NCERT Notes for Class 11 Hindi Chapter 9 Kabeer Ke Pad: NCERT कक्षा 11 की हिंदी टेक्स्टबुक अंतरा का पाठ ‘कबीर के पद’ सबसे महत्वपूर्ण पाठों में से एक है। ‘कबीर पाठ’ के रचियता कबीरदास जी हैं जिन्होंने इस पद के माध्यम से बताया है कि ईश्वर सर्वव्यापी हैं और वह सभी प्राणियों में वास करते हैं। हमें सांसारिक मोह-माया से दूर रहकर ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाना चाहिए। आत्मज्ञान प्राप्त करके हम अपने जीवन का सही उद्देश्य समझ सकते हैं। कक्षा 11 के विद्यार्थियों को इस पाठ की अच्छी समझ होनी चाहिए। ऐसे में इस लेख में आपको पद एवं उनके अर्थ, लेखक परिचय और प्रश्न उत्तर के बारे में बताएंगे, जिसे जानने के लिए ये लेख आपको अंत तक पढ़ना होगा। उससे पहले NCERT Notes for Class 11 Hindi Chapter 9 Kabeer Ke Pad से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी आप नीचे दिए गए तालिका में देख सकते हैं।
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लेखक परिचय
कबीरदास 15वीं शताब्दी के भारत के एक प्रसिद्ध कवि और विचारक थे। कई इतिहासकारों के अनुसार इस महान कवि का जन्म करीब 1398 में वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के लहरतारा नामक स्थान पर हुआ था। कबीरदास जी की रचनाओं ने भारतीय समाज और संस्कृति को गहराई से प्रभावित किया। उनके गुरु संत आचार्य रामानंद जी थे। कबीरदास की पत्नी का नाम ‘लोई’ था। और उनके पुत्र का नाम कमाल और पुत्री का नाम कमाली था। कबीर दास जी हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि थे। कबीर दास जी को बहुत ज्ञान था। उनको स्कूली शिक्षा ना प्राप्त होते हुए भी भोजपुरी, हिंदी, अवधी जैसे अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान था। वहीं उनका देहांत 1518 ई में बस्ती के निकट मगहर में हुआ था।
कबीर के पद एवं उनके अर्थ
हम तौ एक करि जांनानं जांनां ।
दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां।
जैसे बढ़ी काष्ट ही कार्ट अगिनि न काटे कोई।
सब घटि अंतरि तूही व्यापक धरै सरूपै सोई।
एकै पवन एक ही पानीं एकै जाेति समांनां।
एकै खाक गढ़े सब भांडै एकै काेंहरा सांनां।
माया देखि के जगत लुभांनां कह रे नर गरबांनां
निरभै भया कछू नहि ब्यापै कहैं कबीर दिवांनां।
कठिन शब्द एवं उनके अर्थ
Ncert Notes for Class 11 Hindi Kabeer Ke Pad के कठिन शब्द और उनके अर्थ निम्नलिखित है :
दोई – दो
तिनहीं – उनको
दोजग – नरक
नाहिंन – नहीं
खाक – मिट्टी
भांड़े – बर्तन
कोहरा – कुम्हार
सांनां – एक साथ मिलकर
बाढ़ी – बढ़ई
काष्ट – लकड़ी
अंतरि – भीतर, अंदर
सोई – वही
लुभाना – मोहित होना
दिवानां – बैरागी
पद का व्याख्या
कबीरदास कहते हैं कि उन्हें यह समझ आ गया है कि ईश्वर सर्वव्यापी है और आत्मा भी परमात्मा का ही अंश है। उन्हें ईश्वर की अद्वैतता का ज्ञान हो गया है। जो लोग ईश्वर के विभिन्न रूपों को मानते हैं, वो गलत है। ऐसे लोग वास्तविकता को नहीं समझ पाते। उन्होंने ईश्वर की अद्वैतता का प्रमाण देते हुए कहते हैं कि इस जगत में एक जैसी हवा, एक जैसा पानी, एक ही प्रकाश और एक ही तरह की मिट्टी है। उसी मिट्टी से सभी बर्तन बनाता है, भले ही उनका आकार अलग होता है। इसी प्रकार मनुष्य का शरीर नष्ट हो जाता है, लेकिन उसमें बसी आत्मा हमेशा रहती है। यह संसार माया के जाल में फंसा हुआ है और यही माया संसार को लुभाती है। इसलिए मनुष्य को घमंड नहीं करना चाहिए और निर्भय होकर ईश्वर की भक्ति करनी चाहिए। क्योंकि जब मनुष्य निर्भय हो जाता है तो वह किसी भी चीज से नहीं डरता। कबीरदास जी कहते हैं कि वह भी अब निर्भय हो गए हैं और ईश्वर के दीवाने हो गए हैं।
कबीर के पद एवं उनके अर्थ
सतों दखत जग बौराना।
साँच कहीं तो मारन धार्वे, झूठे जग पतियाना।
नमी देखा धरमी देखा, प्राप्त करें असनाना।
आतम मारि पखानहि पूजें, उनमें कछु नहि ज्ञाना।
बहुतक देखा पीर औलिया, पढ़े कितब कुराना।
कै मुरीद तदबीर बतार्वे, उनमें उहैं जो ज्ञाना।
आसन मारि डिभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना।
पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना।
टोपी पहिरे माला पहिरे, छाप तिलक अनुमाना।
साखी सब्दहि गावत भूले, आतम खबरि न जाना।
हिन्दू कहैं मोहि राम पियारा, तुर्क कहैं रहिमाना।
आपस में दोउ लरि लरि मूए, मम न काहू जाना।
घर घर मन्तर देत फिरत हैं, महिमा के अभिमाना।
गुरु के सहित सिख्य सब बूड़े, अत काल पछिताना।
कहैं कबीर सुनो हो सती, ई सब भम भुलाना।
केतिक कहीं कहा नहि माने, सहजै सहज समाना।
कठिन शब्द एवं उनके अर्थ
NCERT Notes for Class 11 Hindi Chapter 9 Kabeer Ke Pad के कठिन शब्द और उनके अर्थ निम्नलिखित है :
बौराना – पागल होना
साँच – सच
मारन – मारने
धावै – हमला
पतियाना – विश्वास करना
नेमी – नियमों का पालन करने वाला
धरमी – धर्म का पालन करने वाला
मुरीद – शिष्य
तदबीर – उपाय
पाथर – पत्थर
दोउ-दोनों
लरि-लड़ना
मर्म – रहस्य
काहू – किसी ने
मन्तर – गुप्त वाक्य बताना
महिमा-उच्चता
अंतकाल – अंतिम समय
भर्म- संदेह
केतिक कहीं – कहाँ तक कहूँ
सहजै – सहज रूप से
समाना- लीन होना
पद का व्याख्या
कबीरदास संत जनों को कहते हैं कि यह संसार उनको मारने के लिए दौड़ता है जो सच बताते हैं और उनपर विश्वास कर लेता है जो झूठ बोलते हैं। कबीरदास जी ऐसे संसार को पागल कहते हैं। कवि हिंदुओं के बारे में बताते हुए कहते हैं कि इस संसार में ऐसे लोग भी हैं जो बहुत से नियमों का पालन करते हैं, कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, सुबह उठकर स्नान करते हैं। ऐसे लोगों ने कुछ भी ज्ञान नहीं है। वहीं मुसलमानों के बारे में कबीर कहते हैं कि उन्होंने ऐसे भी लोग देखें है जो नियमित कुरान का पाठ करते हैं और अपने शिष्यों को तरह-तरह के उपाय बताते हैं लेकिन स्वयं खुदा के बारे में नहीं जानते हैं। वे ढोंगी, योगियों के बारे में बताते हैं कि उन लोगों के मन में भी बहुत घमंड भरा पड़ा है।
कबीरदास आगे कहते हैं कि लोग पेड़ पत्थर की पूजा करने लगे हैं। वे तीर्थ-यात्रा करते हैं और उनमें गर्व करते हैं, लेकिन ईश्वर को भूल गए हैं। कुछ लोग टोपी पहनते हैं, माला धारण करते हैं, माथे पर तिलक लगाते हैं और शरीर पर भभूत लगाते हैं। वे लोग भक्ति के सच्चे मार्ग से भटक गए हैं। वह केवल रीति-रिवाजों और बाहरी कर्मकांडों में व्यस्त हैं, लेकिन आत्मिक ज्ञान से दूर हैं। हिंदू के लिए राम है तो तुर्क के लिए रहीम है। इस तरह लोग धर्म के नाम पर लड़ते हैं, मारते हैं, और मरते हैं, लेकिन ईश्वर को नहीं जानते।
कबीरदास जी समाज में मौजूद पाखंडी गुरुओं और शिष्यों की कड़ी आलोचना करते हुए कहते हैं कि ये गुरु घर-घर जाकर लोगों को मंत्र देते फिरते हैं, लेकिन वे स्वयं सांसारिक माया के लालच में डूबे हुए हैं। वह ईश्वर-भक्ति के बजाय भौतिक सुख जैसे धन, दौलत और शोहरत कोमहत्व देते हैं। लेकिन अंतकाल में इन सबको अपनी गलती पर पछताना पड़ेगा। कबीरदास जी का मानना है कि ईश्वर को प्राप्त करना बहुत आसान है। सहज साधना से भी ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न उत्तर
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न उत्तर इस प्रकार है:
प्रश्न : ईश्वर के स्वरूप के विषय में कबीर क्या कहते हैं?
उत्तर : कबीरदास जी कहते हैं कि ईश्वर का कोई निश्चित रूप नहीं है, वे सर्वव्यापी हैं। अपनी इस बात को साबित करने के लिए वह कई तर्क देते हैं जैसे : इस जगत में एक जैसी हवा बहती है, एक जैसा पानी है, एक ही प्रकाश है तथा एक ही प्रकार की मिट्टी है। यह सब एक ही ईश्वर की रचना है। कबीर जी आगे कहते है कि बढ़ई लकड़ी को अलग-अलग टुकड़ों में काट सकता है, लेकिन आग को नहीं। इसका अर्थ है मूलभूत तत्वों (धरती, आसमान, जल, आग, और हवा) को छोड़कर आप सबको काट कर अलग कर सकते हैं। इसी तरह शरीर नष्ट हो जाता है लेकिन आत्मा हमेशा रहती है। इसी तरह ईश्वर के रूप अनेक हो सकते हैं लेकिन ईश्वर एक ही है।
प्रश्न : परमात्मा को पाने के लिए कबीर किन दोषों से दूर रहने की सलाह देते हैं?
उत्तर : कबीरदास जी का मानना है कि परमात्मा को पाने के लिए अहंकार, मोह -माया, अज्ञान, घमंड, क्रोध, ईर्ष्या आदि सबसे बड़े दोष है जो हमें परमात्मा से दूर रखता है। ऐसे में कबीर जी संसार को इस सब से दूर रहने की सलाह देते हैं। कबीरदास जी कहते हैं कि यदि हम इन दोषों से दूर रहते हैं, तो हम परमात्मा को प्राप्त कर सकते हैं। उनके अनुसार, परमात्मा को प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका सच्ची भक्ति, आत्म-साक्षात्कार और दूसरों के प्रति प्रेम है।
प्रश्न : कबीर पाखंडी गुरुओं के संबंध में क्या टिप्पणी करते हैं?
उत्तर : कबीरदास कहते हैं कि पाखंडी गुरुओं को ईश्वर और आत्म-साक्षात्कार के बारे में कोई वास्तविक ज्ञान नहीं होता। वे केवल दिखावे के लिए धर्म का ढोंग करते हैं और लोगों को गुमराह करते हैं। वे लोगों को गलत शिक्षा और मंत्र देते हैं, जिससे वे सत्य से दूर रह जाते हैं। इस तरह वे लोगों को अंधविश्वास में उलझा देते हैं। इससे समाज में कटुता का भाव पैदा होता है। हमें ऐसे पाखंडिओं से हमें बचना चाहिए।
MCQs
NCERT Notes for Class 11 Hindi Chapter 9 Kabeer Ke Pad के MCQs निम्नलिखित है :
1. संसार में लोग कैसे व्यक्ति का विश्वास करते हैं?
- ईमानदार
- घमंडी
- सच्चे
- झूठे
उत्तर : झूठे
2. मानव शरीर का निर्माण कितने तत्वों से हुआ है?
- पांच
- सात
- दो
- तीन
उत्तर : पांच
3. तदबीर का अर्थ क्या है?
- उपाय
- किस्मत
- तकलीफ़
- तारीफ
उत्तर : उपाय
4. कबीरदास की मृत्यु कब हुई थी?
- 1510 में
- 1518 में
- 1511 में
- 1513 में
उत्तर : 1518 में
5. किसे देखकर सारा संसार लालच में पड़ जाता है?
- पैसों को
- खाने को
- सोने को
- माया को
उत्तर : माया को
6. कबीर जी के अनुसार ईश्वर कहाँ कहाँ विद्यमान है?
- मंदिर में
- घर में
- कण-कण में
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर : कण-कण में
7. “पीपर पाथर पूजन लागे, तीरथ गर्व भुलाना” पंक्ति में कौनसा अलंकार है?
- उपमा अलंकार
- अनुप्रास अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
उत्तर : अनुप्रास अलंकार
8. ‘संतो देखत जग बौराना’ पद में कवि का स्वर कैसा है?
- प्रेम का
- आशा का
- विद्रोह का
- उत्साह का
उत्तर : विद्रोह का
9. संत कबीर ने ईश्वर के कितने स्वरूपों को जाना है?
- एक स्वरुप को
- दो स्वरुप को
- 100 स्वरुप को
- हज़ारों स्वरुप को
उत्तर : एक स्वरुप को
10. ‘हम तौ एक एक करि जाना’ पद में कवि ने स्वयं को क्या कहा ?
- बुद्धिमान
- वीर
- दीवाना
- मस्ताना
उत्तर : मस्ताना
FAQs
कबीर 15वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि और विचारक थे। वे अपनी भक्तिमय रचनाओं और सामाजिक बुराइयों पर कठोर टिप्पणी के लिए जाने जाते थे।
कबीर की रचनाओं में दोहे, सखी, रमैनी, पद और सबद शामिल हैं।
यह अध्याय छात्रों को सच्ची भक्ति, सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाने और प्रेम, करुणा और समानता के मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
कबीर ने जातिवाद, अंधविश्वास, पाखंड, धार्मिक भेदभाव और मूल्यहीन कर्मकांडों का कड़ा विरोध किया।
कबीर का भक्ति मार्ग सिखाता है कि सच्चा ईश्वर दिल में बसता है, और उसे पाने के लिए प्रेम, सत्य और साधना आवश्यक है, न कि बाहरी आडंबर।
कबीर ने गुरु को बहुत ऊँचा स्थान दिया है। उनके अनुसार, गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति असंभव है।
कबीर के दोहे आज भी मानव मूल्यों, जीवन के सिद्धांतों और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। वे समाज को आत्मनिरीक्षण का अवसर प्रदान करते हैं।
कबीरदास निर्गुण भक्ति के समर्थक थे। वे ईश्वर को बिना रूप, आकार या मूर्ति के मानते थे और आत्मा के मिलन को ही सच्ची भक्ति मानते थे।
ऐसा माना जाता है कि कबीर रामानंद के शिष्य थे, जिन्होंने उन्हें भक्ति की दिशा दिखाई।
क्योंकि उन्होंने सरल, स्थानीय और सीधे हृदय को छूने वाली भाषा में अपने विचार व्यक्त किए, जिसे आम जनता आसानी से समझ सके।
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