Ras Ke Kitne Ang Hote Hain: रस के कितने अंग हैं?

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Ras Ke Kitne Ang Hote Hain
(A) तीन 
(B) चार
(C) पांच
(D) सात
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इस प्रश्न का सही उत्तर ऑप्शन B है। रस के चार अंग होते हैं; स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव। रस की व्याख्या करने वाला आचार्य भरत मुनि का यह प्रसिद्ध सूत्र है- “विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्ति”। अर्थात् विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी (संचारी भाव) के साथ जब स्थायी भाव का संयोग होता है तब रस की निष्पत्ति होती है।

रस की परिभाषा

किसी काव्य को पढ़ने, सुनने अथवा उसका अभिनय देखने में जो पाठक, श्रोता या दर्शक को जो आनंद की अनुभूति होती है, वही काव्य में रस कहलाता है। 

रस के कितने अंग हैं?

रस के प्रमुख चार अंग हैं;-

  • स्थायी भाव – स्थायी (स्था+णिनि+युक्) का अर्थ है टिकने वाला या स्थित रहने वाला। अंतः सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से निवास करते है, स्थायी भाव कहलाते है। 
  • संचारी भाव – स्थायी भाव को पुष्ट करने के लिए जो भाव उत्पन्न होकर पुनः लुप्त हो जाते है। उन्हें संचारी भाव कहते है। बता दें कि संचारी भाव की संख्या 33 मानी गई हैं जो कि रस-निष्पति में सहायक सिद्ध होते हैं; अमर्ष, असूया, आलस्य, आवेग, उत्सुकता, उन्माद, उग्रता, ग्लानि, चिंता, गर्व, निद्रा, निर्वेद, मोह, विषाद, शंका व स्वप्न आदि प्रमुख संचारी भाव है। 
  • विभाव – स्थायी भाव को जाग्रत करने वाले कारक विभाव कहलाते है। आसान भाषा में कहें तो, जो निमित या कारण काव्यादि में हृदय की अनुभूतियों को तरंगित करते हैं, वे विभाव कहलाते हैं। बताना चाहेंगे विभाव के दो भेद हैं- आलंबन और उद्दीपन।
    आलंबन– जिसके प्रति स्थायी भाव उत्पन्न हो, वह आलंबन कहलाता है।
    उद्दीपन – स्थायी भावों को बढ़ाने या उद्दीप्त करने वाले भाव उद्दीपन कहलाते है। 
  • अनुभाव – भावों का प्रत्यक्ष बोध कराने वाली आश्रय की चेष्टाओं को अथवा स्थायी भावों का अनुभव कराने वाले भावों को अनुभाव कहा जाता है। अनुभाव दो प्रकार के होते हैं; सात्विक अनुभाव तथा कायिक अनुभाव।
    सात्विक अनुभाव – ये वे भाव हैं जो सत्व से स्वत: उत्पन्न होते हैं।
    कायिक अनुभाव – आश्रय द्वारा आलंबन को प्रभावित करने के लिए व उससे प्रभावित होने के परिणामस्वरूप, जानबूझकर प्रयत्नपूर्वक की गई चेष्टाओं को कायिक अनुभाव कहा जाता है। 

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