Tulsidas Ke Dohe: गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य में भक्तिकाल काव्यधारा के एक महान कवि और संत थे। तुलसीदास जी को ‘रामचरितमानस’ के रचयिता के रूप में जाना जाता है। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राम भक्ति के लिए समर्पित कर दिया था। वहीं तुलसीदास जी ने अपने ग्रंथों में कई ऐसी बातों का जिक्र किया है जिसका अनुसरण करने पर व्यक्ति सफलता को प्राप्त कर सकता है। उनके दोहे जीवन के हर एक पहलु पर गहरी रौशनी डालते हैं। इनमें भक्ति, ज्ञान, कर्म और जीवन के मूल्यों के बारे में अमूल्य विचार दिए गए हैं। आइए अब इस लेख में तुलसीदास के 10 दोहे अर्थ सहित (Tulsidas Ke Dohe) जानते हैं।
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- तुलसीदास के 10 दोहे – Tulsidas Ke Dohe
- सूर-समर करनी करहिं कहि न जनावहिं।बिधमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।
- तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान। पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥
- तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
- आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
- तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।
- दुर्जन दर्पण सम सदा, करि देखौ हिय गौर।संमुख की गति और है, विमुख भए पर और॥
- तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होए।।
- काम, क्रोध, मद, लोभकी, जौ लौं मन में खान।तौं लौ पंडित मूरखौं, तुलसी एक समान।।
- अमिर गारि गारेउ गरल, नारी करि करतार।प्रेम बैर की जननि युग, जानहिं बुध न गंवार।।
- माता-पिता गुरु स्वामि सिख, सिर धरि करहिं सुभाय।लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर, नतरु जनम जग जाये।।
- FAQs
तुलसीदास के 10 दोहे – Tulsidas Ke Dohe
यहाँ तुलसीदास के 10 दोहे (Tulsidas Ke Dohe) दिए गए है, जो लोगों को नई राह दिखाने का सामर्थ्य रखते हैं:-
सूर-समर करनी करहिं कहि न जनावहिं।
बिधमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु।।
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी जी कहते हैं कि बहादुर व्यक्ति अपनी वीरता युद्ध क्षेत्र में शत्रु के सामने युद्ध लड़कर दिखाते हैं। किंतु कायर व्यक्ति लड़कर नहीं बल्कि अपनी बातों से ही वीरता का प्रदर्शन करते हैं।
तुलसी’ काया खेत है, मनसा भयौ किसान।
पाप-पुन्य दोउ बीज हैं, बुवै सो लुनै निदान॥
भावार्थ:- इस दोहे का अर्थ है कि शरीर मानो खेत है, मन मानो किसान है। जिसमें यह किसान पाप और पुण्य रूपी दो प्रकार के बीजों को बोता है। जैसे बीज बोएगा वैसे ही उसे अंत में फल काटने को मिलेंगे। इसी तरह अपने पाप या पुण्य का फल भी व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार ही मिलता है।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर।
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
भावार्थ:- गोस्वामी जी कहते हैं कि मनुष्य के मीठी वाणी बोलने से चारो ओर सुख का प्रकाश फैलता है। मीठी वाणी बोलकर किसी को भी अपनी ओर आकर्षित किया जा सकता है। इसलिए मनुष्य को कठोर और तीखी वाणी छोड़कर हमेशा मीठे वाणी ही बोलनी चाहिए।
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आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति के घर में जाने पर घर के लोग आपको देखकर प्रसन्न न हों और जिनकी आंखों में जरा भी स्नेह न हो, तो ऐसे घर में कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहां जाकर कितना ही लाभ क्यों न हो।
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी जी कहते हैं कि किसी भी विपदा में यह सात गुण आपको सदैव बचाएंगे-विद्या, विनय, विवेक, साहस, कर्म, सत्यनिष्ठा और ईश्वर के प्रति आपका अटूट विश्वास। इन गुणों का आचरण करने से जीवन सुखमय होता है।
दुर्जन दर्पण सम सदा, करि देखौ हिय गौर।
संमुख की गति और है, विमुख भए पर और॥
भावार्थ:- इस दोहे का अर्थ हैं दुर्जन व्यक्ति सामने तो मनुष्य की प्रशंसा करता है लेकिन पीठ पीछे उसकी निंदा करता है। इसी प्रकार शीशा भी जब सामने होता है तो वह मनुष्य के मुख को प्रतिबिंबित करता है; पर जब मनुष्य पीठ पलटता है तो प्रतिबिंबित नहीं करता।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
अनहोनी होनी नहीं, होनी हो सो होए।।
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि हमेशा भगवान पर भरोसा रखें और किसी भी भय के बिना शांति से सोइए। कुछ भी गलत नहीं होगा, और अगर कुछ अनिष्ट घटना होनी ही है तो वह घटकर ही रहेगी इसलिए मनुष्य को बेकार की चिंता या डर को छोड़कर हमेशा खुशी से रहना चाहिए।
काम, क्रोध, मद, लोभकी, जौ लौं मन में खान।
तौं लौ पंडित मूरखौं, तुलसी एक समान।।
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी जी कहते हैं कि जिस व्यक्ति के मन में काम, क्रोध, अहंकार और लालच भरा हुआ होता है। इस स्थिति में ज्ञानी और मूर्ख व्यक्ति एक ही समान होते हैं।
अमिर गारि गारेउ गरल, नारी करि करतार।
प्रेम बैर की जननि युग, जानहिं बुध न गंवार।।
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि ईश्वर ने स्त्री को अमृत और प्रेम से मिलाकर बनाया है। स्त्री वैर और प्रेम दोनों की जननी है, इस बात को बुद्विमान व्यक्ति जानते हैं, किंतु गंवार नहीं।
माता-पिता गुरु स्वामि सिख, सिर धरि करहिं सुभाय।
लहेउ लाभु तिन्ह जनम कर, नतरु जनम जग जाये।।
भावार्थ:- इस दोहे में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने माता-पिता और गुरुओं के आदेश का पालन करता है उनका जन्म सिद्धि हो जाता है। इसके विपरित जो लोग माता-पिता या गुरु के आदेशों का पालन नहीं करते उनका जन्म लेना व्यर्थ है। इसलिए सदैव अपने माता-पिता और गुरुजनों का आदर तथा उनके आदेश का पालन करना चाहिए तभी जीवन का उद्धार संभव है।
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FAQs
तुलसीदास का जन्म सन 1532 में उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर नामक गांव में हुआ था।
नरहरिदास, तुलसीदास के गुरू माने जाते है।
गोस्वामी तुलसीदास की पत्नी का नाम रत्नावली था।
तुलसीदास की मृत्यु सन 1632 के आसपास हुई थी।
रामचरितमानस, विनयपत्रिका, गीतावली, कवितावली और वैराग्य संदीपनी तुलसीदास जी की अनुपम कृतियाँ हैं।
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