भारत की आजादी के समय पर्याप्त मात्रा में फ़ूड प्रोडक्शन एक बड़ी समस्या थी। उस समय खेती में केमिकल फ़र्टिलाइज़र का प्रयोग नेग्लिजिबल हुआ करता था, जिसके कारण फसलों की कम पैदावार होती थी। जो कि एक आर्थिक और सामाजिक संकट का कारण था। तब फसलों की उपज बढ़ाने के लिए कीटनाशकों पदार्थों का प्रयोग भी नहीं होता था। उस समय फ़ूड प्रोडक्शन देश की प्रथम आवश्यकता में से एक थी कि खेती में अधिक प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए रासायनिक फ़र्टिलाइज़र को बढ़ावा देने के लिए भारत में हरित क्रांति के बाद ही ग्रे क्रांति की शुरुआत हुई जिसे घूसर क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। ग्रे क्रांति ने भारत की फसलों के पैदावार बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इस क्रांति के बारे में इसलिए भी जानना बहुत आवश्यक हो जाता है, क्योंकि भारत की प्रमुख परीक्षाओं जैसे UPSC, SSC और PCS जैसी प्रमुख परीक्षाओं में भारतीय क्रांति से संबंधित प्रश्न पूछे जाते है। इस ब्लॉग में हम ग्रे क्रांति क्या है? से संबंधित सभी विषयों को विस्तार से जानेंगे।
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ग्रे क्रांति क्या है?
भारत में ग्रे क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक के बाद शुरू हुई थी। यह वो समय था जब भारत में उन्नत किस्म के बीजों अभाव के कारण पारंपरिक बीजों का ही प्रयोग किया जाता था। आजादी के बाद रासयनिक उर्वरकों और कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग भी नहीं किया जाता था। भारत में तब अधिकतर कृषि वर्षा पर ही निर्भर करती थी और सिचाई के भी पर्याप्त साधन नहीं थे। इन्हीं सब समस्यों के कारण भारत में पर्याप्त मात्रा में फ़ूड प्रोडक्शन नहीं हो रहा था।
उस समय खाद्य उत्पादन भारत की प्रमुख आवश्कताओं में से एक थी कि खेती में अधिक से अधिक केमिकल फ़र्टिलाइज़र और कीटनाशक दवाइयों के प्रयोग का बढ़ावा दिया जाए। इसी कारण फसलों की उत्पादन वृद्धि करने हेतु फ़र्टिलाइज़र और कीटनाशकों के प्रयोग का बढ़ावा दिया गया। जिसे ग्रे क्रांति व ‘घूसर क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है।
ग्रे क्रांति की शुरुआत कब हुई थी?
भारत में वर्ष 1960 से 1970 के दशक से हरित क्रांति के बाद ही ग्रे क्रांति की शुरुआत मानी जाती है। यह क्रांति एक सामाजिक आंदोलन क रूप में उभरी थी। भारत में कृषि क्रांति के दौरान शुरू हुए कृषि संकट से इस क्रांति की शुरुआत मानी जाती है। इसके अलावा हरित क्रांति में कुछ कमियों को ग्रे क्रांति के माध्यम से दूर किया गया जिसमें कृषि की उपज बढ़ाने के साथ-साथ ऊन के उत्पादन को भी जोड़ा गया और उसका प्रोडक्शन में वृद्धि की गई।
ग्रे क्रांति के जनक कौन हैं?
भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही खेती के लिए पारंपरिक तकनीकों का प्रयोग किया जाता था। जिसके कारण केमिकल फ़र्टिलाइज़र और कीटनाशक दवाइयों की भारी कमी के कारण इनका प्रयोग नहीं किया जाता था। यह भारत की आजादी के दौर का वो अहम समय था जब खाद्य उत्पादन देश की प्रथम आवश्कयता में से एक था। इसलिए फसलों का उत्पादन अधिक मात्रा में बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग का बढ़ावा दिया जाने लगा। जिसके लिए भारत के राज्यों और केंद सरकार ने मिलकर रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए एक सघन अभियान चलाया गया था जिसे ग्रे क्रांति या घूसर क्रांति की उपमा दी गई।
ग्रे क्रांति के सामने कुछ चैलेंज
भारत में ग्रे क्रांति में आई कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियां इस प्रकार हैं:
- जब किसानों के पास फसलों की बढ़ती मांगों का दबाव आता है तब उन्हें फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए रणनीतियों के उपयोग करने के बावजूद भी उपज की मांग पूरी करना एक गंभीर चुनौती होती है।
- प्रोडक्शन की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाकर दुनिया में भोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्राथमिक चुनौती प्रोडक्शन को स्थायी रूप से बढ़ाना की है। जो कि एक चुनौती पूर्ण कार्य है।
- एक अन्य समस्या कृषि की लाभप्रदता और सामाजिक आकर्षण को बढ़ावा देने के लिए एक पेशेवर दृष्टिकोण अपनाने की थी।
- इकोसिस्टम सेवाएं, जिसने साइल फर्टिलिटी, बायोडायवर्सिटी, कार्बन सेपरेशन और वन्य जीवों के आवास को बढ़ाने की एक कठिनाई उत्पन्न हुई है।
- भविष्य के भोजन, कृषि और मांग की माँगों में अंतरों का अनुमान लगाना और उन्हें पूरा करना चुनौतीपूर्ण कार्य है।
ग्रे क्रांति के बाद भारत में कृषि की व्यवस्था?
भारत में हरित क्रांति के बाद ग्रे क्रांति में कृषि के प्रोडक्शन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। जिसके कारण फसलों की पैदावार में वृद्धि हुई साथ ही खेती के लिए उन्नत किस्म के बीजों और सिचाई व्यवस्था में भी अत्यधिक विकास हुआ। बाद में भारत के सार्वजिनक एवं निजी दोनों क्षेत्रों में उर्वरक का उत्पादन किया जाने लगा। भारत में ग्रे क्रांति के बाद सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्रों में स्थापित उर्वरक कारखाने नीचे दिए गए बिंदुओं में दिए गए हैं-
- भारतीय उर्वरक कॉपोरेशन – भारतीय उर्वरक कॉपोरेशन (फर्टिलाइजर कॉपोरेशन ऑफ इंडिया) की स्थापना वर्ष 1951 में हुई थी। यह भारत का सबसे बड़ा सार्वजानिक क्षेत्र का निगम है।
- भारतीय कृषक उर्वरक सहकारी निगम (IFFCO) – इफको की स्थापना वर्ष 1967 में की गयी थी। इसके अंतर्गत कई अन्य यूनिट्स है गुजरात और उतर प्रदेश मुख्य है।
- कृषक भारती को-ऑपरेटिव – इसकी स्थापना सन 1980 में राष्ट्रीय स्तर की सहकारी संस्था के रूप में की गई थी। इसके अंतर्गत गुजरात के हजीरा नामक स्थान पर एक विशाल उर्वरक संयन्त्र स्थापित किया गया है।
- नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड – इसकी स्थापना वर्ष 1974 में हुई थी। इसके अधीन कारखानें पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश में स्थापित है।
भारत की अब तक की कृषि क्षेत्र में हुई क्रांतियां
यहां भारत की देश की आजादी से लेकर अब तक की सभी प्रमुख क्रान्तियों के बारे में बताया जा रहा है, जिन्हें आप नीचे दिए गए बिंदुओं में देख सकते हैं-
- हरित क्रांति – भारत में हरित क्रांति की शुरुआत वर्ष 1960 के बाद शुरू हुई थी तथा इस क्रांति के जनक एम.एस स्वामीनाथन को माना जाता है। हरित क्रांति का सबसे अधिक प्रभाव चावल और गेहूं पर पड़ा था। लेकिन चावल की तुलना में गेहूं के प्रोडक्शन में अधिक वृद्धि हुई। हरित क्रांति में कृषि के क्षेत्र में वृद्धि बढ़ी और उन्नत किस्म के बीजों और सिचाई की तकनीकों में भी सुधार किया गया।
- पीली क्रांति – यह क्रांति तिलहन उत्पादन से संबंधित है जिसमें सूरजमुखी और सरसों जैसे खाद्य तेल और तिलहन फसलों के उत्पादन हेतु रिसर्च और विकास के लिए शुरू की गई थी।
- भूरी क्रांति – उन्नत किस्म की बागवानी फसलों का प्रोडक्शन बढ़ाने और एक्सपोर्ट के लिए मूलभूत सुविधाओं को बढ़ाना भूरी क्रांति का आधार था। इस क्रांति का जनक ‘हीरालाल चौधरी’ को माना जाता है।
- स्वर्ण क्रांति – भारत में स्वर्ण क्रांति की शुरुआत वर्ष 1991 से मानी जाती है। इस क्रांति का मुख्य उद्देश्य फलों, बागवानी और शहद के प्रोडक्शन में अधिक वृद्धि करना था।
- गुलाबी क्रांति – इस क्रांति को पिंक रेवोलुशन के नाम से भी जाना जाता है। इस क्रांति के जनक दुगेश पटेल को माना जाता है। इस क्रांति का उद्देश्य प्याज और झींगा के उत्पादन की वृद्धि से था।
FAQs
ग्रे क्रांति (भूरी क्रांति) का सम्बन्ध फ़र्टिलाइज़र और फ़र्टिलाइज़र के उपयोग के स्थायी तरीकों के विकास से है।
इस ग्रे क्रांति का मुख्य उद्देश्य अंततः हरित क्रांति के नकारात्मक प्रभावों या कमियों पर काबू पाने या उर्वरक उपयोग जैसे विभिन्न माध्यमों से भूमि उत्पादकता में वृद्धि करना था।
ग्रे क्रांति को घूसर क्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
घूसर क्रांति जिसे ग्रे क्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इस क्रांति का संबंध उर्वरक के प्रयोग के लिए था।
यहां कुछ प्रमुख चुनौतियों के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं में बताया गया है-
1. जब किसानों के पास फसलों की बढ़ती मांगों का दबाव आता है तब उन्हें फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए रणनीतियों के उपयोग करने के बावजूद भी उपज की मांग पूरी करना एक गंभीर चुनौती होती है।
2. प्रोडक्शन की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ाकर दुनिया में भोजन की आवश्यकता को पूरा करने के लिए प्राथमिक चुनौती प्रोडक्शन को स्थायी रूप से बढ़ाना की है। जो कि एक चुनौती पूर्ण कार्य है।
3. खाद्य उत्पादन के लिए भविष्य की मांगों की भविष्यवाणी करना और उन्हें मौजूदा खाद्य नेटवर्क की क्षमताओं से मिलाना मुश्किल था।
ग्रे क्रांति द्वारा बनाई गई रणनीतियां इस प्रकार है:
1. इस क्रांति ने फसलों की पैदावार बढ़ाते हुए उत्पादकता और विकास में वृद्धि।
2. क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर को लागू करना इस क्रांति का एक और मुख्य बिंदु था।
3. कृषि सेक्टर में किसानों को समकालीन तकनीकों और पेशेवर प्रबंधन तक पहुंच की सुविधा प्रदान करना।
4. बायोटेक्नोलॉजी के साथ-साथ जेनेटिक इंजीनियरिंग का उपयोग करना।
आशा है आपको ग्रे क्रांति क्या है पर आधारित जानिए ग्रे क्रांति क्या है और यह क्यों हुई थी? का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। यह ब्लॉग अपने दोस्तों और परिवार के साथ जरूर शेयर करें। ऐसे ही अन्य रोचक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।