Poem on Sun in Hindi: सूरज, जो अपनी अनगिनत किरणों से पूरी दुनिया को रोशनी और ऊर्जा देता है, सिर्फ एक खगोलीय पिंड नहीं, बल्कि प्रेरणा, जीवन और सकारात्मकता का प्रतीक भी है। इसकी सुनहरी चमक जहां नए सवेरे का संदेश लाती है, वहीं इसके तेज में संघर्ष और साहस की गूंज भी सुनाई देती है। कवियों और लेखकों ने प्राचीन काल से ही इसकी महिमा का वर्णन अपनी रचनाओं में किया है। इस ब्लॉग में सूरज पर कविता (Suraj Par Kavita) के कुछ बेहतरीन और प्रेरणादायक अंशों से परिचित कराएंगे, जो न केवल इसकी आभा को उजागर करते हैं, बल्कि हमें जीवन के महत्वपूर्ण सबक भी सिखाते हैं।
This Blog Includes:
सूरज पर लोकप्रिय कविताएं | Famous Poem on Sun in Hindi
विभिन्न सूरज पर कविता (Suraj Par Kavita) की सूची इस प्रकार है:
सूरज पर कविता का नाम | कवि का नाम |
मेरी भी आभा है इसमें | नागार्जुन |
न बुझी आग की गाँठ | केदारनाथ अग्रवाल |
सूर्य | केदारनाथ सिंह |
मेरे सूर्य | निलय उपाध्याय |
चार दिशाएँ | अज्ञात |
मेरी भी आभा है इसमें – नागार्जुन
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो दमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
भीनी-भीनी ख़ुशबूवाले
रंग-बिरंगे
यह जो इतने फूल खिले हैं
कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था
कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था
पकी सुनहली फ़सलों से जो
अबकी यह खलिहान भर गया
मेरी रग-रग के शोणित की बूँदें इसमें मुस्काती हैं
नए गगन में नया सूर्य जो चमक रहा है
यह विशाल भूखंड आज जो चमक रहा है
मेरी भी आभा है इसमें
– नागार्जुन
न बुझी आग की गाँठ – केदारनाथ अग्रवाल
न बुझी
आग की गाँठ है
सूरज :
हरेक को दे रहा रोशनी—
हरेक के लिए जल रहा—
ढल रहा—
रोज़ सुबह निकल रहा-
देश और काल को बदल रहा।
– केदारनाथ अग्रवाल
सूर्य – केदारनाथ सिंह
वह रोटी में नमक की तरह प्रवेश करता है
ताखे पर रखी हुई रात की रोटी
उसके आने की ख़ुशी में ज़रा-सा उछलती है
और एक भूखे आदमी की नींद में गिर पड़ती है
एक बच्चा जगता है
और घने कोहरे में पिता की चाय के लिए दूध ख़रीदने
नुक्कड़ की दुकान तक अकेला चला जाता है
एक पतीली गर्म होने लगती है
एक चेहरा लाल होना शुरू होता है
एक ख़ूँख़ार चमक
तंबाकू के खेतों से उठती है
और आदमी के ख़ून में टहलने लगती है
मेरा ख़याल है
वह आसमान से नहीं
किसी जानवर की माँद से निकलता है
और एक लंबी छलाँग के बाद
किसी गंजे तथा मुस्टंड आदमी के भविष्य में
ग़ायब हो जाता है
अकेला
और शानदार
वह आदमी के सिर उठाने की
यातना है
आदमी का बुख़ार
आदमी की कुल्हाड़ी
जिसे वह कंधे पर रखता है
और जंगल की ओर चल देता है
मेरी बस्ती के लोगों की दुनिया में
वह अकेली चीज़ है
जिस पर भरोसा किया जा सकता है
सिर्फ़ उस पर रोटी नहीं सेंकी जा सकती!
– केदारनाथ सिंह
मेरे सूर्य – निलय उपाध्याय
मेरे लिए कौन नदी निकलेगी
कौन पेड़ मेरे लिए फल देगा
पश्चिम के पहाड़ की तरह भारी है
मेरे दुःख
वेतन
जैसे पेड़ पर उड़ जाती हो धूप में
मदार की रूई
बिच्छू के डंक-सा चढ़ रहा है झन्न-झन्न अँधेरा
कौड़ी पकड़ लहर मारता है ज़हर
मेरे जूते कौन पहनेगा यहाँ
किसके सिर होगी मेरी पगड़ी
पश्चिम के पहाड़ की तरह भारी हैं
मेरे दुःख
यहाँ मत डूबना—
अभी मत डूबना मेरे सूर्य।
– निलय उपाध्याय
चार दिशाएँ – अज्ञात
उगता सूरज जिधर सामने
उधर खड़े हो मुँह करके तुम
ठीक सामने पूरब होता
और पीठ पीछे है पश्चिम
बाईं ओर दिशा उत्तर की
दाईं ओर तुम्हारे दक्षिण
चार दिशाएँ होती हैं यों
पूरब पश्चिम उत्तर दक्षिण।
– अज्ञात
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको इस लेख में सूरज पर कविता (Suraj Par Kavita) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।