गुजरात में 1928 में बारडोली सत्याग्रह सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में बारडोली के किसानों के लिए करों की अन्यायपूर्ण वृद्धि के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में एक आंदोलन था। उस दौरान प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 22 प्रतिशत की वृद्धि की थी और इसीलिए सरदार वल्लभभाई पटेल ने बारडोली सत्याग्रह का नेतृत्व किया था। इस सत्याग्रह के बारे में सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के अलावा IAS इंटरव्यू में पूछ लिया जाता है। इसलिए इस ब्लाॅग हम बारदोली सत्याग्रह (Bardoli Satyagraha in Hindi) के बारे में जानेंगे।
आंदोलन का नाम | Bardoli Satyagraha |
आंदोलन की शुरुआत | 12 जून 1928 (गुजरात के बारडोली से) |
आंदोलन का प्रवर्तक (Initiator) | सरदार वल्लभ भाई पटेल |
आंदोलन का कारण | बारडोली के किसानों के लिए करों की अन्यायपूर्ण वृद्धि |
आंदोलन का उद्देश्य | ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार द्वारा थोपी गई दमनकारी भूमि राजस्व नीतियों का विरोध करना। |
आंदोलन का नतीजा | बारडोली सत्याग्रह स्थानीय स्तर पर एक संघर्ष था लेकिन यह राष्ट्रीय संघर्ष के उद्देश्य से जुड़ गया। इसने स्वतंत्रता आंदोलन को एक नई आशा और ताकत दी क्योंकि इसने अन्य किसान आंदोलन को प्रोत्साहित किया। |
This Blog Includes:
- बारदोली सत्याग्रह के बारे में
- बारडोली सत्याग्रह का इतिहास क्या है?
- बारडोली सत्याग्रह कैसे शुरू हुआ?
- बारडोली सत्याग्रह की विशेषताएं क्या हैं?
- बारडोली सत्याग्रह का प्रभाव क्या है?
- बारडोली सत्याग्रह में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका
- बारडोली सत्याग्रह के नेता कौन रहे?
- बारडोली सत्याग्रह का परिणाम क्या रहा?
- FAQs
बारदोली सत्याग्रह के बारे में
बारडोली सत्याग्रह औपनिवेशिक सरकार द्वारा किसानों पर बढ़ाए गए कर के खिलाफ एक भारतीय राष्ट्रवादी और किसानों का आंदोलन था। इसमें मांग की गई कि बॉम्बे प्रेसीडेंसी की 22 प्रतिशत कर वृद्धि को रद किया जाए। बारडोली सत्याग्रह (Bardoli Satyagraha in Hindi) 12 जून 1928 को शुरू हुआ था। बारडोली सत्याग्रह सरदार वल्लभाई पटेल और मोहनदास करमचंद गांधी के नेतृत्व में एक स्वतंत्रता संग्राम था। इस आंदोलन ने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की नींव भी रखी, जिस पर दो साल बाद क्रांतिकारी दांडी मार्च ने जोर दिया था।
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बारडोली सत्याग्रह का इतिहास क्या है?
Bardoli Satyagraha in Hindi का इतिहास इस प्रकार हैः
- 1925 में बाढ़ और अकाल ने आधुनिक गुजरात के बारडोली जिले को बुरी तरह प्रभावित किया था।
- बाढ़ा और अकाल के कारण फसल की पैदावार काफी गिर गई और किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी।
- किसानों की स्थिति पर ध्यान न देते हुए, बॉम्बे प्रेसीडेंसी ने कर दरों में 22 प्रतिशत की वृद्धि की। कई नागरिक समूहों और किसानों ने सरकार से बढ़ी हुई कर दरों पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया, लेकिन सरकार अपने फैसले पर आगे बढ़ी।
- शुरुआत में ‘मेड़ता बंधु’ (कल्याण जी और कुंवर जी) और बारडोली तालुका के दयाल जी ने किसानों के समर्थन के लिए 1922 में आंदोलन शुरू किया था।
- बाद मे, सरदार वल्लभाई पटेल के नेतृत्व में यह आंदोलन तब आगे बढ़ा जब बारडोली के किसानों ने अपनी आर्थिक तंगी के बावजूद कर दरों में वृद्धि के खिलाफ औपचारिक रूप से विरोध शुरू करने के लिए 1928 में सरदार पटेल से संपर्क किया।
- स्थानीय कांग्रेस पार्टी ने भी 1927 में किसानों के आर्थिक संकट को दर्शाने के लिए एक रिपोर्ट प्रकाशित की, लेकिन बॉम्बे प्रेसीडेंसी सरकार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार नहीं किया।
- उस दौरान बारदोली के किसानों ने महात्मा गांधी से कहा कि विरोध के दौरान किसी भी तरह की हिंसा नहीं होगी।
बारडोली सत्याग्रह कैसे शुरू हुआ?
‘कुनबी-पाटीदार’ जाति और ‘कालीपराज’ जनजाति के किसान बारडोली आंदोलन में शामिल हुए। गांधीजी ने अपनी पत्रिका ‘यंग इंडिया’ के माध्यम से सत्याग्रह का समर्थन किया। गांधीजी ने कहा कि बारडोली केवल स्वराज के पक्ष में नहीं था, बल्कि इस तरह के प्रयासों ने इसे अप्रत्यक्ष रूप से करीब ला दिया। शिविरों ने जनता को शिक्षित करने के लिए भाषणों, समाचार विज्ञप्तियों और अभियानों में सहायता की।
किसानों ने भगवान के नाम पर कर भुगतान के खिलाफ कसम खाई। अंग्रेजों के समर्थकों या करदाताओं को सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा। बारडोली ने कालीपराज जाति की मुक्ति का भी समर्थन किया। बारडोली जिले के सरकारी कार्यालयों को आवश्यक सामान देने से इनकार कर दिया गया।
बारडोली सत्याग्रह की विशेषताएं क्या हैं?
Bardoli Satyagraha in Hindi की विशेषताएं यहां दिए जा रही हैंः
- बारडोली में सरदार पटेल ने खुद को अपनी शांतिपूर्ण सेना के नेता के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने सैकड़ों पुरुषों और महिलाओं से सहायता मांगी और तालुक को शिविरों में विभाजित कर दिया।
- स्वयंसेवकों ने तालुक शिविरों से समूहों तक समाचार विज्ञप्ति, विज्ञापन और भाषण प्रसारित किए, जिसमें व्यवस्था बनाए रखने और कठिनाई के लिए तैयार रहने के महत्व पर जोर दिया गया।
- वे व्यापक रूप से घर-घर जाकर प्रचार करने में लगे रहे। आंदोलन में अनेक महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई। इन महिलाओं ने पटेल को उपनाम सरदार कहा।
- किसानों से यह वादा करने को कहा गया कि वे भगवान के नाम पर कर नहीं देंगे। जिन लोगों ने अपना कर चुकाया और अंग्रेजों का समर्थन किया, उन्हें सामाजिक अस्वीकृति का सामना करना पड़ा। स्थानीय सरकारी कार्यालयों में, उन्होंने गैर-आवश्यक वस्तुओं को अस्वीकार कर दिया।
- एम. मुंशी और लालजी नारनजी ने इस मुद्दे का समर्थन करने के लिए बॉम्बे विधान परिषद छोड़ दी।
- बारडोली सत्याग्रह के ग्रामीणों ने संभावित सरकारी एजेंटों द्वारा उन्हें बेदखल करने और उनकी संपत्ति जब्त करने के प्रयासों का सफलतापूर्वक विरोध किया।
- यदि ब्रिटिश सरकार के लिए काम करने वाले मुखबिरों द्वारा कोई ज़ब्ती नोटिस जारी किया जाता था तो बारडोली के इन किसानों को पहले से ही सतर्क कर दिया गया था।
बारडोली सत्याग्रह का प्रभाव क्या है?
सर्विलांस ऑफ इंडिया सोसाइटी ने ब्रिटिश सरकार से बारदोली में अन्नदाताओं की मांगों को ध्यान में लाने का अनुरोध किया और इसके लिए ‘बारदोली सत्याग्रह’ नाम की दैनिक पत्रिका भी प्रकाशित की गई। बॉम्बे विधान परिषद में भारतीय नेताओं ने भी बारडोली आंदोलन के प्रति अपना समर्थन दिखाने के लिए इस्तीफा दे दिया था। आपको बता दें कि बारडोली सत्याग्रह में उठे मुद्दे पर ब्रिटेन की संसद में भी बहस हुई थी और लॉर्ड इरविन ने बॉम्बे के गवर्नर विल्सन को इस मामले में तेजी लाने का निर्देश दिया था।
बारडोली सत्याग्रह में सरदार वल्लभ भाई पटेल की भूमिका
बारडोली सत्याग्रह में सरदार वल्लभभाई पटेल की अहम भूमिका रही। उन्होंने बॉम्बे प्रेसीडेंसी सरकार के अधिकारियों से मुलाकात कर फैसले पर दोबारा विचार करने की अपील की थी। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन की मांगों पर ध्यान नहीं दिया और कर दरों को कम करने पर भी सहमित नहीं जताई। इसके बाद सरदार वल्लभभाई पटेल ने शांतिपूर्ण और अहिंसक तरीके से बारडोली सत्याग्रह का वीरतापूर्वक नेतृत्व किया। उन्होंने पूरे जिले या तालुक को विभिन्न शिविरों में विभाजित कर दियया था।
बारडोली सत्याग्रह के नेता कौन रहे?
कर कटौती के अनुरोध वाले सरदार पटेल के पत्र की अवहेलना करने के बाद बारडोली तालुका के सभी किसानों को बंबई के गवर्नर द्वारा अपने करों का भुगतान बंद करने के लिए कहा गया था। उन्होंने नरहरि पारिख, रविशंकर व्यास और मोहनलाल पंड्या की सहायता से बारडोली को कई क्षेत्रों में विभाजित किया और प्रत्येक क्षेत्र में एक नेता और स्वयंसेवकों को विशेष रूप से आवंटित किया गया था। हालांकि, पटेल ने किसानों को किसी भी सरकारी उकसावे या शत्रुतापूर्ण व्यवहार के जवाब में शारीरिक बल का प्रयोग करने से बचने की सलाह दी थी।
बारडोली सत्याग्रह का परिणाम क्या रहा?
1928 में बंबई सरकार के एक पारसी अधिकारी द्वारा एक समझौते की मध्यस्थता की गई।
इसके बाद अगले वर्ष तक 22 प्रतिशत बढ़ोतरी को स्थगित करने, चोरी की गई भूमि और संपत्तियों को बहाल करने और वर्ष के राजस्व भुगतान को रद करने पर भी सहमति सामने आई।
बॉम्बे प्रेसीडेंसी में ब्रिटिश सरकार को मैक्सवेल-ब्रूमफील्ड आयोग की स्थापना करने के लिए मजबूर होना पड़ा जब उन्हें लगा कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो रही है। इसलिए सरकारी अधिकारियों और बारडोली किसानों के बीच एक समझौता हुआ और राजस्व मांग को घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया गया। इसके अलावा बारडोली के किसानों को उनकी जब्त की गई जमीनें वापस मिल गईं।
संबंधित ब्लाॅग्स
FAQs
बारडोली सत्याग्रह 1928 में हुआ था।
1928 में जब बारदोली आंदोलन हुआ तब लॉर्ड इरविन भारत के वायसराय थे।
जब बारडोली आंदोलन हुआ तब बारडोली जिला बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था।
आशा है कि इस ब्लाॅग Bardoli Satyagraha in Hindi में आपको बारडोली सत्याग्रह (बारदोली आंदोलन) के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ब्लाॅग्स पढ़ने के लिए बने रहें हमारी वेबसाइट Leverage Edu पर।