रांगेय राघव आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रेमचंदोत्तर कालीन लेखन परंपरा के विलक्षण कथाकार, लेखक व कवि माने जाते हैं। जिन्होंने अहिंदी भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य जगत को कई अनुपम रचनाएं दी हैं। हिंदी साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी के माध्यम से उन्होंने हिंदी जगत में अपना एक विशिष्ठ स्थान बनाया है। साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं जिनमें ‘हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार’, ‘डालमिया पुरस्कार’ व ‘राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार’ शामिल हैं। इस लेख में आप सुप्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में जानेंगे।
| मूल नाम | तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य |
| विख्यात नाम | रांगेय राघव |
| जन्म | 17 जनवरी, 1923 |
| जन्म स्थान | आगरा, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | श्री रंगाचार्य |
| माता का नाम | श्रीमती कनकवल्ली |
| पत्नी का नाम | श्रीमती सुलोचना |
| शिक्षा | एम.ए (हिंदी साहित्य), पीएचडी |
| पेशा | लेखक, कथाकार, कवि, अनुवादक |
| भाषा | हिंदी, संस्कृत, ब्रज, अंग्रेजी |
| साहित्य काल | प्रेमचंदोत्तर युग |
| विधाएँ | उपन्यास, कहानी, नाटक, काव्य, आलोचना, रिपोतार्ज |
| उपन्यास | मुर्दों का टीला, विषाद मठ, घरौंदा, आँधी की नावें, कब तक पुकारू, पक्षी और आकाश आदि। |
| कहानी-संग्रह | समुंद्र के फेन, साम्राज्य का वैभव, देवदासी, अधूरी मूरत आदि। |
| नाटक | स्वर्णभूमि की यात्रा, विरुढ़क, रामानुज |
| काव्य | पिघलते पत्थर, राह के दीपक, मेधावी, रूपछाया आदि। |
| रिपोतार्ज | तूफानों के बीच |
| आलोचना | भारतीय संत परंपरा और समाज, भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका, संगम और संघर्ष, प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास आदि। |
| पुरस्कार | ‘हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार’, ‘डालमिया पुरस्कार’, ‘राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार’ |
| निधन | 12 सितंबर, 1962, मुंबई, महाराष्ट्र |
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आगरा में हुआ था जन्म
रांगेय राघव का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में 17 जनवरी, 1923 को हुआ था। वे मूल से तमिल भाषी थे और उनका मूल नाम ‘तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य’ था लेकिन साहित्य जगत में पर्दापण के पश्चात उन्होंने अपना नाम ‘रांगेय राघव’ रख लिया। उनके पिता तमिल थे जिनका नाम ‘श्री टी.एन. रंगाचार्य’ था और माता कन्नड़ थीं जिनका नाम ‘श्रीमती कनकवल्ली’ था, जो कि एक गृहणी थीं। उनका बाल्यकाल बहुत लाड़-प्यार में बीता वहीं परिवार में तीन भाइयों में सबसे छोटे होने के कारण उनपर विशेष ध्यान दिया जाता था।
हिंदी साहित्य में की पीएचडी
रांगेय राघव की आरंभिक शिक्षा घर से ही शुरू हुई। छह वर्ष की आयु तक घर में ही शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने स्कूली शिक्षा का आरंभ आगरा के ‘विक्टोरिया स्कूल’ से किया। इसके बाद उन्होंने ‘सेंट जॉन कॉलेज’ से वर्ष 1946 में बी.ए की परीक्षा पास की और वर्ष 1949 में हिंदी साहित्य में एम.ए किया। फिर वर्ष 1949 में ‘आगरा विश्वविद्यालय’ से ‘गुरु गोरखनाथ और उनका युग’ विषय पर शोध करके पीएचडी की डिग्री हासिल की
वैवाहिक जीवन
हिंदी साहित्य में पर्दापण के बाद रांगेय राघव ने आजीवन विवाह ने करने का निर्णय लिया था। वहीं 33 वर्ष तक अविवाहित रहने के बाद जब गंभीर रोग से पीड़ित होने के कारण अस्वस्थ रहने लगे तो माता की इच्छा के लिए वह विवाह करने के लिए राजी हुए। उनका विवाह हिंदी भाषी सुलोचना से 07 मई, 1956 को सीधे-साधे और पारंपरिक ढंग से संपन्न हुआ था।
अपने विवाह के समय वह 33 वर्ष के थे वहीं सुलोचना की आयु 19 वर्ष की थीं। उन दोनों की आयु में 14 वर्षों का अंतर था। किंतु विवाह के बाद भी सुलोचना जी ने अपनी पढ़ाई जारी रखी और एम.ए की डिग्री हासिल की। वहीं लगातर गिरते स्वास्थ के बाद भी रांगेय राघव साहित्य का सृजन करते रहे लेकिन वर्ष 1962 में वह कैंसर जैसे गंभीर रोग से पीड़ित हो गए। फिर भी वह जीवन के अंतिम समय तक उत्साह के साथ साहित्य में अनुपम रचनाओं का सृजन करते रहे।
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रांगेय राघव की साहित्यिक रचनाएँ
रांगेय राघव ने आधुनिक हिंदी साहित्य की कई विधाओं में अनुपम साहित्य का सृजन किया जिनमे मुख्य रूप से उपन्यास, कहानी, आलोचना, काव्य, रिपोतार्ज और नाटक विधाएँ शामिल हैं। वहीं अपने अल्प साहित्यिक जीवन में वह हिंदी साहित्य जगत को लगभग 150 साहित्यिक कृतियाँ प्रदान कर गए हैं। यहां उनकी प्रमुख साहित्यिक रचनाओं की सूची दी गई है:-
उपन्यास
| उपन्यास | प्रकाशन वर्ष |
| घरौंदे | वर्ष 1946 |
| विषाद मठ | वर्ष 1946 |
| मुर्दों का टीला | वर्ष 1948 |
| सीधा साधा रास्ता | वर्ष 1951 |
| चीवर | वर्ष 1951 |
| हुजूर | वर्ष 1952 |
| अंधरे के जुगनु | वर्ष 1953 |
| काका | वर्ष 1953 |
| भारती के सपूत | वर्ष 1954 |
| लोई का ताना | वर्ष 1954 |
| रत्ना की बात | वर्ष 1954 |
| देवकी का बेटा | वर्ष 1954 |
| यशोधरा जीत गई | वर्ष 1954 |
| उबाल | वर्ष 1954 |
| लखिमा की आँखें | वर्ष 1957 |
| बौने और घायल फूल | वर्ष 1957 |
| कब तक पुकारूँ | वर्ष 1957 |
| बंदूक और बीन | वर्ष 1958 |
| राह न रुकी | वर्ष 1958 |
| जब आवेगी काली घटा | वर्ष 1958 |
| राई और पर्वत | वर्ष 1958 |
| पक्षी और आकाश | वर्ष 1958 |
| धूनी और धुआँ | वर्ष 1959 |
| छोटी सी बात | वर्ष 1959 |
| मेरी भव बाधा हरो | वर्ष 1961 |
| आंधी की नावें | वर्ष 1961 |
| धरती मेरा घर | वर्ष 1961 |
| आग की प्यास | वर्ष 1961 |
| कल्पना | वर्ष 1961 |
| दायरे | वर्ष 1961 |
| पराया | वर्ष 1962 |
| प्रोफेसर | वर्ष 1962 |
| पतझड़ | वर्ष 1962 |
| आखिरी आवाज | वर्ष 1962 |
| प्रतिदान | अज्ञात |
| बोलते खंडहर | अज्ञात |
| पंथ का पाप | अज्ञात |
| अंधरे की भूख | अज्ञात |
कहानी-संग्रह
| कहानी-संग्रह | प्रकाशन वर्ष |
| साम्राज्य का वैभव | वर्ष 1947 |
| देवदासी | वर्ष 1947 |
| समुंद्र के फेन | वर्ष 1947 |
| जीवन के दाने | वर्ष 1947 |
| अधूरी मूरत | वर्ष 1947 |
| अंगारे न बुझे | वर्ष 1951 |
| ऐयाश मुर्दें | वर्ष 1953 |
| इंसान पैदा हुआ | वर्ष 1957 |
| पांच गधे | वर्ष 1957 |
| एक छोड़ एक | वर्ष 1963 |
| मेरी प्रिय कहानियाँ | वर्ष 1963 |
नाटक
| नाटक | प्रकाशन वर्ष |
| स्वर्गभूमि की यात्री | वर्ष 1951 |
| रामानुज | वर्ष 1952 |
| विरुढ़क | वर्ष 1955 |
आलोचना
| आलोचना | प्रकाशन वर्ष |
| भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका | वर्ष 1946 |
| भारतीय संत परंपरा और समाज | वर्ष 1949 |
| संगम और संघर्ष | वर्ष 1953 |
| प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास | वर्ष 1953 |
| प्रगतिशील साहित्य के मापदंड | वर्ष 1954 |
| समीक्षा और आदर्श | वर्ष 1955 |
| काव्य यथार्थ और प्रगति | वर्ष 1955 |
| काव्य कला और शास्त्र | अज्ञात |
| महाकाव्य का विवेचन | वर्ष 1958 |
| तुलसी का कला शिल्प | अज्ञात |
| आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम और श्रृंगार | अज्ञात |
| आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली | अज्ञात |
| गोरखनाथ और उनका युग | वर्ष 1958 |
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रिपोतार्ज
- तूफानों के बीच – बंगाल के अकाल पर लिखा गया रिपोतार्ज
काव्य-संग्रह
- पिघलते पत्थर
- श्यामला
- अजेय
- खंडहर
- मेधावी
- राह के दीपक
- पांचाली
- रूप छाया
अनुवाद
रांगेय राघव ने आधुनिक हिंदी साहित्य में कई विधाओं में साहित्य सृजन के साथ साथ अनुवाद विधा में भी अपना विशेष कौशल दिखाया हैं। उन्होंने ने केवल अंग्रेजी की कई रचनाओं का अनुवाद किया बल्कि संस्कृत की भी 40 से अधिक रचनाओं का सरल हिंदी भाषा में अनुवाद किया। जिसमें मुख्य रूप से ‘मुद्राराक्षस’, ‘ऋतु संहार’, ‘मेघदूत’, ‘दशकुमार चरित’ और ‘मृच्छकटिकम्’ शामिल हैं। वहीं, अंग्रेजी की रचनाओं में मुख्य रूप से ‘विलियम शेक्सपीयर’ के नाटक ‘ऑथेलो’, ‘हैमलेट’, ‘वेनिस का सौदागर’, ‘बारहवीं रात’, ‘मैकबेथ’, ‘रोमियो-जूलियट’, ‘जैसा तुम चाहो’, ‘जूलियस-सीजर’ और ‘सम्राट लियर’ का अनुवाद किया।
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पुरस्कार एवं सम्मान
रांगेय राघव को साहित्यिक योगदान के लिए अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जैसे:
- वर्ष 1947 में रांगेय राघव को प्रबंध काव्य ‘मेघावी’ के लिए ‘हिंदूस्तानी अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 1953 में प्रकाशित पुस्तक ‘भारतीय परंपरा और इतिहास’ के लिए उन्हें प्रतिष्ठित ‘डालमिया पुरस्कार’ प्रदान किया गया था।
- लोकप्रिय उपन्यास ‘कब तक पुकारूँ’ के लिए उन्हें वर्ष 1959 में ‘उत्तर प्रदेश सरकार’ द्वारा पुरस्कृत किया गया था। इस उपन्यास पर दूरदर्शन पर धारावाहिक भी बन चुका है।
- वर्ष 1961 में ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’ के लिए उन्हें ‘राजस्थान साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 1966 में उन्हें मरणोपरांत ‘महात्मा गांधी पुरस्कार’ से गौरवान्वित किया गया था।
39 वर्ष की आयु में हुआ निधन
रांगेय राघव ने अपने साहित्यिक जीवन में आधुनिक हिंदी साहित्य-जगत को अनेक अनुपम रचनाएं दीं। अल्प आयु के बावजूद उन्होंने अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियां रचकर अपने आप को कालजयी लेखक के रूप में स्थापित किया। उनका ऐतिहासिक उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’, आंचलिक उपन्यास ‘कब तक पुकारूँ’, कहानी ‘गदल’ और रिपोर्ताज ‘तूफानों के बीच’ आज भी हिंदी साहित्य में मील के पत्थर के रूप में मानी जाती हैं।
किशोरावस्था से ही लगातार खराब स्वास्थ्य के कारण व जीवन के अंतिम समय में कैंसर की गंभीर बीमारी होने से उनकी 39 वर्ष की अल्प आयु में 12 सितंबर 1962 को मृत्यु हो गई। किंतु उनकी रचनाओं के लिए उन्हें हिंदी सहित्य जगत में हमेशा याद किया जाता रहेगा।
FAQs
रांगेय राघव का मूल नाम तिरुमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य था, लेकिन साहित्य में उन्हें रांगेय राघव के नाम से जाना जाता है।
17 जनवरी, 1923 को रांगेय राघव का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में हुआ था।
यह रांगेय राघव का प्रथम उपन्यास था जिसका प्रकाशन वर्ष 1946 में हुआ था।
रांगेय राघव ने विलियम शेक्सपियर के कई नाटकों का हिंदी भाषा में सरल अनुवाद किया था। इसलिए उन्हें हिंदी साहित्य का ‘शेक्सपियर’ भी कहा जाता है।
रांगेय राघव का 39 वर्ष की अल्प आयु में लंबी बीमारी के कारण 12 सितंबर 1962 को निधन हुआ था।
वर्ष 1946 में रांगेय राघव ने ‘पिघलते पत्थर’ नामक काव्य-संग्रह की रचना की थी।
आशा है कि आपको प्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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