17 अक्टूबर को श्रीनगर में आयोजित जम्मू-कश्मीर राज्य में विभिन्न विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति से जुड़े एक प्रोग्राम में एक सभा को संबोधित किया। जम्मू कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की सभी यूनिवर्सिटीज़ से न्यू एजुकेशन पॉलिसी के संबंध में रणनीति तैयार करने और तैयारियां शुरू करने के लिए कहा। अपने भाषण में उन्होंने सभी विश्वविद्यालयों से इस संबंध में रोडमैप तैयार करने की बात कही।
आने वाले वर्षों में एजुकेशन हब बनकर उभरेगा भारत
राज्यपाल मनोज सिन्हा यहाँ जम्मू कश्मीर की विभिन्न यूनिवर्सिटीज़ में वाइस चांसलर की नियुक्ति से जुड़े एक समारोह में संबोधन प्रस्तुत कर रहे थे। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि भारत में उच्च शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए भारत की सभी यूनिवर्सिटीज़ मिलकर काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि हमारा संकल्प आने वाले 10 – 15 सालों में देश को एक एजुकेशन हब बनाना है। भारत विश्व की उच्च शिक्षा में 74% का योगदान करता है। हमें देश में एजुकेशन से जुड़े आधुनिक टूल्स को प्रयोग में लाने की आवश्यकता है।
भारी संख्या में भारतीय छात्र विदेश में पढ़ रहे
राज्यपाल मनोज सिन्हा ने कहा कि भारत के 13 लाख से अधिक स्टूडेंट्स दुनिया के 79 देशों से उच्च शिक्षा हासिल कर रहे हैं। 2020 में जारी एक अनुमान के मुताबिक़ भारतीय छात्र विदेश में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए लगभग USD 30 बिलियन सालाना व्यय करते हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत में हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स की इतनी बड़ी संख्या मौजूद होने के बाद भी भारत का एक भी कॉलेज या यूनिवर्सिटी दुनिया के टॉप 10 एजुकेशनल इंस्टीट्यूट में जगह नहीं बना पाता है। उन्होंने कहा कि हमें देश में उच्च शिक्षा की क्वालिटी में सुधार करने की आवश्यकता है।
स्टूडेंट्स के लिए फायदेमंद साबित होगी न्यू एजुकेशन पॉलिसी
न्यू एजुकेशन पॉलिसी छात्रों के लिए अनेक नए फायदे और अवसर उत्पन्न करेगी-
- न्यू एजुकेशन पॉलिसी में शिक्षा के लिए एक सुपर-रेग्युलेटर स्थापित करने का प्रयास किया गया है जो भारत में उच्च शिक्षा के मानक-निर्धारण, वित्त पोषण, मान्यता और विनियमन के लिए जिम्मेदार होगा।
- न्यू एजुकेशन पॉलिसी इंडियन एजुकेशन सिस्टम को अधिक कुशल और प्रतिस्पर्धी बनाएगी।
- सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यू एजुकेशन पॉलिसी हिंदी बनाम अंग्रेजी भाषा की तीखी बहस को खत्म कर देगी। इसके बजाय, यह कम से कम पांचवीं क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर देती है।
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