सुमित्रानंदन पंत की कविताएं समाज को आज तक सही मार्ग दिखाने का सफल प्रयास करती हैं। सुमित्रानंदन पंत एक ऐसे कालजेयी कवि थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज की चेतना को जगाए रखने का काम किया है। सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य की वो अनमोल मणि थे, जिन्हें ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के नाम से भी जाना जाता है। सुमित्रानंदन पंत की लिखी कविताएं आज तक भारतीय समाज के साथ-साथ, दुनियाभर में रह रहे साहित्य प्रेमियों को प्रेरित करने का प्रयास करती हैं। इस ब्लॉग में आप Sumitranandan Pant ki Kavitayen (सुमित्रानंदन पंत की कविताएं) पढ़ पाएंगे, यह कविताएं आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का संचार करेंगी। सुमित्रानंदन पंत की कविताएं पढ़ने के लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना होगा।
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कौन हैं सुमित्रानंदन पंत?
Sumitranandan Pant ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय होना चाहिए। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक कवि सुमित्रानंदन पंत जी भी थी, जिन्होंने हिंदी साहित्य के लिए अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ सुमित्रानंदन पंत का जन्म 20 मई 1900 को बागेश्वर ज़िले के कौसानी में हुआ था, जो कि आज के उत्तराखंड राज्य में पड़ता है। जन्म के कुछ ही घंटों बाद उनकी माता की मृत्यु हो गई थी, जिस कारण उनका लालन-पालन उनकी दादी ने किया था। सुमित्रानंदन पंत जी का बचपन का नाम गोसाईं दत्त रखा गया था।
सुमित्रानंदन पंत जी ने प्रयाग में अपनी उच्च शिक्षा के दौरान वर्ष 1921 में हुए, असहयोग आंदोलन में महात्मा गाँधी के बहिष्कार के आह्वान का समर्थन किया। इस आंदोलन के चलते उन्होंने महाविद्यालय को छोड़ दिया और हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अँग्रेज़ी भाषा-साहित्य के स्वाध्याय में लग गए।
प्रयाग ही वह नगरी है जहाँ उनकी काव्य-चेतना का विकास हुआ था, हालाँकि पंत जी ने नियमित रूप से कविताएँ लिखने की यात्रा अपनी किशोर आयु से ही प्रारम्भ कर दी थी। उनका रचनाकाल 1916 से 1977 तक रहा, पंत जी ने अपने जीवन में हिन्दी साहित्य के लिए लगभग 60 वर्षों तक की निरंतर सेवा की।
सुमित्रानंदन पंत जी की काव्य-यात्रा के तीन चरण देखे जाते हैं। इन्हीं तीन चरणों में उनकी पूरी काव्य यात्रा की झलकियां देखने को मिल जाती है। पंत जी की कविताओं ने सदैव समाज को जागृत रखने में अपना योगदान दिया। उन्होंने हिन्दी साहित्य में अपनी रचनाओं के आधार पर खूब यश कमाया। 28 दिसंबर 1977 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में सुमित्रानंदन पंत जी का निधन हुआ और वह सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गए।
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सुमित्रानंदन पंत जी की रचनाएं
Sumitranandan Pant ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको उनकी रचनाओं के बारे में पता होना चाहिए, जिसको आप इस ब्लॉग में पढ़ेंगे। सुमित्रानंदन पंत की कविताएं उनके समय के सामाजिक परिपेक्ष्य में स्वतंत्रता, शिक्षा और समाज में उनकी भूमिका को दर्शाने वाली हैं। हिंदी साहित्य में उनके महान और महत्वपूर्ण योगदान के कारण ही, उनको ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ का स्थान प्राप्त था। सुमित्रानंदन पंत जी की कुछ विशेष रचनाएं निम्नलिखित हैं;
चिदंबर
चिदंबर सुमित्रानंदन पंत जी द्वारा रचित प्रमुख कविता संग्रह है। जिसके माध्यम से वे प्रकृति, प्यार और भारतीय संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करते हैं। “चिदंबर” में लिखी हर कविता सुमित्रानंदन पंत की प्रसिद्ध कविता है।
गीतिकाव्य
यह काव्य पंत जी द्वारा रचित उन प्रमुख काव्यों में से एक है, जिसमें वे भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।
गर्म तल
इस काव्य रचना में सुमित्रानंदन पंत जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में अपनी भावनाओं को व्यक्त किया है। इस काव्य में स्वतंत्रता के लिए किये गए संघर्षों को सम्मानित किया गया है।
चिदंबरमा
इस कविता में, सुमित्रानंदन पंत जी अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद के अकेलेपन और उसकी यादों को व्यक्त करते हैं। अकेलेपन में लिखी गई पीड़ाओं को यह काव्य सम्मानित करता है।
कालतंतु
यह काव्य पाठ उनके संवाद काव्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें पंत जी भारतीय समाज की समस्याओं को उठाते हैं। पंत जी का उद्देश्य केवल सवाल उठा कर बवाल करने का नहीं, बल्कि समाज की चिंताओं और समस्याओं के प्रति एक कवि के रूप में अपने कर्तव्यों के रूप में पालन करना है।
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15 अगस्त 1947
Sumitranandan Pant ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, सुमित्रानंदन पंत जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “15 अगस्त 1947” भी है, जो कि आपको आज़ादी की सही कीमत का एहसास कराएगी, जिसके लिए हमारे पुरखों ने असंख्य बलिदान दिए।
चिर प्रणम्य यह पुण्य अहन्, जय गाओ सुरगण,
आज अवतरित हुई चेतना भू पर नूतन!
नव भारत, फिर चीर युगों का तमस आवरण,
तरुण अरुण सा उदित हुआ परिदीप्त कर भुवन!
सभ्य हुआ अब विश्व, सभ्य धरणी का जीवन,
आज खुले भारत के सँग भू के जड़ बंधन!
शांत हुआ अब युग-युग का भौतिक संघर्षण
मुक्त चेतना भारत की यह करती घोषण!
आम्र मौर लाओ हे, कदली स्तंभ बनाओ,
ज्योतित गंगा जल भर मंगल कलश सजाओ!
नव अशोक पल्लव के बंदनवार बँधाओ,
जय भारत गाओ, स्वतंत्र जय भारत गाओ!
उन्नत लगता चंद्र कला स्मित आज हिमाचल,
चिर समाधि से जाग उठे हों शंभु तपोज्वल!
लहर-लहर पर इंद्रधनुष ध्वज फहरा चंचल,
जय निनाद करता, उठ सागर, सुख से विह्वल!
धन्य आज का मुक्ति दिवस, गाओ जन-मंगल,
भारत लक्ष्मी से शोभित फिर भारत शतदल!
तुमुल जयध्वनि करो, महात्मा गाँधी की जय,
नव भारत के सुज्ञ सारथी वह निःसंशय!
राष्ट्र नायकों का हे पुनः करो अभिवादन,
जीर्ण जाति में भरा जिन्होंने नूतन जीवन!
स्वर्ण शस्य बाँधो भू वेणी में युवती जन,
बनो बज्र प्राचीर राष्ट्र की, मुक्त युवकगण!
लोह संगठित बने लोक भारत का जीवन,
हों शिक्षित संपन्न क्षुधातुर नग्न भग्न जन!
मुक्ति नहीं पलती दृग जल से हो अभिसिंचित,
संयम तप के रक्त स्वेद से होती पोषित!
मुक्ति माँगती कर्म वचन मन प्राण समर्पण,
वृद्ध राष्ट्र को वीर युवकगण दो निज यौवन!
नव स्वतंत्र भारत को जग हित ज्योति जागरण,
नव प्रभात में स्वर्ण स्नात हो भू का प्रांगण!
नव जीवन का वैभव जाग्रत हो जनगण में,
आत्मा का ऐश्वर्य अवतरित मानव मन में!
रक्त सिक्त धरणी का हो दुःस्वप्न समापन,
शांति प्रीति सुख का भू स्वर्ग उठे सुर मोहन!
भारत का दासत्व दासता थी भू-मन की;
विकसित आज हुईं सीमाएँ जग जीवन की!
धन्य आज का स्वर्ण दिवस, नव लोक जागरण,
नव संस्कृति आलोक करे जन भारत वितरण!
नव जीवन की ज्वाला से दीपित हों दिशि क्षण
नव मानवता में मुकुलित धरती का जीवन!
-सुमित्रानंदन पंत
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भारत माता
Sumitranandan Pant ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, सुमित्रानंदन पंत जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “भारत माता” भी है, जो कि पीढ़ी दर पीढ़ी भारत माता के प्रति समर्पण का संदेश देती आई है, साथ ही इस कविता ने वर्तमान समय में भी राष्ट्रवाद की अलख को जलाए रखा है।
भारतमाता
ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी की प्रतिमा
उदासिनी।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग युग के तम से विषण्णा मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी।
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु तल निवासिनी!
स्वर्ण शस्य पर-पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रंदन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेंदु हासिनी।
चिंतित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,
जग जननी
जीवन विकासिनी!
-सुमित्रानंदन पंत
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ग्राम श्री
Sumitranandan Pant ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, सुमित्रानंदन पंत जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “ग्राम श्री” भी है, जो कि भारत की आत्मा भारत के गांवों के स्वरुप को आपके सामने प्रस्तुत करती है।
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली,
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की सी उजली जाली!
तिनकों के हरे-हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फ़लक!
रोमांचित-सी लगी वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि, तीसी नीली!
रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हँस रही सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों-सी लटकीं
छीमियाँ, छिपाए बीज लड़ी!
फिरती हैं रंग-रंग की तितली
रंग-रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़-उड़ वृंतों से वृंतों पर!
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आड़ू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली!
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ी,
पक गए सुनहले मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी औ‘ सेम फलीं, फैलीं
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर तरबूज़ों की खेती;
अँगुली की कँघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरख़ाब, पुलिन पर
मगरौठी रहती सोई!
हँसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए-से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोए—
मरकत डिब्बे सा खुला ग्राम—
जिस पर नीलम नभ आच्छादन—
निरुपम हिमांत में स्निग्ध शांत
निज शोभा से हरता जन मन!
-सुमित्रानंदन पंत
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मैं सबसे छोटी होऊँ
Sumitranandan Pant ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, सुमित्रानंदन पंत जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मैं सबसे छोटी होऊँ” भी है, जो कि माँ की ममता में पनपते बचपन की खूबसूरती और उन यादों को याद कर लिखी गयी है।
मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरा अंचल पकड़-पकड़कर
फिरूँ सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ!
बड़ा बनाकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!
अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!
ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,
कहूँ—दिखा दे चंद्रोदय!
-सुमित्रानंदन पंत
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ज्योति भारत
Sumitranandan Pant ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, सुमित्रानंदन पंत जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “ज्योति भारत” भी है, जो कि मातृभूमि के प्रति आस्था और सम्मान के भाव पर आधारित है।
ज्योति भूमि,
जय भारत देश!
ज्योति चरण धर जहाँ सभ्यता
उतरी तेजोन्मेष!
समाधिस्थ सौंदर्य हिमालय,
श्वेत शांति आत्मानुभूति लय,
गंगा यमुना जल ज्योतिर्मय
हँसता जहाँ अशेष!
फूटे जहाँ ज्योति के निर्झर
ज्ञान भक्ति गीता वंशी स्वर,
पूर्ण काम जिस चेतन रज पर
लोटे हँस लोकेश!
रक्तस्नात मूर्छित धरती पर
बरसा अमृत ज्योति स्वर्णिम कर,
दिव्य चेतना का प्लावन भर
दो जग को आदेश!
-सुमित्रानंदन पंत
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