ओडिशा के सबअर्बन क्षेत्रों में छात्र सेल्फ-फाइनेंसिंग विषयों की तुलना में पोस्टग्रेजुएट (पीजी) के लिए पारंपरिक विषयों को प्राथमिकता दी जा रही है। जबकि अन्य शहरों में पब्लिक यूनिवर्सिटीज ने सेल्फ-फाइनेंसिंग कोर्सेज में अपनी ज्यादातर सीटें भर ली हैं। वहीं अन्य सबअर्बन क्षेत्रों में लगभग 50 प्रतिशत या अधिक ऐसी सीटें खाली हैं, लेकिन सभी ट्रेडिशनल कोर्सेज में सीटें भर गई हैं। फकीर मोहन यूनिवर्सिटी में भी कमोबेश यही हाल है।
अकादमिक सेशन 2023-24 के लिए सभी यूनिवर्सिटीज के PG एडमिशन स्टैट्स के अनुसार, यहां विश्वविद्यालय में एनवायर्नमेंटल साइंस में एमएससी प्रोग्राम में 16 की छात्र संख्या के मुकाबले केवल दो ही एडमिशन हुए थे। इसी तरह, पापुलेशन स्टडीज़ में केवल तीन छात्रों को एडमिशन दिया गया था, जिसमें 24 सीटें हैं। फिजिकल एजुकेशन कोर्सेज के लिए भी कोई लेने वाला नहीं था।
प्रोफेशनल कोर्सेज में कम हुए दाखिले
बेरहामपुर विश्वविद्यालय में, वीमेन स्टडीज़ कोर्स में इस वर्ष कोई एडमिशन नहीं हुआ, जिसमें 32 सीटें हैं और 30 सीटों के मुकाबले ट्रेवल और टूरिज़्म स्टडीज़ में एमबीए के लिए केवल 10 छात्रों ने दाखिला लिया। यही हाल 40 सीटों वाले इलेक्ट्रॉनिक साइंस कोर्स का भी है। इस कोर्स में मात्र 14 विद्यार्थियों ने एडमिशन लिया। oceanography कोर्स की बात करें तो इसमें 25 की क्षमता के मुकाबले बस 10 ही छात्र मिले।
ओडिशा के ही महाराजा श्रीराम चंद्र भांजा देव विश्वविद्यालय में एमबीए, कंप्यूटर साइंस, लाइब्रेरी और इन्फॉर्मेशन साइंस, रिमोट सेंसिंग और जियोग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम जैसे कोर्सेज में एडमिशन 50 प्रतिशत से कम है। बलांगीर के राजेंद्र विश्वविद्यालय को भी एमएससी कंप्यूटर साइंस में 32 सीटें भरने में मुश्किल हो रही है। रमा देवी महिला विश्वविद्यालय में, जेंडर स्टडीज़ के लिए कोई खरीदार नहीं है क्योंकि 32 में से केवल पांच सीटें भरी हैं।
संताली बोली कोर्स के लिए कोई छात्र नहीं
जहां महाराजा श्रीराम चंद्र भांजा देव विश्वविद्यालय में उड़िया और संस्कृत जैसे भाषा विषयों की सभी सीटें भर गईं, वहीं इस साल संताली में केवल चार छात्रों ने एडमिशन लिया है। इस विश्वविद्यालय में संताली बोली कोर्स में PG के लिए 50 सीटों की क्षमता है, लेकिन उनमें से 46 सीटें खाली पड़ी हैं। इस यूनिवर्सिटी के चांसलर संतोष त्रिपाठी ने कहा कि स्थानीय आदिवासी छात्रों के बीच इस कोर्स को आगे बढ़ाने की मांग कम है क्योंकि हालांकि भाषा को 2003 में संविधान की 8वीं अनुसूची में जोड़ा गया था, लेकिन इसे राज्य की हायर एजुकेशन सिस्टम में पूरी तरह से लागू नहीं किया गया है। ओडिशा में आठ लाख से ऊपर संताली बोली बोलने वाले लोग हैं।
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