Defence Technology UPSC in Hindi: UPSC परीक्षा के लिए रक्षा तकनीक विषय पर संपूर्ण उपयोगी जानकारी

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Defence Technology UPSC in Hindi

Defence Technology UPSC in Hindi: यूनियन सर्विस पब्लिक कमीशन (UPSC) की तैयारी करने वाले कैंडिडेट्स को जिन विषयों पर विशेष ध्यान देना पड़ता है, उनमें से एक “रक्षा तकनीक” भी है। UPSC की तैयारी करने वाले कैंडिडेट्स के लिए यह विषय विशेष रूप से GS-3 (Science & Technology, Security) और निबंध लेखन के रूप में आता है। इस पेपर के लिए कैंडिडेट्स को डिफेंस टेक्नोलॉजी विषय की संपूर्ण जानकारी होनी चाहिए, जिसके बारे में जानकर आप परीक्षा में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर पाएंगे। इस ब्लॉग में आप डिफेंस टेक्नोलॉजी (Defence Technology UPSC in Hindi) के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर पाएंगे, साथ ही परीक्षा के लिए बेहतर रणनीतियां बना पाएंगे।

This Blog Includes:
  1. रक्षा तकनीक (डिफेंस टेक्नोलॉजी) के बारे में
  2. रक्षा तकनीक का महत्व
  3. रक्षा तकनीक के प्रकार
    1. पारंपरिक रक्षा तकनीक (Conventional Defence Technology)
    2. आधुनिक रक्षा तकनीक (Modern Defence Technology)
    3. अंतरिक्ष आधारित रक्षा तकनीक
    4. समुद्री रक्षा तकनीक
    5. जैविक और रासायनिक सुरक्षा तकनीक
    6. परमाणु रक्षा तकनीक
  4. भारत में रक्षा तकनीक का इतिहास
    1. प्राचीन काल में भारत की सैन्य तकनीक
    2. मध्य काल में भारत की सैन्य तकनीक
    3. औपनिवेशिक काल में भारत की सैन्य तकनीक
    4. स्वतंत्र भारत में रक्षा विकास की प्रमुख उपलब्धियां
  5. रक्षा तकनीक में होने वाला विकास
  6. रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियां
  7. भारत की रक्षा तकनीक को लेकर भविष्य की योजनाएं
  8. UPSC की तैयारी के लिए रक्षा तकनीक का महत्व
  9. FAQs 

रक्षा तकनीक (डिफेंस टेक्नोलॉजी) के बारे में

UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले हर उम्मीदवार के लिए रक्षा तकनीक (Defence Technology) महत्वपूर्ण विषय है। यह विषय UPSC के सामान्य अध्ययन (GS-3) और निबंध परीक्षा में एक प्रासंगिक भूमिका निभाता है। इसमें विज्ञान और तकनीक के साथ-साथ सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इस विषय की तैयारी के लिए समझ और करंट अफेयर्स पर विद्यार्थियों की पकड़ होनी आवश्यक है।

रक्षा तकनीक का महत्व

रक्षा तकनीक के महत्व को आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:- 

  • उन्नत तकनीकें ही हमारे राष्ट्र को बाहरी खतरों, आतंकवाद और साइबर हमलों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। इसलिए इस विषय के बारे में UPSC की परीक्षा में सवाल पूछे जाते हैं।
  • स्वदेशी तकनीक का विकास भारत को रक्षा आयात पर निर्भरता से मुक्त करता है और आत्मनिर्भर बनाता है, साथ ही इससे भारत में रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं।
  • रक्षा तकनीक में प्रगति भारत की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को मजबूत करती है, साथ ही भारत को रणनीति शक्ति का केंद्र बनाती है। 
  • इससे घरेलू रक्षा उद्योग, रोजगार और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलता है। साथ ही रक्षा क्षेत्र में अनुसंधान और नवाचार (रिसर्च एंड इनोवेशन) से तकनीकी विकास तेज होता है।

रक्षा तकनीक के प्रकार

रक्षा तकनीक को आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं:-

पारंपरिक रक्षा तकनीक (Conventional Defence Technology)

पारंपरिक रक्षा तकनीक में मूलतः लड़ाकू विमान जैसे तेजस और राफेल इत्यादि आते हैं। जिनका मुख्य कार्य दुश्मन के क्षेत्र में आक्रमण और निगरानी करना होता है। पारंपरिक रक्षा तकनीक में मिसाइल प्रणाली भी शामिल होती है, जिसमें स्वदेशी मिसाइल जैसे – अग्नि मिसाइल और पृथ्वी मिसाइल आदि अपना महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। इसके साथ ही पारंपरिक रक्षा तकनीक में टैंक और तोप के साथ नौसेना प्रणाली भी शामिल होती हैं।

आधुनिक रक्षा तकनीक (Modern Defence Technology)

आधुनिक रक्षा तकनीक में मुख्यतः ड्रोन और यूएवी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, लेजर और ऊर्जा आधारित हथियार, क्वांटम टेक्नोलॉजी इत्यादि शामिल होते हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो आधुनिक रक्षा तकनीक में रोबोटिक हथियार और स्मार्ट निगरानी प्रणाली के साथ-साथ साइबर हमले और डेटा चोरी से बचाव पर भी विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके साथ ही यह तकनीक लक्ष्य को सटीकता से नष्ट करने और मिसाइल या ड्रोन के हमले को रोकने में भी अपनी सहायक भूमिका निभाती है।

अंतरिक्ष आधारित रक्षा तकनीक

अंतरिक्ष आधारित रक्षा तकनीक के अंतर्गत सैटेलाइट निगरानी, एंटी-सैटेलाइट मिसाइल, हाइपरसोनिक तकनीक आदि पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस तकनीक के माध्यम से दुश्मन पर निगरानी रखने और दुश्मन की सैटेलाइट को नष्ट करने की क्षमता को विकसित किया जाता है। इसी तकनीक के अंतर्गत भारत की ‘मिशन शक्ति’ (Mission Shakti) का नाम आता है। 

समुद्री रक्षा तकनीक

समुद्री रक्षा तकनीक में पनडुब्बी, सोनार तकनीक और स्वदेशी विमानवाहक पोत के माध्यम से पानी के अंदर दुश्मन के ठिकानों का पता लगाकर उन पर हमला किया जा सकता है। इसके साथ ही ये तकनीक समुद्री खतरों का पता लगाने और जल के नीचे कम्युनिकेशन और सुरक्षा की व्यवस्था करने के लिए भी काफी कारगार साबित होती हैं।

जैविक और रासायनिक सुरक्षा तकनीक

जैविक और रासायनिक सुरक्षा तकनीक के अंतर्गत रासायनिक हथियार सुरक्षा और जैविक हथियार सुरक्षा पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जाता है। आसान भाषा में समझें तो इस तकनीक का प्रयोग करके खतरनाक रसायनों, गैसों, जैविक खतरों जैसे वायरस और बैक्टीरिया आदि से देश को सुरक्षित रखा जा सकता है।

परमाणु रक्षा तकनीक

परमाणु रक्षा तकनीक के अंतर्गत परमाणु मिसाइल और परमाणु पनडुब्बी आती हैं, जिनका प्रयोग करके कोई भी राष्ट्र स्वयं की सुरक्षा के लिए परमाणु हमले के लिए समय रहते तैयार हो सकता है। हालाँकि ये किसी भी युद्ध का अंतिम मार्ग हो सकता है, जिससे आमतौर पर राष्ट्र खुद को बचाने का प्रयास करते हैं।

भारत में रक्षा तकनीक का इतिहास

भारत में रक्षा तकनीक का इतिहास समृद्धशाली और बेहद प्राचीन रहा है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक भारत में कई तरह की रक्षा तकनीकों ने अपना विस्तार किया, जिन्होंने मातृभूमि को बचाए रखने का सदैव काम किया है:-

प्राचीन काल में भारत की सैन्य तकनीक

प्राचीन काल में भारत की सैन्य तकनीक के अंतर्गत युद्ध में हाथी, घोड़े, धनुष-बाण, कटार, खंजर और तलवारों का उपयोग भारी मात्रा में किया जाता था। मजबूत किले और किलेबंदी प्राचीन रक्षा तकनीक का अहम हिस्सा थे।

मध्य काल में भारत की सैन्य तकनीक

मध्य काल में भारत की सैन्य तकनीक में मुख्यतः मुगलकालीन रक्षा तकनीक के साथ-साथ, राजपूत और मराठा रणनीतियां बेहद लोकप्रिय थीं। जहाँ एक तरफ मुगलकालीन रक्षा तकनीक में बारूद और तोपखाने का प्रभावी उपयोग देखने को मिलता है, तो वहीं राजपूत और मराठा रणनीतियों में गोरिल्ला युद्ध की शुरुआत बेहद लोकप्रिय थी, जिसे छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी सेना ने अपनाया था।

औपनिवेशिक काल में भारत की सैन्य तकनीक

औपनिवेशिक काल में भारत की सैन्य तकनीक में मुख्यतः ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा उन्नत हथियार और तकनीक (जैसे – आधुनिक बंदूकें, तोपें और युद्धपोत) मुख्य केंद्र में थी। इसी दौरान भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश तकनीक का विरोध और स्वदेशी हथियारों के साथ-साथ संसाधनों का उपयोग करते हुए 1857 का विद्रोह किया था, यह क्रांति स्वयं में एक सशस्त्र क्रांति थी। इसके साथ ही औद्योगिक क्रांति का प्रभाव भी इसी दौरान हावी रहा, जिसमें सेना का आधुनिकीकरण भी शामिल था।

स्वतंत्र भारत में रक्षा विकास की प्रमुख उपलब्धियां

स्वतंत्र भारत में रक्षा विकास की प्रमुख उपलब्धियों में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, परमाणु शक्ति का विकास, स्वदेशी हथियारों का निर्माण, इंटीग्रेटेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम इत्यादि शामिल है। इसी स्वदेशी रक्षा तकनीक के चलते भारतीय सेना ने आजादी के बाद दुनिया की बेहतरीन सेनाओं के स्थान पर पहुंचने का सम्मान प्राप्त किया।

रक्षा तकनीक में होने वाला विकास

रक्षा तकनीक में होने वाले विकास कार्यों को नीचे दिए गए बिंदुओं में बताया गया है:- 

  • वर्तमान समय को अत्याधुनिक बनाने के लिए भारत में स्वदेशी मिसाइल तकनीक पर काफी बल दिया जा रहा है। इसका जीवंत उदाहरण अग्नि सीरीज, ब्रह्मोस, शौर्य और पृथ्वी मिसाइल आदि हैं, जो रक्षा के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बना रही हैं।
  • इसके साथ ही रक्षा तकनीक में ज्यादा से ज्यादा सैटेलाइट आधारित तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। इसके तहत ISRO और DRDO द्वारा कई रक्षा सैटेलाइट (जैसे : GSAT-7A, RISAT, कार्टोसैट-3 और मिशन शक्ति इत्यादि) लॉन्च की गई हैं।
  • साइबर खतरों को देखते हुए वर्तमान समय में रक्षा तकनीक में साइबर सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है, जिसके तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित सुरक्षा सिस्टम पर काफी जोर दिया जा रहा है।
  • वर्तमान में ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहन (UAV) की तकनीक में सुधार और विकास होने से रक्षा तकनीक को और अधिक मजबूती मिल रही है।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग के साथ-साथ आजकल रोबोटिक और ऑटोनॉमस सिस्टम का भी विकास हो रहा है, जो हमारी रक्षा तकनीक को एक नए आयाम पर ले जा सकता है।

रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियां

रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आने वाली चुनौतियां निम्नलिखित हैं:-

  • रक्षा तकनीक के क्षेत्र में सीमित बजट और संसाधन का होना एक बड़ी चुनौती है।
  • रक्षा तकनीक के क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता की कमी का होना भी एक बड़ी चुनौती है।
  • रक्षा तकनीक के क्षेत्र में चुनौती के रूप में साइबर सुरक्षा खतरों का बढ़ता जोखिम भी है।
  • विशेषज्ञता और कुशल मानव संसाधन की कमी को भी रक्षा तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए।
  • आयात पर निर्भरता भी एक बड़ी चुनौती है, जो रक्षा तकनीक के क्षेत्र में काफी प्रभावी होते हैं।
  • नौकरशाही और नीति-निर्धारण में देरी, तेजी से बदलती तकनीक और अंतर्राष्ट्रीय दबाव और प्रतिबंध जैसी चुनौतियां भी रक्षा तकनीक के क्षेत्र में आती हैं।
  • अनुसंधान और विकास में धीमी प्रगति, प्राकृतिक और पर्यावरणीय चुनौतियां के साथ-साथ वैश्विक प्रतिस्पर्धा जैसी चुनौतियां भी रक्षा तकनीक के क्षेत्र में देखने को मिलती हैं।
  • रक्षा तकनीक के क्षेत्र में नैतिक और कानूनी बाधाएं, साथ ही क्लाइमेट चेंज जैसी चुनौतियाँ भी शामिल हैं।

भारत की रक्षा तकनीक को लेकर भविष्य की योजनाएं

भारत की रक्षा तकनीक को लेकर भविष्य की योजनाओं में स्वदेशी हथियारों का विकास और मेक इन इंडिया पहल के अंतर्गत आत्मनिर्भरता और स्वदेशीकरण पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। इसके साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके साइबर सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा। भारत की रक्षा तकनीक को भविष्य के लिए मजबूती देने के लिए अंतरिक्ष रक्षा तकनीक जैसे: इंटीग्रेटेड स्पेस कमांड और मिशन शक्ति जैसी परियोजनाओं को बल दिया जाएगा। आधुनिक सैन्य उपकरण के साथ-साथ, नौसेना की उन्नति पर भी ध्यान दिया जाएगा।

UPSC की तैयारी के लिए रक्षा तकनीक का महत्व

UPSC की तैयारी के लिए रक्षा तकनीक का महत्व नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है, जो कुछ प्रकार है:-

  • रक्षा तकनीक और साइंस-टेक्नोलॉजी पर आधारित कई प्रश्न इस परीक्षा में पूछे जाते हैं।
  • ‘रक्षा तकनीक और राष्ट्रीय सुरक्षा’ जैसे विषयों पर UPSC की परीक्षा में निबंध लेखन भी आता है। 
  • इसके साथ ही रक्षा तकनीक और करंट अफेयर्स से जुड़ी कई घटनाओं के बारे में इंटरव्यू में भी अक्सर सवाल पूछे जाते हैं।

FAQs 

DRDO का मुख्यालय कहाँ है?

DRDO का मुख्यालय दिल्ली के राष्ट्रपति भवन के निकट ही, सेना भवन के सामने DRDO भवन में स्थित है।

भारतीय रक्षा प्रणाली कितने प्रकार की होती है?

भारतीय रक्षा प्रणाली तीन प्रकार की होती है, जिसमें भारतीय थल सेना, भारतीय नौसेना और भारतीय वायुसेना होती हैं।

DRDO के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं?

DRDO के वर्तमान अध्यक्ष ‘डॉ. समिर वी कामत’ हैं, जिनका कार्यकाल 31 मई 2025 तक बढ़ा दिया गया है।

भारत में रक्षा तकनीक में कौन-कौन सी चुनौतियां हैं?

भारत में रक्षा तकनीक में अत्याधुनिक तकनीक का अभाव, साइबर सुरक्षा खतरों का बढ़ता जोखिम, रक्षा उपकरणों के लिए आयात पर निर्भरता, अनुसंधान और विकास में कम निवेश, प्रतिभाशाली मानव संसाधन की कमी आदि चुनौतियां आती हैं।

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आशा है कि आपको इस लेख में UPSC परीक्षा के लिए रक्षा तकनीक विषय (Defence Technology UPSC in Hindi) पर सभी महत्वपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। UPSC एग्जाम से संबंधित अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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