राजकोषीय घाटा एक महत्वपूर्ण शब्द है जिसका प्रयोग अक्सर व्यावसायिक समाचारों में किया जाता है, इसी डेफिसिट स्पेंडिंग के कारणों और घटकों पर आधारित प्रश्नों को सिविल सेवा परीक्षा के में पूछा जाता है। UPSC एग्जाम में बैठने वाले उम्मीदवारों को राजकोषीय घाटे के अर्थ और राजकोषीय घाटे और राजस्व घाटे के बीच के अंतर के बारे में पता होना चाहिए।
राजकोषीय घाटा क्या है?
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और उसकी कुल प्राप्तियों के बीच का अंतर है, कुल प्राप्तियों में उधार को नहीं गिना जाता है। राजकोषीय घाटा तब होता है, जब सरकार का कुल व्यय उस राजस्व से अधिक हो जाता है, जो वह उधार से प्राप्त धन को छोड़कर उत्पन्न करता है।
डेफिसिट स्पेंडिंग से होने वाले लाभ
देखा जाए तो इसने भारत के आर्थिक विकास में सहायक भूमिका निभाई है क्योंकि हमारी घरेलू बचत सकल घरेलू उत्पाद के 9% से कम थी, और 1950 के दशक की शुरुआत में ऋण लेने की क्षमता भी सीमित थी। जिससे सरकार की कल्याणकारी गतिविधियाँ बाधित हुईं। समय और नीतियों में परिवर्तन के कारण आज परिस्थितियां बदल रही हैं।
डेफिसिट स्पेंडिंग से होने वाले नुकसान
कई मायनों में घाटे की वित्त व्यवस्था मुद्रास्फीतिकारी है और यह केंद्रीय बैंक के स्वास्थ्य के लिए खराब या जटिल भी हो सकती है। यह व्यवस्था ब्याज दरों को बढ़ा सकती है और इस प्रकार सरकार के लिए ऋण चुकाना और भी कठिन बना सकता है। दूसरे शब्दों में समझा या कहा जाए तो इसको अर्थव्यवस्था की वित्तीय स्थिरता के लिए भी खतरे के रूप में देखा जा सकता है।
राजकोषीय घाटे को कैलकुलेट करने के लिए निम्नलिखित फॉर्मूला का प्रयोग किया जाता है-
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) – (राजस्व प्राप्तियां + ऋणों की वसूली + अन्य पूंजीगत प्राप्तियां (लिए गए ऋणों को छोड़कर सभी राजस्व और पूंजीगत प्राप्तियां))
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