भारतीय साहित्य की अविरल धारा से समाज को कला और साहित्य के विहंगम दृश्य दिखाने, साहित्य से सभ्यताओं का मार्गदर्शन करने और मानव का प्रेरित करने में हिंदी भाषा ने एक मुख्य भूमिका निभाई है। ‘हिंदी भाषा में लिखी लोकप्रिय कविताएं’ दोनों ही माध्यमों से हिंदी भाषा ने समाज को जागरूक करने और संसार को सत्य की राह दिखाने का काम किया है। मातृभाषा हिंदी पर कविता केवल भाषा की सुंदरता को ही नहीं दर्शाती, बल्कि ये तो हमारी सांस्कृतिक धरोहर और पहचान को भी प्रतिबिंबित करती हैं। हिंदी साहित्य में कई प्रसिद्ध कवियों ने हिंदी भाषा पर कविताएं लिखी हैं, जो आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं। इस ‘हिन्दी दिवस’ पर आप इस ब्लॉग में हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं पढ़कर अपने सपनों और अपने साहस को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
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हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं
हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं हर समय-हर सदी में प्रासंगिक बनकर समाज का मार्गदर्शन करती हैं। मातृभाषा हिंदी पर कविता को पढ़कर आप हिंदी भाषा के महत्व और इसके व्यापक साहित्य के बारे में आसानी से जान पाएंगे। मातृभाषा हिंदी पर कविता कुछ इस प्रकार हैं –
भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में
प्लास्टिक के पेड़ नाइलॉन के फूल रबर की चिड़ियाँ टेप पर भूले-बिसरे लोकगीतों की उदास लड़ियाँ... एक पेड़ जब सूखता सबसे पहले सूखते उसके सबसे कोमल हिस्से उसके फूल उसकी पत्तियाँ एक भाषा जब सूखती शब्द खोने लगते अपना कवित्व भावों की ताज़गी विचारों की सत्यता बढ़ने लगते लोगों के बीच अपरिचय के उजाड़ और खाइयाँ... सोच में हूँ कि सोच के प्रकरण में किस तरह कुछ कहा जाए कि सबका ध्यान उनकी ओर हो जिनका ध्यान सबकी ओर है कि भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में आग यदि लगी तो पहले वहाँ लगेगी जहाँ ठूँठ हो चुकी होंगी अपनी ज़मीन से रस खींच सकनेवाली शक्तियाँ। - कुँवर नारायण
उर्दू को उत्तर
न बीबी बहुत जी में घबराइए, सम्हलिए ज़रा होश में आइए कहो क्या पड़ी तुम पे उफ़ताद है, सुनाओ मुझे कैसी फ़रियाद है। किसी ने तुम्हारा बिगाड़ा है क्या? सुनूँ हाल मैं भी उसका ज़रा न उठती में यों मौत का नाम लो, कहाँ सौत, मत सौत का नाम लो। बहुत तुम पे हैं मरने वाले यहाँ, तुम्हारी है मरने की बारी कहाँ? बहुत बहकी-बहकी न बातें करो, न साए से तुम आप अपने डरो। ज़रा मुँह पे पानी के छींटें लगाव, यह सब रात-भर की ख़ुमारी मिटाव। तुम्हारी ही है हिंद में सबको चाह, तुम्हारे ही हाथों है सबका निबाह। तुम्हारा ही सब आज भरते हैं दम; यह सच है, तुम्हारे ही सिर की क़सम। तुम्हारी ही ख़ातिर हैं छत्तीस भोग, कि लट्टू हैं तुम पे ज़माने के लोग। जो हैं चाहते उन पे रीझो रिझाव, कोई कुछ जो बैंडी कहे सौ सुनाव। वही पहनो जो कुछ हो तुमको पसंद, कसो और भी चुस्त महरम के बंद। करो और कलियों का पाजामा चुश्त, वह धानी दुपट्टा वह नकसक दुरुस्त। वह दाँतों में मिस्सी घड़ी पर घड़ी, रहे आँख आईने ही से लड़ी। कड़े को कड़े से बजाती फिरो, वह बाँकी अदाएँ दिखाती फिरो। मगर इतना जी में रखो अपने ध्यान, यह बाज़ारी पोशाक है मेरी जान। जना था तुम्हें माँ ने बाज़ार में, पली शाहआलम के दरबार में। मिली तुमको बाज़ारी पोशाक भी, वह थी दोगले काट की फ़ारसी। वह फिर और भी कटती छटती चली, बजे रोज़ उसकी पलटती चली। वही तुमको पोशाक भाती है अब, नहीं और कोई सुहाती है अब। मगर एक सुन आज मतलबी बात, न पिछला वह दिन है न पिछली वह रात। किया है तलब तुमको सरकार ने, तुम आई हो अँग्रेज़ी दरबार में। सो अब छोड़िए शौक़ बाज़ार का, अदब कीजिए कुछ तो दरबार का। अदब की जगह है यह दरबार है, कचहरी है यह कुछ न बाज़ार है। यहाँ आई हो आँख नीची करो, मटकने चटकने पे अब मत मरो। यहाँ पर न झाँझों को झनकाइए, दुपट्टे को हरगिज़ न खिसकाइए। न कलियों की अब यां दिखाओ बहार, कभी यां पे चलिए न सीना उभार। वह सब काम कोठे पे अपने करो, यहाँ तो अदब ही को सिर पर धरो। यह सरकार ने दी है जो नागरी, इसे तुम न समझो निरी घाघरी। तुम्हारी यह हरगिज़ नहीं सौत है, न हक़ में तुम्हारे कभी मौत है। समझ लो अदब की यह पोशाक है, हया और इज़्ज़त की यह नाक है। अदब और हुर्मत की चादर है यह, चढ़ो गोद में मिस्ले मादर है यह। यही आपकी माँ की पोशाक थी, यह आज़ाद से पूछना तुम कभी। इनायत है तुम पे यह सरकार की, तुम्हें दूसरी उसने पोशाक दी। बुराई न इसकी करो दूबदू, बढ़ाएगी हरदम यही आबरू। पुरानी भी है वह तुम्हारे ही पास, उसे भी पहन लो रहो बेहिरास। करो शुक्रिया जी से सरकार का, कि उसने सिखाई है तुमको हया। - बालमुकुंद गुप्त
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल। अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन। उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय। निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय। इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग। और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात। तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय। विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार। भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात। सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय। - भारतेंदु हरिश्चंद्र
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मातृभाषा
“मानव का कल्याण करती है प्रकाशित सारा संसार करती है मातृभाषा करती है सभ्यताओं को सुशोभित मातृभाषा ही विश्व का उद्धार करती है जीवन में ज्ञान के प्रकाश को प्रज्वलित कर अज्ञानता के अन्धकार का समूल नाश करती है अंतर्मन की ध्वनि को भौतिक स्वरुप देकर मातृभाषा भावनाओं का श्रृंगार करती है मातृभाषा के सम्मान से ही होती नर की जयकार है मातृभाषा पर हर नर का होता समान अधिकार है…” - मयंक विश्नोई
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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं पढ़ पाए होंगे। मातृभाषा हिंदी पर कविता के माध्यम से आप अपने परिजनों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं भी दे सकते हैं। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।