वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 का इतिहास

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, भारत में वन्यजीवों और उनके आवासों के संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कानून है। इस अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों की विभिन्न प्रजातियों की सुरक्षा करना, उनकी आबादी को संरक्षित रखना और वन्य जीवों के पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखना है। इस अधिनियम के तहत, विभिन्न वन्यजीवों और उनके आवासों को संरक्षण के विभिन्न स्तर प्रदान किए जाते हैं। इसमें विशेष रूप से संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं। पर्यावरण सम्बंधित मुद्दों से जुड़े सवाल कई बार प्रतियोगी परीक्षाओं में भी पूछ लिए जाते हैं। इसलिए इस ब्लॉग में 1972 के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का इतिहास, इसकी जरूरत और संरक्षित क्षेत्रों के बारे में बताया गया है। 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 क्या है?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की भलाई की रक्षा करने के साथ-साथ भारत की पारिस्थितिकी और पर्यावरण सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण मामलों को संबोधित करने के लिए बनाया गया एक कानून है। पिछले कुछ वर्षों में अधिनियम में कई संशोधन हुए हैं और समय के साथ इसमें बदलाव हुए हैं। इसके अलावा, आखिरी संशोधन 2022 में हुआ था, जिसमें काफी महत्वपूर्ण संशोधन किए गए थे। कुल मिलाकर, वन्य जीव अधिनियम 1972 का उद्देश्य भारत में वन्यजीव संरक्षण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण का उपयोग करना है। इसलिए, लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा करना, उनके आवासों का प्रबंधन करना, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करना और साथ ही व्यापक पर्यावरण संरक्षण प्रयासों में योगदान देना है।

                                   वन्य जीवन अधिनियम, 1972 1 अप्रैल 2023 तक

चैप्टर I  (Chapter I)प्रिलिमिनरी (Preliminary)
चैप्टर II (Chapter II)अधिनियम के तहत नियुक्त किये जाने वाले या गठित किये जाने वाले प्राधिकारी (Authorities to be Appointed or Constitutes under the Act )
चैप्टर III (Chapter III)जंगली जानवरों का शिकार (Hunting of Wild Animals)
चैप्टर IIIA (Chapter IIIA)निर्दिष्ट पौधों का संरक्षण (Protection of Specified Plants)
चैप्टर IV (Chapter IV)केंद्र सरकार द्वारा घोषित संरक्षित क्षेत्र, अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान (Protected Areas, Sanctuaries, National Parks declared by the Central Government)
चैप्टर IVA (Chapter IVA)केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और चिड़ियाघरों की मान्यता (Central Zoo Authority and Recognition of Zoos)
चैप्टर IVB (Chapter IVB)राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority)
चैप्टर IVC (Chapter IVC)वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो (Wild Life Crime Control Bureau)
चैप्टर V (Chapter V)ट्रेड और कॉमर्स इन वाइल्ड एनिमल्स, एनिमल आर्टिकल्स (Trade or Commerce in Wild Animals, Animal Articles and Trophies)
चैप्टर VA (Chapter VA)Prohibition of Trade and Commerce in Trophies, Animal Articles, etc., Derived from Certain Animals
चैप्टर VB Chapter VB)वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन के अनुसार वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विनियमन (Regulation of International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora as per Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora)
चैप्टर VI (Chapter VI)प्रिवेंशन एंड डिटेक्शन ऑफ ऑफेन्स (Prevention and Detection of Offences)
चैप्टर VIA (Chapter VIA)अवैध शिकार और व्यापार से प्राप्त संपत्ति की जब्ती (Forfeiture of Property Derived from Illegal Hunting and Trade)
चैप्टर VII (Chapter VII)मिसलेनियस (Miscellaneous)
शेड्यूल I (Schedule I)
शेड्यूल II (Schedule II)
शेड्यूल III (Schedule III)
शेड्यूल IV विथ थ्री अपेंडिक्स (Schedule IV With Three Appendices)

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का इतिहास 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का इतिहास यहाँ बताया गया है : 

  • वन्यजीव संरक्षण के लिए पहला कानून 1887 में ब्रिटिश भारतीय सरकार द्वारा पारित किया गया था, जिसे जंगली पक्षी संरक्षण अधिनियम 1887 कहा जाता था। इस कानून में जंगली पक्षियों के कब्जे और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। 
  • फिर 1912 में एक दूसरा कानून बनाया गया था, जिसे जंगली पक्षी और पशु संरक्षण अधिनियम कहा जाता था। इसमें 1935 में संशोधन किया गया जब जंगली पक्षी और पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 1935 पारित किया गया।
  • ब्रिटिश राज के दौरान, वन्यजीव संरक्षण को प्राथमिकता नहीं दी गई थी। 
  • इसके बाद वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 को भारत सरकार ने पारित किया। इस अधिनियम को वन्यजीवों के शिकार और व्यापार को रोकने के लिए लागू किया गया था। यह अधिनियम वन्यजीवों के संरक्षण के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है और विशेष प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • 1991 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया ताकि अधिक प्रभावी तरीके से वन्यजीवों का संरक्षण किया जा सके। साल 2002 में भी इस अधिनियम में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए गए, जैसे कि विशेष प्रजातियों की सुरक्षा और वन्यजीव अपराधों के लिए सजा की व्यवस्था को सख्त किया गया। फिर साल 2013 में और अधिक संशोधन किए गए, जिसमें वन्यजीव अपराधों की जांच और अभियोजन की प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के लिए उपाय शामिल थे।
  • विशेष प्रावधान : इस अधिनियम के तहत, कई प्रजातियों को ‘अनुसूचित प्रजातियाँ’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है और वन्यजीवों के शिकार, उनके अंगों और उत्पादों की तस्करी पर कड़ी पाबंदी लगाई गई। 
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम ने भारतीय वन्यजीवों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इसके तहत कई संरक्षण परियोजनाएँ और राष्ट्रीय उद्यान स्थापित किए गए हैं। यह अधिनियम वन्यजीवों के संरक्षण के प्रति भारत के समर्पण को दर्शाता है और भविष्य में भी वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रभावी नीतियों के विकास की दिशा में काम कर रहा है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की आवश्यकता क्यों पड़ी?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की आवश्यकता क्यों पड़ी के बारे में यहाँ बताया गया है : 

  • 1970 के दशक में वन्यजीवों की जनसंख्या तेजी से घट रही थी और कई प्रजातियाँ संकट में थीं। इसके पीछे मुख्य कारण थे शिकार और अवैध व्यापार। 
  • विकास, जंगलों की कटाई और औद्योगिकीकरण ने वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को नष्ट कर दिया है। 
  • वन्यजीवों की हत्या और उनके अंगों का व्यापार एक गंभीर समस्या बन गया था। कई प्रजातियाँ जैसे बाघ, हाथी और तेंदुआ अत्यधिक शिकार और अवैध व्यापार के कारण संकट में आ गई थीं। इसलिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की आवश्यकता पड़ी। 
  • लोगों में वन्यजीवों के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूकता की कमी थी। इस वजह से वन्यजीवों के संरक्षण के लिए प्रभावी नीतियों और कानूनों की आवश्यकता महसूस हुई।

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत पहल

भारत के वन्यजीवों और प्राकृतिक आवासों की सुरक्षा के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत लागू की गई कुछ प्रमुख पहल और उपाय के बारे में यहां बताया गया है : 

  1. लीगल प्रोटेक्शन फॉर वाइल्डलाइफ : अधिनियम प्रजातियों को छह अनुसूचियों में वर्गीकृत करता है, जो सुरक्षा के विभिन्न स्तर प्रदान करता है। 
  2. हैबिटैट प्रिजर्वेशन : इस पहल के तहत महत्वपूर्ण आवासों की सुरक्षा और प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए नेशनल पार्क, वाइल्डलाइफ सेंचुरी, कंजर्वेशन रिजर्व और कम्युनिटी रिजर्व के एक नेटवर्क की स्थापना की गई थी।
  3. अवैध शिकार और अवैध व्यापार : अवैध शिकार और अवैध वन्यजीव व्यापार के खिलाफ दंड लागू करने के लिए 2007 में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) की स्थापना के साथ-साथ अवैध शिकार विरोधी इकाइयों और विशेष कार्य बलों का निर्माण किया गया।
  4. प्रोजेक्ट टाइगर : 1973 में लॉन्च किया गया, प्रोजेक्ट टाइगर का लक्ष्य बेहतर आवास प्रबंधन, अवैध शिकार विरोधी रणनीतियों और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से अपने प्राकृतिक आवासों में बंगाल बाघों की आबादी को बनाए रखना है।
  5. प्रोजेक्ट एलीफैंट : 1992 में शुरू किया गया प्रोजेक्ट एलीफैंट, हाथियों और उनके आवासों के संरक्षण, मानव-हाथी संघर्ष को कम करने और पालतू हाथियों के कल्याण के लिए उपायों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
  6. वाइल्डलाइफ कॉरिडोर : खंडित आवासों के बीच जानवरों की सुरक्षित आवाजाही को सुविधाजनक बनाने, मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए ववाइल्डलाइफ कॉरिडोर की पहचान और निर्माण किया गया।
  7. बायो डाइवर्सिटी कंजर्वेशन प्लान : यह अधिनियम लुप्तप्राय प्रजातियों और उनके आवासों की रक्षा के लिए संरक्षण योजनाओं और रणनीतियों के विकास को प्रोत्साहित करता है।
  8. वाइल्डलाइफ एजुकेशन एंड अवेयरनेस : यह अधिनियम आम जनता के बीच संरक्षण की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए वन्यजीव शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता की पहल का समर्थन करता है।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित क्षेत्र

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में दिए गए संरक्षित क्षेत्रों के बारे में यहाँ बताया गया है : 

  1. नेशनल पार्क्स : ये प्राकृतिक पर्यावरण और उसके अंदर रहने वाले वन्यजीवों की रक्षा के लिए अलग रखे गए क्षेत्र हैं। नेशन पार्क्स जिसे हम राष्ट्रीय उद्यान कहते हैं, यह आमतौर पर आकार में बड़े होते हैं और मानवीय हस्तक्षेप को कम करने के लिए उनके नियम सख्त होते हैं। इन्हें इकोसिस्टम को संरक्षित करने और वन्यजीवों को आवास प्रदान करने के लिए नामित किया गया है। 
  2. वाइल्डलाइफ सेंचुरी : ये क्षेत्र विशेष प्रजातियों या आवासों की रक्षा के लिए हैं। वन्यजीव अभयारण्य राष्ट्रीय उद्यानों के समान सुरक्षा की एक डिग्री प्रदान करते हैं, लेकिन यह पर्यटन जैसी कुछ मानवीय गतिविधियों की अनुमति दे सकते हैं। वाइल्डलाइफ सेंचुरी भी केंद्र सरकार की मंजूरी से राज्य सरकारों द्वारा स्थापित किए जाते हैं।
  3. कंजर्वेशन रिजर्व : इस श्रेणी को वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा पेश किया गया था। कंजर्वेशन रिजर्व को इकोसिस्टम और वाइल्डलाइफ को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नामित किया गया है और वे अक्सर नेशनल पार्क और वाइल्डलाइफ सेंचुरी को घेरते हैं।
  4. कम्युनिटी रिजर्व : 2002 के संशोधन द्वारा पेश किया गया कम्युनिटी रिजर्व स्थानीय समुदायों द्वारा प्रबंधित क्षेत्र हैं। इन रिजर्व का उद्देश्य स्थानीय लोगों को संरक्षण प्रयासों में शामिल करना है। 

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में क्या चुनौतियाँ हैं?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की चुनौतियों के बारे में यहाँ बताया गया है : 

  • यह अधिनियम 50 से अधिक वर्षों से लागू होने के बावजूद प्रभावी रूप से आम जनता तक नहीं पहुंँच पाया है। बहुत से लोग अभी भी वन्यजीव संरक्षण के महत्त्व और इससे संबंधित कानूनों से अंजान हैं।
  • मानव आबादी में वृद्धि और वन्यजीव आवासों के अतिक्रमण के साथ, मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि हुई है। इससे अक्सर वन्यजीवों की हत्या हो जाती है, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत अवैध है।
  • अवैध वन्यजीव व्यापार। 
  • वन विभाग और अन्य सरकारी एजेंसियों जैसे पुलिस, सीमा शुल्क और राजस्व विभागों के बीच अक्सर समन्वय की कमी होती है।
  • वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत वन्यजीव अपराधों के लिए दंड और जुर्माना अक्सर बहुत कम होता है।
  • वन्यजीव संरक्षण प्रयासों में सामुदायिक भागीदारी की अक्सर कमी होती है।
  • जलवायु परिवर्तन वन्यजीवों और वन्यजीव आवासों के लिए एक बहुत बड़ा खतरा है। 

FAQs

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 क्या है?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 भारत में एक कानून है जिसका उद्देश्य वन्यजीवों और उनके आवासों की रक्षा करना, शिकार और अवैध शिकार को विनियमित करना और जैव विविधता का संरक्षण करना है।

भारत के वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं: शिकार पर प्रतिबंध, लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा, संरक्षित क्षेत्रों की स्थापना और वन्यजीवों और उनके डेरिवेटिव में व्यापार का रेगुलेशन। 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भारत में कब पारित किया गया था?

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भारत में 21 अगस्त 1972 को पारित किया गया था।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भारत में कब लागु हुआ था? 

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भारत में 9 सितंबर 1972 को लागु हुआ था।

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