प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत 

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प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत की लें यहाँ पूरी जानकारी

भारत एक महान देश है जिसका इतिहास इतना समृद्ध है कि आपको हर कोने में छुपा हुआ मिलेगा। इतिहास का अध्ययन करने पर हम ये जान पाते हैं कि हमारे देश में सभ्यता और संस्कृति कैसे विकसित हुई, धर्म और धार्मिक व्यवहार कैसे अस्तित्व में आये या फिर कौन कौन सी कई ऐसी ऐतिहासिक घटनाएं घटित हुई है। प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत के बारे में विस्तार से इस ब्लॉग में दिया गया है। दुनिया के इतिहास की तरह, भारतीय इतिहास को भी विस्तार से समझने के लिये 3 भागों में वर्गीकृत किया गया है, जो कि निम्नलिखित हैं:-

  1. प्राचीन भारत 
  2. मध्यकालीन भारत
  3. आधुनिक भारत 

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आज के इस ब्लॉग में हम प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में विस्तार से जानेंगे। इस ब्लॉग के माध्यम से हम आपको बताएंगे कि प्राचीन भारतीय इतिहास क्या है और इसको जानने के स्त्रोत क्या क्या है। जिसके लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना होगा। 

प्राचीन भारत का इतिहास 

भारतीय इतिहास की शुरुआत हज़ारों साल पहले होमो सेपियन्स के साथ हुई थी और इसी मानव उदय से लेकर दसवीं सदी तक का इतिहास, प्राचीन भारत के इतिहास के अंतर्गत आता है। प्राचीन भारत, कई मायनों में मध्यकालीन और आधुनिक भारत से अलग था जिसमें क्षेत्रफल, सीमाएं, सभ्यता, संस्कृति आदि शामिल है। इन्हीं सब के बारे जानकारी प्राप्त करने से पहले हमें विभिन्न स्त्रोतों का अध्ययन करना पड़ता है, जिनके बारे में हमने नीचे विस्तार से बताया है।

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प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत

इस ब्लॉग के माध्यम से आप प्राचीन इतिहास को जानने के 3 महत्वपूर्ण स्त्रोत (sources of ancient india in hindi) को जान पाएंगे, जो कि निम्नलिखित है-

  • पुरातात्विक स्त्रोत
  • साहित्यिक स्त्रोत
  • विदेशी स्त्रोत

पुरातात्विक स्त्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास में पुरातात्विक स्त्रोतों का महत्वपूर्ण योगदान है। पुरातात्विक स्त्रोतों में मुख्य रूप से अभिलेख, सिक्कें, स्मारक, भवन, मूर्तियां तथा चित्रकलायें आदि आते हैं। 

अभिलेख

भारतीय इतिहास में अभिलेखों को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। प्राचीन काल में राजाओं तथा अन्य शाषकों द्वारा पाषाणों, शिलाओं, स्तम्भों, ताम्रपत्रों एवं दीवारों पर उत्कीर्ण किये गये पाठन सामाग्री को ‘अभिलेख’ कहा जाता है। यह आमतौर पर आदेशों का प्रसार करने के लिए किया जाता था। ताकि लोग उन्हें देख सके और पालन कर सके। इन अभिलेखों को अलग अलग भाषाओं में लिखा जाता था जिसमें से प्रमुख भाषाएँ पाली, संस्कृत और प्राकृत है।  

प्राचीन सिक्के

प्राचीन सिक्कों ने भी भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह सिक्के विभिन्न धातुओं जैसे सोना, तांबा, चाँदी इत्यादि से बने होते थे, जिसके आधार पर उस समय में किसी की आर्थिक स्थिति का पता चलता था। इसके अलावा इन सिक्कों या मुद्राओं पर बने राजाओं एवं तिथियों से तत्कालीन राजा के बारे में, देवी देवताओं के चित्र से तत्कालीन धर्म, विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र के चित्र से तत्कालीन कला और संगीत के बारे में पता चलता था।  

स्मारक एवं भवनें

जिस प्रकार से अभिलेखों, सिक्कों से प्राचीन इतिहास की जानकारी मिलती थी, उसी प्रकार से स्मारक एवं भवनों से भी प्राचीन भारत के सांस्कृतिक व धार्मिक जीवन का पता चलता है। इन स्मारकों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा, कंबोडिया का अंकोरवाट मंदिर, इंडोनेशिया में जावा का बोरोबुदुर मंदिर आदि शामिल है। 

चित्रकलाएं एवं मूर्तियां

भारत में कई धर्मों में चित्रकलाएँ एवं मूर्तिया काफी प्रचलन में रही हैं। प्राचीन काल की चित्रकलाओं से धार्मिक व्यवस्था, संस्कृति एवं कला के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इसके साथ ही चित्रों के माध्यम से प्राचीन समय के लोगों के जीवन की जानकारी भी मिलती है। 

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साहित्यिक स्त्रोत

साहित्यिक स्त्रोत के अंतर्गत हम ऐतिहासिक सामग्रियों का अध्ययन करते हैं। इसमें किताबें, ग्रंथ एवं जीवनियां आदि शामिल हैं। प्राचीन काल में पुस्तकें हाथ से ताड़पत्रों तथा भोजपत्रों पर लिखी जाती थी। साहित्यिक स्रोतों के अंतर्गत वैदिक रचनाएं, बौद्ध और जैन साहित्य, पुराण, प्राचीन जीवनियां इत्यादि आते हैं। साहित्यिक स्त्रोत को दो भागों में विभाजित किया गया है- धार्मिक साहित्य और लौकिक साहित्य। सबसे पहले हम धार्मिक साहित्य पर चर्चा करेंगे।  

धार्मिक साहित्य

धार्मिक साहित्य में मुख्य रूप से हिन्दू, बौद्ध तथा जैन धर्म के बारे में जानकारी मिलती है। इन धर्मों के साथ-साथ प्राचीन भारत के समाज, संस्कृति, लोगों की जीवनशैली व अर्थव्यवस्था आदि के सम्बन्ध में भी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।  

हिन्दू धर्म का साहित्य

हिन्दू धर्म विश्व के सबसे प्राचीनतम धर्मो में से एक है। हिन्दू धर्म में वेद, ग्रन्थ और पुस्तकों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। 

  • वेद : हिन्दू धर्म में 4 वेद हैं- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद। ऋग्वेद में देवताओं की स्तुतियाँ हैं, यजुर्वेद में यज्ञ के नियमों तथा अन्य धार्मिक विधि-विधान है, सामवेद में यज्ञ के मंत्रो और अथर्ववेद में धर्म, औषधि तथा रोग निवारण इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है। 
  • वेदांग : वेदांग यानी वेदों के अंग। वेदांगों में वेद के गूढ़ ज्ञान को सरल भाषा में लिखा गया है।
  • उपनिषद : उपनिषद ग्रंथों का अंतिम भाग हैं। उपनिषदों में ईश्वर और आत्मा के स्वभाव का विस्तृत वर्णन किया गया है। 
  • रामायण : रामायण की रचना ‘महर्षि वाल्मीकि’ द्वारा की गयी है। रचना के समय रामायण में 6,000 श्लोक थे, परन्तु अब श्लोकों की सख्या 24,000 पहुँच गयी है। रामायण को कुल 7 खंडो में विभाजित किया गया है – बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, युद्धकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड।
  • महाभारत : महाभारत की रचना ‘महर्षि वेद व्यास’ द्वारा की गयी है। यह एक काव्य ग्रन्थ है जिसे 18 भागों में बांटा गया है – आदि, सभा, वन, विराट, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शांति, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, मौसल, महाप्रस्थानिक तथा स्वर्गारोहण। 
  • पुराण : पुराणों में सृष्टि, प्राचीन ऋषि मुनियों व राजाओं का वर्णन किया गया है। पुराणों की कुल संख्या 18 है, जिसमें विष्णु पुराण, मतस्य पुरान, वायु पुराण, ब्रह्माण्ड पुराण तथा भागवत पुराण काफी महत्वपूर्ण पुराण हैं।

बौद्ध धर्म का साहित्य

बौद्ध धर्म में महात्मा बुद्ध के पूर्व जन्मों का वर्णन किया गया है। जिसमें ‘त्रिपिटक’ सबसे पुराना बौद्ध साहित्य का ग्रन्थ है। त्रिपिटक में प्राचीन भारत की सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था का भी वर्णन मिलता है।  

जैन धर्म का साहित्य

प्राचीन जैन ग्रंथो में महावीर द्वारा प्रतिपादित किये गये सिद्धांतों का वर्णन है, जो प्राकृत भाषा में लिखे गए हैं। जैन धर्म साहित्य के 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण व 6 छेद सूत्र हैं।

लौकिक साहित्य

इसमें ऐतिहासिक पुस्तकें, जीवनी, वृत्तांत इत्यादि शामिल हैं। जिसमें 6वीं शताब्दी में एक प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान ‘पाणिनी’ द्वारा रचित “अष्टाध्यायी”, मौर्यकाल में कौटिल्य की पुस्तक “अर्थशास्त्र”, विशाखदत्त द्वारा रचित “मुद्राराक्षस”, सोमदेव द्वारा रचित “कथासरितसागर” तथा क्षेमेद्र द्वारा रचित “वृहतकथामंजरी” से मौर्यकाल के बारे में काफी जानकारी मिलती है। ऐसे ही अन्य पुस्तकों में तत्कालीन धार्मिक, आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था सभी पहलुओं के बारे में जानकारी मिलती है। 

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विदेशी स्त्रोत 

विदेशी स्त्रोत के अंतर्गत हमें विदेशी यात्रियों के यात्रा वृतांत के बारे में जानने को मिलेगा, जिसमें विदेशी लेखकों का विदेशी राजाओं के साथ भारत की यात्रा पर आना, और उनके द्वारा भारत की सामाजिक, आर्थिक तथा भौगोलिक व्यवस्था का वर्णन करना बताया गया है। कुछ महत्वपूर्ण विदेशी लेखक एवं उनके साहित्य निम्लिखित है।

  • हेरोडोटस: हेरोडोटस यूनानी लेखक एवं इतिहासकार थे जिनको ‘इतिहास के पिता’ के रूप में भी जाना जाता था। इन्होने ‘हिस्टोरिका’ नामक एक पुस्तक की रचना की थी जिसमें भारत और ईरान के बीच आपसी संबंधो का वर्णन किया है।
  • मेगास्थनीज: मेगास्थनीज चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में सेल्यूकस निकेटर का राजदूत थे, जिन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में भारतीय समाज और संस्कृति के बारे में लिखा था। 
  • डायमेकस- डायमेकस सीरियन राजा अन्तियोकस का राजदूत था, जो बिन्दुसार के दरबार में आया था।
  • प्लिनी– प्लिनी ने ‘नेचुरल हिस्टोरिका’ नामक पुस्तक लिखी थी जिसमें उन्होंने भारतीय पशु, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि का वर्णन किया है।  
  • फाह्यान – प्रथम चीनी यात्री जो चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासन काल में भारत आये और कई सालो तक भारत में रहे और फिर अपनी पुस्तक में भारतीय राजनीतिक तथा सामाजिक स्थितियों का वर्णन किया।
  • ह्वेनसांग– यह सम्राट् हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आये थे। यह भी कई सालों तक भारत में रहे और इनकी पुस्तक से भी तत्कालीन भारत के संबंध में कई अहम जानकारी मिलती है।
  • इत्सिंग– यह भी एक चीनी यात्री थे जिन्होंने बिहार प्रदेश का भ्रमण किया था। इन्होने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन भी किया था। 

FAQs

प्राचीन इतिहास को जानने के लिए कौन कौन से स्त्रोत होते है?

प्राचीन इतिहास को जानने के लिए इतिहासकार वी. डी. महाजन ने स्रोतों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया है – साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत, विदेशी विवरण, एवं जनजातीय गाथायें। 

प्राचीन इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य कौन कौन से है?

प्राचीन भारत के पुरातात्विक साक्ष्य के अंतर्गत अभिलेख, स्मारक एवं भवन, सिक्के, मूर्तियाँ, चित्रकला एवं मुहरों को शामिल किया जाता है।

हड़प्पा सभ्यता के खोजकर्ता कौन थे?

1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया और इसे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया। 

मोहनजोदड़ो के खोजकर्ता कौन थे?

राखलदास बेनर्जी को मोहनजोदड़ो का खोजकर्ता माना गया है।

हड़प्पा सभ्यता का दूसरा नाम क्या है?

सिंधु घाटी सभ्यता (3300-1700 ई. पू.) को हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता था।

आशा है आपको प्राचीन इतिहास को जानने के स्त्रोत (sources of ancient india in hindi) की जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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