सोशल और इमोशनल वेल बीइंग को शिक्षा के मुख्य लक्ष्य के रूप में देखा जाता है। लेकिन एकेडमिक के साथ इसे अनदेखा कर दिया जाता है और इसी का परिणाम है डिप्रेशन, तनाव, चिंता, स्ट्रेस। एक छात्र के लिए उसके शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ उसकी मेन्टल हेल्थ भी मत्वपूर्ण है। CBSE 10th board रिजल्ट के बाद एकेडमिक सक्सेस के लिए इमोशनल वेल बीइंग और मेन्टल हेल्थ का महत्व के बारे में जानने के यह ब्लॉग पढ़ें।
मेन्टल हेल्थ क्या है?
मेन्टल हेल्थ, फिजिकल हेल्थ की तरह है। जैसे आपके शरीर को स्वस्थ रहने की आवश्यकता होती है ठीक वैसे ही आपके दिमाग को भी स्वस्थ रहने की आवश्यकता होती है। एक मानसिक बीमारी एक विकार है जो एक व्यक्ति के रोज के काम करने में बाधा उत्पन्न करती है। छात्र कंसन्ट्रेट नहीं कर पाते हैं, जिससे वो अपनी पढ़ाई में पूरा ध्यान नहीं दे पते और उनका रिजल्ट बिगड़ जाता है।
इमोशनल वेल बीइंग क्या है?
इमोशनल वेल बीइंग एक प्रकार से आपके इमोशन को मेजर करता है। बहुत सी बार ऐसा होता है कि आपका पढ़ने का मन नहीं होता या कुछ काम करने का मन नहीं होता है इसका कारण इमोशनल वेल बीइंग है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति का अपने मन पर अपने इमोशन पर कोई कण्ट्रोल नहीं होता है।
मेन्टल हेल्थ और इमोशनल वेल बीइंग के बीच अंतर
मानसिक स्वास्थ्य इस बात को प्रभावित करता है कि आप कैसे सोचते हैं, महसूस करते हैं और कार्य करते हैं। भावनात्मक रूप से स्वस्थ होने के लिए दूसरों के साथ सकारात्मक संबंध रखने की आवश्यकता होती है। जबकि इमोशनल वेल बीइंग का संबंध इस बात से है कि आप दूसरों के साथ कैसे बातचीत करते हैं, विशिष्ट भावनाएं जो आप हर दिन सामना करते हैं, और आप उन्हें कैसे मैनेज करते हैं।
CBSE Board Result 2023 और मेन्टल हेल्थ पर इसका प्रभाव
रिजल्ट आने के समय के दौरान कई तरह से मेन्टल और इमोशनल हेल्थ प्रभावित हो सकती है:
- डर: छात्रों को डर हो सकता है कि आगे क्या होगा, जैसे कि कॉलेज में प्रवेश या नौकरी की संभावनाएं।
- डिप्रेशन और बर्नआउट: लंबे समय तक तनाव और चिंता से डिप्रेशन और बर्नआउट हो सकता है, जो माइंड और इमोशन पर गलत प्रभाव डाल सकता है।
- तनाव और चिंता: जैसे-जैसे रिजल्ट आने के दिन पास आते हैं वैसे-वैसे छात्रों की चिंता और तनाव बढ़ती जाती है। वें इस बात से परेशान होते है कि उनके कितने परसेंट आयेंगे।
- असफलता की भावना: कम ग्रेड या खराब प्रदर्शन से असफलता की भावना पैदा हो सकती है।
- दबाव और उम्मीदें: अक्सर छात्रों को इस बात की चिंता होने लग जाती है कि क्या वें अपने माता-पिता और टीचर्स की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे या नहीं।
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