ददनी प्रथा का सीधा संबंध ब्रिटिश शासन काल के दौरान की परिस्थितयों से है। जहाँ ब्रिटिश व्यापारी द्वारा भारतीय किसानों की भूमि हड़पकर श्रमिकों को बिना पैसा दिए ही काम करने के लिए मजबूर करते थे। UPSC की परीक्षा में इस विषय पर भी सवाल पूछे जाते हैं, इस एग्जाम अपडेट के माध्यम से आपको ददनी प्रथा के विषय की संक्षिप्त में जानकारी मिलेगी।
ददनी प्रथा किसे कहा जाता था?
यह प्रथा अंग्रेजो की कुनीतियों का एक कड़वा सच थी, जिसमें अंग्रेजी व्यापारी, भारतीय किसानों की जमीने हड़पकर, श्रमिको पर काम करने का दवाब डालते थे। जिसके बदले में उनको बाजार के दामों से भी काम दामों पर पैसा मिलता था या दूसरे शब्दों में, वे मामूली रकम देकर अग्रिम करार कर लेते थे। इसी को ‘ददनी प्रथा’ कहा जाता था।
ददनी प्रथा कब शुरू हुई?
कुछ इतिहासकारों की मानें तो ददनी प्रथा की शुरुआत लगभग 17 वीं और 18 वीं सदी के दौरान, सूती वस्त्र उत्पादन का थोक व्यापारियों, व्यापारियों-बिचौलियों और बुनकरों के बीच समझौते के आधार पर इस प्रथा का आयोजन किया गया था। जिसमें मात्रा, गुणवत्ता, कीमत और वितरण की तारीख जैसे विवरण स्पेसिफाईड किए गए थे।
तो वही इतिहासकारों का एक धड़ा ऐसा भी है जो इस प्रथा को मध्यकालीन युग में मुगलों से जोड़कर बताता है, ऐसे इतिहासकारों के अनुसार मुगल काल में ऋण की सुविधा भी व्यापारियों को उपलब्ध थी। ऋण प्रदान करने की इस व्यवस्था को ही दादनी कहा जाता था। दादनी प्रथा के अन्तर्गत शिल्पियों को निर्धारित समयावधि से पहले माल तैयार करना होता था, जिसके लिए उन्हें अग्रिम पैसा दिया जाता था।
ददनी प्रथा से जुड़ी कुछ अहम जानकारी
ददनी प्रथा के संदर्भ में ब्रिटिश काल की वाणिज्यिक नीतियों का भी उल्लेख इतिहास में देखने को मिलता है। इन नीतियों के आधार पर कंपनी ने राजनीतिक सत्ता के दमख़म दिखाकर बंगाल के दस्तकारों को अपना माल कम दाम पर बेचने को मज़बूर किया। ददनी प्रथा के अंतर्गत सशर्त निश्चित तिथि तक माल देने के लिए दस्तकारों को बाध्य किया जाता था। अंग्रेजों की इन्हीं नीतियों के चलते ही नये आविष्कारों के कारण प्राचीन उद्योग धंधों का विनाश अनिवार्य था।
ददनी प्रथा UPSC परीक्षा के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण विषय है। इसी प्रकार की अन्य Exam Update के लिए हमारी वेबसाइट के साथ बनें रहे।