भारत का राष्ट्रीय ध्वज हमारे देश की शान और गौरव का प्रतीक है। इसमें शामिल तीन रंगों (केसरिया, सफेद और हरा) के कारण इसे तिरंगा कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत का राष्ट्रीय ध्वज हमेशा ऐसा नहीं था? भारत के झंडे का स्वरूप आज तक कई बार बदला गया है। बता दें कि भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को वर्तमान स्वरुप देने में पिछले 117 सालों में 6 बार बदलाव किया। बता दें कि वर्तमान ध्वज में शामिल केसरिया रंग त्याग और बलिदान का, सफ़ेद रंग शांति और हरा रंग हरियाली का प्रतीक है। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के मध्य में सुसज्जित अशोक चक्र हमें निरंतर गतिशील और प्रयासरत रहने के लिए प्रेरित करती हैं। इस लेख में आपको यह जानने का अवसर मिलेगा कि भारत का झंडा कितनी बार बदला गया है?
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भारत का झंडा कितनी बार बदला गया?
भारत के झंडे को 117 सालों में अब तक कुल 6 बार बदला जा चुका है। यह अलग अलग रूपों में हमारे सामने आ चुका है। तिरंगे का जो स्वरुप हम आज देखते हैं वह भारतीय स्वतंत्रता सैनानी और राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य पिंगली वेंकैया के द्वारा डिज़ाइन किया गया था। इस झंडे को 22 जुलाई 1947 के दिन संविधान सभा की बैठक में स्वतंत्र भारत के झंडे के रूप में स्वीकार किया गया।
वर्ष 1906 का झंडा
वर्ष 1906 में कलकत्ता में भारत का पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। उस समय के राष्ट्रीय ध्वज की बनावट बहुत भिन्न थी। इस झंडे में तीन रंगों हरे, पीले और लाल रगों की पट्टियाँ बनाई गई थीं। ऊपर की हरी पट्टी में 8 कमल के फूल थे। ये सफ़ेद रंग के थे। बीच की पट्टी पर वंदे मातरम् लिखा हुआ था। सबसे नीचे वाली पट्टी पर सफ़ेद रंग के चाँद और सूरज बने हुए थे।
वर्ष 1907 का झंडा
एक साल बाद ही वर्ष 1907 में देश के लिए दूसरा झंडा प्रस्तावित किया गया। यह झंडा भीकाजीकामा ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर तैयार किया था। इस झंडे में केसरिया, पीले और हरे रंग की तीन पट्टियां थीं। बीच में वंदे मातरम लिखा हुआ था। इसमें चाँद, सूरज और 8 सितारे बने हुए थे।
वर्ष 1917 का झंडा
इसके एक दशक बाद 1917 में देश के लिए एक और झंडा प्रस्तावित किया गया। यह नया झंडा एनी बेसेंट और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने तैयार किया था। इस झंडे में पांच लाल रंग की और चार हरे रंग की पट्टी थीं। झंडे के आखिर की तरफ काले रंग में त्रिकोणनुमा आकृति बनी थी। वहीं, बाएं तरफ के कोने में यूनियन जैक का चिन्ह भी बना हुआ था। इसमें चांद और तारे के साथ सप्तऋषि के रूप में सात तारे भी बनाए गए थे।
वर्ष 1921 का झंडा
वर्ष 1921 में विजयवाड़ा में कांग्रेस की एक बैठक में किसी व्यक्ति ने गांधी जी को एक झंडा दिया। यह लाल रंग का बना हुआ था। गांधी ने इस झंडे में बदलाव करते हुए इसमें सफ़ेद रंग की पट्टी जोड़ दी। इसमें उन्होंने बीच में चरखा भी अंकित किया था।
वर्ष 1931 का झंडा
वर्ष 1931 में फिर से एक और तिरंगा झंडा तैयार किया गया। इस झंडे में सबसे ऊपर केसरिया रंग, बीच में श्वेत रंग और अंत में हरे रंग की पट्टी बनी हुई थी। इसके बीच में एक छोटा सा चरखा भी बना हुआ था। इस झंडे को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से स्वीकार किया था।
वर्ष 1947 में मिला आज का तिरंगा
वर्ष 1947 में भारत को तिरंगे का वह स्वरुप मिला जो हम आज देखते हैं। इसे 22 जुलाई 1947 के दिन संविधान सभा की बैठक में राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता मिली। इसे स्वतंत्रता सैनानी पिंगली वेंकैया ने डिजाइन किया था। उन्होंने बहुत ही सूझबूझ के साथ इसमें रंगों का समावेश किया। तिरंगे में सबसे ऊपर केसरिया रंग होता है। यह शौर्य और बलिदान का प्रतीक है। बीच में सफ़ेद रंग होता है जो कि शांति का प्रतीक है। सबसे नीचे हरा रंग होता है जो कि हरियाली और सुख समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके बीच में दर्शाया गया अशोक चक्र सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ से लिया गया है। यह कर्तव्य का प्रतीक है।
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भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में बदलाव का महत्व
भारतीय राष्ट्रीय ध्वज में बदलाव का महत्व नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है –
- राष्ट्रीय ध्वज में 1906 में हुआ बदलाव स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत का प्रतीक है।
- झंडे में हुआ वर्ष 1921 में हुआ बदलाव महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित चरखा, स्वदेशी आंदोलन और आत्मनिर्भरता का संदेश देता है।
- वर्ष 1947 का झंडा ही आज तक झंडे का मूल स्वरुप है। इस बदलाव में अशोक चक्र का समावेश, भारत की प्राचीन संस्कृति और न्याय का प्रतीक देखने को मिलता है।
- तिरंगा राष्ट्रीय एकता और विविधता का भी प्रतीक है, इसके साथ ही यह स्वतंत्रता संग्राम की गाथा गाता है।
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