Ram Naresh Tripathi Poems in Hindi : राम नरेश त्रिपाठी हिंदी साहित्य के उन जाने-माने कवियों, लेखकों और संपादकों में से एक थे, जिन्होंने अपनी लेखनी में सरल और सहज भाषा शैली का प्रयोग करके भारतीय जनमानस को प्रभावित करने का काम किया। उनके द्वारा लिखी गई कविताओं में प्रेम, प्रकृति, भक्ति, और देशभक्ति जैसे भावों की झलक देखने को मिलती है। उनके प्रमुख काव्य संग्रहों मिलन, स्वप्न, और पथिक के कारण ही उनकी लोकप्रियता बढ़ी थी। उनकी कविताओं ने हमेशा समाज का दर्पण बनकर युवाओं का मार्गदर्शन करने में मुख्य भूमिका निभाई है, साथ ही उनकी लेखनी में हमें भारतीय संस्कृति की सजीव झलक देखने को मिलती है। इस ब्लॉग में आपको रामनरेश त्रिपाठी की कविता (Ram Naresh Tripathi Poems in Hindi) पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, जो आपको जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करेंगी।
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रामनरेश त्रिपाठी की कविता – Ram Naresh Tripathi Poems in Hindi
रामनरेश त्रिपाठी की कविता (Ram Naresh Tripathi Poems in Hindi) जिन्होंने आज भी लोगों के दिलों में जगह बनाई हैं, वे हैं –
- पुष्प-विकास
- ज्ञान का दंड
- हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए
- तेरी छवि
- श्याम की शोभा
- आँखों का आकर्षण
- नारी
- धनहीन का कुटुम्ब
- राम कहाँ मिलेंगे
- प्रार्थना
- स्मृति
- अन्वेषण
- चमत्कार
- उपचार
- पश्चाताप
- रहस्य
- आशा
- नृत्य
- कहानी
- आकांक्षा
- विरहिणी
- मनुष्य-पशु
- चितवन का जादू
- मारवाड़ी
- महापुरुष
- हैट के गुण
- प्रियतम
- कामना
- चंद
- परलोक
- हार ही में जीत है
- प्रेम
- प्रेम-ज्योति
- आँसू
- उदारता
- मुसकान
- नीति के दोहे
- प्राकृतिक सौंदर्य
- स्वतंत्रता का दीपक
- वह देश कौन सा है
- मातृ-भूमि की जय
- विधवा का दर्पण
- पाँच सूचनाएँ
- मित्र-महत्व
- मिठास
- आश्चर्य
- सज्जन
- पुस्तक
- एकांतसंगी
- निशीथ-चिंता
- नया नखशिख
- अस्तोदय की वीणा
- हम लेंगे तेरा नाम
- साधु और नीच
- स्वदेश-गीत
- काश्मीर
- जागरण
- स्मृति
- अतुलनीय जिनके प्रताप का
- तेजस्वी बालक की एकांत-चिंता
- जब मैं अति विकल खड़ा था
- स्वप्नों में तैर रहा हूँ
- देख ली हमने मसूरी
- किमाश्चर्यमतः परम
- हिंदू विश्वविद्यालय
- आगे बढ़े चलेंगे
- शारद तरंगिणी
- संसार-दर्पण
- तिल्ली सिंह
- दोष-दर्शन
- चले चलो
- चतुर चित्रकार
- नंदू को जुकाम
- मामी निशा इत्यादि।
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पुष्प-विकास
एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें
देख फूल उठे हाथ पाँव उपवन के।
खोल खोल द्वार फूल घर से निकल आए,
देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥
वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उड़ी
पाई न, लजा के रही बाहर भवन के।
मारे अचरज के खुले थे तो खुले ही रहे,
तब से मुँदे न मुख चकित सुमन के॥
-रामनरेश त्रिपाठी
ज्ञान का दंड
सावन के श्यामघन शोभित गगन में
धरा में हरे कानन विमुग्ध करते हैं मन।
बकुल कदंब की सुगंध से सना समीर
पूरब से आकर प्रमत्त करता है तन॥
पर दूसरे ही छन आकर कहीं से, घूम
जाते हैं नयन में अकिंचन किसान गन।
सारे सुख साज बन जाते हैं विषाद रूप,
ज्ञानी को है ज्ञान दंड सुखी हैं विमूढ़ जन॥
देखते ही मृग याद आती मृगलोचनी है
फिर भूखे भारत के दृग याद आते हैं।
केकी के कलाप कोकिला के कल गान में
विलाप विधवा का सुन हम दुख पाते हैं॥
अत्याचार पीड़ित किसान के रुदन में
पयोद के विनोद हम भूल भूल जाते हैं।
भोग सकते न सुख भूल सकते न दुख
यों ही दुविधा में पड़े जीवन बिताते हैं॥
-रामनरेश त्रिपाठी
हे प्रभो आनन्ददाता ज्ञान हमको दीजिए
हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें।
ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥
गत हमारी आयु हो प्रभु! लोक के उपकार में
हाथ डालें हम कभी क्यों भूलकर अपकार में
हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए।
शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए।
-रामनरेश त्रिपाठी
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तेरी छवि
हे मेरे प्रभु! व्याप्त हो रही है तेरी छवि त्रिभुवन में।
तेरी ही छवि का विकास है कवि की वाणी में मन में॥
माता के नःस्वार्थ नेह में प्रेममयी की माया में।
बालक के कोमल अधरों पर मधुर हास्य की छाया में॥
पतिव्रता नारी के बल में वृद्धों के लोलुप मन में।
होनहार युवकों के निर्मल ब्रह्मचर्यमय यौवन में॥
तृण की लघुता में पर्वत की गर्व भरी गौरवता में।
तेरी ही छवि का विकास है रजनी की नीरवता में॥
ऊषा की चंचल समीर में खेतों में खलियानों में।
गाते हुए गीत सुख दुख के सरल स्वभाव किसानों में॥
श्रमी किंतु निर्धन मजूर की अति छोटी अभिलाषा में।
पति की बाट जोहती बैठी गरीबिनी की आशा में॥
भूख-प्यास से दलित दीन की मर्म-भेदिनी आहों में।
दुखियों के निराश आँसू में प्रेमीजन की राहों में॥
मुग्ध मोर के सरस नृत्य में कोकिल के पंचम स्वर में।
वन-पुष्पों के स्वाभिमान में कलियों के सुंदर घर में॥
निजता की व्याकुलता में औ’ संध्या के संकीर्तन में।
तेरी ही छवि का विकास है सतत परंहित-चिंतन में॥
खोल चंद्र की खिड़की जब तू स्वर्ग-सदन से हँसता है।
पृथ्वी पर नवीन जीवन का नया विकास विकसता है॥
जी में आता है किरनों में घुलकर केवल पल भर में।
बरस पड़ूँ मैं इस पृथ्वी पर विस्तृत शोभा-सागर में॥
-रामनरेश त्रिपाठी
श्याम की शोभा
श्याम के है अंग में तरंगित अनंत द्युति,
नित नित नूतन अकथनीय बात है।
नीलमनि कहना तो चित्त की कठोरता है,
भूले रजनी को तो कहे कि जलजात है॥
दृग से अधर तक दृष्टि न पहुँच पाती,
दृग में उधर आती नई करामात है।
जैसे जैसे ध्यान से हैं देखते समीप जाके
बार बार देखी अनदेखी होता ज्ञात है॥
-रामनरेश त्रिपाठी
आँखों का आकर्षण
अपने दिन रात हुए उनके
क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ।
सुलगी अनुराग की आग वहाँ
जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥
किससे कहिए अपनी सुधि को
मन है न यहाँ तन है न वहाँ।
अब आँख नहीं लगती पल भी
जब आँख लगी तब नींद कहाँ॥
-रामनरेश त्रिपाठी
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नारी
अलि अलकावलि, गुलाब गाल, कंज दृग,
किंशुक सी नाक, कोकिला सी किलकारी है।
पल्लव अधर, कुंद रदन, कपोत ग्रीवा,
श्रीफल उरोज, रोम-राजी लता प्यारी है॥
वापी नाभि, कदली जघन, रंग चंपक-सा
मृदुता सिरीस सी सुरभि सुखकारी है।
ऐसी मनोहारी वृंदावन में निहारी,
कौन जाने वह कोई फुलवारी है कि नारी है॥
-रामनरेश त्रिपाठी
धनहीन का कुटुम्ब
कौन कौन प्राणी धनहीन के कुटुम्ब में हैं?
पिता है अभाग्य और माता अधोगति है।
दुख शोक भाई, जो हैं जन्म से श्रवण हीन
आँख में न दृष्टि है न पाँव ही में गति है॥
भूख प्यास बहनें, सहोदर को छोड़ जिन्हें
दूसरा ठिकाना नहीं पुत्र है न पति है।
चिंता नाम कन्या, जो विवाह से विरक्त-सी है
मोह पुत्र, जिसमें पिता की भक्ति अति है॥
-रामनरेश त्रिपाठी
राम कहाँ मिलेंगे
ना मंदिर में ना मस्जिद में
ना गिरजे के आसपास में।
ना पर्वत पर ना नदियों में
ना घर बैठे ना प्रवास में।
ना कुंजों में ना उपवन के
शांति-भवन या सुख-निवास में।
ना गाने में ना बाने में
ना आशा में नहीं हास में।
ना छंदों में ना प्रबंध में
अलंकार ना अनुप्रास में।
खोज ले कोई राम मिलेंगे
दीन जनों की भूख प्यास में।
-रामनरेश त्रिपाठी
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