Desh Bhakti Par Kavita: वीरता और बलिदान की गाथाएँ गाती देशभक्ति पर लोकप्रिय कविताएं 

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Desh Bhakti Par Kavita

Desh Bhakti Par Kavita: देशभक्ति पर कविताएं भारतीय समाज को संगठित करके युवाओं में राष्ट्रहित सर्वोपरि का बीजारोपण करती हैं। इसके साथ ही देशभक्ति की कविताएं समाज के हर तबके में सकारात्मकता का संचार करने के साथ-साथ, उनमें देशभक्ति की भावना को फैलाने का काम भी करती हैं। इस लेख में आपके लिए देशभक्ति पर कविताएं (Desh Bhakti Par Kavita) दी गई हैं। यहां पढ़ें देशभक्ति पर चुनिंदा लोकप्रिय कविताएं। 

देशभक्ति पर कविता – Desh Bhakti Par Kavita

देशभक्ति पर कविता (Desh Bhakti Par Kavita) और उनकी सूची इस प्रकार हैं:-

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
अरुण यह मधुमय देश हमाराजयशंकर प्रसाद
ध्वज-वंदनारामधारी सिंह “दिनकर”
मेरे देश के लालबालकवि बैरागी
मेरे देश की तरहअमृता भारती
मेरे भारत मेरे स्वदेशगुलाब खंडेलवाल
मैं भारत गुण-गौरव गाताशमशेर बहादुर सिंह
गुण तो नि:संशय देश तुम्‍हारे गाएगाहरिवंशराय बच्चन

अरुण यह मधुमय देश हमारा

अरुण यह मधुमय देश हमारा।
जहाँ पहुँच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा।।
सरल तामरस गर्भ विभा पर, नाच रही तरुशिखा मनोहर।
छिटका जीवन हरियाली पर, मंगल कुंकुम सारा।।
लघु सुरधनु से पंख पसारे, शीतल मलय समीर सहारे।
उड़ते खग जिस ओर मुँह किए, समझ नीड़ निज प्यारा।।
बरसाती आँखों के बादल, बनते जहाँ भरे करुणा जल।
लहरें टकरातीं अनन्त की, पाकर जहाँ किनारा।।
हेम कुम्भ ले उषा सवेरे, भरती ढुलकाती सुख मेरे।
मंदिर ऊँघते रहते जब, जगकर रजनी भर तारा।।
जयशंकर प्रसाद

ध्वज-वंदना

नमो, नमो, नमो…

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!
नमो नगाधिराज-शृंग की विहारिणी!
नमो अनंत सौख्य-शक्ति-शील-धारिणी!
प्रणय-प्रसारिणी, नमो अरिष्ट-वारिणी!
नमो मनुष्य की शुभेषणा-प्रचारिणी!
नवीन सूर्य की नई प्रभा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

हम न किसी का चाहते तनिक, अहित, अपकार
प्रेमी सकल जहान का भारतवर्ष उदार
सत्य न्याय के हेतु, फहर फहर ओ केतु
हम विरचेंगे देश-देश के बीच मिलन का सेतु
पवित्र सौम्य, शांति की शिखा, नमो, नमो!
नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!

तार-तार में हैं गुंथा ध्वजे, तुम्हारा त्याग
दहक रही है आज भी, तुम में बलि की आग
सेवक सैन्य कठोर, हम चालीस करोड़
कौन देख सकता कुभाव से ध्वजे, तुम्हारी ओर
करते तव जय गान, वीर हुए बलिदान
अंगारों पर चला तुम्हें ले सारा हिन्दुस्तान!
प्रताप की विभा, कृषानुजा, नमो, नमो!

नमो स्वतंत्र भारत की ध्वजा, नमो, नमो!
– रामधारी सिंह “दिनकर”

मेरे देश के लाल

पराधीनता को जहाँ समझा श्राप महान
कण-कण के खातिर जहाँ हुए कोटि बलिदान
मरना पर झुकना नहीं, मिला जिसे वरदान
सुनो-सुनो उस देश की शूर-वीर संतान
आन-मान अभिमान की धरती पैदा करती दीवाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

दूध-दही की नदियां जिसके आँचल में कलकल करतीं
हीरा, पन्ना, माणिक से है पटी जहां की शुभ धरती
हल की नोंकें जिस धरती की मोती से मांगें भरतीं
उच्च हिमालय के शिखरों पर जिसकी ऊँची ध्वजा फहरती
रखवाले ऐसी धरती के हाथ बढ़ाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

आज़ादी अधिकार सभी का जहाँ बोलते सेनानी
विश्व शांति के गीत सुनाती जहाँ चुनरिया ये धानी
मेघ साँवले बरसाते हैं जहाँ अहिंसा का पानी
अपनी मांगें पोंछ डालती हंसते-हंसते कल्याणी
ऐसी भारत माँ के बेटे मान गँवाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।

जहाँ पढाया जाता केवल माँ की ख़ातिर मर जाना
जहाँ सिखाया जाता केवल करके अपना वचन निभाना
जियो शान से मरो शान से जहाँ का है कौमी गाना
बच्चा-बच्चा पहने रहता जहाँ शहीदों का बाना
उस धरती के अमर सिपाही पीठ दिखाना क्या जाने
मेरे देश के लाल हठीले शीश झुकाना क्या जाने।
– बालकवि बैरागी

मेरे देश की तरह

स्वतन्त्र हुए
देश की तरह था
वह
उसका माथा
उसकी हँसी

मेरे देश की तरह
दिव्य,
अविभाज्य
और
सम्पूर्ण।
अमृता भारती

मेरे भारत मेरे स्वदेश

मेरे भारत मेरे स्वदेश

तू चिर-प्रशांत, तू चिर-अजेय,
सुर-मुनि-वन्दित, स्थित, अप्रमेय
हे सगुन ब्रह्म, वेदादि गेय!
हे चिर-अनादि! हे चिर-अशेष!

गीता-गायत्री के प्रदेश!
सीता-सावित्री के प्रदेश!
गंगा-यमुनोत्री के प्रदेश
हे आर्य-धरित्री के प्रदेश

तू राम-कृष्ण की मातृ-भूमि
सौमित्रि-भरत की भ्रातृ-भूमि
जीवन-दात्री, भाव-धातृ भूमि
तुझको प्रणाम हे पुण्य-वेश!
. . .

तेरे गांडीव-पिनाक कहाँ?
शर, जिनसे सृष्टि अवाक्, कहाँ?
धँस जाय धरा वह धाक कहाँ?
ओ साधक कर नयनोन्मेष!

तू विश्व-सभ्यता-शक्ति-केंद्र
तुझमें विलीन शत-शत महेंद्र
नत विश्व-विजेता अलक्षेन्द्र
तेरी सीमा में कर प्रवेश
मेरे भारत मेरे स्वदेश
गुलाब खंडेलवाल

मैं भारत गुण-गौरव गाता

मैं भारत गुण-गौरव गाता!
श्रद्धा से उसके कण-कण को
उन्नत माथा नवाता ।

प्रथम स्वप्न-सा आदि पुरातन,
नव आशाओं से नवीनतम,
प्राणाहुतियों से युग-युग की
चिर अजेय बलदाता !

आर्य शौर्य धृति, बौद्ध शांति द्युति,
यवन कला स्मिति, प्राच्य कर्म रति,
अमर अमित प्रतिभायुत भारत
चिर रहस्य, चिर-ज्ञाता !

वह भविष्य का प्रेम-सूत है,
इतिहासों का मर्म पूत है,
अखिल राष्ट्र का श्रम, संयम, तप:
कर्मजयी, युग त्राता !

मैं भारत गुण-गौरव गाता।
– शमशेर बहादुर सिंह

गुण तो नि:संशय देश तुम्‍हारे गाएगा

गुण तो नि:संशय देश तुम्‍हारे गाएगा,
तुम-सा सदियों के बाद कहीं फिर पाएगा,

पर जिन आदर्शों को तुम लेकर तुम जिए-मरे,
कितना उनको
कल का भारत
अपनाएगा?

बाएँ था सागर औ’ दाएँ था दावानल,
तुम चले बीच दोनों के, साधक, सम्‍हल-सम्‍हल,

तुम खड्गधार-सा पंथ प्रेम का छोड़ गए,
लेकिन उस पर
पाँवों को कौन
बढ़ाएगा?

जो पहन चुनौती पशुता को दी थी तुमने,
जो पहन दनुज से कुश्‍ती ली थी तुमने,

तुम मानवता का महाकवच तो छोड़ गए,
लेकिन उसके
बोझे को कौन
उठाएगा?

शासन-सम्राट डरे जिसकी टंकारों से,
घबराई फ़‍िरकेवारी जिसके वारों से,

तुम सत्‍य-अहिंसा का अजगव तो छोड़ गए,
लेकिन उस पर
प्रत्‍यंचा कौन
चढ़एगा?
– हरिवंशराय बच्चन

देश प्रेम पर कविताएं

देश प्रेम पर कविताएं निम्नलिखित हैं, जिन्हें पढ़कर आप देशप्रेम के महत्व को जान पाएंगे –

देश-प्रेम

उनके षड्यंत्रों के बावजूद
नदी अपने उद्गम से निकली
और लहलहाती फसलों को सींचती चली गई

हल और मिट्टी ने छेड़े रखा
देस राग
कवि निरंतर लिखता रहा मीठा गीत

गुलाबी फूलों के सौंदर्य पर
किसान जमकर नाचा
पंछी आकाश में चहका उड़ा
और उड़ता चला गया
सब गर्वित थे अपने देश पर
सिवाय उनके जो
देश प्रेम का ढोंग रचाकर
इन सब की खुशियाँ छीन लेना चाहते थे।
– मोहन साहिल

प्यारे भारत देश

प्यारे भारत देश
गगन-गगन तेरा यश फहरा
पवन-पवन तेरा बल गहरा
क्षिति-जल-नभ पर डाल हिंडोले
चरण-चरण संचरण सुनहरा

ओ ऋषियों के त्वेष
प्यारे भारत देश।।

वेदों से बलिदानों तक जो होड़ लगी
प्रथम प्रभात किरण से हिम में जोत जागी
उतर पड़ी गंगा खेतों खलिहानों तक
मानो आँसू आये बलि-महमानों तक

सुख कर जग के क्लेश
प्यारे भारत देश।।

तेरे पर्वत शिखर कि नभ को भू के मौन इशारे
तेरे वन जग उठे पवन से हरित इरादे प्यारे!
राम-कृष्ण के लीलालय में उठे बुद्ध की वाणी
काबा से कैलाश तलक उमड़ी कविता कल्याणी
बातें करे दिनेश
प्यारे भारत देश।।

जपी-तपी, संन्यासी, कर्षक कृष्ण रंग में डूबे
हम सब एक, अनेक रूप में, क्या उभरे क्या ऊबे
सजग एशिया की सीमा में रहता केद नहीं
काले गोरे रंग-बिरंगे हममें भेद नहीं

श्रम के भाग्य निवेश
प्यारे भारत देश।।

वह बज उठी बासुँरी यमुना तट से धीरे-धीरे
उठ आई यह भरत-मेदिनी, शीतल मन्द समीरे
बोल रहा इतिहास, देश सोये रहस्य है खोल रहा
जय प्रयत्न, जिन पर आन्दोलित-जग हँस-हँस जय बोल रहा,

जय-जय अमित अशेष
प्यारे भारत देश।।
– माखनलाल चतुर्वेदी

यह हमारा देश भारत

यह हमारा देश भारत
हम ममाखियों के शहद के छत्ते का देश है

लगन से
लव से
हम ममाखियों ने इस मधु-कोष को बनाया है
हम ममाखियों के इस कोष में
फौलाद के फूलों से निकाला हुआ मधु भरा है

वह फूल आग के वृंत पर
कारखानों में हमने खिलाए हैं
जो न मुरझे हैं-
न मुरझायेगें।

मोम का नहीं-
यह हम ममाखियों के मनोबल का छत्ता
राष्ट्र के न टूटने वाले प्रांतों का छत्ता है

अखंड एकता का यह छत्ता
हम ममाखियों की सत्ता का छत्ता है।

हमारी सत्ता अजेय है
हमारा छत्ता
यह हमारा देश-
हमारी सत्ता से भी अधिक अजेय है

इसका शहद
हम ममाखियों के लिए है
यह हमारा शहद है
इस शहद को
न कोई और निकाल सकता है
न कोई और चुरा सकता है
सिवाय हमारे
कोई दूसरा और
इस शहद का अधिकारी नहीं है
– केदारनाथ अग्रवाल

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