राहत इंदौरी उर्दू भाषा के एक लोकप्रिय शायर थे, जिनकी शायरियां कभी सिंहासन से टक्कर लेती, तो कभी इश्क़ की खूबसूरत बातें करती, तो कभी हताश चेहरों को हौसलों से भर देती थी। उर्दू भाषा के साहित्य में अपनी अमिट पहचान बनाने वाले राहत इंदौरी एक ऐसे शायर थे, जिन्होंने अपनी अलग पहचान और अपने बेधड़क अंदाज़ से युवाओं के दिलों की सत्ताओं पर अपना कब्जा कर रखा था। राहत इंदौरी के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थी जीवन में मिलने वाली असफलताओं से निराश हुए बिना उनका डटकर सामना करने के लिए, विद्यार्थियों को प्रेरित करेंगी। इस ब्लॉग के माध्यम से आप चुनिंदा Rahat Indori Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।
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राहत इंदौरी का जीवन परिचय
राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। राहत इंदौरी ने प्राथमिक शिक्षा इंदौर के नूतन स्कूल से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज से ग्रेजुएशन, बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में MA और भोज विश्वविद्यालय, भोपाल से PhD की उपाधि प्राप्त की।
अपनी शिक्षा को पूरा कर के राहत इंदौरी देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रहे। इसके बाद वह 40 वर्षों से अधिक समय तक मुशायरा और कवि सम्मेलनों का हिस्सा रहे, साथ ही उन्होंने कई हिंदी फिल्मों जैसे: “माचिस”, “1942: ए लव स्टोरी”, “तारे ज़मीन पर”, “गजनी” और “दिल चाहता है” के लिए गीत भी लिखे। राहत इंदौरी की बेहतरीन साहित्य की समझ ने उन्हें युवाओं के बीच एक मशहूर शायर और गीतकार बनाया।
राहत इंदौरी को वर्ष 2005 में पद्मश्री, वर्ष 2016 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 2019 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया। अपना जीवन उर्दू साहित्य के प्रति समर्पित करने वाले राहत इंदौरी, कोविड महामारी (COVID-19) के चलते 11 अगस्त 2020 को इंदौर में इस जग से हमेशा के लिए रुखसत हो गए।
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राहत इंदौरी की शायरी – Rahat Indori Shayari
राहत इंदौरी की शायरी पढ़कर युवाओं में उर्दू साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है –
“दोस्ती जब किसी से की जाए
दुश्मनों की भी राय ली जाए…”
-राहत इंदौरी
“न हम-सफ़र न किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा…”
-राहत इंदौरी
“शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे…”
-राहत इंदौरी
“हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते…”
-राहत इंदौरी
“रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है…”
-राहत इंदौरी
“बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ…”
-राहत इंदौरी
“घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया
घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है…”
-राहत इंदौरी
“ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रक्खो या न रक्खो ख़्वाब मेयारी रखो…”
-राहत इंदौरी
“बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए…”
-राहत इंदौरी
“बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ…”
-राहत इंदौरी
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सियासत पर शायरी राहत इंदौरी
सियासत पर शायरी राहत इंदौरी की एक अलग पहचान को गढ़ने का काम करती हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं-
“नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है…”
-राहत इंदौरी
“आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो…”
-राहत इंदौरी
“वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया…”
-राहत इंदौरी
“मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले…”
-राहत इंदौरी
“हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं…”
-राहत इंदौरी
“नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है…”
-राहत इंदौरी
“आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो…”
-राहत इंदौरी
“वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया…”
-राहत इंदौरी
“मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मिरे भाई मिरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले…”
-राहत इंदौरी
“हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं…”
-राहत इंदौरी
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मोहब्बत पर राहत इंदौरी की शायरी
मोहब्बत पर राहत इंदौरी की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी –
“इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं
तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है…”
-राहत इंदौरी
“हमारे मीर-तक़ी-‘मीर’ ने कहा था कभी
मियाँ ये आशिक़ी इज़्ज़त बिगाड़ देती है…”
-राहत इंदौरी
“मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी…”
-राहत इंदौरी
“तेरी महफ़िल से जो निकला तो ये मंज़र देखा
मुझे लोगों ने बुलाया मुझे छू कर देखा…”
-राहत इंदौरी
“सूरज सितारे चाँद मिरे साथ में रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मिरे हाथ में रहे…”
-राहत इंदौरी
“अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते…”
-राहत इंदौरी
“उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है…”
-राहत इंदौरी
राहत इंदौरी के शेर
राहत इंदौरी के शेर पढ़कर युवाओं को साहित्य के आँगन में फलने-फूलने की प्रेरणा मिलेगी। राहत इंदौरी के शेर युवाओं का परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं;
“एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो…”
-राहत इंदौरी
“बोतलें खोल कर तो पी बरसों
आज दिल खोल कर भी पी जाए…”
-राहत इंदौरी
“मैं पर्बतों से लड़ता रहा और चंद लोग
गीली ज़मीन खोद के फ़रहाद हो गए…”
-राहत इंदौरी
“ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो…”
-राहत इंदौरी
“मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए…”
-राहत इंदौरी
“मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे…”
-राहत इंदौरी
“रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है…”
-राहत इंदौरी
“मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे…”
-राहत इंदौरी
“शहर क्या देखें कि हर मंज़र में जाले पड़ गए
ऐसी गर्मी है कि पीले फूल काले पड़ गए…”
-राहत इंदौरी
“मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना…”
-राहत इंदौरी
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राहत इंदौरी की दर्द भरी शायरी
राहत इंदौरी की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं –
“चाँद सूरज मिरी चौखट पे कई सदियों से
रोज़ लिक्खे हुए चेहरे पे सवाल आते हैं…”
-राहत इंदौरी
“शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया
कुछ यादों ने चुटकी में लोबान लिया…”
-राहत इंदौरी
“ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे…”
-राहत इंदौरी
“कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं काग़ज़ की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है…”
-राहत इंदौरी
“शाम ने जब पलकों पे आतिश-दान लिया
कुछ यादों ने चुटकी में लोबान लिया…”
-राहत इंदौरी
राहत इंदौरी मोटिवेशनल शायरी
हौंसलें बढ़ाने का काम करने वाली राहत इंदौरी की मोटिवेशनल शायरी कुछ इस प्रकार है –
“सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को
अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की…”
-राहत इंदौरी
“रात की धड़कन जब तक जारी रहती है
सोते नहीं हम ज़िम्मेदारी रहती है…”
-राहत इंदौरी
“सितारो आओ मिरी राह में बिखर जाओ
ये मेरा हुक्म है हालाँकि कुछ नहीं हूँ मैं…”
-राहत इंदौरी
“चराग़ों का घराना चल रहा है
हवा से दोस्ताना चल रहा है…”
-राहत इंदौरी
“अब इतनी सारी शबों का हिसाब कौन रखे
बड़े सवाब कमाए गए जवानी में…”
-राहत इंदौरी
“आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो…”
-राहत इंदौरी
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राहत इंदौरी की ग़ज़ल
राहत इंदौरी की ग़ज़लें आपको उर्दू साहित्य के सौंदर्य से परिचित कराएंगी, जो नीचे दी गई हैं-
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
बीमार को मरज़ की दवा देनी चाहिए
मैं पीना चाहता हूँ पिला देनी चाहिए
अल्लाह बरकतों से नवाज़ेगा इश्क़ में
है जितनी पूँजी पास लगा देनी चाहिए
दिल भी किसी फ़क़ीर के हुजरे से कम नहीं
दुनिया यहीं पे ला के छुपा देनी चाहिए
मैं ख़ुद भी करना चाहता हूँ अपना सामना
तुझ को भी अब नक़ाब उठा देनी चाहिए
मैं फूल हूँ तो फूल को गुल-दान हो नसीब
मैं आग हूँ तो आग बुझा देनी चाहिए
मैं ताज हूँ तो ताज को सर पर सजाएँ लोग
मैं ख़ाक हूँ तो ख़ाक उड़ा देनी चाहिए
मैं जब्र हूँ तो जब्र की ताईद बंद हो
मैं सब्र हूँ तो मुझ को दुआ देनी चाहिए
मैं ख़्वाब हूँ तो ख़्वाब से चौंकाइए मुझे
मैं नींद हूँ तो नींद उड़ा देनी चाहिए
सच बात कौन है जो सर-ए-आम कह सके
मैं कह रहा हूँ मुझ को सज़ा देनी चाहिए
-राहत इंदौरी
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा कर के
दिल के बाज़ार में बैठे हैं ख़सारा कर के
आते जाते हैं कई रंग मिरे चेहरे पर
लोग लेते हैं मज़ा ज़िक्र तुम्हारा कर के
एक चिंगारी नज़र आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आँधी को इशारा कर के
आसमानों की तरफ़ फेंक दिया है मैं ने
चंद मिट्टी के चराग़ों को सितारा कर के
मैं वो दरिया हूँ कि हर बूँद भँवर है जिस की
तुम ने अच्छा ही किया मुझ से किनारा कर के
मुंतज़िर हूँ कि सितारों की ज़रा आँख लगे
चाँद को छत पे बुला लूँगा इशारा कर के
-राहत इंदौरी
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
राह के पत्थर से बढ़ कर कुछ नहीं हैं मंज़िलें
रास्ते आवाज़ देते हैं सफ़र जारी रखो
एक ही नद्दी के हैं ये दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िंदगी से मौत से यारी रखो
आते जाते पल ये कहते हैं हमारे कान में
कूच का ऐलान होने को है तय्यारी रखो
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम क़ाएम रहे
नींद रखो या न रखो ख़्वाब मेयारी रखो
ये हवाएँ उड़ न जाएँ ले के काग़ज़ का बदन
दोस्तो मुझ पर कोई पत्थर ज़रा भारी रखो
ले तो आए शाइरी बाज़ार में ‘राहत’ मियाँ
क्या ज़रूरी है कि लहजे को भी बाज़ारी रखो
-राहत इंदौरी
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