भारत, जो कला और साहित्य का जन्मस्थान रहा है, ने ऐसे कई महान कवियों और साहित्यकारों को जन्म दिया है, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज को जागरूक किया। आशुतोष राणा भी ऐसे ही एक प्रसिद्ध कवि हैं, जिनकी कविताएं इस आधुनिक समय में भारतीय समाज और दुनिया को प्रेरित कर रही हैं। उनकी कविताओं (Ashutosh Rana ki Kavitayen) में जीवन की सच्चाइयां, संघर्ष, और इंसानियत की महत्ता को बेहद प्रभावशाली तरीके से व्यक्त किया गया है। इसके लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना होगा। आशुतोष राणा की कविताओं को पढ़ने के लिए यह ब्लॉग अंत तक पढ़ें।
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कौन हैं आशुतोष राणा?
Ashutosh Rana ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको यह जानना चाहिए कि आशुतोष राणा कौन है। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कवि आशुतोष राणा जी भी है, आशुतोष राणा केवल कोई कलाकार ही नहीं, बल्कि एक अच्छे कलाकार के साथ-साथ एक अच्छे कवि भी हैं। जिन्होंने वर्तमान परिस्थितियों को देखकर कई बार अपने लेखन का लोहा मनवाया है। आशुतोष राणा का जन्म 10 नवंबर 1964 को, मध्यप्रदेश (भारत) के गाडरवारा में हुआ था।
आशुतोष राणा रामनारायण नीखरा उर्फ़ आशुतोष राणा एक जानीमानी हस्ती हैं, आशुतोष राणा एक भारतीय फिल्म अभिनेता, निर्माता होने के साथ-साथ, एक अच्छे लेखक भी हैं। जिन्होंने हिंदी फिल्मों के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, मराठी और कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया हैं। बात अगर फिल्मों से इतर की जाए तो वह भारतीय टेलीविजन शो का भी हिस्सा रह चुके हैं।
आशुतोष राणा जी को फिल्म “दुश्मन” और “संघर्ष” में अपने नकारात्मक किरदार यानि कि नेगटिव रोल के लिए, दो बार “फिल्मफेयर अवार्ड” से भी सम्मानित किया जा चुका है। आशुतोष राणा की लिखी हुई किताबों ‘मौन मुस्कान की मार’ और ‘रामराज्य’ से उन्हें लोकप्रियता प्राप्त हुई थी। आशुतोष राणा की अदाकारी और लेखन युवाओं को निरंतर प्रेरित कर रहा है।
आशुतोष राणा की कविताएं
आशुतोष राणा की कुछ प्रमुख कविताएं इस प्रकार से है :
हे भारत के राम जगो
Ashutosh Rana ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, आशुतोष राणा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “हे भारत के राम जगो” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूँ,
सौ धर्मों का धर्म एक, बलिदान बताने आया हूँ।
सुनो हिमालय कैद हुआ है, दुश्मन की जंजीरों में
आज बता दो कितना पानी, है भारत के वीरो में,
खड़ी शत्रु की फौज द्वार पर, आज तुम्हे ललकार रही,
सोये सिंह जगो भारत के, माता तुम्हे पुकार रही।
रण की भेरी बज रही, उठो मोह निद्रा त्यागो,
पहला शीष चढाने वाले, माँ के वीर पुत्र जागो।
बलिदानों के वज्रदंड पर, देशभक्त की ध्वजा जगे,
और रण के कंकण पहने है, वो राष्ट्रभक्त की भुजा जगे।।
अग्नि पंथ के पंथी जागो, शीष हथेली पर धरकर,
जागो रक्त के भक्त लाडले, जागो सिर के सौदागर,
खप्पर वाली काली जागे, जागे दुर्गा बर्बंडा,
और रक्त बीज का रक्त चाटने, वाली जागे चामुंडा।
नर मुंडो की माला वाला, जगे कपाली कैलाशी,
रण की चंडी घर घर नाचे, मौत कहे प्यासी प्यासी,
रावण का वध स्वयं करूँगा, कहने वाला राम जगे,
और कौरव शेष न एक बचेगा, कहने वाला श्याम जगे।।
परशुराम का परशु जगे, रघुनन्दन का बाण जगे,
यदुनंदन का चक्र जगे, अर्जुन का धनुष महान जगे,
चोटी वाला चाणक्य जगे, पौरुष का पुरष महान जगे
और सेल्यूकस को कसने वाला, चन्द्रगुप्त बलवान जगे।
हठी हमीर जगे जिसने, झुकना कभी नहीं जाना,
जगे पद्मिनी का जौहर, जागे केसरिया बाना,
देशभक्ति का जीवित झण्डा, आजादी का दीवाना,
और वह प्रताप का सिंह जगे, वो हल्दी घाटी का राणा
दक्खिन वाला जगे शिवाजी, खून शाहजी का ताजा,
मरने की हठ ठाना करते, विकट मराठो के राजा,
छत्रसाल बुंदेला जागे, पंजाबी कृपाण जगे,
दो दिन जिया शेर के माफिक, वो टीपू सुल्तान जगे।
कनवाहे का जगे मोर्चा, जगे झाँसी की रानी,
अहमदशाह जगे लखनऊ का, जगे कुंवर सिंह बलिदानी,
कलवाहे का जगे मोर्चा, पानीपत मैदान जगे,
जगे भगत सिंह की फांसी, राजगुरु के प्राण जगे
जिसकी छोटी सी लकुटी से (बापू ), संगीने भी हार गयी,
हिटलर को जीता वे फौजेे, सात समुन्दर पार गयी,
मानवता का प्राण जगे, और भारत का अभिमान जगे,
उस लकुटि और लंगोटी वाले, बापू का बलिदान जगे।
आजादी की दुल्हन को जो, सबसे पहले चूम गया,
स्वयं कफ़न की गाँठ बाँधकर, सातों भावर घूम गया,
उस सुभाष की शान जगे, उस सुभाष की आन जगे,
ये भारत देश महान जगे, ये भारत की संतान जगे।
क्या कहते हो मेरे भारत से चीनी टकराएंगे ?
अरे चीनी को तो हम पानी में घोल घोल पी जाएंगे,
वह बर्बर था वह अशुद्ध था, हमने उनको शुद्ध किया,
वह बर्बर था वह अशुद्ध था, हमने उनको शुद्ध किया,
हमने उनको बुद्ध दिया था, उसने हमको युद्ध दिया।
आज बँधा है कफ़न शीष पर, जिसको आना है आ जाओ,
चाओ-माओ चीनी-मीनी, जिसमें दम हो टकराओ
जिसके रण से बनता है, रण का केसरिया बाना,
ओ कश्मीर हड़पने वाले, कान खोल सुनते जाना।।
भारत के केसर की कीमत तो केवल सर है
कोहिनूर की कीमत जूते पांच अजर अमर हैं
रण के खेतो में जब छायेगा, अमर मृत्यु का सन्नाटा,
रण के खेतो में जब छायेगा, अमर मृत्यु का सन्नाटा,
लाशो की जब रोटी होंगी, और बारूदों का आटा,
सन सन करते वीर चलेंगे, जो बामी से फन वाला,
फिर चाहे रावलपिंडी वाले हो, या हो पेकिंग वाला।
जो हमसे टकराएगा, वो चूर चूर हो जायेगा,
इस मिटटी को छूने वाला, मिटटी में मिल जायेगा,
मैं घर घर में इन्कलाब की, आग लगाने आया हूँ,
हे भारत के राम जगो, मैं तुम्हे जगाने आया हूं।।
-आशुतोष राणा
मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा
Ashutosh Rana ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, आशुतोष राणा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मैं तुझसे प्रीत लगा बैठा” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
तू झटके से कह ले,
तू चाहे दुर्बलता कह ले,
दिल ने ज्यों ही मजबूर किया,
मैं तुमसे प्यार करता हूँ।
यह प्यार का तेल नहीं है,
दो चार घड़ियों का खेल नहीं,
यह तो कृपा की धारा है,
कोई गुड़ियों का खेल नहीं।
तू इच्छा नादानी कह ले,
तू फिर भी सामान कह ले,
मैंने जो भी रेखा खींची,
तेरी तस्वीर बनी।
मैं चातक हूँ तू बादल है,
मैं लोचन हूँ तू काजल है,
मैं आँसुओं तू आँचल है,
मैं प्यासा तू गंगाजल है।
तू आज़ाद दीवाना कह ले,
या अल्हड़ मस्ताना कह ले,
जिसने मेरा परिचय पूछा,
मैं तेरा नाम बताऊंगा।
सारा तारामंडल घूम गया,
प्याले प्याले को धोखा दिया गया,
पर जब तूने घुंघट खोला,
मैं बिना पिये ही कूद गया।
तू पागलपन कह ले,
तू चाहे तो पूजा कह ले,
मंदिर के जब भी द्वार खुले,
मैं तेरी अलख जगा बैठा।
मैं प्यासा घट पनघट का हूँ,
जीवन भर दर दर भटका हूँ,
कुछ की बाहों में अटका हूँ,
कुछ की आँखों में खटका हूँ।
तू चाहे पछतावा कह ले,
या मन का बहलावा कह ले,
दुनिया ने जो भी दर्द दिया,
मैं तेरा गीत बना बैठा।
मैं अब तक जान न पाया हूँ,
क्यों तुझसे मिलने आया हूँ,
तू मेरे दिल की धड़कन में,
मैं तेरे दर्पण की छाया हूँ।
तू चाहे तो सपना कह ले,
या अनहोनी घटना कह ले,
मैं जिस पथ पर भी चल निकला,
तेरे ही दर पर जा बैठा।
मैं उर की पीड़ा सह न सकूँ,
कुछ कहना चाहूँ, कह न सकूँ,
ज्वाला बनकर भी रह न सकूँ,
आँसू बनकर भी बह न सकूँ।
तू चाहे तो रोगी कह ले,
या मतवाला जोगी कह ले,
मैं तुझे याद करते-करते
अपना भी होश भुला बैठा।
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तब बचपन याद आता है
Ashutosh Rana ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, आशुतोष राणा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “तब बचपन याद आता है” भी है। यह कविता बचपन के किस्सों को याद करते हुए लिखी गयी है, जो कुछ इस प्रकार है:
जब हम रो नही पाते
सुख से सो नही पाते
जब हम खो नही पाते
तब बचपन याद आता है
जब चिंता सताती है
हमारे तन को खाती है
जब भी मन नही मिलता
तब बचपन याद आता है
जब हम टूट जाते है
जब अपने रूठ जाते है
जब सपने सताते है
तब बचपन याद आता है
बच्चे हम रह नही पाते
बड़े हम हो नही पाते
खड़े भी रह नही पाते
तब बचपन याद आता है
किसी को सह नही पाते
अकेले रह नही पाते
किसी को कह नही पाते
तब बचपन याद आता है
प्रिय लिखकर नीचे लिख दूँ
Ashutosh Rana ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, आशुतोष राणा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “प्रिय लिखकर नीचे लिख दूँ” भी है। यह कविता प्रेम पर आधारित एक कविता है, जो कि कुछ इस प्रकार है:
“प्रिय! लिखकर
नीचे लिख दूँ नाम तुम्हारा
कुछ जगह बीच में छोड़
नीचे लिख दूँ सदा तुम्हारा
और लिखा बीच में क्या? ये तुमको पढ़ना है
कागज़ पर मन की भाषा का अर्थ समझना है
और जो भी अर्थ निकालोगी तुम, वो मुझको स्वीकार
मौन अधर, कोरा कागज़, अर्थ सभी का प्यार..”
बाँट दिया इस धरती को, चाँद सितारों का क्या होगा?
Ashutosh Rana ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, आशुतोष राणा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “बाँट दिया इस धरती को, चाँद सितारों का क्या होगा?” भी है। नफ़रत और मानवता के बंटवारे की प्रताड़ना है यह कविता, जो कुछ इस प्रकार है;
“बाँट दिया इस धरती को, चाँद सितारों का क्या होगा?
नदियों के कुछ नाम रखे, बहती धारों का क्या होगा?
शिव की गंगा भी पानी है, आबे ज़मज़म भी पानी,
मुल्ला भी पिए,पंडित भी पिए, पानी का मज़हब क्या होगा?
इन फिरकापरस्तों से पूछो क्या सूरज अलग बनाओगे?
एक हवा में साँस है सबकी, क्या हवा भी नयी चलाओगे?
नस्लों का करे जो बटवारा रहबर वो कौम का ढोंगी है,
क्या खुदा ने मंदिर तोडा था या राम ने मस्जिद तोड़ी है?
माँ बाप को तो कुछ नाम से ही, ममता को कैसे बाँटोगे?
जिस पिता ने पाला है सबको, उस त्याग को कैसे बाँटोगे?
नौ महीने कोख में तुम भी थे, उतना ही समय हमने काटा,
दोनों को जन्म दिया जिसने, उस कोख को कैसे बाँटोगे?
कैसे बाँटोगे भाई और भाई के बीच के स्नेह को तुम
दूजे घर जाती बहना की करुणा से भरे नेह को तुम
घर की बेटी जब नारी है, तो दूजे की बेटी क्या होगी?
नारी तो खुद दुर्गा है न, दुर्गा की जाती क्या होगी?
मानवता में जो भेद करे, ये किस समाज की अर्ज़ी है?
शिक्षा में रह गयी कोई कमी, या खुद बनना तुम्हे फ़र्ज़ी है?
क्या फ़र्ज़ हमारा कहता है पूछो उन वीर जवानों से,
दिन रात जो रखवाली करते हैं, बाहर के हैवानों से
जिनके रक्त से सिंचित होती भारत माँ की धरती है
परिजन के उनके करुण विलाप से, किसकी आँखें न भरती है?
जो जाति धरम और गोत्र से उठकर , जय हिन्द का नारा गाते हैं
जब हम सोते हैं अपने घरों में, वो अपनी जान गंवाते हैं?
वो गूथते हैं देश को खून से, सुन्दर मोती की हारों में
हम रोज़ बेचते फ़र्ज़ को अपने, मानवता के बाज़ारों में
गर यही सिलसिला चला कहीं तो फिर भविष्य का क्या होगा?
हम तुम तो कुछ दिन और सही, आने वालों का क्या होगा?
गर एक हुआ न अब समाज, आगे जाने फिर क्या होगा!
जो हुआ न भारत माता का, वो अपनी माँ का क्या होगा!!
नहीं रहते दो पशु साथ साथ, गर रूप रंग हो बिलग बिलग,
जंगल है एक, है एक अधर, फिर भी रहते सब अलग अलग
ये हमपर निर्भर करता है की,कैसा हमको बनना है!
सब भेद भुला मानव बन ले, या पशु की जाति में रहना है?
रहना समाज की कालिख में या’रोशन’ बनके उभरना है?
चाहो तो उड़ लो खुले गगन में, या फिर पिंजरे में रहना है?
गर बाँट सको तो बाँट लो फिर, मानवता के मूलों को,
जिसे एक बनाया अल्लाह ने, दो बिलग बिलग से फूलों को
कितनी भी कर लो जद्दोजहद, न खुदा यहाँ बन पाओगे,
इंसान बनाकर भेजा था, इंसान ही बनकर जाओगे
जब ऊपर पूछा जायेगा, क्या मुँह उसको दिखलाओगे?
इंसान से ही गर बैर करोगे, कहीं न पूजे जाओगे।
इंसान से ही गर बैर करोगे, कहीं न पूजे जाओगे।।
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Bhaut bhaut badhaiya hai
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