हर दौर में कुछ ऐसे कवि, शायर, ग़ज़ल लिखने वाले हुए हैं, जिनकी साहित्य की समझ ने समाज को एक अलग ही नज़रिया दिया है। ऐसे ही शायरों में से एक “फ़ैज़ अहमद फ़ैज़” भी थें, जिन्होंने हिंदी-उर्दू साहित्य को नए आयाम पर ले जाने का काम किया है। फैंज़ अहमद फ़ैज़ के शब्द आज भी साहित्य के आँगन में युवाओं का परिचय साहस से करवाते हैं। कविताएं ही सभ्यताओं का गुणगान करते हुए मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। इसी कड़ी में Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविताएं) भी आती हैं, जिन्हें पढ़कर विद्यार्थियों को प्रेरणा मिल सकती है, जिसके बाद उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं।
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कौन थे फ़ैज़ अहमद फ़ैज़?
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविताएं) पढ़ने सेे पहले आपको फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय हिंदी-उर्दू साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ भी हैं, जिन्होंने उर्दू के एक महान शायर होने का सम्मान जीवनभर प्राप्त किया। उनकी शायरियां, नज़्में और ग़ज़लें आज भी उर्दू साहित्य की शान हैं।
13 फरवरी 1911 को फैंज़ अहमद फ़ैज़ का जन्म सियालकोट, पंजाब में हुआ था। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने अंग्रेजी और अरबी में एम.ए. किया और लाहौर विश्वविद्यालय में पढ़ाया। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल हुए, लेकिन विभाजन के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने ‘इमरोज़’ और ‘पाकिस्तान टाइम्स’ का संपादन किया। राजनीतिक कारणों से कई बार उन्हें गिरफ्तार किया गया। 20 नवंबर 1984 को सदी के सुप्रसिद्ध शायर फैंज़ अहमद फ़ैज़ का लाहौर में निधन हुआ।
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निसार मैं तेरी गलियों के
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविताएं) आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “निसार मैं तेरी गलियों के” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
निसार मैं तिरी गलियों के ऐ वतन कि जहाँ चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले जो कोई चाहने वाला तवाफ़ को निकले नज़र चुरा के चले जिस्म ओ जाँ बचा के चले है अहल-ए-दिल के लिए अब ये नज़्म-ए-बस्त-ओ-कुशाद कि संग-ओ-ख़िश्त मुक़य्यद हैं और सग आज़ाद बहुत है ज़ुल्म के दस्त-ए-बहाना-जू के लिए जो चंद अहल-ए-जुनूँ तेरे नाम-लेवा हैं बने हैं अहल-ए-हवस मुद्दई भी मुंसिफ़ भी किसे वकील करें किस से मुंसिफ़ी चाहें मगर गुज़ारने वालों के दिन गुज़रते हैं तिरे फ़िराक़ में यूँ सुब्ह ओ शाम करते हैं बुझा जो रौज़न-ए-ज़िंदाँ तो दिल ये समझा है कि तेरी माँग सितारों से भर गई होगी चमक उठे हैं सलासिल तो हम ने जाना है कि अब सहर तिरे रुख़ पर बिखर गई होगी ग़रज़ तसव्वुर-ए-शाम-ओ-सहर में जीते हैं गिरफ़्त-ए-साया-ए-दीवार-ओ-दर में जीते हैं यूँही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़ न उन की रस्म नई है न अपनी रीत नई यूँही हमेशा खिलाए हैं हम ने आग में फूल न उन की हार नई है न अपनी जीत नई इसी सबब से फ़लक का गिला नहीं करते तिरे फ़िराक़ में हम दिल बुरा नहीं करते गर आज तुझ से जुदा हैं तो कल बहम होंगे ये रात भर की जुदाई तो कोई बात नहीं गर आज औज पे है ताला-ए-रक़ीब तो क्या ये चार दिन की ख़ुदाई तो कोई बात नहीं जो तुझ से अहद-ए-वफ़ा उस्तुवार रखते हैं इलाज-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार रखते हैं
-फैंज़ अहमद फ़ैज़
भावार्थ : इस ग़ज़ल के माध्यम से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ देशभक्तिपूर्ण गीत की ऐसी रचना करते हैं, जो वतन के प्रति प्रेम और समर्पण को व्यक्त करता है। इस ग़ज़ल में शायर का वक्ता अपने वतन की गलियों में घूमने और उसकी हर चीज़ को देखने के आनंद को याद करने में निकलता है। ग़ज़ल के माध्यम से शायर बताना चाहते हैं कि वह अपने वतन की मिट्टी को चूमना चाहता है और उसकी धूल को अपनी आँखों में लगाना चाहता है। यह ग़ज़ल देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत होकर लिखी गयी है।
हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविताएं) आपके नज़रिए को नया आयाम देंगी। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
हम मुसाफ़िर यूँही मसरूफ़-ए-सफ़र जाएँगे बे-निशाँ हो गए जब शहर तो घर जाएँगे किस क़दर होगा यहाँ मेहर-ओ-वफ़ा का मातम हम तिरी याद से जिस रोज़ उतर जाएँगे जौहरी बंद किए जाते हैं बाज़ार-ए-सुख़न हम किसे बेचने अलमास-ओ-गुहर जाएँगे नेमत-ए-ज़ीस्त का ये क़र्ज़ चुकेगा कैसे लाख घबरा के ये कहते रहें मर जाएँगे शायद अपना भी कोई बैत हुदी-ख़्वाँ बन कर साथ जाएगा मिरे यार जिधर जाएँगे 'फ़ैज़' आते हैं रह-ए-इश्क़ में जो सख़्त मक़ाम आने वालों से कहो हम तो गुज़र जाएँगे
-फैंज़ अहमद फ़ैज़
भावार्थ : इस ग़ज़ल के माध्यम से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ अपने जीवन की यात्रा और मृत्यु की अनिवार्यता पर केंद्रित रहते हैं। ग़ज़ल में शायर बताते हैं कि वह जीवन को एक यात्रा के रूप में देखता है, जिसमें हम सभी यात्री हैं। शायर कहते हैं कि हम सभी को एक दिन इस दुनिया से जाना होगा, इसलिए हमें जीवन का आनंद लेना चाहिए। ग़ज़ल के माध्यम से शायर का मकसद यह बताना है कि वह मृत्यु से नहीं डरते, क्योंकि वह मानते हैं कि मृत्यु जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा है।
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi आपको परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
हम पर तुम्हारी चाह का इल्ज़ाम ही तो है दुश्नाम तो नहीं है ये इकराम ही तो है करते हैं जिस पे ता'न कोई जुर्म तो नहीं शौक़-ए-फ़ुज़ूल ओ उल्फ़त-ए-नाकाम ही तो है दिल मुद्दई के हर्फ़-ए-मलामत से शाद है ऐ जान-ए-जाँ ये हर्फ़ तिरा नाम ही तो है दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-तक़दीर तो नहीं दस्त-ए-फ़लक में गर्दिश-ए-अय्याम ही तो है आख़िर तो एक रोज़ करेगी नज़र वफ़ा वो यार-ए-ख़ुश-ख़िसाल सर-ए-बाम ही तो है भीगी है रात 'फ़ैज़' ग़ज़ल इब्तिदा करो वक़्त-ए-सरोद दर्द का हंगाम ही तो है
-फैंज़ अहमद फ़ैज़
भावार्थ : इस ग़ज़ल के माध्यम से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ प्रेम, आरोप और दर्द की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ अपनी प्रेयसी पर उसके प्रति प्रेम का आरोप लगाने के लिए नाराज है। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कहते हैं कि वह उससे प्यार करते हैं, लेकिन वह उस पर विश्वास नहीं करती। इस ग़ज़ल के माध्यम से वह बताना चाहते हैं कि वह दर्द और पीड़ा में है, और वह चाहते हैं कि उनकी प्रेमिका भी उनसे प्यार करे।
आप की याद आती रही रात भर
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi आपका परिचय प्रेम के अनूठे स्वरुप से करवाएंगी, साथ ही आपको प्रेम के प्रति निष्ठावान रहना सिखाएंगी फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “आप की याद आती रही रात भर” भी है, यह कुछ इस प्रकार है:
आप की याद आती रही रात भर' चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर गाह जलती हुई गाह बुझती हुई शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन कोई तस्वीर गाती रही रात भर फिर सबा साया-ए-शाख़-ए-गुल के तले कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर जो न आया उसे कोई ज़ंजीर-ए-दर हर सदा पर बुलाती रही रात भर एक उम्मीद से दिल बहलता रहा इक तमन्ना सताती रही रात भर
-फैंज़ अहमद फ़ैज़
भावार्थ : इस ग़ज़ल के माध्यम से फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ प्रेम की सुंदरता को परिभाषित करते हैं। यह ग़ज़ल प्रेम की सुंदरता और आकर्षण को व्यक्त करती है, जिसमें शायर अपनी प्रेमिका की याद में रात भर जागता रहता है। इस ग़ज़ल के माध्यम से शायर प्रेम में पैदा हुई उस पीड़ा को बताना चाहते हैं, जिसकी गवाही चाँदनी रात में देती है और इस पीड़ा को और भी अधिक बढ़ा देती है। शायर इस ग़ज़ल के माध्यम से अपनी प्रेमिका से मिलने की इच्छा को भी जगजाहिर करते हैं।
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी
Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi आपको प्रेरित करेंगी, साथ ही आपका उर्दू साहित्य से करवाएंगी। फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ जी की महान रचनाओं में से एक रचना “कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
कब ठहरेगा दर्द ऐ दिल कब रात बसर होगी सुनते थे वो आएँगे सुनते थे सहर होगी कब जान लहू होगी कब अश्क गुहर होगा किस दिन तिरी सुनवाई ऐ दीदा-ए-तर होगी कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ाना कब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी वाइ'ज़ है न ज़ाहिद है नासेह है न क़ातिल है अब शहर में यारों की किस तरह बसर होगी कब तक अभी रह देखें ऐ क़ामत-ए-जानाना कब हश्र मुअ'य्यन है तुझ को तो ख़बर होगी
-फैंज़ अहमद फ़ैज़
भावार्थ : यह ग़ज़ल एक सुप्रसिद्ध ग़ज़ल “नौबहार” का हिस्सा है। इस ग़ज़ल के माध्यम से शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ दर्द, पीड़ा और विरह की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। इस ग़ज़ल में फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ अपने दिल के दर्द और रात की लंबाई से परेशान है। इस ग़ज़ल में फ़ैज़ अपनी प्रेमिका के आने का इंतजार कर रहें हैं, जो उसकी पीड़ा को कम कर सकती है। साथ ही वह जानना चाहते हैं कि उनकी प्रेमिका कब आएगी और उनकी आँखों के आँसू कब सूखेंगे।
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आशा है कि Faiz Ahmad Faiz Poetry in Hindi (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की कविताएं) के माध्यम से आप फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की सुप्रसिद्ध कविताओं को पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।