हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण : हिंदी साहित्य का इतिहास एक हजार वर्षों से अधिक पुराना है। वहीं हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथों की परंपरा की सुनिश्चित पृष्ठभूमि नहीं है। इसका अधिकांश भाग अब तक भी अप्राप्य ही है। जबकि हिंदी साहित्य का इतिहास केवल तिथियों का क्रम नहीं है, न ही केवल विषय-विश्लेषण। वह तो कालक्रम के बीच होने वाले निरंतर परिवर्तनों की पहचान साहित्येतिहास का केंद्रीय तत्व है।
साहित्य के इतिहास में काल विभाजन के अनेक आधार प्रयुक्त होते रहे हैं। इनमें से ऐतिहासिक कालक्रम का आधार (आदिकाल, मध्यकाल, अलंकृत काल व आधुनिक काल) जबकि साहित्यिक प्रवृति का आधार (वीरगाथाकाल, पूर्व मध्यकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, पुनर्जागरण काल, छायावाद आदि) तथा सामाजिक-सांस्कृतिक परिघटना का आधार (प्रारंभिक काल, लोकजागरण काल व नवजागरण काल आदि) को लेकर किया गया काल विभाजन अधिक उपयोगी और मान्य साबित हुआ है।
हिंदी साहित्य का काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद रहे हैं। विद्वानों ने काव्य-प्रवृत्तियों, सामाजिक-सांस्कृतिक परिघटना व शासन काल के आधार पर साहित्य का भिन्न-भिन्न नामकरण और कालविभाजन किया हैं। इसमें ‘जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन’, ‘मिश्रबंधु’, ‘आचार्य रामचंद्र शुक्ल’, ‘डॉ. रामकुमार वर्मा’, ‘आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी’, ‘डॉ. नगेंद्र’, ‘डॉ. श्यामसुंदर दास’ और ‘राहुल सांकृत्यायन’ आदि विद्वान सम्मिलित हैं।
वहीं आचार्य रामचंद्र शुक्ल हिंदी साहित्य के प्रतिष्ठित एवं प्रमाणिक इतिहास हैं। इनके परवर्ती अधिकांश इतिहासकरों ने इन्हीं के काल-विभाजन के मानदंड को स्वीकार किया है। इनके अनुसार हिंदी साहित्य का इतिहास चार भागों में विभक्त किया जा सकता है- वीरगराथा काल (आदिकाल), भक्तिकाल (पूर्व मध्यकाल), रीतिकाल (उत्तरमध्य काल) तथा आधुनिक काल (गद्य काल)। आइए अब इस लेख में हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण
विभिन्न विद्वानों द्वारा हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण इस प्रकार है:-
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन का काल-विभाजन
जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने सर्वप्रथम हिंदी साहित्य का कालक्रमिक इतिहास प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘द माडर्न वर्नाक्युलर लिट्रेचर ऑफ़ हिंदुस्तान’ (1888 ई.) में हिंदी साहित्य के संपूर्ण काल को 12 भागों में विभाजित किया है और कुछ की कालावधि भी दी है। उनके द्वारा किया गया काल विभाजन इस प्रकार है:-
- चारणकाल (700-1300 ई.)
- पंद्रहवीं शताब्दी का धार्मिक पुनर्जागरण
- मलिक मुहम्मद जायसी का प्रेम काव्य
- ब्रज का कृष्ण काव्य (1500-1600 ई.)
- मुग़ल दरबार का रीतिकाव्य (1580-1692 ई.)
- तुलसीदास
- रीतिकाव्य
- तुलसीदास के अन्य परवर्ती कवि (1600-1700 ई.)
- अठाहरवीं शताब्दी (1700-1800 ई.)
- कंपनी के शासन में हिंदुस्तान
- महारानी विक्टोरिया के शासन में हिंदुस्तान (1857 ई. 1887 ई.)
- विविध अज्ञात कवि
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मिश्रबंधुओं का काल विभाजन
मिश्रबंधुओं ने अपने साहित्येतिहास ग्रंथ ‘मिश्रबंधु विनोद’ (Mishr Bandhu Vinod) में काल विभाजन में नयी दृष्टि और नए विवेक का परिचय दिया है। मिश्रबंधुओं का प्रयास निश्चित ही सभी दृष्टियों से जॉर्ज ग्रियर्सन के काल-विभाजन से अधिक विकसित और वैज्ञानिक है। हालांकि उनके विभाजन के वर्गीकरण में अनेक विसंगतियाँ देखी गई है। उनका काल -विभाजन इस प्रकार है:-
1. आरंभिक काल
- पुर्वारंभिक काल: संवत 700 से लेकर 1343 तक
- उत्तरारंभिक काल: संवत 1343 से 1444 तक
2. माध्यमिक काल
- पूर्वमाध्यमिक काल: संवत 1445 से 1560 तक
- प्रौढ़ माध्यमिक काल: संवत 1561 से 1580 तक
3. अलंकृत काल
- पुर्वालंकृत काल: संवत 1681 से 1790 तक
- उतरालंकृत काल: संवत 1791 से 1889 तक
4. परिवर्तन काल: संवत 1890 से 1925 तक
5. वर्तमान काल: संवत 1926 से आगे
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार हिंदी साहित्य का काल विभाजन
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (Hindi Sahitya ka Itihas) में हिंदी साहित्य का काल विभाजन दो आधारों पर किया है। पहला कालक्रम के आधार पर और दूसरा साहित्यक प्रवृतियों की प्रधानता के आधार पर। कालक्रम के आधार पर उन्होंने हिंदी साहित्य को इस प्रकार विभाजित किया है:-
- आदिकाल – वीरगाथाकाल: संवत 1050-1375
- पूर्व मध्यकाल – भक्तिकाल: संवत 1375-1700
- उत्तर मध्यकाल – रीतिकाल: संवत 1700-1900
- आधुनिक काल – गद्यकाल: संवत 1900 से अद्यावधि
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल में वीरगाथाओं की प्रमुखता को ध्यान में रखकर इसे ‘वीरगाथाकाल’ नाम दिया है। वीरगाथाकाल नाम देने के लिए उन्होंने 12 ग्रंथों को आधार बनाया है, जो कि इस प्रकार है:-
अपभ्रंश साहित्य
- विजयपाल रासो-नल्लसिंहः संवत् 1355
- हम्मीर रासो शाङ्गधरः संवत् 1357
- कीर्तिलता विद्यापतिः संवत् 1460
- कीर्तिपताका विद्यापतिः संवत् 1460
देशी भाषा में रचित पुस्तकें
- खुमान रासो दलपति विजयः संवत् 1180-1205
- बीसलदेव रासो नरपति नाल्हः संवत् 1292
- पथ्वीराज रासो-चंदबरदाई: संवत् 1225-1249
- जयचन्द प्रकाश-भट्ट केदारः संवत् 1225
- जय मयंकजस चंद्रिका मधुकरः संवत् 1240
- परमाल रासो आल्हा का मूल जगनिकः संवत् 1230
- खुसरो की पहेलियाँ अमीर खुसरोझः संवत् 1230
- विद्यापति पदावली विद्यापति, संवत् 1460
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डॉ. रामकुमार वर्मा का काल विभाजन
डॉ. रामकुमार वर्मा ने अपने ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का आलोचनातकं इतिहास’ (Hindi Sahitya Ka Aalochanatmak Itihas) में हिंदी साहित्य का काल विभाजन इस प्रकार किया है:-
- संधिकाल – संवत 750 – 1000
- चारण काल – संवत 1000 – 1375
- भक्तिकाल – संवत 1375 – 1700
- रीतिकाल – संवत 1700 – 1900
- आधुनिक काल – संवत 1900 से अब तक
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य: उद्भव और विकास’ (Hindi Sahitya Udbhav Aur Vikas) में हिंदी साहित्य का काल विभाजन इस प्रकार किया है:-
- आदिकाल – संवत 1000 – 1400
- पूर्व मध्यकाल – संवत 1400 – 1700
- उत्तर मध्यकाल – संवत 1700 – 1900
- आधुनिक काल – संवत 1900 से अद्यावधि
डॉ. नगेंद्र
डॉ. नगेंद्र की पुस्तक ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ (Hindi Sahitya Ka Itihaas) में हिंदी साहित्य का काल विभाजन इस प्रकार किया है:-
- आदिकाल – सन 650 – 1350
- भक्तिकाल – सन 1350 – 1650
- रीतिकाल – सन 1650 – 1850
- आधुनिक काल – सन 1850 से अब तक
- (क) पुनर्जागरण काल – भारतेंदु युग 1857-1900
- (ख) जागरण-सुधार काल – द्विवेदी युग 1900-1918
- (ग) छायावाद काल – 1918-1938
- (घ) छायावादोत्तर काल
- (ड) प्रगतिवाद प्रयोग काल – 1938-1953
- (च) नवलेखन काल – 1953 से अब तक
डॉ. गणपति गुप्त
डॉ. गणपति गुप्त ने अपने ग्रंथ ‘हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास’ (Hindi Sahitya Ka Vaigyanik Itihas) में हिंदी साहित्य का सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन कर नवीन तथा वैज्ञानिक ढंग से हिंदी साहित्य का काल-विभाजन किया है:-
- प्रारंभिक काल- सन 1184-1350
- पूर्व-मध्यकाल – सन 1350-1600
- उत्तर मध्यकाल-सन 1600-1857
- आधुनिक काल- सन 1857 – अब तक
FAQs
हिंदी साहित्य को आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल तथा आधुनिक काल में विभाजित किया गया है।
हिंदी साहित्य को मुख्यत: चार काल में विभाजित किया गया है।
कालविभाजन के प्रथम नामकरण का श्रेय जॉर्ज ग्रियर्सन को जाता है।
आधुनिक काल का दूसरा नाम वीरगाथाकाल है।
भारतेंदु हरिश्चंद्र आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक कहे जाते हैं।
पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है।
पूर्व मध्यकाल को भक्तिकाल के नाम से जाना जाता है।
काव्य-प्रवृत्तियां, सामाजिक-सांस्कृतिक परिघटना व शासन काल काल विभाजन और नामकरण का मुख्य आधार है।
आशा है कि आपको इस लेख में हिंदी साहित्य का काल विभाजन और नामकरण से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। हिंदी साहित्य के कवि और लेखक के जीवन परिचय सेजुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।