Kumbhalgarh Durg का निर्माण महाराणा कुम्भा ने सन 1459 में कराया था। इस किले को जीतना लगभग असंभव ही था। इसके चारों तरफ एक बड़ी दीवार बनी हुई है। यह चीन की महान दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है। इस किले की दीवार लगभग 36 किलोमीटर है। यह किला यूनेस्को की लिस्ट में भी शामिल है। यहाँ kumbhgarh durg के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।
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कुंभलगढ़ दुर्ग का इतिहास
कुछ इतिहासकारों का ऐसा मत है कि मौर्य सम्राट अशोक के बेटे सम्प्रति ने इस दुर्ग का निर्माण करवाया था। कालांतर में कई हमले झेलने के बाद यह किला खंडित हो गया। इसके बाद राजा राणा कुम्भा ने इसके अवशेषों पर ही सन 1443 में कुम्भलगढ़ के किले का निर्माण कराया था। यह सन 1458 में पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ।
कुम्भलगढ़ के किले की स्थापत्य कला
यहाँ Kumbhalgarh Durg की स्थापत्य कला के बारे में बताया जा रहा है :
- दुर्ग की प्राचीर 36 मील लम्बी व 7 मीटर चौड़ी है जिस पर चार घुड़सवार एक साथ चल सकते हैं, इसलिए इसे भारत की महान दीवार के नाम से जाना जाता है।
- किले के उत्तर की तरफ का पैदल रास्ता ‘टूट्या का होड़ा’ तथा पूर्व की तरफ हाथी गुढ़ा की नाल में उतरने का रास्ता दाणीवहा’ कहलाता है। किले के पश्चिम की तरफ का रास्ता ‘हीराबारी’ कहलाता है जिसमें थोड़ी ही दूर पर किले की तलहटी में महाराणा रायमल के ‘कुँवर पृथ्वीराज की छतरी’ बनी है, इसे ‘उड़ना राजकुमार’ के नाम से जाना जाता है। पृथ्वीराज स्मारक पर लगे लेख में पृथ्वीराज के घोड़े का नाम ‘साहण’ दिया गया है।
- किले में घुसने के लिए आरेठपोल, हल्लापोल, हनुमानपोल तथा विजयपाल आदि दरवाजे हैं। कुम्भलगढ़ के किले के भीतर एक छोटा दुर्ग कटारगढ़’ स्थित है जिसमें ‘झाली रानी का मालिया’ महल प्रमुख है।
- नीलकंठ महादेव मंदिर,चांमुडाली देवी का मंदिर प्राचीन काल से लेकर वर्तमान समय तक सुरक्षित और भव्य है।
- इस दुर्ग मे क़रीब 60 से अधिक हिंदू और जैन मंदिर बने हुऐ हैं।
कुम्भलगढ़ किले के बारे में रोचक तथ्य
यहाँ Kumbhalgarh Durg से जुड़े कुछ रोचक तथ्य दिए जा रहे हैं :
- कुछ इतिहसकारों के अनुसार इस किले को राणा कुंभा के द्वारा नहीं तैयार करवाया गया था बल्कि लोगों के अनुसार यह किला 15 वीं शताब्दी के पहले से ही मौजूद था। सबूतों के अंतर्गत प्रारंभिक किले का निर्माण मौर्य काल में छठी शताब्दी में हुआ था और ऐसा करने वाले राजा का नाम राजा संप्रति था जिन्होंने इस किले का नाम मचंद्रपुर रखा था और फिर तत्कालीन किले का निर्माण राणा कुंभा के द्वारा करवाया गया था।
- जब इस किले का निर्माण चल रहा था उस समय इस किले की एक दीवार बनने से पहले ही गिर गई थी जिसने इस किले के निर्माण में एक बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न कर दी थी। फिर एक साधु के कहने पर मानव बलि दी गई जिसके बाद इस किले का निर्माण कार्य दोबारा शुरू हो गया।
- जिस इंसान की बलि दी गई थी उसका नाम मेहर बाबा था। बलि देने के लिए मेहर बाबा का सर धड़ से अलग कर दिया गया था। जहाँ मेहर बाबा का सर गिरा था वहां मेहर बाबा का मंदिर बनाया गया।
- 19वीं शताब्दी के अंत होते-होते राणा फतेह सिंह ने फिर से किले का पुनरुत्थान करवाना चालू किया। कुंभलगढ़ का यह किला मेवाड़ के प्रतापी शासकों के संघर्ष का साक्षात गवाह है।
कुम्भलगढ़ के किले की विशेषताएं
यहाँ कुम्भलगढ़ के किले की विशेषताओं के बारे में बताया जा रहा है :
- इस किले की ऊंचाई समुद्र तल से तकरीबन 1914 मीटर है।
- इस किले की कुल लम्बाई 36 किलोमीटर है।
- इस किले की दीवार चीन की दीवार के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है।
- इतनी बड़ी दीवार होने के कारण ही इस किले पर विजय प्राप्त करना लगभग संभव था।
- इसकी चौड़ाई इतनी है कि एक साथ 4 घोड़े जा सकते हैं।
- कुम्भलगढ़ के किले में कुल 7 द्वार हैं।
- कुम्भलगढ़ के किले में कुल 360 मंदिर मौजूद हैं।
कुम्भलगढ़ के किले पर होने वाले आक्रमण
यहाँ कुम्भलगढ़ के किले पर होने वाले आक्रमणों के बारे में बताया जा रहा है :
- सबसे पहले इस किले पर अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा इस किले पर हमला किया गया।
- उसके बाद इस किले पर दूसरा हमला अहमद शाह ने किया है जोकि गुजरात का था परंतु उसे भी असफलता ही हाथ लगी।
- हालांकि अहमद शाह बन माता मंदिर को तोड़ने में कामयाब हो गया था। परंतु ऐसा भी कहा जाता है कि किले में मौजूद देवताओं ने किले को अन्य नुकसान होने से बचाया। साल 1458, 1459 और 1467 में महमूद खिलजी ने भी इस किले पर आक्रमण किया परंतु किले को जीतने में नाकामयाब रहा।
- इसके अलावा अकबर, मारवाड़ का राजा उदय सिंह, राजा मानसिंह और गुजरात के मिर्जा ने भी इस किले पर भयंकर आक्रमण किया परंतु कोई भी इस विशाल किले को जितने में कामयाब नहीं हो पाया।
- कुंभलगढ़ के किले को सिर्फ एक ही लड़ाई में हार का सामना करना पड़ा था और उसके पीछे वजह थी पानी की कमी होना।
FAQs
कुम्भलगढ़ किला 15वीं शताब्दी में बनाया गया था और इसका निर्माण 500 साल से अधिक पहले किया गया था।
कुम्भलगढ़ का किला महाराणा प्रताप की जन्मस्थली है। भी इसकी प्रसिद्धि का एक प्रमुख कारण ही है।
कुम्भलगढ किले को मेवाड की आँख कहते हैं।
आशा है कि आपको Kumbhalgarh Durg के बारे में पता चल गया होगा। इसी प्रकार के अन्य ऐतिहासिक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।