Poem on Friends in Hindi: दोस्ती के रंग, भावनाओं के संग…सच्ची दोस्ती पर भावुक कविताएँ

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Poem on Friends in Hindi

Poem on Friends in Hindi: दोस्ती, यह एक ऐसा रिश्ता है जो बिना किसी शर्त के बनता है। दोस्ती जैसे रिश्ते में स्वार्थ का स्थान नहीं होता, इस रिश्ते में बस स्नेह, समझदारी और एक-दूसरे के प्रति अटूट विश्वास होता है। यह एक ऐसा अनमोल बंधन है, जहां भावनाएं शब्दों से अधिक मायने रखती हैं, और मौन भी बहुत कुछ कह जाता है। दोस्ती में कभी हंसी-ठिठोली होती है, तो कभी आंखों में नमी लिए गहरी बातें। यह जीवन की वह पूंजी है, जिसे कोई चुरा नहीं सकता, कोई बांट नहीं सकता। इस लेख में दोस्ती पर कविता (Emotional Dosti Par Kavita) दी गई हैं, जो आपको दोस्ती का महत्व बताएंगी। इन कविताओं के माध्यम से आप अपने दोस्तों के साथ अपनी दिल की बातें साझा कर पाएंगे। आइए, पढ़ें दोस्ती पर कविता।

दोस्ती पर कविता – Emotional Dosti Par Kavita

दोस्ती पर कविता (Poem on Friends in Hindi) की सूची इस प्रकार है:

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
दोस्ती जब किसी से की जायेराहत इंदौरी
न देना दोस्ती में दाँव, रिश्ता टूट जाता हैज्ञानेन्द्र मोहन ‘ज्ञान’
दोस्ती अपनी कभी टूटे नहींमृदुला झा
तीन दोस्तदुष्यंत कुमार
दिल में उल्फ़त नहीं है तो फिर दोस्ती की अदा छोड़ देशाहिद मिर्ज़ा शाहिद
फिर लौटकर दोस्ती के जमाने नहीं आतेहरिवंशराय बच्चन

दोस्ती जब किसी से की जाये

दोस्ती जब किसी से की जाये।
दुश्मनों की भी राय ली जाये।

मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये।

बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये।

मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाये।

बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये।

राहत इंदौरी
साभार – कविताकोश

न देना दोस्ती में दाँव, रिश्ता टूट जाता है

न देना दोस्ती में दाँव, रिश्ता टूट जाता है।
तभी देखा गया, अच्छे से अच्छा टूट जाता है।

किसी का दिल हुआ या आइना रखना हिफाज़त से,
कहीं पर चूकना मत दोस्त, वरना टूट जाता है।

घिरा है दोस्तों से वो कि जब तक पास है पैसा,
वही फिर मुफ़लिसी में बेसहारा टूट जाता है।

हसीं सा ख़्वाब टूटा सोचते हैं फिर उसे देखें,
मगर फिर आँख खुलते ही वो सपना टूट जाता है।

कहा तो है गया नादान से मत दोस्ती करना,
भरोसे ‘ज्ञान’ उसके हो तो वादा टूट जाता है।

ज्ञानेन्द्र मोहन ‘ज्ञान’
साभार – कविताकोश

दोस्ती अपनी कभी टूटे नहीं

दोस्ती अपनी कभी टूटे नहीं,
साथ अपनों का कभी छूटे नहीं।

लहलहाते पौध हैं हम हिन्द के,
गैर कोई यह चमन लूटे नहीं।

लाख शिकवा है मुझे उनसे मगर,
ये दुआ है आसरा छूटे नहीं।

चँद तनहा घूमता आकाश में,
हैं सितारों के कहीं बूटे नहीं।

जुल्म और आतंक का यह जलजला,
कुफ्र बनकर फिर कभी फूटे नहीं।

जुस्तजू उनकी सदा दिल में रही,
प्यार के एहसास भी झूठे नहीं।

बेमुरौवत बेवफा तो हम नहीं,
तुम भी कह सकते हो हम झूठे नहीं।

मृदुला झा
साभार – कविताकोश

तीन दोस्त

सब बियाबान, सुनसान अँधेरी राहों में
खंदकों खाइयों में
रेगिस्तानों में, चीख कराहों में
उजड़ी गलियों में
थकी हुई सड़कों में, टूटी बाहों में
हर गिर जाने की जगह
बिखर जाने की आशंकाओं में
लोहे की सख्त शिलाओं से
दृढ़ औ’ गतिमय
हम तीन दोस्त
रोशनी जगाते हुए अँधेरी राहों पर
संगीत बिछाते हुए उदास कराहों पर
प्रेरणा-स्नेह उन निर्बल टूटी बाहों पर
विजयी होने को सारी आशंकाओं पर
पगडंडी गढ़ते
आगे बढ़ते जाते हैं
हम तीन दोस्त पाँवों में गति-सत्वर बाँधे
आँखों में मंजिल का विश्वास अमर बाँधे।

हम तीन दोस्त
आत्मा के जैसे तीन रूप,
अविभाज्य–भिन्न।
ठंडी, सम, अथवा गर्म धूप–
ये त्रय प्रतीक
जीवन जीवन का स्तर भेदकर
एकरूपता को सटीक कर देते हैं।
हम झुकते हैं
रुकते हैं चुकते हैं लेकिन
हर हालत में उत्तर पर उत्तर देते हैं।

हम बंद पड़े तालों से डरते नहीं कभी
असफलताओं पर गुस्सा करते नहीं कभी
लेकिन विपदाओं में घिर जाने वालों को
आधे पथ से वापस फिर जाने वालों को
हम अपना यौवन अपनी बाँहें देते हैं
हम अपनी साँसें और निगाहें देते हैं
देखें–जो तम के अंधड़ में गिर जाते हैं
वे सबसे पहले दिन के दर्शन पाते हैं।
देखें जिनकी किस्मत पर किस्मत रोती है
मंज़िल भी आख़िरकार उन्हीं की होती है।

जिस जगह भूलकर गीत न आया करते हैं
उस जगह बैठ हम तीनों गाया करते हैं
देने के लिए सहारा गिरने वालों को
सूने पथ पर आवारा फिरने वालों को
हम अपने शब्दों में समझाया करते हैं
स्वर-संकेतों से उन्हें बताया करते हैं–
‘तुम आज अगर रोते हो तो कल गा लोगे
तुम बोझ उठाते हो, तूफ़ान उठा लोगे
पहचानो धरती करवट बदला करती है
देखो कि तुम्हारे पाँव तले भी धरती है।’

हम तीन दोस्त इस धरती के संरक्षण में
हम तीन दोस्त जीवित मिट्टी के कण कण में
हर उस पथ पर मौजूद जहाँ पग चलते हैं
तम भाग रहा दे पीठ दीप-नव जलते हैं
आँसू केवल हमदर्दी में ही ढलते हैं
सपने अनगिन निर्माण लिए ही पलते हैं।

हम हर उस जगह जहाँ पर मानव रोता है
अत्याचारों का नंगा नर्तन होता है
आस्तीनों को ऊपर कर निज मुट्ठी ताने
बेधड़क चले जाते हैं लड़ने मर जाने
हम जो दरार पड़ चुकी साँस से सीते हैं
हम मानवता के लिए जिंदगी जीते हैं।

ये बाग़ बुज़ुर्गों ने आँसू औ’ श्रम देकर
पाले से रक्षा कर पाला है ग़म देकर
हर साल कोई इसकी भी फ़सलें ले खरीद
कोई लकड़ी, कोई पत्तों का हो मुरीद
किस तरह गवारा हो सकता है यह हमको
ये फ़सल नहीं बिक सकती है निश्चय समझो।
हम देख रहे हैं चिड़ियों की लोलुप पाँखें
इस ओर लगीं बच्चों की वे अनगिन आँखें
जिनको रस अब तक मिला नहीं है एक बार
जिनका बस अब तक चला नहीं है एक बार
हम उनको कभी निराश नहीं होने देंगे
जो होता आया अब न कभी होने देंगे।

ओ नई चेतना की प्रतिमाओं, धीर धरो
दिन दूर नहीं है वह कि लक्ष्य तक पहुँचेंगे
स्वर भू से लेकर आसमान तक गूँजेगा
सूखी गलियों में रस के सोते फूटेंगे।

हम अपने लाल रक्त को पिघला रहे और
यह लाली धीरे धीरे बढ़ती जाएगी
मानव की मूर्ति अभी निर्मित जो कालिख से
इस लाली की परतों में मढ़ती जाएगी
यह मौन
शीघ्र ही टूटेगा
जो उबल उबल सा पड़ता है मन के भीतर
वह फूटेगा,
आता ही निशि के बाद
सुबह का गायक है,
तुम अपनी सब सुंदर अनुभूति सँजो रक्खो
वह बीज उगेगा ही
जो उगने लायक़ है।

हम तीन बीज
उगने के लिए पड़े हैं हर चौराहे पर
जाने कब वर्षा हो कब अंकुर फूट पड़े,
हम तीन दोस्त घुटते हैं केवल इसीलिए
इस ऊब घुटन से जाने कब सुर फूट पड़े।

दुष्यंत कुमार
साभार – कविताकोश

दोस्ती पर कविता – Poem on Friends in Hindi

यहाँ दोस्ती पर कविता (Poem on Friends in Hindi) दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर आप दोस्ती का महत्व जान पाएंगे। दोस्ती पर कविता (Poem on Friends in Hindi) इस प्रकार हैं;-

दिल में उल्फ़त नहीं है तो फिर दोस्ती की अदा छोड़ दे

दिल में उल्फ़त नहीं है तो फिर दोस्ती की अदा छोड़ दे
वार करना है सीने पे कर, दुश्मनी कर, दगा छोड़ दे

चाहे जैसे भी हालात हों, राह कितनी भी दुश्वार हो
ज़िंदगी के उसूलों पे चल, हार कर बैठना छोड़ दे

ये हक़ीक़त है तक़दीर से, जीत पाना भी मुमकिन नहीं
और ये भी मुनासिब नहीं, आदमी हौसला छोड़ दे

हक़ को हक़ के तरीके से ले जो ज़बाँ जिसकी है उसमें बोल
नर्म इतना भी लहजा न रख , सर उठा , इल्तजा छोड़ दे

तश्नगी की क़सम है तुझे, मैकदे को तू ‘शाहिद’ बना
पीते पीते न छुट पाएगी , आज साग़र भरा छोड़ दे

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
साभार – कविताकोश

फिर लौटकर दोस्ती के जमाने नहीं आते

मैं यादों का किस्सा खोलूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं,
मैं गुजरे पल को सोचूं तो कुछ दोस्त
बहुत याद आते हैं।

अब जाने कौन सी नगरी में आबाद हैं जाकर मुद्दत से,
मैं देर रात तक जागूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं।
कुछ बातें थीं फूलों जैसी, कुछ लहजे खुशबू जैसे थे,
मैं शहर-ए-चमन में टहलूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं।

सबकी जिंदगी बदल गयी, एक नए सिरे में ढल गयी,
किसी को नौकरी से फुर्सत नहीं, किसी को दोस्तों की जरूरत नहीं।
-सारे यार गुम हो गये हैं, ‘तू’ से ‘तुम’ और ‘आप’ हो गये है।
मैं गुजरे पल को सोचूं तो कुछ दोस्त बहुत याद आते हैं।

धीरे-धीरे उम्र कट जाती है, जीवन यादों की पुस्तक बन जाती है,
कभी किसी की याद बहुत तड़पाती है, और कभी यादों के सहारे जिंदगी कट जाती है।
किनारों पे सागर के खजाने नहीं आते, फिर जीवन में दोस्त पुराने नहीं आते,
जी लो इन पलों को हंस के दोस्त, फिर लौट के दोस्ती के जमाने नहीं आते।

हरिवंशराय बच्चन

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