भारत का सबसे अधिक आबादी वाला और चौथा सबसे बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश है और इस राज्य का गठन 26 जनवरी 1950 को हुआ था। उत्तर प्रदेश अपनी कई प्रसिद्धि के साथ लोक संगीत के लिए भी जाना जाता है और लोकगीत इसकी संस्कृति को भी दर्शाते हैं। उत्तर प्रदेश के लोकगीत के बारे में कई प्रतियोगी परीक्षाओं और इंटरव्यू में प्रश्न पूछे जाते हैं, इसलिए इस ब्लाॅग में हम उत्तर प्रदेश के लोकगीत के बारे में विस्तार से जानेंगे।
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लोकगीत के बारे में
लोकगीत पारंपरिक और ग्रामीण संगीत का प्रकार है। लोकगीत का काॅंसेप्ट मूल रूप से परिवारों और अन्य छोटे सामाजिक समूहों के माध्यम से लाया गया था। ऐसा कहा जाता है कि लोक संगीत लोक साहित्य की तरह भारत के विभिन्न राज्यों में है और यह वहां की शैली के अनुसार ही दिखता है। हर राज्य में लोकगीतों को नाम भी दिया जाता है।
उत्तर प्रदेश के लोकगीत
उत्तर प्रदेश के बड़े राज्यों में से एक है और यहां की काफी प्रसिद्ध हैं। उत्तर प्रदेश और अन्य क्षेत्रों में लोक संगीत लोक मनोरंजन का एक हिस्सा है। लोकगीत भी शामिल हैं, इसलिए उत्तर प्रदेश के लोकगीत यहां बताए जा रहे हैंः
सोहर
सोहर उत्तर प्रदेश में लोकगीतों में सबसे लोकप्रिय है। यह गीत क्षेत्रों में प्रचलित धार्मिक संस्कृति से संबंधित हैं। सोहर मुख्य रूप से बच्चे के जन्म के दौरान किया जाता है। भोजपुरी क्षेत्र में लोकगीतों को लोकप्रिय बनाने का श्रेय आमतौर पर भिखारी ठाकुर को दिया जाता है।
सोहर को एक ऐसे गीत के रूप में मनाया जाता है जो जीवन का स्वागत करता है और नई शुरुआत का जश्न मनाता है। लोगों के रोजाना के जीवन में सोहर का महत्व इस परंपरा की काफी लोकप्रियता है। सोहर आंतरिक रूप से पारिवारिक जीवन से जुड़ा हुआ है और उत्तर प्रदेश में प्रचलित संगीत परंपरा है।
काजरी
काजरी भी प्रमुख लोकगीतों में से एक है और इसे सावन के महीने में महिलाओं द्वारा गाया जाता है। यह अर्ध-शास्त्रीय गायन के रूप में भी विकसित हुआ और इसकी गायन शैली बनारस से जुड़ी हुई है। काजरी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का भी प्रसिद्ध लोकगीत माना जाता है।
काजरी लोकगीत को पारंपरिक रूप से मिर्जापुर, मथुरा, प्रयागराज और बिहार के भोजपुर क्षेत्रों के आसपास उत्तर प्रदेश के गांवों और कस्बों में गाया जाता है।
कहरवा
कहरवा को उत्तर प्रदेश की शादियों में गाया जाता है। इस गायन शैली की उत्पत्ति उत्तर प्रदेश में हुई थी। कहरवा ताल कव्वाली और धुमाली जैसी विविधताओं वाली ताल है और इसे 8 ताल के साथ 2 भागों में विभाजित किया गया है। यह एक जाति आधारित लोकगीत है जो कहार जाति द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।
कीर्तन
वैदिक कीर्तन परंपरा के अनुसार होता है। कीर्तन के समय संगीत पर सेट होता है, जिसमें कई गायक एक पौराणिक कथा का पाठ या वर्णन करते हैं। इसके अलावा किसी देवता के प्रति भक्ति या आध्यात्मिक विचारों पर चर्चा करते हैं।
नौका झक्कड़
नौका झक्कड़ नाई समुदाय में बहुत लोकप्रिय है और नाई का गीत माना जाता है। इस गीत के माध्यम से नाई समुदाय को भी अपनी पहचान मिलती है और अन्य गीतों की तरह इसकी भी अपनी अलग शैली है।
रागिनी
रागिनी या ढोला उत्तर प्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र का लोक गीत है। यह उत्तर प्रदेश के रुहेलखंड क्षेत्र का प्रमुख लोक गीत है। उत्तर प्रदेश में कुछ लोकगीत भी ढोला के नाम से गाए जाते हैं।
चनयनी
चनयनी भी लोक-नृत्य संगीत है जो उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में अधिक प्रसिद्ध है। चनयनी ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक श्रम के साथ या फिर किसी अवसर या विशेष क्षण का जश्न मनाने के लिए किया जाता है। यह एक प्रकार का नृत्य संगीत है जिसे उत्तर प्रदेश के कोने-कोने में देखा जा सकता है।
बंजारा और नजावा
उत्तर प्रदेश के लोकगीतों में बंजारा और नजावा को भी काफी ऊपर स्थान दिया गया है। संगीत की इस विधा को तेली समुदाय के लोग रात के समय गाते हैं और काफी मस्ती करते हुए इसे प्रस्तुत किया जाता है।
बिरहा
बिरहा को विशेष रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोक संगीत शैलियों में लोकप्रिय माना जाता है। बिरहा उन महिलाओं की मनोदशा को दर्शाता है जो आजीविका की तलाश में अपने पतियों से अलग हो जाती हैं।
चैती
चैती विशेष रूप से हिंदू कैलेंडर के चैत्र माह के दौरान गाया जाता है और इसका विषय काफी अलग रखा जाता है जोकि सीधे तौर पर लोगों से जुड़ा होता है।
ग़ज़ल
ग़ज़ल एक लोकप्रिय गायन शैली थी जो केवल अवध क्षेत्र के शाही दरबारों में प्रस्तुत की जाती थी। आज के समय में ग़ज़ल राजसी दरबारों की सीमा से बाहर निकल चुकी है और इसे अब लोग किसी भी बड़े अवसर पर आयोजित कराते हैं। यह गायन की एक मधुर शैली होती है और इसे उत्तर प्रदेश में काफी प्रसिद्ध माना जाता है।
कव्वाली
कहा जाता है कि कव्वाली सूफी संतों की कविताएं हैं, जिन्हें आम तौर पर दो या दो से अधिक लोग एक साथ गाते हैं।
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FAQs
लोकगीत किसी देश या क्षेत्र के लोगों द्वारा प्रस्तुत होने वाला गीत है, जो मौखिक परंपरा द्वारा एक गायक या पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक प्रसारित होता है।
उत्तर भारत में जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है।
उत्तर प्रदेश में कई लोकगीत हैं जिनमें से सोहर, काजरी, कहरवा और चनयनी आदि प्रसिद्ध हैं।
उत्तर प्रदेश में सोहर एक प्रकार का लोकगीत है जो बच्चे के जन्म के समय गाया जाता है।
लोक संगीत के लिए उत्तर प्रदेश में लोगों की मंडली के साथ ही ढोल और अन्य जरूरी चीजें होती हैं।
उम्मीद है कि इस ब्लाॅग में आपको उत्तर प्रदेश के लोकगीत कौन से हैं के बारे में जानकारी मिल गई होगी। अपनी परीक्षाओं की तैयारी और बेहतर करने और उत्तर प्रदेश जीके से जुड़े अन्य ब्लाॅग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।