मैं क्यों लिखता हूं? NCERT बुक कक्षा 10 में सबसे महत्वपूर्ण पाठ में से एक है। मैं क्यों लिखता हूं के लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ कृतिकार के स्वभाव और अनुशासन दोनों का ही महत्व दिखा रहा है। लेखक अज्ञेय ने प्रत्यक्ष अनुभव और अनुभूति में अंतर बताते हुए कहा है कि अनुभव तो घटित का होता है, पर अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उसे सत्य को मिला लेता है जो कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है। आइए मैं क्यों लिखता हूं (Main Kyon Likhta Hun) पाठ के बारे में विस्तार से जानते हैं।
बोर्ड | CBSE |
पाठ्यपुस्तक | NCERT |
कक्षा | कक्षा 10 |
विषय | हिंदी कृतिका |
पाठ | पाठ 5 |
पाठ का नाम | मैं क्यों लिखता हूँ? |
This Blog Includes:
लेखक परिचय
नाम | सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ |
जन्म | 7 मार्च सन् 1911 ई० |
जन्म – स्थान | कसया (कुशीनगर) |
मृत्यु | 4 अप्रैल, 1987 |
पत्नी का नाम | कपिला |
पिता का नाम | पंडित हीरानन्द शास्त्री |
माता का नाम | वयन्ती देवी |
मैं क्यों लिखता हूँ? यह प्रश्न बड़ा सरल जान पड़ता है पर बड़ा कठिन भी है। क्योंकि इसका सच्चा उत्तर लेखक के आंतरिक जीवन के स्तरों से संबंध रखता है। उन सबको संक्षेप में कुछ वाक्यों में बाँध देना आसान तो नहीं ही है, न जाने सम्भव भी है या नहीं? इतना ही किया जा सकता है कि उनमें से कुछ का स्पर्श किया जाए – विशेष रूप से ऐसों का जिन्हें जानना दूसरों के लिए उपयोगी हो सकता है।
एक उत्तर तो यह है कि मैं इसीलिए लिखता हूँ कि स्वयं जानना चाहता हूँ कि क्यों लिखता हूँ-लिखे बिना इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सकता है। वास्तव में सच्चा उत्तर यही है लिखकर ही लेखक उस आभ्यंतर विवशता को पहचानता है जिसके कारण उसने लिखा-और लिखकर ही वह उससे मुक्त हो जाता है। मैं भी उस आंतरिक विवशता से मुक्ति पाने के लिए, तटस्थ होकर उसे देखने और पहचान लेने के लिए लिखता हूँ। मेरा विश्वास है कि सभी कृतिकार-क्योंकि सभी लेखक कृतिकार नहीं होते; न उनका सब लेखन ही कृति होता है-सभी कृतिकार इसीलिए लिखते हैं। यह ठीक है कि कुछ ख्याति मिल जाने के बाद कुछ बाहर की विवशता से भी लिखा जाता है-संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजे से, आर्थिक आवश्यकता से। पर एक तो कृतिकार हमेशा अपने सम्मुख ईमानदारी से यह भेद बनाए रखता है कि कौन-सी कृति भीतरी प्रेरणा का फल है, कौन-सा लेखन बाहरी दबाव का, दूसरे यह भी होता है कि बाहर का दबाव वास्तव में दबाव नहीं रहता, वह मानो भीतरी उन्मेष का निमित्ति बन जाता है।
Main Kyon Likhta Hun कक्षा 10 सॉल्यूशन
यहां पर कृतिकार के स्वभाव और आत्मानुशासन का महत्व बहुत होता है। कुछ ऐसे आलसी होते हैं कि बिना इस बाहरी दबाव के लिख ही नहीं पाते इसी के सहारे उनके भीतर को विवशता स्पष्ट होती है – यह कुछ वैसा ही है जैसे प्रातःकाल नींद खुल जाने पर कोई बिछौने पर तब तक पड़ा रहे जब तक घड़ी का एलार्म न बन जाए। इस प्रकार वास्तव में कृतिकार बाहर के दबाव के प्रति समर्पित नहीं हो जाता है, उसे केवल एक सहायक यंत्र की तरह काम में लाता है जिससे भौतिक यथार्थ के साथ उसका संबंध बना रहे। मुझे इस महारे की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन कभी उससे बाधा भी नहीं होती। उठने वालो तुलना को बनाए रखें तो कहूँ कि सबसे उठ जाता हूँ अपने आप ही, पर अलार्म भी बज जाए तो कोई हानि नहीं मानता। यह भीतरी विवशता क्या होती है? इसे बखानना बड़ा कठिन है। क्या वह नहीं होती यह बताना शायद कम कठिन होता है । या उसका उदाहरण दिया जा सकता है – कदाचित् वही अधिक उपयोगी होगा। अपनी एक कविता की कुछ चर्चा करूँ जिससे मेरी बात स्पष्ट हो जाएगी।
मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूँ, मेरी नियमित शिक्षा उसी विषय में हुई। अणु क्या होता है, कैसे हम रेडियम-धर्मी तत्वों का अध्ययन करते हुए विज्ञान की उस सीढ़ी तक पहुँचे जहाँ अणु का भेदन संभव हुआ, रेडियम धर्मिता के क्या प्रभाव होते हैं – इन सबका पुस्तकीय या सैद्धांतिक ज्ञान तो मुझे था। फिर जब वह हिरोशिमा में अणु – बम गिरा, तब उसके समाचार मैंने पढ़े ; और उसके परवर्ती प्रभावों का भी विवरण पढ़ता रहा। इस प्रकार उसके प्रभावों का ऐतिहासिक प्रमाण भी सामने आ गया । विज्ञान के इस दुरुपयोग के प्रति बुद्धि का विद्रोह स्वाभाविक था, मैने लेख आदि में कुछ लिखा भी पर अनुभूति के स्तर पर जो विवशता होती है वह बौद्धिक पकड़ से आगे की बात है और उसकी तर्क संगति भी अपनी अलग होती है। इसलिए कविता मैंने इस विषय में नहीं लिखी। यो युद्धकाल में भारत की पूर्वीय सीमा पर देखा था कि कैसे सैनिक ब्रह्मपुत्र में बम फेंक कर हज़ारों मछलियों मार देते थे। जबकि उन्हें आवश्यकता थोड़ी-सी होती थी, और जीव के इस अपव्यय से जो व्यथा भीतर उमड़ी थी, उससे एक सीमा तक अणु-बम द्वारा व्यर्थ जीव – नाश का अनुभव तो कर ही सका था।
ज़रूर पढ़ें: CBSE Class 9 Hindi Syllabus
जापान जाने का अवसर मिला, तब हिरोशिमा भी गया और वह अस्पताल भी देखा जहाँ रेडियम – पदार्थ से आहत लोग वर्षों से कष्ट पा रहे थे। इस प्रकार प्रत्यक्ष अनुभव भी हुआ – पर अनुभव से अनुभूति गहरी चीज है, कम-से-कम कृतिकार के लिए । अनुभव घटित का होता है, पर अनुभूति संवेदना और कल्पना के सहारे उस सत्य को आत्मसात् कर लेती है जो वास्तव में कृतिकार के साथ घटित नहीं हुआ है। जो आँखों के सामनेनहीं आया, जो घटित के अनुभव में नहीं आया, वही आत्मा के सामने ज्वलंत प्रकाश में आ जाता है, तब वह अनुभूति प्रत्यक्ष हो जाता है।
तो हिरोशिमा में सब देखकर भी तत्काल कुछ लिखा नहीं, क्योंकि इसी अनुभूति प्रत्यक्ष की कसर थी। फिर एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए देखा कि एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया है-विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियम धर्मी पदार्थ की किरणें उसमें रुद्ध हो गई होंगी जो आस-पास से आगे बढ़ गईं उन्होंने पत्थर को झुलसा दिया, जो उस व्यक्ति पर अटकों उन्होंने उसे भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इस प्रकार समूची ट्रेजडी जैसे पत्थर पर लिखी गई।
ज़रूर पढ़ें: CBSE Class 10 Hindi Syllabus
उस छाया को देखकर जैसे एक थप्पड़-सा लगा। अवाक् इतिहास जैसे भीतर कहीं सहसा एक जलते हुए सूर्य-सा उग आया और डूब गया। मैं कहूँ कि उस क्षण में अणु विस्फोट मेरे अनुभूति प्रत्यक्ष में आ गया एक अर्थ में मैं स्वयं हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया। इसी में से वह विवशता जागी। भीतर की आकुलता बुद्धि के क्षेत्र से बढ़कर संवेदना के क्षेत्र में आ गई… फिर धीरे-धीरे मैं उससे अपने को अलग कर सका और अचानक एक दिन मैंने हिरोशिमा पर कविता लिखी जापान में नहीं, भारत लौटकर, रेलगाड़ी में बैठे-बैठे। यह कविता अच्छी है या बुरी; इससे मुझे मतलब नहीं है। मेरे निकट वह सच है क्योंकि वह अनुभूति प्रसूत है, यही मेरे निकट महत्त्व की बात है।
ज़रूर पढ़ें: CBSE vs State Boards
Main Kyon Likhta Hun पाठ के कठिन शब्द
उन्मेष – प्रकार
निमित्त – कारण
प्रसूत – उत्पन्न
विवशता – मजबूरी
कृतिकार – रचनाकार
ज्वलंत – जलता हुआ
कदाचित – शायद
बखानना – बढ़-चढ़ कर बताना
परवर्त्ती – बाद का
तत्काल – तुरंत
कसर – कमी
भोक्ता – अनुभव करने वाला
आहत – पीड़ित
विद्रोह – विरोध
बौद्धिक – बुद्धि से संबंधित
समूची – पूरी
मैं क्यों लिखता हूं? पाठ के प्रश्न और उत्तर
उत्तर: Main Kyon Likhta Hun के लेखक की मान्यता है कि सच्चा लेखन भीतरी विवशता से पैदा होता है। यह विवशता मन के अंदर से उपजी अनुभूति से जागती है, बाहर की घटनाओं को देखकर नहीं जागती। जब तक कवि का हृदय किसी अनुभव के कारण पूरी तरह संवेदित नहीं होता और उसमें अभिव्यक्त होने की पीड़ा नहीं अकुलाती, तब तक वह कुछ लिख नहीं पाता।
उत्तर- लेखक हिरोशिमा के बम विस्फोट के परिणामों को अखबारों में पढ़ चुका था। जापान जाकर उसने हिरोशिमा के अस्पतालों में आहत लोगों को भी देखा था। अणु-बम के प्रभाव को प्रत्यक्ष देखा था, और देखकर भी अनुभूति न हुई इसलिए भोक्ता नहीं बन सका। फिर एक दिन वहीं सड़क पर घूमते हुए एक जले हुए पत्थर पर एक लंबी उजली छाया देखी। उसे देखकर विज्ञान का छात्र रहा लेखक सोचने लगा कि विस्फोट के समय कोई वहाँ खड़ा रहा होगा और विस्फोट से बिखरे हुए रेडियोधर्मी पदार्थ की किरणें उसमें रुद्ध हो गई होंगी और जो आसपास से आगे बढ़ गईं पत्थर को झुलसा दिया, अवरुद्ध किरणों ने आदमी को भाप बनाकर उड़ा दिया होगा। इस प्रकार समूची ट्रेजडी जैसे पत्थर पर लिखी गई है। इस प्रकार लेखक हिरोशिमा के विस्फोट का भोक्ता बन गया।
उत्तर-कुछ रचनाकारों की रचनाओं में स्वयं की अनुभूति से उत्पन्न विचार होते हैं और कुछ अनुभवों से प्राप्त विचारों को लिखा जाता है। इसके साथ ऐसे कारण (बाह्य दबाव) भी उपस्थित हो जाते हैं जिससे लेखक लिखने के लिए प्रेरित हो उठता है। ये बाह्य-दबाव हैं-
1.सामाजिक परिस्थितियाँ
2.आर्थिक लाभ की आकांक्षा
3.प्रकाशकों और संपादकों का पुनः-पुनः का आग्रह
4.विशिष्ट के पक्ष में विचारों को प्रस्तुत करने का दबाव
उत्तर- आजकल विज्ञान का दुरुपयोग अनेक जानलेवा कामों के लिए किया जा रहा है। आज आतंकवादी संसार-भर में मनचाहे विस्फोट कर रहे हैं। कहीं अमरीकी टावरों को गिराया जा रहा है। कहीं मुंबई बम-विस्फोट किए जा रहे हैं। कहीं गाड़ियों में आग लगाई जा रही है। कहीं शक्तिशाली देश दूसरे देशों को दबाने के लिए उन पर आक्रमण कर रहे हैं। जैसे, अमरीका ने इराक पर आक्रमण किया तथा वहाँ के जनजीवन को तहस-नहस कर डाला। विज्ञान के दुरुपयोग से चिकित्सक बच्चों का गर्भ में भ्रूण-परीक्षण कर रहे हैं। इससे जनसंख्या का संतुलन बिगड़ रहा है। विज्ञान के दुरुपयोग से किसान कीटनाशक और जहरीले रसायन छिड़ककर अपनी फसलों को बढ़ा रहे इससे लोगों को स्वास्थ्य खराब हो रहा है। विज्ञान के उपकरणों के कारण ही वातावरण में गर्मी बढ़ रही है, प्रदूषण बढ़ रहा है, बर्फ पिघलने को खतरा बढ़ रहा है तथा रोज-रोज भयंकर दुर्घटनाएँ हो रही हैं।
उत्तर- लेखक के लिए आसान-सा लगने वाला यह प्रश्न ‘मैं क्यों लिखता हूँ’ कठिन लगता है क्योंकि इसका उत्तर इतना संक्षिप्त नहीं है कि एक या दो वाक्यों में बाँधकर सरलता से दिया जा सके। इसका कारण यह है कि इस प्रश्न का सच्चा उत्तर लेखक के आंतरिक जीवन के स्तरों से संबंध रखता है।
उत्तर-लेखक को यह जानने की प्रेरणा लिखने के लिए प्रेरित करती है कि वह आखिर लिखता क्यों है। यह उसकी पहली प्रेरणा है। स्पष्ट रूप से समझना हो तो लेखक दो कारणों से लिखता है-
भीतरी विवशता से। कभी-कभी कवि के मन में ऐसी अनुभूति जाग उठती है कि वह उसे अभिव्यक्त करने के लिए व्याकुल हो उठता है।
कभी-कभी वह संपादकों के आग्रह से, प्रकाशक के तकाजों से तथा आर्थिक लाभ के लिए भी लिखता है। परंतु दूसरा कारण उसके लिए जरूरी नहीं है। पहला कारण अर्थात् मन की व्याकुलता ही उसके लेखन का मूल कारण बनती है।
उत्तर- बाहरी दबाव सभी प्रकार के कलाकारों को प्रेरित करते हैं। उदाहरणतया अधिकतर अभिनेता, गायक, नर्तक, कलाकार अपने दर्शकों, आयोजकों, श्रोताओं की माँग पर कला-प्रदर्शन करते हैं। अमिताभ बच्चन को बड़े-बड़े निर्माता-निर्देशक अभिनय करने का आग्रह न करें तो शायद अब वे आराम करना चाहें। इसी प्रकार लता मंगेशकर भी 50 साल से गाते – गाते थक चुकी होंगी, अब फिल्म-निर्माता, संगीतकार और प्रशंसक ही उन्हें गाने के लिए बाध्य करते होंगे।
उत्तर- एक संवेदनशील युवा नागरिक होने के कारण विज्ञान का दुरुपयोग रोकने के लिए हमारी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए निम्नलिखित कार्य करते हुए मैं अपनी सक्रिय भूमिका निभा सकता हूँ-
1.प्रदूषण फैलाने तथा बढ़ाने वाले उत्तरदायी कारकों प्लास्टिक, कूड़ा-कचरा आदि के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के साथ-साथ लोगों से अनुरोध करूंगा कि पर्यावरण के लिए हानिकारक वस्तुओं का उपयोग न करें ।
2.विज्ञान के बनाए हथियारों का प्रयोग यथासंभव मानवता की भलाई के लिए ही करें, मनुष्यों के विनाश के लिए नहीं।
3.विज्ञान की चिकित्सीय खोज का दुरुपयोग कर लोग प्रसवपूर्ण संतान के लिंग की जानकारी कर लेते हैं और कन्या शिशु की भ्रूण-हत्या कर देते हैं जिससे सामाजिक विषमता तथा लिंगानुपात में असमानता आती है। इस बारे में आम जनता का जागरूक करने का प्रयास करूंगा।
4.टी.वी. पर प्रसारित अश्लील कार्यक्रमों का खुलकर विरोध करूँगा और समाजोपयोगी कार्यक्रमों के प्रसारण का अनुरोध करूँगा।
5.विज्ञान अच्छा सेवक किंतु बुरा स्वामी है। यह बात लोगों तक फैलाकर इसके दुरुपयोग के परिणामों को बताने का प्रयत्न करूंगा।
उत्तर-हिरोशिमा पर लिखी कविता हृदय की अनुभूति होती हुई भावों और शब्दों में जीवंत हो उठी है। कवि ने हिरोशिमा के भयंकर रूप को देखा था, आहत लोगों को देखा था। उसे देखकर लेखक के मन में उनके प्रति सहानुभूति तो उत्पन्न हुई होगी। किंतु उनकी उनकी व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बनी। जब पत्थर पर मनुष्य की काली छाया को देखा तो उन्हें अपने हृदय से अणु-बम के विस्फोट का प्रतिरूप त्रासदी बनकर मन में समाने लगा। वही त्रासदी जीवंत होकर कविता में परिवर्तित हो गई। इस तरह हिरोशिमा पर लिखी कविता अंतः दबाव का परिणाम थी। बाह्य दबाव मात्र इतना हो सकता कि जापान से लौटने पर लेखक ने अभी तक कुछ नहीं लिखा? वह इससे प्रभावित हुआ होगा और कविता लिख दिया होगा।
उत्तर- लेखक को कुछ लिखने के लिए प्रेरित करने वाले तथ्य निम्नलिखित हैं-
अपनी भीतरी प्रेरणा और विवशता जानने के लिए लेखक लिखता है।
किस बात ने लिखने के लिए उसे प्रेरित और विवश किया, यह जानने के लिए।
मन के दबाव से मुक्त होने के लिए लेखक लिखता है।
सन् 1959 में प्रकाशित अरी ओ करुणा प्रभामय काव्य संग्रह में संकलित अज्ञेय की हिरोशिमा कविता यहाँ दी जा रही है
हिरोशिमा
एक दिन सहसा
सूरज निकला
अरे क्षितिज पर नहीं,
नगर के चौक :
धूप बरसी पर अंतरिक्ष से नहीं,
फटी मिट्टी से
छायाएँ मानव-जन की
दिशाहीन
सब और पड़ीं वह सूरज
नहीं उगा था पूरव में, वह
बरसा सहसा बीचों-बीच नगर के
काल सूर्य के रथ के
पहियों के ज्यों अरे टूट कर
बिखर गए हो
दसों दिशाओं में ।
कुछ क्षण का व उदय अस्त!
केवल एक प्रज्वलित क्षण की
दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी ।
फिर?
छायाएँ मानव-जन की
नहीं मिटीं लंबी हो हो कर
मानव ही सब भाप हो गए।
छायाएँ तो अभी लिखी हैं
झुलसे हुए पत्थरों पर
उजड़ी सड़कों की राय पर
मानव का रचा हुआ सूरज
मानव को भाप बनाकर सोख गया।
पत्थर पर लिखी हुई यह
जली हुई छाया मानव की साखी है।
मैं क्यों लिखता हूँ MCQs
A. अज्ञेय
B. शिवपूजन सहाय
C. मधु कांकरिया
D. कमलेश्वर
उत्तर= A. अज्ञेय
A. शौक के लिए
B. अभ्यांतर विवशता के लिए
C. दिखावे के लिए
D. प्रसिद्धि के लिए
उत्तर= B. अभ्यांतर विवशता के लिए
A. निराशा
B. भय
C. मुक्ति
D. बंधन
उत्तर= C. मुक्ति
A. मानसिक ज्ञान
B. भीतरी शक्ति
C. मानसिक विकास
D. अनुशासन
उत्तर= C. मानसिक विकास
A. आत्मा को अनुशासन में रखना
B. अपने आप अपनाए गए नियम
C. किसी भी आत्मा पर दबाव डालना
D. अपना अनुशासन
उत्तर= B. अपने आप अपनाए गए नियम
A. जापान
B. फ्रांस
C. भारत
D. जर्मनी
उत्तर= A. जापान
A. भारत की पश्चिमी सीमा पर
B. पूर्वीय सीमा पर
C. दक्षिण भारत में
D. उत्तरी सीमा पर
उत्तर= B. पूर्वीय सीमा पर
A. जापान के लोगों को
B. जापान की सड़कों को
C. पत्थर पर बनी छाया को
D. जापान की घटना के वर्णन को
उत्तर= C. पत्थर पर बनी छाया को
(a) कौन-सी रचना अच्छी है और कौन-सी नहीं
(b) कौन-सी रचना समाज के लिए उपयोगी है
(c) कौन-सी रचना भीतरी प्रेरणा का फल है और कौन-सी बाहरी दबाव का
(d) किस रचना को लोग पसंद करेंगे
उत्तर: c
(a) जो आलसी होते हैं
(b) जो लाचार होते हैं
(c) जो चापलूस होते हैं
(d) जो दूसरों की नकल करते हैं
उत्तर: a
(a) बौद्धिक स्तर से आगे की बात
(b) बौद्धिक स्तर से पीछे की बात
(c) बौद्धिक स्तर की बात
(d) व्यवहार की बात
उत्तर: a
(a) अनुभव आवश्यक है, अनुभूति नहीं
(b) दोनों में कोई समानता नहीं है
(c) अनुभव से अनुभूति गहरी चीज़ है
(d) अनुभव अनुभूति से गहरा होता है
उत्तर: c
(a) अनुभव के
(b) संवेदना के
(c) कल्पना के
(d) संवेदना व कल्पना के
उत्तर: d
(a) भारत लौटकर
(b) रेलगाड़ी में बैठे-बैठे
(c) जापान में
(d) a और b कथन सत्य हैं
उत्तर: d
FAQs
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ जी ने यह पाठ लिखा है।
मैं क्यों लिखता हूं कक्षा 10वीं का पाठ है।
लेखक जापान के हिरोशिमा शहर भी गया था।
लेखक हिरोशिमा के बम-विस्फोट के परिणामों को अख़बारों में पढ़ चुका था।
Main Kyon Likhta Hun पाठ में राइटर अपने लिखने की वजह के साथ ही एक लेखक के लिए क्या चीज प्रेरित करती है उसके विषय में बताया है। लेखक का यह मानना है कि बिना लिखने के वजहों को नहीं जाना जा सकता है।
संबंधित आर्टिकल
बड़े भाई साहब पाठ क्लास 10 | बालगोबिन भगत कक्षा 10 |
साना-साना हाथ जोड़ि कक्षा 10 | नेताजी का चश्मा कक्षा 10 |
यूरोप में राष्ट्रवाद का उदय कक्षा 10 | सपनों के से दिन कक्षा 10 |
आशा करते हैं कि आपको मैं क्यों लिखता हूं (Main Kyon Likhta Hun) का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। ऐसे ही ज्ञानवर्धक और सामान्य ज्ञान से संबंधित ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।