Birsa Munda Ka Jivan Parichay: बिरसा मुंडा एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और मुंडा जनजाति के लोकनायक थे। उन्होंने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारतीय आदिवासियों ने भी उन्हें सिर्फ नायक नहीं, बल्कि ‘धरती आबा’ यानी धरती के पिता के साथ भगवान का दर्जा भी दिया हैं।
बताना चाहेंगे भारत में हर वर्ष 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर ‘जनजातीय गौरव दिवस’ (Janjatiya Gaurav Diwas) मनाया जाता है। यह दिन उनकी शहादत और योगदान को याद करने का प्रतीक है। इसके साथ ही यह जनजातीय समुदाय की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, अनवरत संघर्ष और स्वाभिमान का उत्सव भी है। इस लेख में भगवान बिरसा मुंडा का जीवन परिचय (Birsa Munda Ka Jivan Parichay) और उनके योगदान के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
नाम | भगवान बिरसा मुंडा |
उपनाम | ‘धरती आबा’ |
जन्म | 15 नवंबर, 1875 |
जन्म स्थान | उलिहातु गांव, रांची जिला, झारखंड |
पिता का नाम | सुगना मुंडा |
माता का नाम | कर्मी हाटू |
जनजाति | मुंडा |
प्रसिद्ध | भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता और मुंडा जनजाति के लोकनायक |
कार्य | ब्रिटिश शासन का विरोध किया और आदिवासी अधिकारों के लिए विद्रोह का नेतृत्व किया। |
आंदोलन | भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन |
मृत्यु | 9 जून, 1900 रांची केंद्रीय जेल |
जीवनकाल | 24 वर्ष |
दिवस | जनजातीय गौरव दिवस |
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बिरसा मुंडा की जीवनी – Birsa Munda Ka Jivan Parichay
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड के रांची जिले (अब खूंटी जिला) में उलिहातु नामक गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। हालांकि उनका बचपन खूंटी के ही निकट चलकद गांव में बीता। इनके पिता का नाम ‘सुगना मुंडा’ और माता का नाम ‘कर्मी हाटू’ था। वहीं बिरसा के बचपन का नाम ‘दाऊद’ था। बताया जाता है कि बाल्यावस्था से ही उनका जीवन संघर्षमय बीता था। घर की प्रतिकूल आर्थिक स्थिति होने के बावजूद पिता ने उन्हें पढ़ने के लिए मिशनरी स्कूल भेजा था।
सन 1886 से 1890 तक बिरसा मुंडा चाईबासा के जर्मन मिशनरी स्कूल में पढ़ें। इसके बाद सन 1891 में उनका परिवार बंदगांव आ गया, जहां बिरसा मुंडा को वैष्णव धर्मगुरु आनंद पांडे का सानिध्य मिला। यहां वे लगभग तीन वर्षों तक वैष्णव धर्म के करीब रहे, उन्होंने जनेऊ धारण किया और गोकशी पर प्रतिबंध भी लगवाया।
बिरसा मुंडा का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान
बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के तहत जनजातीय लोगों को धर्मांतरित करने के मिशनरी प्रयासों के बारे में संज्ञान लिया। इसके बाद उन्होंने बिरसाइत संप्रदाय की स्थापना की, जिसका उद्देश्य आदिवासी पहचान को पुनर्जीवित करना तथा धर्मांतरण का विरोध करना था। सन 1895 में बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश राज और जमीदारों के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया। क्योंकि ये महाजन कर्ज के बदले आदिवासियों की जमीन पर कब्ज़ा कर लेते थे। बताना चाहेंगे उनके निधन तक चला ये विद्रोह ‘उलगुलान’ के नाम से जाना जाता है।
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बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी और मृत्यु
बिरसा मुंडा की लोकप्रियता ब्रिटिश हुकूमत की परेशानी का कारण बनी और पहली बार 22 अगस्त, 1895 को अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इसके बाद जनवरी 1900 में बिरसा मुंडा और अंग्रजों के बीच आखिरी लड़ाई हुई। फिर 3 फरवरी 1900 को बिरसा दोबारा गिरफ्तार किए गए। उन्हें राँची स्थित जेल में रखा गया। फिर 9 जून, 1900 को हैजा के कारण जेल में ही बिरसा मुंडा की मृत्यु (Birsa Munda Died) हो गयी।
बिरसा मुंडा की विरासत
आज भी झारखंड, छत्तीसगढ, बिहार, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुंडा को भगवान की तरह पूजा जाता है। बिरसा मुंडा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में राँची में बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा हवाई अड्डा भी है।
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राष्ट्रीय जनजातीय गौरव दिवस की स्थापना
भारत सरकार ने देश की स्वतंत्रता के 75 वर्षों का जश्न मनाते हुए वर्ष 2021 में आजादी का अमृत महोत्सव के दौरान 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ (Janjatiya Gaurav Diwas) के रूप में घोषित किया। यह दिन जनजातीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी भगवान बिरसा मुंडा की जयंती के दिन मनाया जाता है, जिनकी विरासत आज भी हमें प्रेरित करती है।
झारखंड राज्य की स्थापना
बिरसा मुंडा के जन्म दिवस के मौके पर ही 15 नवंबर, 2000 को झारखंड राज्य की स्थापना हुई थी। क्या आप जानते हैं कि बिरसा मुंडा का आंदोलन झारखंड के सबसे प्रमुख आंदोलनों में से एक है। बिरसा मुंडा को ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पर जनजातीय भूमि अधिकारों की रक्षा हेतु कानून बनाने के लिए दबाव डालने के लिए जाना जाता है।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ भगवान बिरसा मुंडा का जीवन परिचय (Birsa Munda Ka Jivan Parichay) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों के जीवन परिचय की जानकारी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं:-
FAQs
बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को हुआ था।
बिरसा मुंडा का जन्म झारखंड के उलीहातू गांव में हुआ था।
भगवान बिरसा मुंडा महान स्वतंत्रता सेनानी, धार्मिक नेता, समाज सुधारक और आदिवासी नायक थे, जिन्हें जल, जंगल और जमीन के लिए ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ लड़ाई के लिए याद किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि बिरसा मुंडा ने अबुआ दिशुम अबुआ राज (Abua Disum Abua Raj) का नारा दिया था।
बिरसा मुंडा का दूसरा नाम ‘धरती आबा’ (Dharti Aaba) है।
बिरसा मुंडा के गुरु का नाम आनंद पांडे था।
भगवान बिरसा मुंडा की जयंती, 15 नवंबर को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाई जाती है।
बिरसा मुंडा की मृत्यु रांची जेल में 9 जून, 1900 को हैजा की बीमारी से हुई थी।
भगवान बिरसा मुंडा मात्र 24 साल 7 महीने की अल्पायु में 9 जून 1900 को वीरगति को प्राप्त हुए।
आशा है कि आपको भगवान बिरसा मुंडा का जीवन परिचय (Birsa Munda Ka Jivan Parichay) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।