मानव जीवन पर सही मायनों में अपनी गहरी छाप छोड़ने वाली व्यवस्था, अखबार ने अतीत से लेकर वर्तमान तक अपनी एक विशेष भूमिका निभाने का कार्य किया। अखबार ने इतिहास में हर छोटी-बड़ी घटनाओं से समाज का परिचय करवाया। विश्व युद्ध की पीड़ा, आज़ादी का संग्राम, स्वतंत्रता का उत्सव, विभाजन की विभीषिका, लोकतंत्र में इमरजेंसी का काला कलंक इत्यादि घटनाओं को अपने माध्यम से जन-जन तक पहुंचाने का काम अखबारों ने ही किया। अखबार पर शायरी पढ़कर आप आपके जीवन में अखबारों की भूमिका को जान पाएंगे। विद्यार्थी जीवन में लिखी या पढ़ी गई अखबार पर शायरी, आपका परिचय अखबारों और पत्रकारों के साहस से करवाएंगी, जिसके लिए आप इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।
अखबार पर शायरी
अखबार पर शायरी पढ़कर विद्यार्थियों का परिचय अखबारों के एक बड़े इतिहास से होगा, जिसका मकसद आपको अखबारों का महत्व बताना होगा। अखबार पर शायरी कुछ इस प्रकार हैं;
खींचो न कमानों को न तलवार निकालो
जब तोप मुक़ाबिल हो तो अख़बार निकालो
-अकबर इलाहाबादी
इस वक़्त वहाँ कौन धुआँ देखने जाए
अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी थी
-अनवर मसूद
सुर्ख़ियाँ ख़ून में डूबी हैं सब अख़बारों की
आज के दिन कोई अख़बार न देखा जाए
-मख़मूर सईदी
रात के लम्हात ख़ूनी दास्ताँ लिखते रहे
सुब्ह के अख़बार में हालात बेहतर हो गए
-नुसरत ग्वालियारी
अद्ल-गाहें तो दूर की शय हैं
क़त्ल अख़बार तक नहीं पहुँचा
-साहिर लुधियानवी
चश्म-ए-जहाँ से हालत-ए-असली छुपी नहीं
अख़बार में जो चाहिए वो छाप दीजिए
-अकबर इलाहाबादी
‘वसीम’ ज़ेहन बनाते हैं तो वही अख़बार
जो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
-वसीम बरेलवी
ऐसे मर जाएँ कोई नक़्श न छोड़ें अपना
याद दिल में न हो अख़बार में तस्वीर न हो
-ख़लील मामून
इश्क़ अख़बार कब का बंद हुआ
दिल मिरा आख़िरी शुमारा है
-फ़रहत एहसास
दस बजे रात को सो जाते हैं ख़बरें सुन कर
आँख खुलती है तो अख़बार तलब करते हैं
-शहज़ाद अहमद
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टॉप 10 अखबार पर शायरी
टॉप 10 अखबार पर शायरी पढ़कर आपको अखबार और इनके इतिहास की जानकारी मिलेगी, टॉप 10 अखबार पर शायरी आपको अखबारों के महत्व को बताएंगे। टॉप 10 अखबार पर शायरी कुछ इस प्रकार हैं:
हमारे शहर के लोगों का अब अहवाल इतना है
कभी अख़बार पढ़ लेना कभी अख़बार हो जाना
-अदा जाफ़री
नाख़ुदा देख रहा है कि मैं गिर्दाब में हूँ
और जो पुल पे खड़े लोग हैं अख़बार से हैं
-गुलज़ार
चेहरे पे जो लिखा है वही उस के दिल में है
पढ़ ली हैं सुर्ख़ियाँ तो ये अख़बार फेंक दे
-शहज़ाद अहमद
कुछ ख़बरों से इतनी वहशत होती है
हाथों से अख़बार उलझने लगते हैं
-भारत भूषण पन्त
अख़बार में रोज़ाना वही शोर है यानी
अपने से ये हालात सँवर क्यूँ नहीं जाते
-महबूब ख़िज़ां
रात-भर सोचा किए और सुब्ह-दम अख़बार में
अपने हाथों अपने मरने की ख़बर देखा किए
-मोहम्मद अल्वी
कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया
फिर इश्क़ मिरा कूचा ओ बाज़ार में आया
-इरफ़ान सिद्दीक़ी
तुझे शनाख़्त नहीं है मिरे लहू की क्या
मैं रोज़ सुब्ह के अख़बार से निकलता हूँ
-शोएब निज़ाम
अर्से से इस दयार की कोई ख़बर नहीं
मोहलत मिले तो आज का अख़बार देख लें
-आशुफ़्ता चंगेज़ी
खुलेगा उन पे जो बैनस्सुतूर पढ़ते हैं
वो हर्फ़ हर्फ़ जो अख़बार में नहीं आता
-रऊफ़ ख़ैर
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अखबार पर मुनव्वर राना की ग़ज़ल – इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
अखबार पर ग़ज़ल आपको उर्दू साहित्य के सौंदर्य से परिचित कराएंगी, जो नीचे दी गई हैं-
इश्क़ है तो इश्क़ का इज़हार होना चाहिए
आप को चेहरे से भी बीमार होना चाहिए
आप दरिया हैं तो फिर इस वक़्त हम ख़तरे में हैं
आप कश्ती हैं तो हम को पार होना चाहिए
ऐरे-ग़ैरे लोग भी पढ़ने लगे हैं इन दिनों
आप को औरत नहीं अख़बार होना चाहिए
ज़िंदगी तू कब तलक दर-दर फिराएगी हमें
टूटा-फूटा ही सही घर-बार होना चाहिए
अपनी यादों से कहो इक दिन की छुट्टी दे मुझे
इश्क़ के हिस्से में भी इतवार होना चाहिए
-मुनव्वर राना
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आशा है कि इस ब्लॉग में आपको अखबार पर शायरी पढ़ने का अवसर मिला होगा। अखबार पर शायरी और अखबार पर ग़ज़ल पढ़कर आप साहित्य के माध्यम से, समाज की चेतना जागृति में अखबार के योगदान से परिचित हो सकेंगे। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।