क्यों इतनी प्रसिद्द है हड़प्पा संस्कृति?

1 minute read
हड़प्पा संस्कृति

भारत की पहली मानी हुई सभ्यता है हड़प्पा सभ्यता। इसमें दो नामों का प्रयोग है: “सिंधु-सभ्यता” या “सिंधु घाटी की सम्यता” और हड़प्पा संस्कृति, लेकिन इनका मतलब एक है। भारत में यह कई हज़ार वर्षों पहले मौजूद थी। इस सभ्यता में आज के ज़माने जैसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल था। तो आइए, परिचय करवाते हैं आपका हड़प्पा संस्कृति से।

Check out: अंग्रेजी बोलने वालों के लिए आसान भाषाएं

कैसा पड़ा “हड़प्पा” नाम

हड़प्पा संस्कृति
Source – Vivasepanorma

1921 में जब जॉन मार्शल भारत के पुरातात्विक विभाग के निर्देशक थे तब पुरातत्वविद् दयाराम साहनी ने इस जगह पर सर्वप्रथम खुदाई करवाई थी। 1922 में सिंध में मोहेनजोदड़ो की खुदाई हुई तो विद्वानों ने सोचा कि यह सभ्यता पूर्णतया सिंधु घाटी तक ही सीमित थी। अतः इस सभ्यता के लिए “सिंधु-सभ्यता” या “सिंधु घाटी की सभ्यता” संज्ञाओं का ही प्रयोग उचित समझा गया। धीरे-धीरे नए स्थलों की खुदाई हुई। पता चला कि यह सभ्यता दूर तक फैली थी। विद्वानों ने इसे “सिंधु सभ्यता” या “सिंधु-घाटी की सभ्यता कहना उचित नहीं समझा तथा इसके लिए हड़प्पा संस्कृति जैसी गैर-भौगोलिक शब्द के प्रयोग का निर्णय किया गया। हड़प्पा इस सभ्यता से सम्बन्धित सर्वप्रथम ज्ञात स्थल होने के साथ-साथ इसका सबसे बड़ा नगर है। इस नगर के सर्वाधिक विशाल आकार के कारण विद्वान इसे इस संस्कृति के क्षेत्र की राजधानी होने का अनुमान भी लगाते हैं। इसलिए सिन्धु सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति कहना सही है।

Check out: एक महान साम्राज्य का इतिहास: विजयनगर साम्राज्य

भौगोलिक विस्तार

हड़प्पा संस्कृति
Source – Manojkiawaaz

हड़प्पा संस्कृति का उदय भारतीय उपमहाखण्ड के पश्चिमोत्तर भाग में हुआ। इसका विस्तार पंजाब, सिंध, राजस्थान, हरियाणा, जम्मू, गुजरात, बलूचिस्तान, उत्तरी-पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा उत्तरी अफगानिस्तान तक था। यह समूचा क्षेत्र एक त्रिभुजाकार दिखाई देता है। हड़प्पा संस्कृति के विस्तार का क्षेत्रफल लगभग 1,299,600 वर्ग किलोमीटर बताया जाता है। यह नील घाटी की मिस्र सभ्यता और दजला-फरात में मैसोपाटामिया की सभ्यता के क्षेत्रों से भी बड़ा है।

अब निम्नलिखित क्षेत्रों या स्थलों की चर्चा करते हैं –

  1. पश्चिमी पंजाब – इस क्षेत्र का सबसे महत्त्वपूर्ण स्थल हड़प्पा है जो रावी के सूखे मार्ग पर स्थित है।
  2. सिन्धु – इस क्षेत्र में मोहनजोदड़ो, चान्हूदड़ो, जुडेरजोदड़ो (कच्छ मैदान में), अमरी, आदि प्रमुख स्थल हैं।
  3. बलूचिस्तान – इस क्षेत्र में तीन स्थल महत्त्वपूर्ण हैं: सुतकागेंडोर (दश्क नदी के तट पर), सोतका फोह (शादीकोर के तट पर), बानाकोट (विन्दार नदी के तट पर) हैं।
  4. पूर्वी पंजाब – उत्खननों में प्राप्त इस क्षेत्र में तीन स्थल लोकप्रिय हैं और यह हैं – रोपड़, संघोल तथा चण्डीगढ़ के पास के स्थल।
  5. जम्मू – इस क्षेत्र में माँदा नामक (अखनूर के समीप) स्थल प्राप्त हुआ है।

Check out: आसान शब्दो में जाने लोक प्रशासन क्या है? 

हड़प्पा संस्कृति कितनी प्राचीन

हड़प्पा संस्कृति
Source – Patrika

हड़प्पा संस्कृति कितने वर्ष पुरानी है? इस बारे में विद्वानों की अलग-अलग राय हैं। कारण यह भी है कि उस समय जो लिपि प्रचलित थी उसको अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। अर्नेस्ट मैके तथा अन्य विद्वानों ने हड़प्पा संस्कृति का समय लगभग 4009 ईसा पूर्व बताया है। लेकिन अधिकांश भारतीय विद्वान इस सभ्यता को 2500 ई.पू के लगभग का मानते हैं। बगदाद तथा एलम की खुदाई में प्राप्त मुहरों से माना गया कि हड़प्पा संस्कृति मैसोपोटामिया सभ्यता की समकालीन थी।

Check out: जाने artificial intellegnce के बारे में सब कुछ

हड़प्पा संस्कृति किसने बनाई

हड़प्पा संस्कृति
Source – Opindia

हड़प्पा संस्कृति के निर्माता कौन थे? इसका उत्तर देने में कई इतिहासकारों ने हाथ खड़े कर दिए। प्रमाणों से यह तो स्पष्ट है कि इस संस्कृति के प्रधान नगरों की आबादी मिश्रित थी। व्यापार, नौकरी करने और अनेक शिल्पकलाओं को सीखने आदि के उद्देश्यों से अनेक व्यवसायों, नसलों और जातियों के लोग इन नगरों में आकर निवास करते होंगे।

कर्नल स्यूअल तथा डा. गुहा जैसे विद्वानों के अनुसार इनके निवासी चार विभिन्‍न नस्लों के थे। ये नस्ल – आस्ट्रेलोअड, भूमध्यसागरीय, मंगोलियन और अल्पाइन थीं। इनमें से अंतिम दो नस्लों के लोगों की केवल एक खोपड़ी हड़प्पा संस्कृति के अवशेषों में प्राप्त हुई। कुछ विद्वान हड़प्पा संस्कृति के निर्माता भारत के अनार्यों या द्रविड़ों लोगों को मानते हैं। उनका कहना है कि हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नामक नगरों में जो मकान मिले हैं, उनके दरवाजों की लंबाई कम है जबकि आर्य लम्बे कद के थे। दूसरा, आर्यों के जीवन में घोड़े एवं गाय का बहुत महत्त्व था. जबकि इन जानवरों के अवशेष हड़प्पा संस्कृति की खुदाई में बहुत कम प्राप्त हुए हैं। तीसरा, हड़प्पा संस्कृति के लोग सांड को पवित्र समझकर पूजते थे, दक्षिण भारत में आज भी द्रविड़ इसको पूजते हैं।

Check out: जानिए भारत का इतिहास Indian History

हड़प्पा संस्कृति की दिलचस्प विशेषताएं

हड़प्पा संस्कृति
Source – MJPRU Study Point

नगर योजना और इमारतें

हड़प्पा संस्कृति की एक अद्भुत विशेषता इसकी नगर योजना थी। यद्यपि अब तक हड़प्पा संस्कृति से संबंधित 250 से भी अधिक स्थलों का उद्घाटन हो चुका है लेकिन इनमें से छह स्थलों को ही नगर माना जाता है। वे हैं :- हड़प्पा, मोहजोदड़ो, चान्हुदड़ो, लोथल, कालीबंगा तथा बनबाली. इनमें दो नगर (हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो) सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इन दोनों में करीब 483 किलोमीटर का फासला है।

हड़प्पा

विद्वानों की राय है कि हड़प्पा नगर आकार में सभी नगरों से बड़ा था। इसे सुव्यवस्थित योजना के अनुसार बनाया गया था और यहां की आबादी सघन थी। इसमें दो खण्ड थे: पूर्वी और पश्चिमी. यहां की दो सड़के सीधी व चौड़ी थीं जो एक-दूसरे को समकोण काटती थी. इस नगर के चारों तरफ एक विशाल दीवार बनी हुई थी। यहां के लोग पक्की ईटों के मकानों में रहते थे। इस नगर की सड़कें व गलियां इस प्रकार बनायी गई थीं कि हवा चलने से वे अपने-आप स्वच्छ हो जाती थीं।

मोहनजोदड़ो

हड़प्पा की भांति यह नगर भी योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया था। यह स्थल, जिसका आकार लगभग एक वर्गमील है, दो खण्डों में विभाजित है: पश्चिमी और पूर्वी. पश्चिमी खण्ड अपेक्षाकृत छोटा है. इसका सम्पूर्ण क्षेत्र गारे और कच्ची इंटों का चबूतरा बनाकर ऊँचा-उठाया गया है। सारा निर्माण कार्य इस चबूतरे के ऊपर किया गया है। मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 10 मीटर चौड़ी तथा 400 मीटर लंबी थी। यहां के मकान हड़प्पा से बड़े होते थे।

चान्हूदड़ो

इसका थोड़े से ही हिस्से का उत्खनन हुआ है। यहां जो महत्त्वपूर्ण निर्माण-कार्य पाया गया, उसमें एक मनके बनाने का कारखाना भी था।

पक्के ओर सुंदर भवन

हड़प्पा संस्कृति में मकान सड़कों के किनारे बने हुए थे ओर इन्हें बनाने में पक्की इंटें लगायी गई थीं। हड़प्पा संस्कृति के नगरों में पक्‍क़ी ईटों का प्रयोग एक अद्भुत बात है, क्योंकि मिस्र के समकालीन भवनों में मुख्यतः धूप में सुखाई गई इंटों का ही प्रयोग होता था। मैसोपोटामिया (वर्तमान ईराक) में भी पकाई गई ईंटों का प्रयोग था लेकिन हड़प्पा संस्कृति से पकाई गई ईंटों का प्रयोग वहां से कई गुणा ज्यादा होता था। सभी मकानों में एक कुंआ और स्नानागार थे। खुदाई में मिले खंडहारों को देखकर विद्वानों ने अनुमान लगाया है इस सभ्यता के मकानों में खिड़कियाँ और रोशनदान और मकान 8 मीटर तक ऊँचे होते थे। साधारणतया मकानों की दीवारें 2-2 मीटर तक मोती होती थीं।

सड़कें व गलियाँ

इन नगरों की सड़कें और गलियाँ सीढ़ी और चौड़ी थी। यहां की सड़कें 400 मीटर लंबी और 10 मीटर चौड़ी थी। वे या तो उत्तर से दक्षिण की ओर या पूर्व से पश्चिम की ओर सीढ़ी जाती थीं। मुख्य सड़कों के साथ-साथ अन्य छोटी सड़कें भी जाती थीं जिनकी चौड़ाई दो से तीन मीटर के बीच होती थीं। इतिहासकार मैके के मतानुसार, “यह सड़कें तथा गलियां इस प्रकार बनी हुई थीं कि चलने वाली वायु एक कोने से दूसरे कोने तक नगर को स्वयं ही साफ कर दे।”

सफाई की ओर विशेष ध्यान

हड़प्पा संस्कृति के लोग स्वास्थ्य तथा सफाई के महत्त्व को आज के सभ्य नागरिकों की जैसे ही जानते थे। आइए, जानते हैं किन-किन बातों का उस टाइम लोग रखते थे ध्यान।

  • ढकी नालियाँ – शहरों में नालियों का बढ़िया प्रबंध होता था। यह नालियां पूरी तरह ढकी हुई होती थीं ताकि इनसे उठने वाली बदबू लोगों के स्वास्थ्य को हानि न पहुंचा सके।
  • कूड़ादान – सिन्धु घाटी के मकानों के बाहर कूड़ेदान मिले हैं। इनसे भी पता लगता है कि वहां के लोग कूड़े को इधर-उधर न डालकर एक ही जगह डालते थे।
  • सड़कें – सड़कों का निर्माण ऐसे हुआ था कि हवा चलने पर अपने आप ही साफ हो जाएं तथा मानसून में बारिश का पानी जमा न हो सके।
  • मकान – मकानों में खिड़कियों और रोशनदान थे, जिससे मालूम होता है कि लोग स्वास्थ्य के लिए प्रकाश और शुद्ध वायु का महत्त्व जानते थे।
  • स्नानगृह – हर मकान में बना स्नानगृह एवं मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानगृह इस बात का प्रमाण देते हैं कि हड़प्पावासी शरीर की सफाई का बहुत ध्यान रखते थे तथा संभवतः प्रतिदिन स्नान करते थे।

Check it : भारत का इतिहास

हड़प्पा के लोगों का रहन-सहन

हड़प्पा संस्कृति
Source – Sanskar lochan

हड़प्पा संस्कृति में लोगों का रहन-सहन बिलकुल आज के ज़माने के जैसा था।

  • भोजन
  • वस्त्र
  • आभूषण
  • हड़प्पा संस्कृति में स्त्री सम्मान
  • मनोरंजन

Check out: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के जीवन की कहानी

हड़प्पा के लोगों का आर्थिक जीवन

हड़प्पा संस्कृति
Source – Haryana magazine

कृषि

हड़प्पा के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। नदियों से सिंचाई की जाती थी। विद्वान द्वारा अभी तक नौ फसलें पहचानी गई हैं: चावल (केवल गुजरात तथा सम्भवत: राजस्थान में ), जौ की दो किस्में, गेहूं की तीन किस्में, कपास, खजूर, तरबूज, मटर और एक ऐसी किस्म जिसे ब्रासिका जुंसी की संज्ञा दी गई है (चूंकि कपास सबसे पहले इसी प्रदेश में पैदा किया गया था, इसलिए यूनानियनों ने इसे सिंडोन, जिसकी व्युत्पत्ति सिन्ध शब्द से हुई है, दिया था)।

हड़प्पा संस्कृति में पशुपालन

सिन्धुवासियों का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशुपालन था। बैल, भैंस, बकरी और सूअर उनके पालतू पशु थे। हाथी और घोड़े के अस्तित्व का भी पता चला है (सुरकोतड़ा में भी घोड़े की अस्थियां मिली हैं)।

व्यापार और वाणिज्य

हड़प्पा निवासियों द्वारा आंतरिक एवं विदेशी दोनों प्रकार का व्यापार किया जाता था। आंतरिक व्यापार की दृष्टि से तात्कालिक नगर (हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चान्हूदाड़ो, रोपड़, सुरकोतड़ा, आलमगीरपुर आदि) व्यापार और वाणिज्य के केंद्र थे। एक स्थान से दूसरे स्थान को माल बैलगाड़ियों, इक्कों तथा पशुओं पर लाया ले जाया जाता था।

नाप-तौल और माप साधन

सिन्धु घाटी में तोलने की तराजू भी खुदाई में प्राप्त हुई है। सर्राफों तथा जौहरियों के काम में आने वाले छोटे बाट भी मिले हैं जो स्‍लेट और पत्थर के होते थे। सबसे छोटे बाट का वजन 13.64 ग्राम के बराबर था और सबसे बड़े बाट का वजन इससे 640 गुना अधिक था।

हड़प्पा संस्कृति की लिपि

सिंधु घाटी के लोगों को लेखन शैली या लिपि का ज्ञान प्राप्त था। 1923 में इस लिपि के बारे में पूरी जानकारी मिल चुकी थी, फिर भी इस लिपि को पढ़ने के सारे प्रयत्न अब तक असफल सिद्ध हुए हैं। कई विद्वानों का विश्वास है कि यह लेखन शैली भी चित्र लिपि है और इसका प्रत्येक चिन्ह किसी एक वस्तु या भाव को प्रकट करता है। 

हड़प्पा संस्कृति के विनाश के कारण

हड़प्पा संस्कृति
Source – Factzilla

1700-1750 ईसा पूर्व के लगभग हड़प्पा संस्कृति का अन्त हो गया। विद्वानों के अलग तर्क थे. एक मत के अनुसार भूमि में रेगिस्तान फैलता चला गया। दूसरे मत के अनुसार इस क्षेत्र के नीचे धंसने के कारण भयंकर बाढ़ आयी तथा इससे ही अचानक इसका विनाश हो गया। तीसरे मत के अनुसार इस सभ्यता का आर्यों ने विनाश किया।

Check out: Samrat Ashoka History in Hindi

हड़प्पा सभ्यता के रोचक तथ्य

हड़प्पा संस्कृति
Source – Thirst of Education
  • कई इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा की जनसँख्या 50 लाख थी।
  • अभी तक हड़प्पा संस्कृति के 1056 शहरों की खोज की चुकी है।
  • हड़प्पा सभ्यता के लोगों को दंत-चिकित्सा का ज्ञान था।
  • यहाँ कई तरह के बटन भी मिले हैं जो अलग-अलग आकार और रंग के हैं।
  • पुरातत्वविदों को यहाँ लकड़ी के फ्रेम के 30 सेंटीमीटर लंबे साइनबोर्ड भी मिले हैं।

हड़प्पा संस्कृति के इस ब्लॉग में आपने जाना दुनिया की सबसे बड़ी सभ्यता के बारे में। हमें उम्मीद है आप हड़प्पा संस्कृति के बारे में परिचित ज़रूर हुए होंगे। इसे आगे भी शेयर कीजिए, जिससे बाकी लोग भी इस अद्भुत सभ्यता के बारे में जान सकें। ऐसे ही या नए तरह के ब्लॉग्स के लिए आप Leverage Edu वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं।

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*