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उत्तर: लक्ष्मण द्वारा परशुराम पर यह व्यंग्य किया गया कि उन्होंने माता-पिता के ऋण से तो अपने कठोर कर्मों द्वारा मुक्ति पा ली, अब उन्हें केवल गुरु ऋण से उऋण होने की चिंता शेष है। इस कटाक्ष को सुनकर परशुराम अत्यंत क्रोधित हो उठते हैं। इससे उनके अति क्रोधी, अहंकारी तथा अविवेकी स्वभाव की स्पष्ट झलक मिलती है। वे बातों का धैर्यपूर्वक उत्तर देने के बजाय तुरंत आक्रोश में प्रतिक्रिया करते हैं।
इस पाठ के अन्य प्रश्न
- ‘सेवकु सो जो करै सेवकाई’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
- परशुराम ने लक्ष्मण को क्या चेतावनी दी?
- परशुराम ने अपने पराक्रम की प्रशंसा किस प्रकार की?
- ‘परसु मोर अति घोर’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
- पद्यांश में वर्णित वार्तालाप क्या है और यह किनके बीच चल रहा है?
- “इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं॥” पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
- लक्ष्मण के अनुसार ब्राह्मण से युद्ध करना क्यों उचित नहीं है?
- ‘ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा’ में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
- लक्ष्मण की किन बातों से परशुराम ने अपमान महसूस किया था?
- सूर समर – कथहिं प्रतापु।। इन पंक्तियों में लक्ष्मण के मन का कौनसा भाव प्रकट हुआ है?
- लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या आरोप लगाया?
- ‘अयमय खाँड़ न ऊखमय’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
- लक्ष्मण ने क्या कहकर परशुराम की क्रूरता पर व्यंग्य किया है?