भारतीय स्वतंत्रता के लिए सबसे कम उम्र में शहीद होने वाले खुदीराम बोस पर निबंध

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खुदीराम बोस पर निबंध

खुदीराम बोस का नाम भारत की लड़ाई के प्रमुख योद्धाओं में लिया जाता है। वे उन शूरवीरों में से एक थे जिन्होंने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था और ऐसा करने से वे इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए। उनके जैसे वीरों के कारण ही आज हम आज़ाद भारत में सांस ले पा रहे हैं। उनके कारण बड़ी संख्या में युवा आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए प्रेरित हुए थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतने बड़े नायक होने के कारण स्कूल और कॉलेज की परीक्षाओं में अक्सर खुदीराम बोस पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। यहाँ खुदीराम बोस पर 100, 250 और 500 शब्दों में निबंध दिया गया है, जिसकी मदद से छात्र खुदीराम बोस पर निबंध लिखना सीख सकते हैं।

खुदीराम बोस के बारे में 100 शब्दों में निबंध 

यहाँ खुदीराम बोस पर 100 शब्दों में निबंध दिया गया है-

खुदीराम बोस भारत की आज़ादी के प्रमुख नायकों में से एक थे। मात्र 18 वर्ष की उम्र में वे अंग्रेजों के खिलाफ आज़ादी की लड़ाई लड़ते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए थे। उन्हें मुजफ्फरपुर षड्यंत्र में शामिल होने के कारण सजा हुई थी। वे सबसे कम उम्र में फांसी की सज़ा पाने वाले क्रांतिकारी थे।

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को मोहोबनी, बंगाल में त्रैलोक्यनाथ बोस और लक्ष्मीप्रिया देवी के यहाँ  हुआ था। उनका पूरा परिवार ही देशभक्त था। इस कारण से देशभक्ति के गुण उनके अंदर बचपन से ही आ गए थे। उन्होंने अंग्रेजों के जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाने और देश को आज़ाद कराने का निश्चय किया।

खुदीराम बोस की शहादत ने अनेक युवाओं को आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए प्रेरित किया था। इतनी छोटी उम्र में देश के लिए शहीद होकर उन्होंने युवाओं के सामने देशभक्ति का एक अनोखा उदाहरण पेश किया था। खुदीराम बोस के बलिदान को कभी न भुलाया जा सकेगा। उनका जीवन आने वाली अनेक पीढ़ियों को भी देशप्रेम का पाठ पढ़ाता रहेगा।

यह भी पढ़ें: खुदीराम बोस का जन्म कहां हुआ था और भारत के स्वाधीनता संग्राम में उनका बलिदान

खुदीराम बोस के बारे में 250 शब्दों में निबंध

यहाँ खुदीराम बोस के बारे में 250 शब्दों में निबंध दिया गया है-

खुदीराम बोस भारत की आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने वाले महान क्रांतिकारियों में से एक थे। उन्होंने देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मोहोबनी जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम  त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बचपन से ही वे देशभक्त प्रवृत्ति के थे और उन्होंने छोटी उम्र से ही ब्रिटिश शासन विरोधी गतिविधियों में सक्रीय हो गए थे। 

वर्ष 1905 में खुदीराम बोस ने बंगाल विभाजन (बंग-भंग) के समय ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाए जा रहे आंदोलन में सक्रीय भूमिका निभाई थी। ब्रिटिश हुकूमत को भारतीयों के दमन करने पर उन्हें सबक सिखाने के लिए खुदीराम जी ने बम बनाने की विधि भी सीख ली थी। वर्ष 1908 में खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने ब्रिटिश मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की कोशिश की जो कि भारतीयों को गलत दंड देने के लिए कुख्यात था। इस हमले में वह तो बच गया लेकिन उसके परिवार के दो लोग मारे गए थे।

इसके बाद खुदीराम बोस को पकड़ लिया गया और उन पर हत्या का मुकदमा चलाया गया। मुक़दमे के समय उन्होंने अपने कार्यों को स्वीकारा और 11 अगस्त 1908 को वे फांसी के फंदे पर झूल गए। उस वक्त उनकी आयु केवल 18 वर्ष थी। वे भारतीय इतिहास में सबसे कम उम्र में फांसी की सज़ा पाने वाले क्रांतिकारी हैं।

खुदीराम बोस का जीवन बलिदान और देशप्रेम की एक मिसाल है। उनकी निडरता और देशभक्ति ने उन्हें इतिहस में अमर कर दिया। आज भी वे भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और उनके बलिदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

खुदीराम बोस के बारे में 500 शब्दों में निबंध 

यहाँ खुदीराम बोस के बारे में 500 शब्दों में निबंध दिया गया है- 

प्रस्तावना 

खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपना जीवन देश की आज़ादी के लिए न्योछावर कर दिया। उनका जन्म 3 दिसंबर 1889 को बंगाल के मोहोबनी में हुआ था। उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। बचपन से ही खुदीराम बोस के अंदर देशप्रेम की भावना घर कर गई थी। वे लोकमान्य तिलक और अरविंद घोष के विचारों से प्रभावित थे। खुदीराम बोस का नाम इतिहास में देश की आज़ादी के लिए सबसे कम उम्र में फांसी की सज़ा पाने वाले क्रांतिकारियों में शामिल है। वे मात्र 18 वर्ष की आयु में देश की खातिर फांसी के फंदे पर झूल गए थे।

आरंभिक जीवन और शिक्षा 

खुदीराम बोस का बचपन उनके गांव में ही बीता था। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा अपने गांव के स्कूल से प्राप्त की थी। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने शहर के मिदनापुर कॉलेजिएट स्कूल में प्रवेश ले लिया था।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान 

खुदीराम बोस ने केवल 15 वर्ष की आयु में ही आज़ादी की लड़ाई में भाग लेना शुरू कर दिया था। वे अनुशील समिति के सदस्य बने और उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अनेक बड़ी योजनाएं बनाईं। वर्ष 1908 में खुदीराम बोस ने अपने साथी प्रफुल्ल चाकी के साथ मिलकर भारतीय क्रांतिकारियों को गलत फैसले देकर फांसी की सज़ा देने के लिए कुख्यात मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की योजना बनाई। लेकिन उनकी योजना सफल न हो सकी। इस हमले में किंग्सफोर्ड तो बच निकला मगर उसके परिवार के दो लोग इस हमले में मारे गए थे। इस घटना के बाद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

न्यायिक प्रक्रिया और देश के लिए बलिदान 

खुदीराम बोस पर मुजफ्फरपुर बमकांड का मुकदमा चला और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई थी। उनकी निडरता और साहस को देखकर जज भी प्रभावित हुए बिना न रह सका। इससे ही उनकी देशभक्ति भावना का पता चलता है। 11 अगस्त 1908 के दिन उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी कुर्बानी ने पूरे देश में स्वतंत्रता की भावना को और भी अधिक प्रबल कर दिया। उनके बलिदान से प्रभावित होकर सैकड़ों युवक आज़ादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए आतुर हो गए। इतनी छोटी उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर वे युवाओं के नायक बन चुके थे।

उपसंहार 

खुदीराम बोस के बलिदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई राह दिखाई थी। उनकी वीरता की दास्तान आज भी इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज़ है। उनके सम्मान में कई जगह मूर्तियां और स्मारक बनाए गए हैं। खुदीराम बोस ने अपनी शहादत से साबित कर दिया कि देश के लिए श्रद्धा और प्रेम प्रकट करने की कोई उम्र नहीं होती है। उनका जीवन युवाओं के लिए सदा ही एक प्रेरणा स्रोत का काम करेगा। उनका देश के लिए बलिदान हमें हमेशा याद दिलाता रहेगा कि आज़ादी कितनी कीमती है और इसे पाने के लिए कितने वीरों ने अपने प्राणों की आहुति दी है।

FAQs 

खुदीराम बोस का जीवन हमें क्या सिखाता है?

जब खुदीराम शहीद हुए थे तब उनकी आयु 18 वर्ष थी। वे देश की आज़ादी के लिए सबसे कम उम्र में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारी हैं। 

खुदीराम बोस ने आजादी के लिए क्या किया?

खुदीराम बोस ने बचपन से ही अंग्रेजों के विरूद्ध क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। इसके अलावा उन्होंने बंग भांग आंदोलन में भी सक्रीय भूमिका निभाई थी।

खुदीराम बोस को कहां फांसी दी गई थी?

खुदीराम बोस को मुज़फ़्फ़रपुर जेल में फांसी दी गई थी।

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आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको खुदीराम बोस पर निबंध जुड़ी पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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