कक्षा 10 में कई महत्वपूर्ण कहानियां और पाठ हैं। इन्हीं महत्वपूर्ण कहानियों में से एग्जाम में प्रश्न आते हैं। उनमें से ही एक महत्वपूर्ण पाठ है, बालगोबिन भगत। बालगोबिन भगत के इस लेख में लेखक परिचय, पाठ का सार, कठिन शब्दार्थ आदि पाठन सामग्री मौजूद हैं। जिसे जानने के लिए ये लेख आपको अंत तक पढ़ना होगा।
उससे पहले बालगोबिन भगत कक्षा 10 से संबंधित कुछ प्रमुख जानकारी आप नीचे दिए गए टेबल में देख सकते हैं।
क्लास | 10 |
विषय | हिंदी क्षितिज |
किताब | क्षितिज भाग 2 |
पाठ संख्या | 08 |
पाठ का नाम | बालगोबिन भगत |
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लेखक परिचय
रामवृक्ष बेनीपुरी
रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में सन् 1889 में हुआ था। बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के कारण, आरम्भिक वर्ष अभावों-कठिनाइयों और संघर्षों में बीते। दसवीं तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे सन 1920 में राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन में सक्रीय रूप से जुड़ गए। कई बार जेल भी गए।इनकी मृत्यु सन 1968 में हुई।
प्रमुख कार्य
- उपन्यास – पतितों के देश में
- कहानी – चिता के फूल
- नाटक – अंबपाली
- रेखाचित्र – माटी की मूरतें
- यात्रा-वृत्तांत – पैरों में पंख बांधकर
- संस्मरण– जंजीरें और दीवारें ।
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बालगोबिन भगत क्लास 10: पाठ सारांश
- कहानी की शुरुआत में लेखक ने बालगोबिन भगत की शारीरिक बनावट के बारे में बताया है जो कद काठी से मझोला है चेहरा गोरा चिट्टा तथा साठ से ऊपर की उम्र लगती है। उसके बाल पके हुए हैं, चेहरा सफेद बालों से जगमग है वह कमर पर लंगोटी बांधे तथा कबीरपंथीयों की टोपी सिर पर पहने रहते हैं। सर्दियों में एक कंबल ले लेता है, बाकी समय उसे कंबल की आवश्यकता या किसी अन्य अतिरिक्त वस्त्र की आवश्यकता नहीं होती।
- मस्तक पर चंदन का लेप, गले में तुलसी की माला पहने उसके वेशभूषा का वर्णन किया गया है। वह कोई साधु या महात्मा नहीं किंतु सत्संग के माध्यम से जो उसे ज्ञान प्राप्त होता है उसे अपने जीवन में अपनाता है तथा उसका निर्वाह करता है। वह अपना घर, मकान अन्य सामाजिक लोगों से भी अधिक साफ सुथरा रखता है। बालगोबिन तथा उसके घर को देखने से यह लगता है जैसे वह बहुत बड़ा साधु महात्मा हो, जबकि वह जाति का तेली है। उसके पास थोड़ी बहुत जमीनें हैं, किंतु वह कबीरपंथी आचरण के कारण कभी झूठ नहीं बोलता किसी का दिल नहीं दुखाता, व्यवहार का मृदु है, सामाजिक व्यक्ति है।
- घर में जितनी पैदावार आती है उसको पहले कबीरपंथी मठ ले जाकर दान करता है। वहां से मिले हुए अनाज को ही अपने घर में प्रसाद के स्वरूप लाता है और अपना जीवन चलाता है। चाहे कैसा भी मौसम हो वह सवेरे स्नान कर अपनी खंजड़ी लेकर गीत गाता है। भादों की अंधेरी रात में वह अपने गीत के माध्यम से अपने ईश्वर को मनाता है। उसके इस गीत में सामाजिक लोग भी शामिल होते हैं। एक उत्सव का माहौल बन जाता है। बाल गोविंद भक्ति भाव से सराबोर होकर आंगन में नाचने लगता है। चाहे सर्दी हो या गर्मी सुबह शाम उसकी खंजड़ी बजती रहती है। साथ ही ईश्वर की भक्ति से जुड़े गीत की आवाज भी गूंजने लगती है। बालगोबिन अपने ईश्वर से इतना जुड़ गया था कि वह ईश्वर को सर्वत्र निराकार मानता था।
- इसका एक मर्म तब देखने को मिला जब उसका इकलौता बेटा असमय मृत्यु को प्राप्त हुआ। वह काफी समय से कमजोर था, शायद किसी बीमारी का शिकार रहा होगा। बालगोविंद उसकी पूरी देखभाल किया करते थे। बड़े उत्साह से बेटे की शादी कराई थी। बहू भी सुंदर और सुशील मिली थी। जिस दिन उसका बेटा मरा उस दिन लेखक ने घर जाकर जो दृश्य देखा वह अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। बालगोबिन के बेटे का पार्थिव शरीर आंगन में चटाई पर था। उसके ऊपर सफेद कपड़ा डाला गया था। उस पार्थिव शरीर के पास बालगोविंद आसन जमाए गीत गा रहे थे और अपनी बहू को समझा रहे थे – यह रोने का नहीं बल्कि उत्सव मनाने का समय है क्योंकि मेरे बेटे की आत्मा परमात्मा के पास चली गई है इससे और उत्तम बात क्या हो सकती है? यह बालगोबिन का चरम विश्वास बोल रहा था, जिसने उसे भक्ति से प्राप्त किया था।
- बेटे का पूरा दाह संस्कार अपनी बहू से ही करवाया। सभी संस्कार की विधि समाप्त होने पर बाल गोविंद ने बहू के बड़े भाई को बुलाकर उसका पुनर्विवाह कराने का आदेश दिया। किंतु बहू कहां मानने वाली थी? उसने ससुर की सेवा करते हुए पूरा जीवन निर्वाह करने की ठान ली थी, किंतु बालगोबिन भगत स्वभाव और व्यवहार के सरल व्यक्ति थे। उन्होंने बहु से कहा अगर वह अपने भाई के साथ मायके नहीं गई और पुनर्विवाह नहीं किया तो वह स्वयं घर छोड़ कर चला जाएगा।
- वह अपनी बहु को अपने पुत्र या अपने घर से बांधकर नहीं रखना चाहते थे। वह अपनी बहू को किसी प्रकार का कष्ट नहीं देना चाहते थे, बल्कि उसकी मांग में हमेशा सिंदूर और हंसी खुशी भी देखना चाहते थे। बालगोबिन भगत की मृत्यु भी महात्मा की भांति हुई। प्रत्येक वर्ष की भांति गंगा स्नान करने गया था, सर्द मौसम था। हल्का बुखार शरीर पर चढ़ा हुआ था। वह गंगा स्नान के लिए चार-पांच दिन की यात्रा करके जाते थे। वह रुक कर बीच में कहीं खाना नहीं खाते थे और न ही भीख मांगते थे। वह घर से खाना खाकर जाते और घर आकर ही खाना खाते थे, यही उनके आचरण में था।
- जब वह गंगा स्नान के लिए निकले उन्हें बुखार था सर्दी का मौसम भी आ गया था, लोगों ने काफी चेतावनी दी कि वह गंगा स्नान ना करें किंतु वह धार्मिक व्यक्ति कहां मानने वाले थे? उन्हें तो भक्ति का परम सुख प्राप्त करना था।
- वह गंगा स्नान कर घर लौटे उस दिन भी उन्होंने संध्या का गीत गाया पर लगता था जैसे तागा टूट गया हो माला का एक-एक दाना बिखर गया हो। अगले दिन जब लोगों ने बालगोबिन के घर से खंजड़ी तथा गीत की आवाज नहीं सुनी तो उन्हें आश्चर्य हुआ। घर जाकर देखा तो बालगोबिन नहीं रहे। अर्थात बालगोबिन की आत्मा परमात्मा से मिलने के अनंत सफर पर जा चुकी थी।
कठिन शब्दों के अर्थ
बालगोबिन भगत कक्षा 10 के कठिन शब्द एवं उनके अर्थ निम्नलिखित है :
- मँझोला – ना बहुत बड़ा ना बहुत छोटा
- कमली जटाजूट- कम्बल
- खामखांह – अनावश्यक
- रोपनी – धान की रोपाई
- कलेवा – सवेरे का जलपान
- पुरवाई- पूर्व की ओर से बहने वाली हवा
- मेंड़ – खेत के किनारे मिट्टी के ढेर से बनी उँची – लम्बी, खेत को घेरती आड़
- अधरतिया – आधी रात
- झिल्ली- झींगुर
- दादुर- मेढक
- खँझरी – ढपली के ढंग का किन्तु आकार में उससे छोटा वाद्य यंत्र
- निस्तब्धता – सन्नाटा
- पोखर- तालाब
- टेरना- सुटीला अलापना
- आवृत – ढका हुआ
- श्रमबिंदु – परिश्रम के कारण आई पसीने की बून्द
- संझा- संध्या के समय किया जाने वाला भजन
- करताल – एक प्रकार का वाद्य
- सुभग – सुन्दर
- कुश – एक प्रकार की नुकीली घास
- बोदा – कम बुद्धि वाला
- सम्बल – सहारा
Balgobin Bhagat Class 10: प्रश्न-उत्तर
Balgobin Bhagat Class 10 के प्रश्न-उत्तर निम्नलिखित है :
बालगोबिन भगत कबीर के पक्के भक्त थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और हमेशा खरा व्यवहार करते थे। वे किसी की चीज का उपयोग बिना अनुमति माँगे नहीं करते थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण वे साधु कहलाते थे।
भगत की पुत्रवधू उनकी सेवा करना चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि एक बूढ़े आदमी को अकेले रहना पड़े। इसलिए वह उन्हें अकेले छोड़ना नहीं चाहती थी।
अपने बेटे की मृत्यु पर भगत ने गाना गाकर अपनी भावनाएँ व्यक्त कीं। वह अपनी बहू से भी बेटे की मौत का उत्सव मनाने को कहते थे। उनका मानना था कि मृत्यु से तो आत्मा का परमात्मा में मिलन हो जाता है इसलिए इस अवसर पर खुशी मनानी चाहिए।
भगत की उम्र साठ के ऊपर रही होगी। चेहरा सफेद बालों से जगमग करता था। वे केवल एक लंगोटी पहने थे। जाड़े में एक कम्बल जरूर लपेटते थे। उनका व्यक्तित्व बड़ा ही सीधा सादा था। वे हमेशा अपनी भक्ति और अपनी गृहस्थी में लीन रहते थे। वह तड़के ही उठ जाते थे और स्नान करने के बाद गाना गाते थे।
चाहे कोई भी मौसम हो, बालगोबिन भगत की दिनचर्या में कोई परिवर्तन नहीं आता था। वे रोज सबेरे उठकर दो मील चलकर नदी में स्नान करने जाते थे। वहाँ से लौटने के बाद पोखर के भिंड पर गाना गाते थे। उनकी नियमित दिनचर्या के कारण लोग अचरज में पड़ जाते थे।
बालगोबिन भगत के मधुर गायन में एक जादू सा असर होता था। उसके जादू से खेतों में काम कर रही महिलाओं के होंठ अनायास ही थिरकने लगते थे। उनके गाने को सुनकर रोपनी करने वालों की अंगुलियाँ स्वत: चलने लगती थीं। रात में भी लोग उनके गानों पर मंत्रमुग्ध हो जाते थे।
बालगोबिन भगत कभी भी किसी अन्य की चीज को बिना अनुमति के इस्तेमाल नहीं करते थे। वे किसी को भी खरा बोल देते थे। अपने बेटे की मृत्यु पर उन्होंने शोक नहीं मनाया, बल्कि गा गाकर खुशी मनाई थी। अपनी विधवा पुत्रवधू को उन्होंने दूसरी शादी करने की स्वतंत्रता दे दी। इन सब प्रसंगों से पता चलता है कि बालगोबिन भगत प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को नहीं मानते थे।
जब वे धान की रोपनी के समय गाते थे इससे समूचा माहौल प्रभावित हो जाता था। मेड़ों पर खड़ी महिलाएँ स्वत: ही गाने लगती थीं। हलवाहों के पैर भी थिरक कर चलने लगते थे। रोपनी करने वालों की उँगलियाँ तालबद्ध तरीके से रोपनी में मशगूल हो जाती थीं।
बालगोबिन भगत के खेतों में जो कुछ भी उपजता था उसे लेकर वे कबीर के दरबार में ले जाते था। वहाँ से उसे प्रसाद के रूप में जो कुछ मिलता उसी से गुजारा कर लेता था। वे किसी की मौत को शोक का कारण नहीं बल्कि उत्सव के रूप में लेते था। इन सब प्रसंगों में उसकी कबीर पर श्रद्धा प्रकट होती है।
वे कबीर के उपदेशों से अच्छी तरह से प्रभावित हुए होंगे। इसलिए उनकी कबीर पर अगाध श्रद्धा रही होगी।
आषाढ़ के महीने में तेज बारिश होती है जो खेती के लिए अच्छी बात होती है। इसी महीने में किसान धान की रोपनी करते हैं। धान की रोपनी एक महत्वपूर्ण काम होता है। यह काम जितने लगन से किया जाए फसल उतनी ही अच्छी होती है। इसलिए इस काम को गीत संगीत से भरे हुए माहौल में किया जाता है।
साधु की पहचान पहनावे के आधार पर करना गलत होगा। केवल गेरुआ वस्त्र पहनने से कोई साधु नहीं बन जाता है। साधु बनने के लिए आचार और विचारों में शुद्धता की आवश्यकता होती है।
भगत के बेटे की मृत्यु इस बात को सिद्ध करती है कि मोह और प्रेम में अंतर होता है। भगत अपने बेटे से बहुत प्रेम करते थे। वह अपने मंदबुद्धि बेटे का विशेष ख्याल रखते थे। लेकिन उसकी मृत्यु पर वह शोक नहीं मनाते हैं। वह अपनी पुत्रवधू से भी खुशी मनाने को कहते हैं।
गरमियों में भगत और उनकी प्रेमी मंडली आँगन में आसन जमाकर बैठ जाते। वहाँ पुँजड़ियों और करतालों की भरमार हो जाती। बालगोबिन एक पद गाते, प्रेमी-मंडली उसे दोहराती-तिहराती। धीरे स्वर एक निश्चित लय, ताल और गति से ऊँचा होने लगता और गाते-गाते भगत नाचने लगते। इस प्रकार सारा आँगन नृत्य और संगीत से ओतप्रोत हो जाती।
(a) धीरे
(b) भीषण
(c) कोहरा
(d) इनमे से कोई नहीं
उत्तर b
MCQs
Balgobin Bhagat Class 10 के MCQs निम्नलिखित है :
A. पिता-पुत्री
B. प्रेमी-प्रेमिका
C. बहन-भाई
D. माँ-बेटा
उत्तर: B. प्रेमी-प्रेमिका
A. पतोहू का पुनर्विवाह करवाना
B. पतोहू को शिक्षा दिलवाना
C. पतोहू को घर से निकालना
D. पतोहू से घृणा करना
उत्तर: A. पतोहू का पुनर्विवाह करवाना
A. दुर्घटना
B. बीमारी
C. भूख
D. बेटे की मृत्यु की चिंता
उत्तर: B. बीमारी
A. व्यापार
B. पठन-पाठन
C. खेतीबाड़ी
D. दस्तकारी
उत्तर: C. खेतीबाड़ी
A. यशपाल
B. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
C. रामवृक्ष बेनीपुरी
D. स्वयं प्रकाश
उत्तर: C. रामवृक्ष बेनीपुरी
A. 50 वर्ष
B. 60 वर्ष से अधिक
C. 70 वर्ष
D. 80 वर्ष
उत्तर: B. 60 वर्ष से अधिक
A. सूरदास जैसी
B. जैन मुनियों जैसी
C. कबीरपंथियों जैसी
D. गांधी की टोपी जैसी
उत्तर: C. कबीरपंथियों जैसी
A. साहब
B. गुरु
C. शिष्य
D. मित्र
उत्तर: A. साहब
A. सूरदास के
B. तुलसीदास के
C. कबीरदास के
D. मीराबाई के
उत्तर: C. कबीरदास के
A. मंदिर में
B. गुरुद्वारे में
C. मस्जिद में
D. कबीरपंथी मठ में
उत्तर: D. कबीरपंथी मठ में
A. पहनावे पर
B. भोजन पर
C. मधुर गान पर
D. व्यवहार पर
उत्तर: C. मधुर गान पर
A. रोपण को
B. धान की रोपाई को
C. धान की कटाई को
D. धान की खेती को
उत्तर: B. धान की रोपाई को
A. केवल गीत गाता हैं
B. खेत की मेंड़ पर बैठते हैं
C. धान के पौधे लगाते हैं
D. उपदेश देते हैं
उत्तर: C. धान के पौधे लगाते हैं
A. बीन
B. लहर
C. उपदेश
D. जादू
उत्तर: D. जादू
A. श्रृंगार का भाव
B. विरह का भाव
C. ईश्वर भक्ति का भाव
D. वैराग्य का भाव
उत्तर: C. ईश्वर भक्ति का भाव
(a) उठकर चले जाते थे
(b) झूम उठते थे
(c) साथ में गाने लगते थे
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: b
(a) सामाजिक मर्यादा के कारण
(b) संपत्ति के लोभ में
(c) पति से प्यार होने के कारण
(d) ससुर की चिंता के कारण
उत्तर: d
(a) खेती
(b) दुकानदारी
(c) पुस्तक-विक्रेता
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: a
(a) ढोल
(b) ढपली
(c) गिटार
(d) खंजड़ी
उत्तर: d
(a) चाँदनी
(b) अँधेरी
(c) सुस्त
(d) उजली
उत्तर:b
(a) चालाक था
(b) ईमानदार था
(c) प्रतिभावान था
(d) सुस्त और बोदा था
उत्तर: d
(a) समझदार
(b) सुस्त और बोदा
(c) चालाक
(d) बुद्धिमान
उत्तर: b
(a) रहीम के
(b) सूरदास के
(c) कबीर के
(d) तुलसीदास के
उत्तर: c
(a) उसके सुखद भविष्य के लिए
(b) छुटकारा पाने के लिए
(c) सबकी नजर में अच्छा बनने के लिए
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर: a
(a) कबीर
(b) साई बाबा
(c) भोलेनाथ
(d) विष्णु
उत्तर: a
FAQs
भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्री रामवृक्ष बेनीपुरी जी ने बालगोबिन भगत को लिखा है।
बालगोबिन भगत एक रेखाचित्र अर्थात स्केच है। ये साहित्य की आधुनिक विधा है और इस रेखाचित्र के माध्यम से रामवृक्ष बेनीपुरी ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्घाटन किया है जो मनुष्यता, लोक संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतीक है।
बालगोबिन भगत मंझले कद का व्यक्ति था। उनका रंग गोरा था। उनकी उम्र साठ वर्ष की थी। बाल पक गए थे।
बालगोबिन भगत के बस 1 पुत्र था।
आशा है कि आपको Balgobin Bhagat Class 10 से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहे।