Ahilyabai Holkar History in Hindi: भारत के इतिहास में धर्म ध्वजा संवाहक, कुशल शासिका अहिल्याबाई होलकर का नाम एक ऐसी महिला शासिका के रूप में अंकित है, जिन्होंने अपने शासनकाल में न्याय, धर्म और जनकल्याण को सर्वोपरि रखा। बता दें कि उनका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गाँव में हुआ था। सामाजिक रूढ़ियों के बावजूद, उनके पिता मानकोजी शिंदे ने उन्हें शिक्षा दी, जो उस समय की महिलाओं के लिए असामान्य था। महज आठ वर्ष की आयु में, मराठा सेनापति मल्हारराव होलकर ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और अपने पुत्र खंडेराव से उनका विवाह कराया। इस लेख में आप जानेंगे भारत की महान महिला शासिका अहिल्याबाई होलकर का इतिहास (Ahilyabai Holkar History in Hindi), साथ ही उनके जीवन से आप प्रेरणा भी प्राप्त कर पाएंगे। अहिल्याबाई होलकर का इतिहास जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
This Blog Includes:
- अहिल्याबाई होल्कर का जन्म
- अहिल्याबाई होलकर का जीवन परिचय – Ahilyabai Holkar History in Hindi
- अहिल्याबाई का विवाह कब और किससे हुआ?
- अहिल्याबाई के होल्कर वंश का संस्थापक कौन था?
- देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा कराए गए प्रमुख कार्य
- अहिल्याबाई होलकर का इतिहास से जुड़ी कुछ और बातें
- महारानी अहिल्याबाई के जीवन के संघर्ष और कठिनाई
- अहिल्याबाई होल्कर के बारे में प्रमुख लोगों के वक्तव्य
- अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु
- अहिल्याबाई की उपलब्धियां एवं सम्मान – Ahilyabai Holkar Award
- अहिल्या बाई की जीवनी
- FAQs
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म
अहिल्याबाई होल्कर का जन्म वर्ष 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव (जामखेड, अहमदनगर) में हुआ था। वह एक सामान्य से किसान की पुत्री थी। उनके पिता मान्कोजी शिन्दे के एक सामान्य किसान थे। सादगी और घनिष्ठता के साथ जीवन व्यतीत करने वाले मनकोजी की अहिल्याबाई एकमात्र अर्थात इकलौती पुत्री थी।
बताना चाहेंगे अहिल्याबाई बचपन के समय में सीधी साधी और सरल ग्रामीण कन्या थी। अहिल्याबाई होल्कर भगवान में विश्वास रखने वाली औरत थी और वह प्रतिदिन शिवजी के मंदिर पूजन आदि करने आती थी। यही कारण थे कि उन्होंने अपने शासन काल में कई ध्वस्त मंदिरों का पुर्निर्माण कराया।
अहिल्याबाई होलकर का जीवन परिचय – Ahilyabai Holkar History in Hindi
अहिल्याबाई होल्कर (Ahilyabai Holkar) का जन्म महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी नामक गाँव में मनकोजी शिंदे के घर सन् 1725 ई। में हुआ था।
साधारण शिक्षित अहिल्याबाई 10 वर्ष की अल्पायु में ही मालवा में इतिहासकार ई. मार्सडेन के अनुसार होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ परिणय सूत्र में बंध गई थीं।
- अपनी कर्तव्यनिष्ठा से उन्होंने सास-ससुर, पति व अन्य सम्बन्धियों के हृदयों को जीत लिया। समयोपरांत एक पुत्र, एक पुत्री की माँ बनीं।
- अभी यौवनावस्था की दहलीज पर ही थीं कि उनकी 29 वर्ष की आयु में पति का देहांत हो गया।
- सन् 1766 ई. में वीरवर ससुर मल्हारराव भी चल बसे। अहिल्याबाई होल्कर के जीवन से एक महान साया उठ गया।
- शासन की बागडोर संभालनी पड़ी। कालांतर में देखते ही देखते पुत्र मालेराव, दोहित्र नत्थू, दामाद फणसे, पुत्री मुक्ता भी माँ को अकेला ही छोड़ चल बसे।
- परिणामतः ‘माँ’ अपने जीवन से हताश हो गई, परन्तु प्रजा हित में उन्होंने स्वयं को संभाला और सफल दायित्वपूर्ण राज-संचालन करती हुई 13 अगस्त, 1795 को नर्मदा तट पर स्थित महेश्वर के किले में भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखाकर सदैव के लिए महानिदा में सो गईं।
अहिल्याबाई का विवाह कब और किससे हुआ?
जब देवी अहिल्याबाई केवल 10 या 12 वर्ष की थीं तब ही उनका विवाह हो गया था। और महज 19 वर्ष की उम्र में ही वे विधवा भी हो गई थीं। अहिल्याबाई होलकर का विवाह इतिहास में नाम रोशन करने वाले सूबेदार मल्हारराव होलकर के पुत्र खंडेराव से हुआ था।
अहिल्याबाई ने एक बेटे को साल 1745 में जन्म दिया था, जिसके तीन वर्ष के उपरांत अहिल्याबाई के घर एक बेटी ने जन्म लिया था। रानी के बेटे का नाम मालेराव (malerao) और कन्या का नाम मुक्ताबाई (Muktabai) था।
अहिल्याबाई के होल्कर वंश का संस्थापक कौन था?
बता दें कि इस वंश के संस्थापक मल्हार राव होल्कर (Malharrao Holkar) थे, उनका शासन मालवा से लेकर पंजाब तक था। मल्हार राव होलकर का निधन 1766 में हुआ था। मालवा इलाके के वे पहले मराठा सूबेदार हुए। अहिल्याबाई मालवा राज्य (Malwa State) की होलकर रानी बनी थी। अहिल्या को लोगों के द्वारा सम्मान से राजमाता (Rajmata) भी कहकर पुकारा जाता था।
देवी अहिल्याबाई होलकर द्वारा कराए गए प्रमुख कार्य
जैसा कि हम आपको पहले ही बता चुके हैं कि अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भी काफी कार्य किए। उन्होंने कई तीर्थ स्थानों के साथ ही कई मंदिर, घाट, कुँए, बावडियों, भूखे लोगों के लिए अन्नसत्र और प्याऊ का निर्माण भी कराया।
अहिल्या के दिल में अपनी प्रजा के लिए काफी प्यार और दया थी। वे जब भी किसी को मुसीबत या तकलीफ में देखती थीं तो उसे हम करने के लिए आगे कदम बढ़ाती थीं। इसलिए ही लोग भी उन्हें काफी सम्मान और प्यार देते थे।
इंदौर को एक खूबसूरत शहर बनाने में योगदान
अहिल्याबाई होलकर का इतिहास करीब 30 साल के अद्भुत शासनकाल के दौरान मराठा प्रांत की राजमाता अहिल्याबाई होलकर ने एक छोटे से गांव इंदौर को एक समृद्ध एवं विकसित शहर बनाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बता दें कि उन्होंने यहां पर सड़कों की दशा सुधारने, गरीबों और भूखों के लिए खाने की व्यवस्था करने के साथ-साथ शिक्षा पर भी काफी जोर दिया। अहिल्याबाई की बदौलत ही आज इंदौर की पहचान भारत के समृद्ध एवं विकसित शहरों में होती है।
देवी अहिल्याबाई ने विधवा महिलाओं और समाज को किया सशक्त
Ahilyabai Holkar History in Hindi : महारानी अहिल्याबाई की पहचान एक विनम्र एवं उदार शासक के रुप में थी। उनके ह्रद्य में जरूरमदों, गरीबों और असहाय व्यक्ति के लिए दया और परोपकार की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।
उन्होंने समाज सेवा के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया था। अहिल्याबाई हमेशा अपनी प्रजा और गरीबों की भलाई के बारे में सोचती रहती थी, इसके साथ ही वे गरीबों और निर्धनों की संभव मद्द के लिए हमेशा तत्पर रहती थी।
उन्होंने समाज में विधवा महिलाओं की स्थिति पर भी खासा काम किया और उनके लिए उस वक्त बनाए गए कानून में बदलाव भी किया था।
दरअसल, अहिल्याबाई के मराठा प्रांत का शासन संभालने से पहले यह कानून था कि, अगर कोई महिला विधवा हो जाए और उसका पुत्र न हो, तो उसकी पूरी संपत्ति सरकारी खजाना या फिर राजकोष में जमा कर दी जाती थी, लेकिन अहिल्याबाई ने इस कानून को बदलकर विधवा महिला को अपनी पति की संपत्ति लेने का हकदार बनाया।
इसके अलावा उन्होंने महिला शिक्षा पर भी खासा जोर दिया। अपने जीवन में तमाम परेशानियां झेलने के बाद जिस तरह महारानी अहिल्याबाई ने अपनी अदम्य नारी शक्ति का इस्तेमाल किया था, वो काफी प्रशंसनीय है। अहिल्याबाई कई महिलाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।
यह भी पढ़ें: डॉ भीमराव अंबेडकर का जीवन परिचय
अहिल्याबाई होलकर का इतिहास से जुड़ी कुछ और बातें
Ahilyabai Holkar History in Hindi से जुड़ी कुछ बातें यहाँ दी गई हैं :
1.अहिल्याबाई होलकर जन्म से ही काफी चंचल स्वभाव की थीं। वे कई कौशल अपने अंदर समेटे हुए थीं।
2.जब अहिल्याबाई की उम्र 42 साल के करीब थी तब उनके बेटे मालेराव का भी देहांत हो गया था।
3.अहिल्याबाई होलकर को लोग देवी के रूप में मानते थे और उनकी पूजा करते थे।
4.देवी अहिल्याबाई ने राज्य में काफी गड़बड़ मची हुई थी उस परिस्थिति में राज्य को ना केवल संभाला बल्कि कई नए आयाम खड़े किए।
5.उनके सम्मान और उनकी याद में ही मध्य प्रदेश के इन्दौर में हर साल भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी के दिन अहिल्योत्सव का आयोजन किया जाता है।
6.अहिल्याबाई होलकर का नाम समूचे भारतवर्ष में बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। उन्हें लेकर कई पुस्तकों में भी लिखा गया है।
7.अहिल्याबाई होल्कर ने देश के कई हिस्सों में काफी काम किए, जिसके चलते भारत सरकार के द्वारा कई जगहों पर रानी की प्रतिमा भी लगवाई गई है। उनके नाम पर कई योजनाएं भी हैं।
महारानी अहिल्याबाई के जीवन के संघर्ष और कठिनाई
अहिल्याबाई होलकर का इतिहास मेंं अहिल्याबाई की जिंदगी सुख और शांति से कट रही थी, तभी उनके जीवन में दुखों का पहाड़ टूट गया। साल 1754 में जब अहिल्याबाई होलकर महज 21 साल की थी, तभी उनके पति खांडेराव होलकर कुंभेर के युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए।
इतिहासकारों के मुताबिक अपने पति से अत्याधिक प्रेम करने वाली अहिल्याबाई ने अपनी पति की मौत के बाद सती होने का फैसला लिया, लेकिन पिता समान ससुर मल्हार राव होलकर ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया।
इसके बाद सन् 1766 में मल्हार राव होलकर भी दुनिया छोड़कर चले गए, जिससे अहिल्याबाई काफी आहत हुईं, लेकिन फिर भी वे हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद मालवा प्रांत की बागडोर अहिल्याबाई के कुशल नेतृत्व में उनके पुत्र मालेराव होलकर ने संभाली।
शासन संभालने के कुछ दिनों बाद ही साल 1767 में उनके जवान पुत्र मालेराव की भी मृत्यु हो गई। पति, जवान पुत्र और पिता समान ससुर को खोने के बाद भी उन्होंने जिस तरह साहस से काम किया, वो सराहनीय है।
अहिल्याबाई होल्कर के बारे में प्रमुख लोगों के वक्तव्य
राव बहादुर कीबे ने उचित ही कहा है- “Show what a leading part the pious lady Ahilya Bai took in the stirring events of the time”।
डॉ. उदयभानु शर्मा उनको श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं-“मेरी ही गोद में विश्व का वह अनोखा रत्न खो गया। इस सोच में महेश्वर का किला आज भी नतमस्तक हो आँसू बहा रहा है। नर्मदा भी इसी कारण प्रायश्चितस्वरूप, निस्तब्ध रात्रि में उस घाट पर, जहाँ देवी का भौतिक शरीर पंचत्व को प्राप्त हुआ था, दुःखी होकर विलाप करती हुई दिखाई पड़ती है ।उनकी श्रेष्ठता इन्दौर की शासिका होने में नहीं है, क्योंकि उनका त्याग इतना अनुपम, उनका साहस इतना असीम, उनकी प्रतिभा इतनी उत्कट, उनका संयम इतना कठिन और उनकी उदारता इतनी विशाल थी कि उनका नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है उनके पवित्र चरित्र और विराट प्रेम ने उन्हें लोकजीवन में लोकमाता का वह उच्चासन दिया, जो संसार में बड़े सम्राटों-साम्राज्ञियों को भी सुलभ नहीं रहा’।
उनकी एक समकालीन आँग्ल कवयित्री जोना बेली ने कहा “For thirty years her reign of peace, The land in blessing did increase, And she was blessed by every tongue, By stern and gentle; old and young।”
भू. पू .उपराष्ट्रपति डॉ. गोपालस्वरूप पाठक कहते हैं-“अहिल्याबाई भारतीय संस्कृति की मूर्तिमान प्रतीक थीं। कितने आपत्ति के प्रसंग तथा कसौटियों के प्रसंग उस तेजस्विनी पर आए, लेकिन उन सबका बड़े धैर्य से मुकाबला कर धर्म संभालते हुए उन्होंने राज्य का संसार सुरक्षित रखा, यह उनकी विशेषता थी। उन्होंने भारतीय संस्कृति की परम्पराएं सबके सामने रखीं। भारतीय संस्कृति जब तक जाग्रत है, तब तक अहिल्याबाई के चरित्र से ही हमें प्रेरणा मिलती रहेगी।
पं.जवाहरलाल नेहरू कहते हैं कि-“जिस समय वह गद्दी पर बैठीं, वह 30 वर्ष की नौजवान विधवा थीं और अपने राज्य के प्रशासन में वह बड़ी खूबी से सफल रहीं वह स्वयं राज्य का कारोबार देखती थीं, उन्होंने युद्धों को टाला, शांति कायम रखी और अपने राज्य को ऐसे समय में खुशहाल बनाया, जबकि भारत का ज्यादातर हिस्सा उथल-पुथल की हालत में था इसलिए यह ताज्जुब की बात नहीं कि आज भी भारत में सती की तरह पूजी जाती हैं |
अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु
अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु 13 अगस्त सन 1795 ईसवी को इंदौर राज्य में ही हुई था। अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु कब हुई थी, उस दिन की तिथि भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी था।
अहिल्याबाई की उपलब्धियां एवं सम्मान – Ahilyabai Holkar Award
Ahilyabai Holkar History in Hindi : अहिल्याबाई होलकर द्वारा किए गए महान कामों के लिए उनके सम्मान में भारत सरकार की तरफ से 25 अगस्त साल 1996 में एक डाक टिकट जारी कर दिया गया। इसके अलवा अहिल्याबाई जी के आसाधारण कामों के लिए उनके नाम पर एक अवॉर्ड भी स्थापित किया गया था।
अहिल्या बाई की जीवनी
Ahilyabai Holkar History in Hindi : सन् 1725 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के चौड़ी नामक गाँव में मनकोजी शिंदे के घर में एक बच्चे का जन्म हुआ जिसका नाम रखा गया अहिल्याबाई होल्कर। इतिहासकारों की माने तो उनकी शादी 10 वर्ष की आयु में होल्कर वंशीय राज्य के संस्थापक मल्हारराव होल्कर के पुत्र खण्डेराव के साथ हो गई थी। शादी के बाद उन्हें एक पुत्र और एक पुत्री की प्राप्ति हुई। पर जब वो 29 वर्ष की थी तो उनके पति का देहांत हो गया और वर्ष 1766 में उनपर दुखों का एक ओर पहाड़ टूट पड़ा। इस वर्ष उनके ससुर की मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्होंने सत्ता को संभाला और 13 अगस्त, 1795 को उनकी मृत्यु हो गई।
FAQs
अहिल्याबाई के पति का नाम खंडेराव होल्कर था।
अहिल्याबाई होलकर मराठा साम्राज्य की प्रसिद्ध महारानी थी इन्होंने माहेश्वर को राजधानी बनाकर शासन किया।
अहिल्याबाई के पिता का नाम मनकोजी था।
अहिल्याबाई होल्कर ने अपने पति और ससुर की मृत्यु हो जाने पर उनकी स्मृति में इंदौर राज्य तथा अन्य राज्यों में विधवाओं, अनाथो, अपंग लोगों के लिए आश्रम बनवाएं। अहिल्याबाई होल्कर ने ही कन्याकुमारी से लेकर हिमालय तक अनेक मंदिर, घाट, तालाब, दान संस्थाएं, भोजनालय, धर्मशालाएं, बावरिया इत्यादि का निर्माण करवाया।
31 मई 1725
महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव (जामखेड, अहमदनगर)
अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु 13 अगस्त सन 1795 ईसवी को इंदौर राज्य में ही हुई था। अहिल्याबाई होल्कर की मृत्यु कब हुई थी, उस दिन की तिथि भाद्रपद कृष्णा चतुर्दशी था।
2, मालेराव (पुत्र) और मुक्ताबाई (पुत्री)
अहिल्याबाई होल्कर धनगर की थी।
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9 comments
माता अहिल्याबाई होल्कर के जीवन परिचय बहुत ही बढ़िया है., कुछ नया अपडेट करे, हरी कमल दर्पण चीफ व्यूरो
श्याम शंकर पाल जी कमेंट करने के लिए आपका धन्यवाद, बताना चाहेंगे राजमाता अहिल्याबाई होलकर से संबंधित नवीनतम जानकारी को ब्लॉग में अपडेट कर दिया गया है।
jay jay shree rm
🚩🙏🙏बहुत सुंदर और मार्गदर्शन करने वाला जीवन चरित्र है अहिल्याबाई होलकर जी का उनको सत् सत् नमन ❤️🙏🙏🚩
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