भारत एक ऐसा महान देश है जिसने अपने ऊपर अनेकों विदेशी आक्रमण सहकर भी मनावता को नहीं त्यागा। इतिहास में हुए अनेकों युद्धों में से एक खानवा का युद्ध भी था, जिसने भारतीय इतिहास में वीरता की गाथाओं को स्वर्णिम अक्षरों से लिखा। इतिहास पर नज़र डाली जाए तो हम पाते हैं कि विदेशी आक्रमणकारियों के हमलों ने भारत में भीषण नरसंहार किया, जिनका प्रतिकार भारत के महान शूरवीरों ने किया। इस पोस्ट के माध्यम से आप खानवा का युद्ध कब हुआ था, के बारे में सटीक जानकारी के साथ-साथ मातृभूमि पर मर-मिटने वाले शूरवीरों के बारे में भी जान पाएंगे।
खानवा का युद्ध कब हुआ था?
16 मार्च, 1527 ई. में खानवा का युद्ध मेवाड़ नरेश राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच लड़ा गया। इस युद्ध में मेवाड़ नरेश राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर आमने-सामने थे। यह युद्ध बाबर की विस्तारवादी और क्रूर नीतियों के कारण हुआ था। वर्चस्व की इस लड़ाई में बाबर की सेना में 2 लाख मुग़ल सैनिक थे, जहाँ राणा सांगा की सेना में भी लगभग इतने ही सैनिक थे। राजस्थान के भरतपुर के पास ‘खानवा’ नामक एक गांव में लड़ा गया था। इसके शुरू होने से पहले राणा सांगा के साथ हसन खां मेवाती, महमूद लोदी और अनेक राजपूत सरदारों ने अपना अपना समर्थन राणा सांगा को दिया। इस युद्ध में बाबर ने क्रूरता की सारी सीमाएं लांघ दी, जिसके लिए उसने जिहाद का सहारा लिया।
खानवा के युद्ध से जुड़ी मुख्य बातें
खानवा का युद्ध कब हुआ था, इसका जवाब जानने के बाद आपको खानवा के युद्ध से जुड़ी मुख्य बातों के बारे में भी जान लेना चाहिए, जो कि निम्नलिखित हैं;
- 16 मार्च, 1527 ई. में मेवाड़ नरेश राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच हुए युद्ध को ही खानवा के युद्ध के नाम से जाना जाता है।
- इस युद्ध की पृष्ठभूमि में बाबर को मिल रही लगातार हार थी, जिससे मुग़ल सेना में भय का माहौल था। इन युद्धों में से एक बयाना का युद्ध भी था, इस युद्ध में राणा सांगा ने बाबर को करारी हार दी थी।
- अपनी सेना का मनोबल गिरते देखकर बाबर ने जिहाद का ऐलान किया, इस ऐलान के बाद बाबर की सेना क्रूरता पर उतर आयी और सेना का मनोबल बढ़ने लगा।
- बाबर, राणा सांगा का मुकाबला करने के लिए फतेहपुर सिकरी के निकट खानवा नामक जगह पर पहुँचा।
- बाबर ने पानीपत में जैसे चाल चली थी उसने वैसे ही खानवा में चाल चली। बाबर को यह अच्छे से पता था कि राणा सांगा से उसकी लड़ाई बहुत टक्कर की होने वाली है।
- 16 मार्च, 1527 को खानवा के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच खूनी संघर्ष हुआ था।
- राणा सांगा के राजपूतों के पास वीरता का भंडार था, तो वहीं बाबर जिहाद और गोला-बारूद के बड़े जखीरे के साथ इस युद्ध में कूद पड़ा।
- इस युद्ध में राणा सांगा की आँख में एक तीर आ लगा, लेकिन उन्होंने कुशलता से मातृभूमि के लिए लड़ना जारी रखा।
- इस भीषण युद्ध में राणा सांग के बदन पर लगभग 80 घाव आए थे। इस युद्ध में राणा सांगा और उनकी राजपूती सेना की बहादुरी देखकर, बाबर के होश उड़ गए थे।
- यह भीषण युद्ध पूरा दिन चला, जिसमें लोदी सेनापति के गद्दारी करने के कारण राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी, लेकिन राणा सांगा को उनकी सेना युद्ध खत्म होने से पहले किसी सुरक्षित स्थान पर ले गई।
- इतिहासकारों के अनुसार इस युद्ध के बाद राणा सांगा के ही किसी सामंत ने उन्हें विष देकर, उनकी हत्या की थी।
FAQs
खानवा का युद्ध मेवाड़ नरेश राणा सांगा और मुग़ल बादशाह बाबर के बीच हुआ था।
खानवा का युद्ध शेरशाह ने जीत लिया था, लोदी सेनापति के गद्दारी करने के कारण राणा सांगा की सेना शाम होते-होते लड़ाई हार गई थी। इस युद्ध के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।
खानवा के युद्ध का मुख्य कारण बाबर की महत्वकांक्षी और विस्तारवादी नीतियां थी।
आशा है कि आपको खानवा का युद्ध कब हुआ था, के बारे में संपूर्ण जानकारी मिली होगी। इसी प्रकार इतिहास से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।