भारत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से प्रारंभ होता है और यह सभ्यता दुनिया के सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जिसे हम हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जानते हैं। आपको बता दें कि हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, बनावली सिंधु घाटी सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल हैं। इन्हीं में से एक है धोलावीरा, जिसके बारे में आज के इस ब्लॉग में हम बताने जा रहे हैं। आपको बता दें कि 1965 में खोजा गया Dholavira शहर अपनी वास्तुकला और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में सूचीबद्ध है। Dholavira से संबंधित अन्य जानकारी के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।
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धोलावीरा के बारे में
गुजरात राज्य के कच्छ जिले में स्थित “Dholavira” प्राचीन सिंधु घाटी सभ्यता का शहर है। यह अपनी कुशल वास्तुकला, जल प्रबंधन प्रणाली और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है। यह शहर मोहनजोदड़ो, गनेरीवाला, हड़प्पा और राखीगढ़ी के बाद सिंधु घाटी सभ्यता का पांँचवा सबसे बड़ा नगर था। इतिहासकारों के मुताबिक, तत्कालीन समय में इस शहर की गिनती दुनिया के सबसे व्यस्त महानगरों में होती थी। यह ऐतिहासिक स्थल 47 हेक्टेयर में फैला हुआ था। इतिहास में उल्लेखित है कि Dholavira शहर की खोज जगतपति जोशी (JP Joshi) ने 1967-68 में की थी लेकिन इसका विस्तृत उत्खनन 1990-91 में रवीन्द्रसिंह बिस्ट (RS Bisht) द्वारा किया गया था।
धोलावीरा का इतिहास
आपको बता दें कि हड़प्पा कालीन ऐतिहासिक शहर धोलावीरा का इतिहास तीसरी शताब्दी ईसा-पूर्व से लेकर दूसरी शताब्दी ईसा-पूर्व के मध्य तक का बताया जाता है। इस शहर का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता के इतिहास से जुड़ा हुआ है। इस शहर की स्थापना का सटीक समय तो इतिहास में उल्लेखित नहीं है, लेकिन ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 2600 ईसा पूर्व में यह स्थापित किया गया था। उस समय Dholavira एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र था और मध्य एशिया एवं मेसोपोटामिया के साथ व्यापार करता था।
यहाँ कई प्राचीन इमारतें हैं, जिनमें महल, मंदिर, बांध और कुएं शामिल हैं। धोलावीरा की जल प्रबंधन प्रणाली भी अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस शहर में कई बांध, कुएं और तालाब थे जो शहर के लोगों के लिए पानी की आपूर्ति में मददगार साबित हुई। बता दें कि धोलावीरा की जल प्रबंधन प्रणाली आज भी प्रभावशाली है। लेकिन लगभग 1900 ईसा पूर्व में बर्बाद हो गया जिसके कारणों के बारे में निश्चित रूप से इतिहास में कुछ भी नहीं बताया गया है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह शहर किसी प्राकृतिक आपदा या बाहरी आक्रमण के कारण बर्बाद हुआ था।
धोलावीरा स्थल की वास्तुकला एवं विशेषताएं
धोलावीरा स्थल की विशेषताएं निम्नलिखित है –
- यह भारत के दो सबसे बड़े हड़प्पा स्थलों में से एक है।
- क्षेत्रफल की दृष्टि से यह शहर उपमहाद्वीप में 5वां सबसे बड़ा स्थल है।
- इसके अलावा यह दुनिया की सबसे पुरानी जल संरक्षण प्रणालियों में से भी एक है।
- धोलावीरा की संरचना धूप में सुखाई गई ईंटों और पत्थर की चिनाई से बनी है।
- धोलावीरा, भारत में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल होने वाला गुजरात का चौथा स्थल है।
- इस शहर के अंदर कई जलाशय और बांध मजूद हैं।
- इसके लावा यहाँ कई बहुउद्देश्यीय मैदान हैं।
विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल
यूनेस्को ने 27 जुलाई 2021 को पुरातात्विक स्थल धोलावीरा को 40वें विश्व धरोहर स्थल के रूप में घोषित किया है। इस सफल नामांकन के साथ गुजरात चार विश्व धरोहर स्थलों वाला राज्य बन गया। आपको बता दें कि भारत में कुल 41 विश्व धरोहर स्थल है जिसमें से 33 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक स्थल और 1 मिश्रित विश्व विरासत स्थल हैं। यह भी बता दें कि वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स इन इंडिया में सबसे पहले 1983 में अजंता की गुफाएं, एलोरा की गुफाएं, ताजमहल और आगरा के किले को शामिल किया गया था। उसके बाद धीरे धीरे कई स्थल जुड़ते चले गए। हाल ही में 18 सितम्बर 2023 को शांतिनिकेतन को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।
FAQs
धोलावीरा लूनी नदी के तट पर स्थित है।
धोलावीरा की खोज 1968 में पुरातत्ववेत्ता जगतपति जोशी ने की थी।
भारत में कुल 42 विश्व धरोहर संपत्तियां हैं।
धोलावीरा का शाब्दिक अर्थ सफेद कुआं है।
धोलावीरा एक विश्व धरोहर स्थल है, जो भारत के गुजरात के कच्छ के रण में स्थित है।
आशा है कि आपको Dholavira से जुड़ी सभी जानकारी इस लेख में मिल गयी होगी। वैश्विक धरोहर से जुड़े ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।