भारत के इतिहास में अपनी ज़मीन बचाने के लिए बहुत युद्ध हुए हैं। इनमें से एक युद्ध ऐसा था जिसने अपने आप को भारत के इतिहास में हमेशा के लिए अमर करा लिया, यह युद्ध भारत के इतिहास के लिए बहुत महत्वपूर्ण था। इस युद्ध को चित्तौड़ के महान राजपूत वीर योद्धा राणा सांगा और मुगल बादशाह बाबर के बीच हुआ था। वर्चस्व की इस लड़ाई में भीषण मारकाट हुई थी। इस युद्ध का इतना गहरा प्रभाव रहा कि इसने मुगलों को भारत पर राज करने का मौका दे दिया। आइए, जानते हैं इस ब्लॉग में कि Khanwa ka Yudh कैसे लड़ा गया।
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Khanwa ka Yudh के संभावित कारण
Khanwa ka Yudh एक ऐसा युद्ध रहा, जिसने भारत में बदलते समय के साथ मानव की क्रूरता भी देखी, एक ऐसा युद्ध जिसके बाद भारत में सांस्कृतिक तौर पर भी काफी क्षति पहुंची। इस युद्ध के परिणामों ने भारत की स्वतंत्रता को कुचलने का भी काम किया, यूँ तो युद्ध के कारणों पर कई इतिहासकारों ने अपने मत दिए हैं। जिसमें से कुछ निम्नलिखित संभावित कारणों से जाना जा सकता है कि आखिर इतना भयानक युद्ध क्यों हुआ होगा-
- कई इतिहासकारों के अनुसार माना जाता है कि बाबर अपने पूर्वज तैमूर लंग के जैसा ही विस्तार अपनी सीमाओं का करना चाहता था, जिस कारण उसने यह युद्ध लड़ा।
- दूसरा कारण कई इतिहासकारों द्वारा यह भी माना जाता है कि पानीपत के युद्ध से पूर्व महाराणा सांगा और बाबर के बीच हुए समझौते के अनुसार, इब्राहिम लोदी के ख़िलाफ़ राणा सांगा को बाबर के सैन्य अभियान में सहायता करनी थी। जिसमें राणा सांगा ने बाबर का साथ नहीं दिया।
- कई इतिहासकारों का एक मत यह भी है कि बाबर चाहता था कि इब्राहिम लोदी को दिल्ली की सत्ता से हटाकर खुद अपना राज्य स्थापित करना था, जबकि महाराणा सांगा स्वराज्य यानि कि हिन्दू राज्य की स्थापना करना चाहते थे।
- इस भीषण युद्ध का एक कारण यह भी था कि महाराणा सांगा बाबर के राज्य विस्तार नीति और जिहाद की क्रूरता के खिलाफ थे।
- यह युद्ध ज़मीन या सत्ता की लड़ाई मात्र नहीं था, इतिहासकारों का एक बड़ा धड़ा यह भी मानता है कि यह युद्ध संस्कृति के संरक्षण के लिए और वैचारिक मतभेदों से मातृभूमि की रक्षा के लिए लड़ा गया था।
युद्ध से पहले की तैयारी
Khanwa ka Yudh राजस्थान के भरतपुर के पास ‘खानवा’ नामक एक गांव में लड़ा गया था। इसके शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, महमूद लोदी और अनेक राजपूत सरदारों ने अपना अपना समर्थन राणा सांगा को दिया। राणा सांगा के रणबाकुरें पूरे हौसलों के साथ एक विशाल सेना के साथ बयाना और आगरा पर अधिकार करने के लिए बढ़े। बयाना के शासक ने बाबर से सहायता मांगी। बाबर ने ख्वाजा मेंहदी को भेजा पर राणा सांगा ने उसे परास्त कर बयाना पर अपना अधिकार कर लिया। इसी कड़ी में आगे सीकरी के पास भी मुग़ल सेना को करारी हार झेलनी पड़ी। लगातार मिल रही पराजय से मुग़ल सैनिक डर चुके थे।
अपनी सेना का मनोबल गिरते देखकर बाबर ने जिहाद का ऐलान किया इसी के साथ बाबर ने मुसलामानों पर से तमगा (एक प्रकार का सीमा टैक्स) भी हटा लिया और अपनी सेना को कई तरह के लालच दिए। उसने अपने सैनिकों को निष्ठापूर्वक युद्ध करने और प्रतिष्ठा की सुरक्षा करने का हुकुम दिया। इससे उसकी सेना में फिर से मनोबल का संचार हुआ।
बाबर, राणा सांगा का मुकाबला करने के लिए फतेहपुर सिकरी के निकट खानवा नामक जगह पर पहुँचा। राणा सांगा उसकी प्रतीक्षा में ही थे। बाबर ने पानीपत में जैसे चाल चली थी उसने वैसे ही खानवा में चाल चली। बाबर को यह अच्छे से पता था कि राणा सांगा से उसकी लड़ाई बहुत टक्कर की होने वाली है।
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युद्ध का महत्वपूर्ण दिन
Khanwa ka Yudh 16 मार्च, 1527 राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच हुआ था। खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबरदस्त खूनी मुठभेड़ हुई। बाबर 2 लाख मुग़ल सैनिक थे, और ऐसा कहा जाता है कि राणा सांगा के पास भी बाबर जितनी सेना थी। राणा सांगा के राजपूतों के पास वीरता का भंडार था, राणा के सभी सैनिक वीरता से लड़े, पर बाबर के पास गोला-बारूद का बड़ा जखीरा था। युद्ध में बाबर ने सांगा की सेना के लोदी सेनापति को प्रलोभन दिया तो, वो सांगा को धोखा देकर सेना सहित बाबर से जा मिला। लड़ते हुए राणा सांगा की एक आँख में तीर भी लगा था, लेकिन उन्होंने इसकी परवाह नहीं की और युद्ध में डटे रहे। इस युद्ध में उन्हें कुल 80 घाव आए थे। उनकी लड़ाई में दिखी वीरता से बाबर के होश उड़ गए थे। यह लड़ाई पूरे दिन चली थी।
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Khanwa ka Yudh के परिणाम
वीरता का परिचय देते हुए राणा सांगा की सेना ने बाबर की सेना को नाकों चने चबा दिए। Khanwa ka Yudh इसीलिए भी महत्वपूर्ण था क्योंकि अपनों की गद्दारी ने युद्ध बदल डाला था। लोदी सेनापति के गद्दारी करने की वजह से राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी, लेकिन राणा सांगा को उनकी सेना युद्ध खत्म होने से पहले किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई। हालांकि, कुछ दिन बाद राणा सांगा के ही किसी सामंत ने द्वारा उन्हें जहर दिया गया, जिस कारण 1528 में उनकी मृत्यु हो गई थी। बाबर यह युद्ध अपने सैनिकों की वीरता से नहीं बल्कि अपने आधुनिक तोपखानों और हथियारों से जीता था. कुछ महत्वपूर्ण परिणाम यह भी थे –
- Khanwa ka Yudh बाबर के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण इसलिए भी था क्योंकि उसने एक वीर शासक को हराया और यह बात पूरे भारत में फ़ैल गई। इस युद्ध ने उसे भारत में पाँव फैलाने का अवसर प्रदान किया।
- बाबर ने इस जंग में जिहाद का ऐलान करके न केवल क्रूरता की सीमाएं लांघी, बल्कि युद्ध के बाद बाबर ने खुद को गाजी की उपाधि तक दे डाली थी।
- इस युद्ध के बाद राजपूत-अफगानों का संयुक्त “राष्ट्रीय मोर्चा” ख़त्म हो गया।
- खानवा युद्ध के बाद बाबर की शक्ति का आकर्षण केंद्र अब काबुल नहीं रहा, बल्कि आगरा-दिल्ली बन गया।
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युद्ध के बाद बाबर की ताजपोशी
Khanwa ka Yudh बाबर के लिए नया अध्याय लाया। जीतने के बाद बाबर ने ‘ग़ाज़ी’ की उपाधि धारण की। इस जीत से दिल्ली-आगरा में बाबर की स्थिति ठोस हो गई। इसके बाद बाबर ने हसन ख़ान मेवाती से अलवर का बहुत बड़ा भाग भी छीन लिया। इसके बाद उसने मालवा स्थित चन्देरी के मेदिनी राय के विरुद्ध अभियान छेड़ा। इस दौरान वीर राजपूत सैनिकों ने बाबर के ख़िलाफ़ ख़ून की अंतिम बूंद तक जंग लड़ी, लेकिन वह हार गए।
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खानवा के युद्ध के बाद क्या हुआ?
Khanwa ka Yudh एक भीषण और विध्वंसकारी युद्ध साबित हुआ, इतिहास में यह युद्ध और इसके बाद का समय मातृभूमि भारत की रक्षा करने वाले उन लाखों वीरों के बलिदानों से अमर हुआ जिन्होंने पहले घोर तमस देखा और बाद में वीरता की मसाल जलाकर उस तमस को मिटाया। इस युद्ध के बाद की परिस्थिति को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है-
- संपन्न और समृद्ध भारत की पुण्य धरा पर लाखों बेगुनाह लोगों को मारा गया, बाबर की क्रूरता ने न किसी वृद्ध को छोड़ा और न किसी स्त्री या बच्चे को। बिना कुछ सोचे बाबर की सेना अपनी सीमाओं का विस्तार किया गया।
- राणा सांगा की मृत्यु के पीछे उन्हीं का कोई सामंत निकला, जिसने राणा को विष दिया था।
- भारत की लाखों वर्ष पुरानी सनातन संस्कृति पर प्रहार हुआ, जिसमें सैकड़ों मंदिर तोड़े गए और लाखों महिलाओं और बच्चों के साथ दुर्व्यवहार किया गया।
- लाखों क्षत्राणियों यानि कि राजपूत महिलाओं ने जौहर के मार्ग से अपना सतित्व अपनाया।
- बाबर की क्रूरता का जिक्र सिखों के पहले गुरु श्री गुरु नानक देव जी ने भी अपनी वाणी में किया।
- इस युद्ध के बाद से ही बाबर ने खुद को गाजी घोषित कर दिया और इसी युद्ध के बाद से मुग़ल वंश की स्थापना हुई।
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FAQs
खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 में मेवाड़ के महाराणा और बाबर के बीच हुआ।
लोकमान्यताओं और लोकगीतों के आधार पर महाराणा सांगा ने बाबर के साथ लगभग 100 युद्ध लड़े, जिनमें से बाबर 99 युद्ध हारा था।
खानवा राजस्थान के भरतपुर के निकट एक गांव है, जहाँ महाराणा सांगा के वीर योद्धाओं और बाबर की मुग़ल सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ था।
महाराणा सांगा ने अपने जीवन में लगभग 100 शक्तिशाली युद्ध लड़े, जिसमें उन्होंने अपनी एक आँख, हाथ तथा पैर को खो दिया था। जिसके बावजूद मालवा, गुजरात और लोधी सल्तनत की संयुक्त सेनाओं को हराने के बाद महाराणा सांगा उत्तर भारत के सबसे शक्तिशाली राजा बन गए थे।
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