हिंदी भाषा का इतिहास : कैसे हुआ हिंदी भाषा का विकास और विस्तार?

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हिंदी भाषा का इतिहास (1)

हिंदी भाषा भारत में व्यापक रूप से बोली जाती है। भारत देश में 22 आधिकारिक भाषाएं हैं लेकिन इनमें से सबसे उपयोग की जाने वाली भाषा हिंदी है। रिपोर्ट्स और रिसर्च के अनुसार, लगभग 50 करोड़ से अधिक लोग अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में हिंदी को बोलते हैं। अंग्रेजी के साथ हिंदी लेखन का उपयोग भारत के आधिकारिक संचार के लिए किया जाता है क्योंकि यह वर्ष 1950 में भारतीय संघ सरकार के द्वारा अपनाया गया था। हिंदी को एक इंडो यूरोपियन भाषा कहा जाता है और यह मुख्य रूप से उत्तरी भारत और मध्य भारत में प्रयोग की जाती है। इस क्षेत्र को हिंदी बेल्ट के नाम से भी जाना जाता है। यदि आप भी हिंदी भाषा का इतिहास जानने के इच्छुक हैं तो इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। यहां हिंदी भाषा के इतिहास के बारे में संपूर्ण जानकारी दी गई है। 

हिंदी भाषा का विकास 

रिचर्स और रिपोर्ट्स के अनुसार, माना जाता है कि हिंदी भाषा का इतिहास 769 ई. से है। समय के साथ इस भाषा ने प्रमुखता हासिल की, जिसे शुरू में पुरानी हिंदी के नाम से जाना जाता था और यह दिल्ली के आस-पास के इलाकों में बोली जाती थी। हिंदी को आर्य भाषा संस्कृत की उत्तराधिकारी माना जाता है। ‘हिंदी’ शब्द फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है – हिंदी का या हिंद से संबंधित। हिंदी शब्द फ़ारसी नहीं है बल्कि हिंद शब्द फ़ारसी मूल का है। हिंदी शब्द सिंधु-सिंध शब्द की व्युत्पत्ति से बना है क्योंकि फारसी भाषाओं में ‘स’ का उच्चारण ‘ह’ होता है। इस प्रकार हिंदी शब्द वास्तव में सिंधु शब्द का प्रतिरूप है। समय के साथ हिंद शब्द पूरे भारत का पर्याय बन गया। इसी ‘हिंद’ से हिंदी शब्द बना और हिंदी भाषा को नाम मिला।

हिंदी भारतीय संस्कृति की आधुनिक काल की प्रमुख भाषाओं में से एक है। भारतीय आर्य भाषाओं का विकास क्रम इस प्रकार है:- संस्कृत > पालि > प्रकृति > अपभ्रंश > हिंदी व अन्य आधुनिक भारतीय राज्य भाषाएं। हिंदी भाषा का जन्म संस्कृत भाषा से ही हुआ है, हिंदी भाषा के विकास को हजार वर्षों से अधिक के इतिहास में तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है। 

  • आदिकाल (1000-1500)
  • मध्यकाल (1500-1800)
  • आधुनिक काल (1800 से अब तक)

आदिकाल में हिंदी भाषा 

1000 ई. से 1500 ई. तक के समय को आदिकाल कहा जाता है। हिंदी भाषा आदिकाल में उसके अपभ्रंश के सर्वाधिक निकट थी क्योंकि उसे समय हिंदी का इतना विकास नहीं हुआ था और साहित्य भी विकसित नहीं हुआ था। इसका एक ओर मुख्य कारण यह था कि अपभ्रंश से हिंदी का उद्भव हुआ था। आदिकाल में प्रयोग की जाने वाली हिंदी में उन ध्वनियों का प्रयोग किया जाता था जो अपभ्रंश में होती थी। अपने विकास की शुरुआत में 1000 से 1100 ई तक हिंदी अपने अपभ्रंश के निकट ही थी। समय के साथ परिवर्तन हुआ और 1500 ई. आते-आते हिंदी भाषा अपने स्वतंत्र रूप में खड़ी हो चुकी थी। 1500 ई. के समय दोहा, चौपाई, छप्पय, दोहा, गाथा आदि छंदों की रचनाएं होना शुरू हो गई थी। आदिकाल के प्रमुख रचनाकार गोरखनाथ, विद्यापति, नरपति नालह, चंद्रवरदाई और कबीर कहे जाते हैं। 

मध्यकाल में हिंदी भाषा

मध्यकाल की अवधि 1500 से 1800 ई. तक थी। इस समय हिंदी भाषा में बहुत परिवर्तन अधिक परिवर्तन हुए थे। फारसी के लगभग 3500 शब्द, अरबी के लगभग 2500 शब्द, पश्तों भाषा के लगभग, 50 शब्द और तुर्की भाषा के 125 शब्द हिंदी की शब्दावली में जुड़ गए थे। उसे समय यूरोप के देशों के साथ व्यापार संपर्क भी बढ़ रहा था। इस वजह से पुर्तगाली स्पिनी फ्रांसीसी और अंग्रेजी शब्दों के कई शब्द हिंदी में शामिल हुए। मुगल शासन के दौरान उनके दरबार में फारसी पढ़े लिखे विद्वानों को नौकरियां मिलने लगी थी। इस कारण से उस समय लोग हिंदी के वाक्यों की रचना में भी फ़ारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग करने लगे थे। मध्यकाल के समय की इस अवधि के अंत तक हिंदी भाषा पर उसके अपभ्रंश का पूरा प्रभाव समाप्त हो चुका था। 

आधुनिक काल में हिंदी भाषा

1800 ई से लेकर वर्तमान तक का समय आधुनिक काल के रूप में जाना जाता है। हिंदी भाषा के आधुनिक काल में देश में अधिक परिवर्तन हुए हैं। उसे समय अंग्रेजी भाषा का प्रभाव देश की भाषा और संस्कृति पर पढ़ने लगा था। अंग्रेजी शब्दों को हिंदी शब्दों के साथ प्रयोग किया जाने लगा था। हालांकि उसे समय मुगलकालीन शासन समाप्त हो चुका था और इस वजह से अरबी, फारसी जैसी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कम होने लगा था। 1830 में जन्मे मुंशी सदा सुखलाल नियम ने हिंदी खड़ी बोली को प्रयोग में लिया था। खड़ी बोली का उद्भव शोर सैनी अपार ब्रांच से हुआ था। इसी खड़ी बोली पर उर्दू और दखनी हिंदी निर्भर करती है। आधुनिक काल के चार प्रमुख उपकाल हैं तथा इन उपकालों में कई कवियों और साहित्यकारों ने हिंदी भाषा को समृद्ध किया। 

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हिंदी साहित्य का इतिहास

हिंदी साहित्य के इतिहास की बात करें तो हम इसे मुख्य रूप से चार प्रमुख कालों में बांट सकते हैंः

आदिकाल में हिंदी साहित्य का इतिहास

आदिकाल को वीरगाथा काल भी कहा जाता है। आदिकाल समय का साहित्य वीरता और शौर्य की कहानियों पर आधारित था। आदिकाल के समय में राजाओं और वीरों की प्रशंसा के लिए बहुत सारा गीत लिखे जाते थे। आदिकाल के समय के प्रमुख कविराज चंद्रवरदाई ने पृथ्वीराज रासो की रचना की थी। आदिकाल के समय के अधिकतर साहित्य अपभ्रंश और अवहट्ट भाषाओं में लिखे गए थे। 

भक्तिकाल में हिंदी साहित्य का इतिहास

भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जाता है। भक्ति काल में भक्ति आंदोलन को शुरू किया गया था और धार्मिक साहित्यों की रचना इस काल में की गई थी। भक्ति काल में निर्गुण धारा के कवियों ने निराकार ब्रह्म की भक्ति की थी। इस काल के प्रमुख कवि कबीर दास और गुरु नानक जी माने जाते हैं। भक्ति काल में सगुण धारा के कवियों के द्वारा भगवान की उपासना की गई थी सगुण धाराओं को भी दो अलग शाखों में विभाजित किया गया है। राम भक्ति शाखा के प्रमुख कवि तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना की थी। कृष्ण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि सूरदास ने सूरसागर लिखा था। 

रितिकाल में हिंदी साहित्य का इतिहास

रीतिकाल के समय में श्रृंगार रस और नायिका भेद को अत्यधिक प्रधानता रही। रीतिकाल के कवियों ने नायिका भेद प्रेम सौंदर्य जैसे विषयों पर अपनी रचनाएं की थी। उसे समय की कविताएं दरबारी संस्कृति से प्रभावित होती थी और उन्हें रीतिबद्ध शैली से लिखा जाता था। रीतिकाल के प्रमुख कवि भूषण, बिहारी, केशवदास आदि थे। 

आधुनिक काल में हिंदी साहित्य का इतिहास

आधुनिक काल के चार प्रमुख उपकाल भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, छायावाद और प्रगतिवाद है। भारतेंदु युग प्रमुख कवि और नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र की वजह से जाना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी में राष्ट्र प्रेम और समाज सुधार के विचारों को प्रस्तुत किया था इसी युग में हिंदी गद्य साहित्य का भी विकास हुआ था। द्विवेदी युग के प्रमुख लेखक महावीर प्रसाद द्विवेदी थे। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य में नैतिकता और सुधारवादी दृष्टिकोण के बारे में लिखा था। इस समय हिंदी में गद्य लेखन का भी विकास हुआ था। 

छायावाद युग में प्रकृति, प्रेम और रहस्यवाद अपने चरम पर था। छायावाद के प्रमुख कवियों की बात करें तो इनमें जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और महादेवी वर्मा को गिना जाता है। प्रगतिवाद का साहित्य समाजवादी विचारधारा से बहुत अधिक प्रभावित था। प्रतिवाद में मुख्य रूप से सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’, नागार्जुन, मुक्तिबोध, और त्रिलोचन मशहूर हुए। 

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स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी भाषा की स्थिति

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हिंदी और हिंदी पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। महात्मा गांधी ने हिंदी भाषा को जन्माष्टमी की भाषा कहा था और इस राष्ट्र की भावना से भी जुड़ने का कार्य किया था। महात्मा गांधी ने हिंदी भाषाओं को संवाद की मुख्य भाषा बनाने का भी प्रयास किया था। 1918 में महात्मा गांधी ने काशी में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया था। वहां हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। उस समय महात्मा गांधी सहित अनेक राष्ट्रीय नेता हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने लगे थे। 

मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, प्रेमचंद, और माखनलाल चतुर्वेदी जैसे साहित्यकारों ने अपनी कविताओं, कहानियों और लेखों के माध्यम से देशप्रेम और स्वतंत्रता की भावना का प्रचार किया था। उनकी रचनाएँ स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक बन गईं। भारत की आजादी के बाद संविधान सभा में भी हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। 1949 में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा का दर्जा मिला। 

वर्तमान में हिंदी भाषा की स्थिति

वर्तमान के समय में भी हिंदी भाषा की स्थिति में बहुत अधिक बदलाव आया है। इस आधुनिक युग में हिंदी भाषा का विकास तकनीक शिक्षा मीडिया और सामाजिक जीवन में बहुत हद तक हुआ है। वर्तमान में हिंदी भाषा के सामने कुछ चुनौतियां भी आई है। सरकारी कार्यों में हिंदी भाषा को प्रमुखता दी जाती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार हिंदी भारत की राज भाषा है जिसकी लिपि देवनागरी है। भारत देश के कई बड़े राज्यों के सरकारी दफ्तर ऑन में हिंदी का मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। 

शिक्षा के क्षेत्र में भी वर्तमान में हिंदी एक प्रमुख भाषा बनी हुई है। भारत के कई बड़े राज्यों में हिंदी व्यापक रूप से पढ़ाई जाती है। लेकिन कुछ समय से देखा गया है की अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का प्रभाव हिंदी की तुलना में अधिक बढ़ रहा है। उच्च शिक्षा में हिंदी के पाठ्यक्रम उपलब्ध हो जाते हैं लेकिन वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों में अंग्रेजी भाषा का अधिक प्रभाव दिखाई देता है। मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में भी भारत में हिंदी भाषा का दबदबा दिखाई देता है। प्रवासी भारतीयों के साथ-साथ हिंदी भाषा में भी दुनिया के अलग-अलग देश में अपनी पहचान बनाई है। 

FAQs

हिंदी भाषा का इतिहास कब शुरू हुआ?

माना जाता है कि हिंदी की उत्पत्ति लगभग 1200 ईसा पूर्व संस्कृत के विकास के साथ हुई थी। समय के साथ इसकी विभिन्न बोलियां विकसित हुईं, जिनमें आधुनिक हिंदी भी एक है। 

हिंदी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?

हिन्दी शब्द का सम्बन्ध संस्कृत शब्द ‘सिन्धु’ से माना जाता है। ‘सिन्धु’ सिन्धु नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया।

हिंदी भाषा किसकी देन है?

हिन्दी की उत्पत्ति अपभ्रंश भाषाओं से है और अपभ्रंश भाषाओं की उत्पत्ति प्राकृत से है। प्राकृत अपने पहले की पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है और परिमार्जित संस्कृत भी (जिसे हम आजकल केवल “संस्कृत” कहते हैं) किसी पुरानी बोलचाल की संस्कृत से निकली है।

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