडजनन द्वारा निर्माण होता है। अंडाशय का बाह्य स्तर एपिथीलियम का बना होता है जिसे जनन एपिथीलियम (Germinal epithelium) कहते हैं। Reproductive System में अंडाशय का आन्तरिक भाग तंतुओं एवं संयोजी ऊतक (Connective tissue) का बना होता है, जिसे स्टोमा (stroma) कहते हैं। अंडाशय का मुख्य कार्य अंडाणु (Ovum) पैदा करना है। अंडाशय से दो हार्मोन आस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा प्रोजेस्टेरान (Progesterone) का स्राव (Secretion) होता है, जो ऋतुस्राव (Menstruation) को नियंत्रित करते हैं।

अण्डवाहिनियाँ

अण्डवाहिनी या फैलोपियन नलिका की संख्या दो होती है, जो गर्भाशय के ऊपरी भाग के दोनों बगल लगी रहती है। प्रत्येक फेलोपियन नलिका लगभग 10 सेमी लम्बी होती है। इस नलिका का एक सिरा गर्भाशय से सम्बद्ध रहता है और दूसरा सिरा अण्डाशय की ओर अंगुलियों के समान झालर बनाता है। इस रचना को फिम्ब्री (Fimbri) कहते हैं। अण्डाणु जब अण्डाशय से बाहर निकलता है तब वह फिम्ब्री द्वारा पकड़ लिया जाता है। इसके बाद अण्डाणु फेलोपियन नलिका की गुहा में पहुँच जाता है। फेलोपियन नलिका से अण्डाणु गर्भाशय में पहुँचता है। फेलोपियन नलिका का प्रमुख कार्य फिम्ब्री द्वारा अण्डाणु को पकड़ना और गर्भाशय में पहुँचाना है।

गर्भाशय

यह एक नाशपाती के समान रचना होती है जो श्रोणिगुहा (Pelvie Cavity) में स्थित होती है। यह सामान्यतः 7.5 सेमी लम्बा, 5 सेमी चौड़ा तथा 3.5 सेमी मोटा होता है। इससे ऊपर की तरफ दोनों ओर अर्थात् दाएँ और बाएँ कोण पर अण्डवाहिनी खुलती है। इसका निचला भाग सँकरा होता है जिसे ग्रीवा (Cervix) कहते हैं। ग्रीवा आगे की ओर योनि में परिवर्तित हो जाता है। गर्भाशय का निचला छिद्र इसी में खुलता है। Reproductive System in Hindi में गर्भाशय की भित्ति पेशीय (Muscular) होती है, जिसके भीतर खाली जगह होती है। गर्भाशय की भित्ति के अंदर की ओर एक कोशिकीय स्तर होता है जिसे गर्भाशय अंत: स्तर (Endometrium) कहते हैं। गर्भाशय प्रमुख कार्य निषेचित अण्डाणुओं को भ्रूण परिवर्द्धन हेतु उचित स्थान प्रदान करना है।

योनि

Reproductive System in Hindi में योनि की यह एक नली के समान रचना होती है। यह लगभग 7.5 सेमी लम्बी होती है। यह बाहर के तल से गर्भाशय तक फैली रहती है। इसके सामने मूत्राशय तथा नीचे मलाशय स्थित होता है। योनि की दीवार पेशीय ऊतक की बनी होती है। योनि का एक सिरा मादा जनन छिद्र के रूप में बाहर खुलता है तथा दूसरा सिरा पीछे की ओर गर्भाशय की ग्रीवा (Cervix) से जुड़ा रहता है। योनि के शरीर के बाहर खुलने वाले छिद्र को योनि द्वार कहते हैं। योनि की दीवार में वल्बोरीथल ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं, जिससे एक चिपचिपा द्रव निकलता है। यह द्रव संभोग के समय योनि को चिकना बनाता है। योनि एवं मूत्रवाहिनी के द्वार के ऊपर एक छोटा-सा मटर के दाने के जैसा उभार स्थित होता है जिसे भग शिशिनका (Clitoris) कहते हैं। यह एक अत्यन्त ही उत्तेजक अंग होता है, जिसे स्पर्श करने या शिश्न (Penis) के सम्पर्क में आने पर स्री को अत्यधिक सुखानुभूति होती है। मैथून के समय शिश्न से वीर्य निकलकर योनि में गिरता है तथा योनि इसे गर्भाशय में पहुँचा देती है।

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प्रजनन की अवस्थाएं 

मनुष्य में प्रजनन की निम्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं।

(a) युग्मकजनन (Gametogenesis): वृषण तथा अण्डाश्य में अगुणित युग्मकों (Haploid gametes ) की निर्माण विधि को युग्मकजनन कहा जाता है। नर के वृषण में होने वाली इस क्रिया द्वारा शुक्राणुओं का निर्माण होता है तथा यह क्रिया शुक्रजनन कहलाती है । मादा के अण्डाशय में युग्मको की निर्माण क्रिया जिस के द्वारा अण्डाणु का निर्माण होता है। अण्डजनन कहलाती है।

(b) निषेचन (Fertilization) : मादा में उपस्थित अण्डाणु मेथुन के दौरान नर द्वारा छोड़े गए शुक्राणुओं के संपर्क में आते हैं तथा संयुग्मन कर युग्मनज (Zygote ) का निर्माण करते है। यह प्रक्रिया निषेचन कहलाती है।

(c) विदलन तथा भ्रूण का रोपण (Cleavage and embryo implantation): युग्मनज समसूत्री विभाजन द्वारा एक संरचना बनाता है जिसे कोरक (Blastula) कहा जाता है। तत्पश्चात् कोरक गर्भाशय के अंतःस्तर (En dometrium) में जाकर स्थापित होता है। यह प्रक्रिया भ्रूण का रोपण (Embryo implantation) कहलाती है।

(d) प्रसव (Accouchement): भ्रूण, रोपण के पश्चात् भ्रूणीय विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। गर्भस्थ शिष्यु का पूर्ण विकास होने पर बच्चा जन्म लेता है। शिशु जन्म की प्रक्रिया प्रसव कहलाती है ।

गर्भधारण परिस्थितियां

सम्भोग क्रिया द्वारा हमेशा गर्भधारण नहीं होता है। इसके लिए कुछ परिस्थितियों का अनुकूल होना आवशयक है ये परिस्थितियाँ हैं-

  1. गर्भधारण के लिए आवश्यक है कि ऋतुस्राव के 14वें दिन के आस-पास या 11वें से 18वें दिन के अन्दर सम्भोग अनिवार्य रूप से हो।
  2. अण्डवाहिनी (Fallopian tube) एवं गर्भाशय सूजन एवं संक्रमण से मुक्त हो।
  3. वीर्य (semen) में शुक्राणुओं (sperms) की संख्या सामान्य हो।

महत्वपूर्ण तथ्य

Reproductive System in Hindi से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य नीचे दिए गए हैं:

  1. यौवनारम्भ (Puberty): मनुष्य के जीवन काल में जब उसमें जनन क्षमता आरम्भ होती है, वह समय यौवनारम्भ (Puberty) कहलाता है। जनन की क्षमता स्त्रियों में सामान्यतः 12-16 वर्ष की उम्र में प्रारम्भ होती है जबकि 40-50 वर्ष की आयु में समाप्त हो जाती है। पुरुषों में भी यौवनारम्भ प्रायः 12-16 वर्ष की उम्र में होता है जबकि 50 वर्ष की उम्र के बाद धीरे-धीरे जनन क्षमता घटती जाती है।
  2. गौण लैंगिक लक्षण (Secondary Sexual Characters): यौवनारम्भ के समय मनुष्य के शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं तथा अनेक ऐसे परिवर्तन होते हैं जो मादा को नर से विभेदित करते हैं। इन लक्षणों को गौण लैंगिक लक्षण कहते हैं।
  3. मेनार्कि (Menarche)– लड़कियों में मासिक चक्र का प्रथम बार प्रारम्भ होना (12-13 वर्ष की उम्र में) मेनार्कि (Menarche) कहलाता है।
  4. रजनोवृति (Menopause): स्त्रियों में 40-50 वर्ष की उम्र के पश्चात ऋतु स्राव नहीं होता है। इसे ही रजनोवृति (Menopause) कहते हैं।
  5. अण्डोत्सर्ग (Ovulation): अण्डाशय द्वारा अण्डाणु की निर्मुक्ति को अण्डोत्सर्ग कहते हैं।
  6. जरायु (Chorion): गर्भ की सबसे बाहरी झिल्ली को जरायु कहते हैं।
  7. अंकुर (Villi): जरायु से अंगुलियों के आकार के अनेक प्रवर्द्ध निकलते हैं, जिन्हें अंकुर कहते हैं।
  8. अपरा (Placenta): अंकुर और गर्भाशय कोशिकीय परत के सम्पर्क क्षेत्र को अपरा कहते हैं।
  9. नाभिरज्जु (Umbilical cord): गर्भ अपरा से एक मजबूत डोरी जैसी रचना से जुड़ा रहता है जिसे नाभिरज्जु कहते हैं। यह माता और गर्भ के बीच सम्पर्क अंग का कार्य करता है।
  10. युग्मनज (zygote): निषेचित अण्डाणु को युग्मनज कहा जाता है।
  11. कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial insemination): जब शुक्राणु की मादा योनि (Vagina) में कृत्रिम विधि द्वारा स्थानान्तरित किये जाते हैं तो इस क्रिया को कृत्रिम वीर्यसेचन कहते हैं।
  12. आन्तरिक निषेचन (Internal fertilization): उच्च स्तनधारियों में निषेचन की क्रिया मादा के शरीर के अंदर होती है। इस प्रकार के निषेचन की आन्तरिक निषेचन कहते हैं।
  13. वीर्य सेचन (Insemination): मैथुन के समय नर के शिशन द्वारा मादा की योनि में वीर्य जमा करना वीर्य सेचन या इनसेमिनेशन कहलाता है।

प्रजनन प्रणाली MCQ प्रश्न और उत्तर

प्रश्न- प्राणियों में सवंर्द्धन तथा विकास किन दो प्रकार से होता है?

उत्तर- अलैंगिक व लैंगिक जनन

प्रश्न- वर्धी जनन तथा स्पोर जनन किस प्रजनन का आधार है?

उत्तर- अलैंगिक प्रजनन

प्रश्न- किस जनन के अंतर्गत द्विखंडन, मुकुलन तथा पुनरुद्भवन आते हैं?

उत्तर- वर्धी जनन

प्रश्न- किस प्रकार का प्रजनन एककोशिक जीवधारियों में होता है?

उत्तर- द्विखंडन

प्रश्न- हाइड्रा व यीस्ट में किस प्रकार की प्रजनन क्रिया पाई जाती है?

उत्तर- मुकुलन

प्रश्न- इकाइनोडर्म-स्टारफिश स्पीशीज के जीवों में पुनरुद्भवन किसके द्वारा होता है?

उत्तर- पाद तथा भुजा

प्रश्न- मानव शरीर की कोशिकाओं में गुणसूत्र कहाँ होते हैं?

उत्तर- केन्द्रक के भीतर

प्रश्न- क्रोमोसोम की संख्या कितनी होती है?

उत्तर- 46

प्रश्न- लैंगिक जनन कितने युग्मकों के संयोग से पूर्ण होता है?

उत्तर- दो

प्रश्न- दोनों प्रकार के युग्मकों के संयोजन से क्या बनता है?

उत्तर- युग्मनज

प्रश्न- शरीर में स्थित जनन अंगों में अर्द्धसूत्री विभाजन से किनका निर्माण होता है?

उत्तर- युग्मकों

प्रश्न- पत्तियाँ किन दो प्रकार की होती हैं?

उत्तर- शल्क व सत्य पत्र

प्रश्न- गुरुबीजाणुधानी धारण करने वाली पत्तियाँ क्या कहलाती हैं?

उत्तर- गुरुबीजाणुपर्ण

प्रश्न- बीजाणुपर्ण का परिपक्वन कैसा होता है?

उत्तर- तलाभिसारी

प्रश्न- बीजाणुधानी की दीवार का सबसे भीतरी स्तर क्या कहलाता है?

उत्तर- टेपिटम

प्रश्न- पादप जगत् में किसके बीजाण्ड सबसे बड़े होते हैं?

उत्तर- साइकस

प्रश्न- जिम्नोस्पर्म क्लास के पौधों में किन दो प्रकार की पत्तियाँ होती हैं?

उत्तर- शल्क व सत्य पत्र

प्रश्न- ऐन्जियोस्पर्म का पौधा किस प्रकार का होता है?

उत्तर- स्पोरोफाइट

प्रश्न- ऐन्जियोस्पर्म के पुष्प किस अक्ष पर स्थित होते हैं?

उत्तर- पुष्पाक्ष

प्रश्न- एक प्रारूपी पुष्प के कितने प्रमुख भाग होते हैं?

उत्तर- चार

प्रश्न- पुष्प के नर जननांग क्या कहलाते हैं?

उत्तर- पुमंग

प्रश्न- प्रत्येक पुंकेसर में कौन-से भाग होते हैं?

उत्तर- पुतंतु, परागकोष, योजी

प्रश्न- पुंकेसर का सबसे महत्वपूर्ण भाग कौन-सा होता है?

उत्तर- परागकोश

प्रश्न- सरसों,मूली,शलजम किस कुल के पौधे हैं?

उत्तर- क्रूसीफेरी

प्रश्न- गुडहल, भिण्डी, कपास किस कुल के पौधे हैं?

उत्तर- मालवेसी

प्रश्न- वृपण, अधिवृषण, शुक्रवाहिका पुरःस्थ, शिश्न किस प्रजनन तंत्र के उदाहरण हैं?

उत्तर- पुरुष

प्रश्न- शुक्रजनक नलिकाएँ कहाँ स्थित होती हैं?

उत्तर- वृषण

प्रश्न- यौवनारम्भ के समय किसका स्राव बढ़ जाता है?

उत्तर- टेस्टोस्टीरॉन

प्रश्न- शुक्र अथवा वीर्य का मुख्य भाग किसके स्राव द्वारा बनता है?

उत्तर- शुक्राशय

प्रश्न- किस अंग के द्वारा शुक्राणु वृषण से शुक्रवाहिका में आते हैं?

उत्तर- अधिवृषण

प्रश्न- शिश्न किसका बना होता है

उत्तर- स्पंजी ऊतक

प्रश्न- स्वी प्रजनन तंत्र के सभी बाह्य अंगों को सम्मिलित रूप से क्या कहते हैं?

उत्तर- भग

प्रश्न- तंतुपास्थि संधि के सामने जघनास्थि के पास कौन-सा अंग होता है?

उत्तर- रति शेल

प्रश्न- समस्त भगोष्ठ की लंबाई कितनी होती है?

उत्तर- 7 सेमी या 3 इंच

प्रश्न- स्त्री जननांगों को क्या कहते हैं?

उत्तर- जायांग

प्रश्न- अण्डाशय, वर्तिका तथा वर्तिकाग्र किसके तीन भाग होते हैं?

उत्तर- प्रारूपी अण्डप

प्रश्न- वृहत भगोष्ठ के ऊपरी भाग में स्थित लघु भगोष्ठ किस से युक्त होता है?

उत्तर- हर्षण ऊतक

प्रश्न- पुरुष के शिश्न के समतुल्य स्त्री के प्रघाण के अग्रभाग में कौन-सी रचना होती है?

उत्तर- भगशिश्निका

प्रश्न- योनिद्वार पर स्थित एक पतला झिल्लीनुमा डायफ्राम क्या कहलाता है?

उत्तर- हाइमन

प्रश्न- पेशी निर्मित कौन-सी नलिका है जो बाहरी तल से गर्भाशय तक रहती है?

उत्तर- योनि

प्रश्न- गर्भाशय ग्रीवा के आगे तथा पार्श्व में स्थित छोटे अवकाशों को क्या कहते हैं?

उत्तर- अग्र तथा पार्श्व फोर्निक्स

प्रश्न- अंडाशय/डिंब ग्रंथियाँ, डिंबवाहिनी नली तथा गर्भाशय किस प्रकार के अंग है?

उत्तर- आंतरिक अंग

प्रश्न- डिंब का निर्माण, एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टेरॉन नामक स्राव उत्पन्न करना किसका कार्य है?

उत्तर- डिंब ग्रंथि

Source: Bodhaguru

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