What is Yoga in Hindi: योग तत्वत: बहुत सूक्ष्म विज्ञान पर आधारित एक आध्यात्मि विषय है जो मन एवं शरीर के बीच सामंजस्य स्थापित करने पर केंद्रित है। यह स्वस्थ जीवन-यापन की कला एवं विज्ञान है। योग शब्द संस्कृत की युज धातु से बना है जिसका अर्थ ‘जुड़ना’ या ‘एकजुट होना’ व ‘शामिल होना’। वहीं योग का उद्देश्य हमारे जीवन का समग्र विकास करना है। सर्वांगीण विकास से तात्पर्य यहाँ शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, नैतिक और सामाजिक विकास से है। योग का उल्लेख वेदों और उपनिषदों में मिलता है और इसे महर्षि पतंजलि ने अपने योगसूत्र में सूत्रबद्ध किया। यह केवल आसनों तक सीमित नहीं, बल्कि ध्यान, प्राणायाम और नैतिक जीवनशैली का एक संपूर्ण विज्ञान है। इस लेख में आपके लिए योग क्या है? (What is Yoga in Hindi) की विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसके लिए आपको इस लेख को अंत तक पढ़ना चाहिए।
This Blog Includes:
- योग का अर्थ (योग क्या है?)
- प्राचीन काल से योग का महत्व
- योग का इतिहास
- योग की उत्पत्ति
- योग का प्रमुख उद्देश्य
- अंतरंग योग क्या है?
- योग कितने प्रकार के होते हैं ?
- योग का लक्ष्य
- योग के प्रसिद्ध ग्रंथ क्या हैं?
- भारत के प्रसिद्ध योगगुरु कौन-कौन से हैं?
- योग के लाभ
- योग के प्रकार
- योग की सूची
- ताड़ासन योग क्या है?
- शवासन योग क्या है?
- वीरभद्रासन योग क्या है?
- वृक्षासन योग क्या है?
- त्रिकोणासन योग क्या है?
- भुजंगासन योग क्या है?
- योग पर अनमोल विचार
- योग और आधुनिक विज्ञान
- योग का वैश्विक प्रभाव
- FAQs
योग का अर्थ (योग क्या है?)
योग एक प्राचीन आध्यात्मिक और शारीरिक पद्धति है जो आत्मा, मन और शरीर को संतुलित करने का मार्ग दिखाती है। इसका उल्लेख वेदों और उपनिषदों में मिलता है, और यह केवल शारीरिक व्यायाम तक सीमित नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक जागरूकता और आत्म-ज्ञान की ओर ले जाने वाली साधना है। योग का उद्देश्य आत्म-ज्ञान, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त करना है। यहाँ दिए गए निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से सरल भाषा में योग का अर्थ समझा जा सकता है –
- संस्कृत में योग का अर्थ – ‘योग’ शब्द संस्कृत के ‘युज’ (Yuj) धातु से बना है, जिसका अर्थ है ‘जुड़ना’ या ‘संयुक्त होना’। यह आत्मा का परमात्मा से मिलन, शरीर-मन-आत्मा का संतुलन, और संपूर्णता की अनुभूति का प्रतीक है।
- योग का उल्लेख वेदों में – योग की अवधारणा सबसे पहले ऋग्वेद और उपनिषदों में मिलती है। इसके बाद भगवद गीता और पतंजलि योगसूत्र में इसे विस्तार से समझाया गया है।
- पतंजलि के अनुसार योग – महर्षि पतंजलि ने योग को “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” (योगसूत्र 1.2) के रूप में परिभाषित किया है, जिसका अर्थ है – “योग वह प्रक्रिया है जो चित्त की वृत्तियों (मन की चंचलता) को शांत करती है।”
प्राचीन काल से योग का महत्व
प्राचीन काल से ही हमारे जीवन में योग का महत्व रहा है, इसने भारत की मूल पहचान बनकर विश्व को सद्मार्ग दिखाया। बता दें कि योग की उत्पत्ति ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद से जुड़ी है। प्राचीन ऋषि-मुनि ध्यान और योग साधना के माध्यम से आत्मबोध प्राप्त करते थे। इसके साथ ही कठोपनिषद और श्वेताश्वतर उपनिषद में योग को आत्मा की मुक्ति का साधन बताया गया है। भगवद गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग की शिक्षा दी है, जो आज भी हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है।
योग का महत्व जानकार ही महर्षि पतंजलि ने योग को सुव्यवस्थित रूप में “योगसूत्र” में संकलित किया। इसके साथ ही उन्होंने अष्टांग योग के आठ अंग – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि बताए हैं। बता दें कि भारत के प्राचीन गुरुकुलों में योग शिक्षा का महत्वपूर्ण स्थान था, जिनमें छात्रों को ध्यान, प्राणायाम और आत्मसंयम की शिक्षा दी जाती थी। बता दें कि प्राचीन काल में योग और आयुर्वेद को स्वास्थ्य और दीर्घायु प्राप्त करने का साधन माना जाता था। योगासन और प्राणायाम के माध्यम से शारीरिक और मानसिक रोगों का उपचार किया जाता था।
योग का इतिहास
करीब 5,000 साल पहले तक योग का विकास सभी चरणों पर किया गया – जिसमे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप शामिल थे। योग का सबसे पहले उल्लेख ऋग्वेद में किया गया है, जो पांचवीं या छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ था । भारतीय प्राचीन ग्रंथों – भागवत गीता, उपनिषद, योग वशिष्ठ, हठ योग प्रदीपिका, गेरांडा संहिता, शिव संहिता, पुराण आदि में भी इसका जिक्र किया है। योग का पिता ‘पतंजलि’ को माना जाता है, क्योंकि उन्होने योग सूत्रों के माध्यम से इसे और अधिक सुलभ बनाया। इसके अलावा उन्होंने योग के जरिए लोगोंं को ठीक प्रकार से जीवन जीने की प्रेरणा दी थी।
योग की उत्पत्ति
योग की उत्पत्ति को लेकर विद्वानों के बीच मतभेद है। कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि योग सिंधु घाटी सभ्यता की देन है। कुछ का कहना है कि योग की खोज वैदिक काल के दौरान हुई। इतिहासकारों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में योग की मुद्रा में बैठे हुए एक व्यक्ति की मूर्ति प्राप्त हुई है। इस कारण से शोधकर्ता इसे सिंधु घाटी सभ्यता की देन मानते हैं। वहीँ योग का वर्णन बृहदारण्यक उपनिषद में पाया गया है, जो प्रारंभिक उपनिषदों में से एक है। इस कारण से कुछ विद्वान योग को वैदिक काल से भी जोड़कर देखते हैं।
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योग का प्रमुख उद्देश्य
योग के प्रमुख उद्देश्य निम्लिखित हैं-
- तनाव से मुक्त जीवन
- मानसिक शक्ति का विकास
- प्रकृति के विपरीत जीवन शैली में सुधार करना
- निरोग काया
- रचनात्मकता का विकास
- मानसिक शांति प्राप्त करना
- सहनशीलता में वृद्धि
- नशा मुक्त जीवन
- बड़ी सोच
- उत्तम शारीरिक क्षमता का विकास
अंतरंग योग क्या है?
अष्टांग योग के अंतर्गत प्रथम पांच अंग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम तथा प्रत्याहार) ‘ बहिरंग ‘ और शेष तीन अंग (धारणा, ध्यान, समाधि) ‘अंतरंग’ नाम से जाना जाता हैं। बहिरंग साधना यथार्थ रूप से अनुष्ठित होने पर ही साधक को अंतरंग साधना का अधिकार प्राप्त होता है। ‘यम’ और ‘नियम’ वस्तुतः शील और तपस्या के द्योतक हैं।
योग कितने प्रकार के होते हैं ?
योग 6 प्रकार के होते हैं, जैसे कि–
1. हठ
2. राज
3. कर्म
4. भक्ति
5. ज्ञान
6. तंत्र
योग का लक्ष्य
महर्षि पातंजलि जी के अनुसार केवल्य की प्राप्ति ही योग का अंतिम लक्ष्य है।
योग के प्रसिद्ध ग्रंथ क्या हैं?
ग्रन्थ | रचनाकार |
योगसूत्र | पतंजलि |
योगभाष्य | वेदव्यास |
तत्त्ववैशारदी | वाचस्पति मिश्र |
योगदर्शनम् | स्वामी सत्यपति परिव्राजक |
योगसूत्रवृत्ति | नागेश भट्ट |
भोजवृत्ति | राजा भोज |
हठयोगप्रदीपिका | स्वामी स्वात्माराम |
मणिप्रभा | रामानन्द यति |
जोगप्रदीपिका | जयतराम |
योगयाज्ञवल्क्य | याज्ञवल्क्य |
सूत्रवृत्ति | गणेशभावा |
सूत्रार्थप्रबोधिनी | नारायण तीर्थ |
योगचूडामण्युपनिषद | – |
घेरण्डसंहिता | घेरण्ड मुनि |
गोरक्षशतक | गुरु गोरख नाथ |
योगवार्तिक | विज्ञानभिक्षु |
भारत के प्रसिद्ध योगगुरु कौन-कौन से हैं?
- बीकेएस अंयगर- अयंगर को विश्व के अग्रणी योग गुरुओं में से एक माना जाता है और उन्होंने योग के दर्शन पर कई किताबें भी लिखी थीं, जिनमें ‘लाइट ऑन योगा’, ‘लाइट ऑन प्राणायाम’ और ‘लाइट ऑन द योग सूत्राज ऑफ पतंजलि’ शामिल हैं।
- बाबा रामदेव- बाबा रामदेव भारतीय योग-गुरु हैं, उन्होंने योगासन व प्राणायामयोग के क्षेत्र में योगदान दिया है। रामदेव स्वयं जगह-जगह जाकर योग शिविरों का आयोजन करते हैं।
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योग के लाभ
योग से होने वाले लाभ कुछ इस प्रकार है :-
- मन रहेता है शांत: अगर आप योग करते है तो ये आपके मन और मानसिक रूप से अच्छा होता है। योग के जरिए आपकी मांसपेशियां सही प्रकार से काम करती है। इसके माध्यम से आप तनाव से मुक्त रहते है इसके अलावा यदि आप छात्र है तो योग आपके लिए वरदान है पढ़ाई में ध्यान केंद्रित करने में मददगार साबित होता है।
- तन के साथ मन का व्यायाम: योग के जरिए आप अपने शरीर को भी तंदुरुस्त रख सकते है, साथ ही मन को साफ़ और मन में आते बुरे ख्यालों का इलाज़ भी सिर्फ योग करने से ठीक हो सकते हैं। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मश्तिष्क भी योग के अभ्यास से पूरा किया जा सकता है।
- योग से होंगे निरोग: अगर आप निरंतर योग करते हैं तो आप हमेशा निरोग रहेंगे। जी हाँ योग के जरिए आपका शरीर रोगों से लड़ने की शक्ति देता है और योग की वजह से आप हमेशा निरोग रहते हैं। यदि आप किसी रोग से परेशान है तो योग के निरंतर अभ्यास के बाद उस बीमारी को हमेशा के लिए खत्म कर सकते हैं।
- 4. वजन होगा कंट्रोल: योग के जरिए आपकी मांसपेशियों को मजबूत करता है और शरीर को तंदुरुस्त बनाता है, तो वहीं दूसरी ओर योग से शरीर से फैट को भी कम किया जा सकता है.
- 5. ब्लड शुगर होगा कंट्रोल: योग से आप अपने ब्लड शुगर लेवल को भी काफी तद तक कंट्रोल कर सकते हैं और बढ़े हुए ब्लड शुगर लेवल को घटता है। डायबिटीज रोगियों के लिए योग बेहद फायदेमंद है।
योग के प्रकार
योग के 4 प्रमुख प्रकार या योग के चार रास्ते है:
- राज योग:
राज का अर्थ शाही होता है और योग की इस शाखा का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण अंग है ध्यान। इस योग के आठ अंग है, जिस कारण से पतंजलि ने इसका नाम रखा है अष्टांग योग। यह आठ yog इस प्रकार है, यम (शपथ लेना), नियम (आत्म अनुशासन), आसन, प्राणायम, प्रत्याहार, धारण (एकाग्रता), ध्यान (मेडिटेशन) और समाधि (अंतिम मुक्ति)।
- कर्म योग:
अगली शाखा कर्म योग या सेवा का मार्ग है और हम में से कोई भी इस मार्ग से नहीं बच सकता है। इस बारे में जागरूक होने से हम वर्तमान को अच्छा भविष्य बनाने का एक रास्ता बना सकते है, जो हमें नकारात्मकता और स्वार्थ से बाध्य होने से मुक्त करना है।
- भक्ति योग:
भक्ति योग भक्ति के मार्ग का वर्णन करता है। सभी के लिए सृष्टि में परमात्मा को देखकर, भक्ति योग भावनाओं को को नियंत्रित करने का एक सकारात्मक तरीक़ा है।
- ज्ञान योग:
अगर हम भक्ति को मन का योग मानते है, तो ज्ञान योग बुद्धि का योग है, ऋषि या विदान का मार्ग है। इस पथ पर चलने के लिए योग के ग्रंथो के अध्ययन के माध्यम से बुद्धि के विकास की आवश्यकता होती है।
योग की सूची
- अर्ध चन्द्रासन
- भुजंग आसन
- बालासन (शिशुआसन)
- मर्जरी आसन
- नटराज आसन
- गोमुखासन
- हलासन
- सेतु बंध आसन
- सुखासन
- नमस्कार आसन
- ताड़ासन
- कटि चक्रासन
- कोणासन
- उष्ट्रासन
- वज्रासन
- वृक्षासन
- दंडासन
- अधोमुखी श्वान आसन
- शवासन
ताड़ासन योग क्या है?
ताड़ासन योग की विधि
ताड़ासन योग की विधि नीचे दी गई है :-
- सबसे पहले अपने पैरों के मदद से सीधे खड़े हों।
- अपने दोनों पैरों के बीच थोडा सा जगह बनायें।
- उसके बाद एक लम्बी साँस के साथ अपने पैरों की उँगलियों की मदद से शरीर को थोडा ऊपर उठायें और अपने दोनों हांथों को धीरे-धीरे उपर उठायें। उसके बाद अपने एक हाँथ की उँगलियों से दूसरी हाँथ के उँगलियों को जोड़ें।
- कम से कम 15-30 सेकंड इस मुद्रा में रहें और अपने शरीर को ऊपर की और खींचें।
- उसके बाद धीरे-धीरे अपने हांथों को सामान्य स्तिथि में ले आयें।
शवासन योग क्या है?
शवासन, योग विज्ञान का बेहद महत्वपूर्ण आसन है। शवासन को किसी भी योग सेशन के बाद बतौर अंतिम आसन किया जाता है। ‘शवासन’ शब्द दो अलग शब्दों यानी कि ‘शव’ और ‘आसन’ से मिलकर बना है। ‘शव’ का अर्थ होता है मृत देह जबकि आसन का अर्थ होता है ‘मुद्रा’ या फिर ‘बैठना’।
शवासन योग की विधि
शवासन योग की विधि निम्नलिखित है :-
- सबसे पहले एक समतल जगह पर एक दरी बीचा लें।
- उसके बाद ऊपर की और मुहँ करके लेट जाएँ।
- अपने दोनों पैरों को एक दूरे से अलग रखें।
- उसके बाद कुछ मिनटों के लिए धीरे-धीरे साँस लें और छोड़ें।
वीरभद्रासन योग क्या है?
वीरभद्रासन आसन का नाम भगवान शिव के अवतार, वीरभद्र, एक अभय योद्धा के नाम पर रखा गया। योद्धा वीरभद्र की कहानी, उपनिषद की अन्य कहानियों की तरह, जीवन में प्रेरणा प्रदान करती है। यह आसन हाथों, कंधो ,जांघो एवं कमर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।
वीरभद्रासन योग की विधि
वीरभद्रासन योग की विधि नीचे दी गई है :-
- सबसे पहले सीधे खड़े हों।
- दोनों पैरों के बिच 3-4 फीट की दूरी रखें।
- लम्बी साँस लें और दोनों हांथों को जमीन के समान्तर में ऊपर उठायें और अपने सर को दाएँ तरफ मोड़ें।
- उसके बाद साँस छोड़ते हुए अपने दाएँ पैर को 90 डिग्री में मोड़ें और हल्का सा दाएँ तरफ मोड़ें।
- पैर को मोड़ने के तरीके को समझने के लिए फोटो को देखें।
- उसके बाद इस पोजीशन में कुछ समय के लिए रुकें।
- ऐसे 5-6 बार करें।
वृक्षासन योग क्या है?
वृक्षासन योग की विधि
वृक्षासन योग की विधि निम्नलिखित है :-
- सबसे पहले अपने दोनों हांथों को बगल में रख कर सीधे खड़े हों।
- उसके बाद ध्यान से अपने दाएने पैर को अपने बाएँ पैर के जांघ पर रखकर सीधे खड़े रहें। समझने के लिए फोटो को देखें।
- उसके बाद धीरे-धीरे डॉन हांथों को जोड़ कर ऊपर की ओर ले जाएँ और प्रार्थना मुद्रा धारण करें।
- कम से कम 30-45 सेकंड तक इस मुद्रा में बैलेंस करने की कोशिश करें।
त्रिकोणासन योग क्या है?
त्रिकोणासन योग करते समय शरीर का आकार त्रिकोण (ट्रीअंगेल) के समान होने के कारण इसे त्रिकोणासन या ट्रीअंगेल पोज कहा जाता हैं। मोटापे से परेशान लोगो के लिए यह सबसे सरल और उपयोगी आसन हैं। त्रिकोणासन का नियमित अभ्यास करने से आपके पेट, कमर, जांघ और नितंब पर जमी अतिरिक्त चर्बी को आसानी से घटाया जा सकता हैं।
त्रिकोणासन योग की विधि
त्रिकोणासन योग की विधि निम्नलिखित है :-
- सबसे पहले सीधे खड़े हों और अपने दोनों पैरों के बिच थोडा गैप रखें।
- उसके बाद अपने दाएँ पैर को 90 डिग्री में मोड़ें।
- उसके बाद थोडा सा शरीर को भी दाएँ तरफ झुकाते हुए अपने दाएँ हाँथ से अपने दाएँ पैर के उँगलियों को छुएं और बाएं हांथ को ऊपर की और सिधाई में रखें जैसा फोटो में दिया गया है।
- इस मुद्रा में 1-2 मिनट तक रुकें।
भुजंगासन योग क्या है?
भुजंगासन को सर्पासन, कोबरा आसन या सर्प मुद्रा भी कहा जाता है। इस मुद्रा में शरीर सांप की आकृति बनाता है। ये आसन जमीन पर लेटकर और पीठ को मोड़कर किया जाता है। जबकि सिर सांप के उठे हुए फन की मुद्रा में होता है।
भुजंगासन योग की विधि
भुजंगासन योग की विधि नीचे दी गई है :-
- सबसे पहले पेट नीचे की तरफ कर के लेट जाएँ।
- उसके बाद एक लम्बी साँस के साथ अपने शरीर के उपरी भाग को जैसे सर, गर्दन, कन्धों और छाती को ऊपर की तरफ ले जाएँ जैसे चित्र में दिया गया है।
- इस मुद्रा में 20-30 सेकंड तक रुकें।
- उसके बाद दोबारा 4-5 बार इस आसन को दोहोराएँ।
योग करके हम अपने शरीर की अनेक बीमारियों को दूर कर सकते है। यह बीमारियां ही नहीं ठीक करता बल्कि याददाश्त, अवसाद, चिंता, डिप्रेशन, मोटापा, मनोविकारों को भी दूर भगाता है। योग से अनेक लाभ भी है। शरीर में रक्त प्रवाह बढ़ाने का योग से अच्छा कोई और तरीका नहीं हो सकता है।
योग पर अनमोल विचार
- योग करने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण जो आपको चाहिए होंगे वो हैं आपका शरीर और आपका मन। – रॉडने यी
- जब आप सांस लेते हैं , आप भगवान से शक्ति ले रहे होते हैं। जब आप सांस छोड़ते हैं तो ये उस सेवा को दर्शाता है जो आप दुनिया को दे रहे हैं। – बी के एस आयंगर
- ध्यान से ज्ञान आता है; ध्यान की कमी अज्ञानता लाती है। अच्छी तरह जानो कि क्या तुम्हे आगे ले जाता है और क्या तुम्हे रोके रखता है, और उस पथ को चुनो जो ज्ञान की ओर ले जाता है। -बुद्ध
- सांसें अंदर लो , और ईश्वर तुम तक पहुँचता है। सांसें रोके रहो , और ईश्वर तुम्हारे साथ रहता है। सांसें बाहर निकालो, और तुम ईश्वर तक पहुँचते हो। सांसें छोड़े रहो , और ईश्वर के प्रति समर्पित हो जाओ। – कृष्णामचार्य
- कर्म योग में कभी कोई प्रयत्न बेकार नहीं जाता, और इससे कोई हानि नहीं होती। इसका थोड़ा सा भी अभ्यास जन्म और मृत्यु के सबसे बड़े भय से बचाता है।- भगवद गीता
- व्यायाम गद्य की तरह है , जबकि योग गति की कविता है। एक बार जब आप योग का व्याकरण समझ जाते हैं ; आप अपने गति की कविता लिख सकते हैं। – अमित रे
- एलर्जी को रोकने के लिए ऊर्जा उत्पन्न करें। – बाबा रामदेव
- हो सकता है आप बड़े बिजनेसेस और इंटरप्राइजेज को मैनेज करते हों। योग इम्पोर्टेन्ट है क्योंकि ये आपको खुद को मैनेज करना सीखाता है। ये आपकी बॉडी में कम्प्लेट बॅलेन्स लाता है और उसे हेल्दी बनाता है।- बाबा रामदेव
योग और आधुनिक विज्ञान
आधुनिक वैज्ञानिक शोध यह प्रमाणित करते हैं कि योग न केवल मानसिक शांति और आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाता है, बल्कि यह शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। यह हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, चिंता और तनाव को कम करने में मदद करता है। यही कारण है कि योग का महत्व ही समाज को सही दिशा देने में मुख्य भूमिका निभाता है।
योग का वैश्विक प्रभाव
योग अब केवल भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे पूरे विश्व में अपनाया जा रहा है। विश्व कल्याण के उद्देश्य से भारत द्वारा योग के प्रति जागरूकता के लिए ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ को मनाए जाने का प्रस्ताव रखा था, जिसे वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा 21 जून को स्वीकार कर लिया गया था। तभी से हर वर्ष 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ मनाया जाता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि योग का महत्व जानकर ही पूरी दुनिया में योग को स्वीकृति मिली है।
FAQs
सामान्य भाव में योग का अर्थ है जुड़ना। यानी दो तत्वों का मिलन योग कहलाता है। आत्मा का परमात्मा से जुड़ना यहां अभीष्ट है। योग की पूर्णता इसी में है कि जीव भाव में पड़ा मनुष्य परमात्मा से जुड़कर अपने निज आत्मस्वरूप में स्थापित हो जाए।
योग के मुख्य चार प्रकार होत हैं। राज योग, कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग। कर्म योग के अनुसार हर कोई योग करता है। योग के मुख्य चार प्रकार होते हैं।
योग सही तरह से जीने का विज्ञान है और इस लिए इसे दैनिक जीवन में शामिल किया जाना चाहिए। यह हमारे जीवन से जुड़े भौतिक, मानसिक, भावनात्मक, आत्मिक और आध्यात्मिक, आदि सभी पहलुओं पर काम करता है। योग का अर्थ एकता या बांधना है। इस शब्द की जड़ है संस्कृत शब्द युज, जिसका मतलब है जुड़ना।
योग शब्द का जन्म संस्कृत शब्द ‘युज’ से हुआ है; जिसका अर्थ है – स्वयं का सर्वश्रेष्ठ, (सुप्रीम) स्वयं के साथ मिलन. पतंजलि योग के अनुसार, योग का अर्थ है मन को नियंत्रण में रखना. योग की कई शैलियाँ हैं, लेकिन हर शैली का मूल विचार मन को नियंत्रित करना है।
इससे पहले पांच चरण योग में बाहरी साधन माने गए हैं। इसके बाद सातवें चरण में ध्यान और आठवें में समाधि की अवस्था आ जाती है। धारणा का मतलब है संभालना, थामना या सहारा देना। मतलब किसी स्थान (मन के भीतर या बाहर) विशेष पर चित्त को स्थिर करने का नाम धारणा है।
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस हर वर्ष 21 जून को मनाया जाता है।
योग में शारीरिक आसन, प्राणायाम और ध्यान शामिल होता है, जबकि ध्यान मुख्य रूप से मानसिक एकाग्रता और आत्म-जागरूकता पर केंद्रित होता है।
सुबह खाली पेट योग करना अधिक लाभकारी होता है क्योंकि यह दिन की सकारात्मक शुरुआत करता है, लेकिन शाम को भी हल्के योगासन किए जा सकते हैं।
योग अब भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसे दुनिया भर में अपनाया गया है, और संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के रूप में मान्यता दी है।
योग के आठ प्रकार “यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि” को ही आष्टांग योग कहा जाता है।
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योग एक चमत्कारिक विधा है।आपके लेख ने इसे बहुत सरल ढंग से प्रस्तुत किया है।इससे लोग लाभान्वित होंगे।
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