आमेर का इतिहास: जानिए यूनेस्को विश्व धरोहर में शामिल आमेर फोर्ट का इतिहास

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आमेर फोर्ट

आमेर फोर्ट (आमेर का किला) जिसे आम्बेर का किला भी कहा जाता है। यह राजस्थान की राजधानी जयपुर के आमेर क्षेत्र में एक ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है। यह जयपुर जिले के महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों में से एक है। आमेर के विकसित होने से पूर्व यहाँ मीणा जनजाति के लोग निवास करते थे। इन्हें कच्छवाह राजपूतों ने बाद में अपने अधीन कर लिया। इन्हीं कच्छवाह राजपूतों के महान राजा महाराजा मान सिंह ने आमेर के दुर्ग का निर्माण कराया था। यह दुर्ग व महल अपने कलात्मक विशुद्ध हिन्दू वास्तु शैली के घटकों के लिये भी जाना जाता है। दुर्ग की विशाल प्राचीरों, द्वारों की शृंखलाओं एवं पत्थर के बने रास्तों से भरा ये दुर्ग पहाड़ी के ठीक नीचे बने मावठा सरोवर को देखता हुआ प्रतीत होता है। यहाँ आमेर का इतिहास विस्तार से बताया जा रहा है।  

किले का नाम आमेर फोर्ट 
स्थापना 1512 
स्थापना करने वाले राजा राजा मान सिंह 
नगर जयपुर 
राज्य राजस्थान 
प्राचीन नाम अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ का किला 
This Blog Includes:
  1. नामकरण 
  2. आमेर का प्राचीन नाम 
  3. आमेर का किला किसने बनवाया 
  4. आमेर के किले का इतिहास 
    1. आमेर के किले का निर्माण एवं इसका रोचक इतिहास
    2. आमेर के किले की अनूठी वास्तुकला एवं संरचना
  5. आमेर किले के प्रमुख आर्कषण एवं दर्शनीय स्थल
    1. सुख निवास 
    2. शीश महल 
    3. गणेश पोल 
    4. दिल आराम बाग 
    5. दीवान-ए-खास 
    6. चांद पोल दरवाजा 
  6. आमेर के किले का भूगोल 
    1. प्रवेश द्वार 
    2. प्रथम प्रांगण 
    3. द्वितीय प्रांगण 
    4. तृतीय प्रांगण 
    5. चतुर्थ प्रांगण 
  7. आमेर के किले पर राज करने वाले राजा 
  8. आमेर के किले को यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया जाना 
  9. आमेर के किले की बॉलीवुड की फिल्मों में शूटिंग 
  10. आमेर के किले से जुड़े रोचक तथ्य
    1. आमेर के किले में मशहूर लाइट एवं साउंड शो
    2. आमेर किले के लाइट शो के लिए टिकट एवं शुल्क से जुड़ी जानकारी 
    3. FAQs 

नामकरण 

आमेर फोर्ट को यह नाम इसके समीप चील के टीले नाम की पहाड़ी पर स्थित अम्बिकेश्वर मंदिर से मिला है। अम्बिकेश्वर भगवान  शिव के अवतार का नाम है। भगवान शिव के इस अवतार की इस मंदिर में पूजा की जाती है। इतिहासकारों का ऐसा भी मानना है कि आमेर के दुर्ग को यह नाम देवी अम्बा के पर्यायवाची शब्द अम्बिका से मिला है।  

आमेर का प्राचीन नाम 

आमेर फोर्ट को आमेर से पहले तीन प्रसिद्द नामों से जाना जाता था ये तीन प्राचीन नाम आमेर से ही मिलते जुलते थे। ये तीन नाम थे: अम्बावती, अमरपुरा तथा अमरगढ़ का किला। कालान्तर में लोगों के द्वारा इस क्षेत्र को आमेर का किला कहा जाने लगा और इस स्थान का नाम फिर आमेर ही पड़ गया। इस कारण से समय के साथ साथ इस किले का नाम भी आमेर का किला ही पड़ गया।  

आमेर का किला किसने बनवाया 

आमेर के किले का निर्माण सन 1512 में कच्छप राजपूत राजा महाराजा मान सिंह ने कराया था। अगले 140 वर्षों में कछवाहा राजपूत राजाओं द्वारा आमेर दुर्ग में बहुत से सुधार एवं प्रसार किये गए और अन्ततः सवाई जयसिंह द्वितीय के शासनकाल में 1727 में इन्होंने अपनी राजधानी नवरचित जयपुर नगर में स्थानांतरित कर ली। 

आमेर के किले का इतिहास 

आमेर दुर्ग को कछवाहा राजा मानसिंह ने 1512 में बनाया था। जय सिंह प्रथम ने इसका विस्तार किया। अगले 140  वर्षों में कछवाहा राजपूत राजाओं द्वारा आमेर दुर्ग में बहुत से सुधार एवं प्रसार किये गए।  

आमेर के किले का निर्माण एवं इसका रोचक इतिहास

वर्तमान का आमेर महल 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था जो वहां के राजाओं के निवास के लिए पहले से ही बने महल का एक विस्तृत रूप था। यहाँ का पुराना महल जिसे कादिमी महल के नाम से जाना जाता है, वह भारत के सबसे पुराने मौजूद महलों में से एक है। यह प्राचीन महल आमेर महल के पीछे स्थित घाटी में बना हुआ है। हालांकि इस समय के बहुत से महल और दुर्ग ध्वंस कर दिये गए है। हालांकि 16वीं शताब्दी का आमेर दुर्ग एवं निहित महल परिसर जिसे राजपूत महाराजाओं ने बनवाया था, जो कि भली भांति संरक्षित है।

आमेर के किले की अनूठी वास्तुकला एवं संरचना

आमेर के किले की अनूठी वास्तुकला और संरचना वास्तव में ही अद्भुत और बहुत ही सुंदर है। आमेर के वास्तुकला और संरचना के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है : 

  • भारत में, राजस्थान के किलों को बेहतरीन वास्तुकला के लिए जाना जाता है। युद्धों की पूर्वव्यस्तता के बावजूद राजपूत, कला और वास्तुकला के महान संरक्षक थे। उनके द्वारा बनाए गए कई किलो में से एक, आमेर किला सबसे शानदार हैं। यह किला अरावली पर्वतमाला पर स्थित है, जो किले की बाहरी संरचना के लिए सुरक्षा कवच का कार्य करता है।
  • आमेर का इतिहास लड़ाइयों से भरा पड़ा है। वर्तमान में क़िले के अंदर रखी तोपों ने घेराबंदी के दौरान इसकी सुरक्षा की थी। इन घेराबंदियों को, ‘आमेर का समामेलन निर्णायक माना जाता है।
  • राजपूत किलों और महलों की बहुत ही जटिल संरचना होती है। आमेर किले की वास्तुकला स्वदेशी और मुगल, दोनों, शैलियों का एक सुंदर समिश्रण है। किले के प्रांगण के अंदर महाराजा मान सिंह के महल का निर्माण स्वदेशी शैली में किया गया था।  
  • आमेर के किले के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर और सफ़ेद संगममरमर का इस्तेमाल किया गया था। 
  • कीमती शीशे, पत्थर और कठिन नक्काशी का इस्तेमाल आमेर के दुर्ग की सुंदरता को अधिक बढ़ाने के लिए किया गया है।  

आमेर किले के प्रमुख आर्कषण एवं दर्शनीय स्थल

आमेर किला सुंदर एवं दर्शनीय स्थलों से भरा पड़ा है। आमेर के किले में अनेकों ऐसे अद्भुत स्मारक मौजूद हैं जिन्हें देखने के बाद आँखें बिलकुल आश्चर्य से भर उठती हैं। आमेर के किले के सभी दर्शनीय स्थलों का वर्णन कर पाना तो यहाँ संभव नहीं है लेकिन यहाँ आमेर के किले के प्रमुख दर्शनीय स्थलों का विवरण दिया जा रहा है: 

सुख निवास 

राजस्थान के इस विशाल किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के ठीक सामने बेहद सुंदर सुख निवास बना हुआ है, जो कि इस किले के प्रमुख आर्कषणों में से एक है। सुख निवास के दरवाजे चंदन के हैं, जिसे हाथी के दांतो से सजाया गया है।

इतिहासकारों की माने तो इस किले के परिसर में बने सुख निवास में सम्राट अपनी रानियों के साथ अपना कीमती समय बिताते थे। इसी वजह से इसे सुख निवास के रुप में जाना जाता है। 

शीश महल 

आमेर का किला अपने शीश महल के कारण भी प्रसिद्ध है। इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों और छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल कुछ मोमबत्तियाँ जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से जगमग कर देता है। सुख महल व किले के बाहर झील बाग का स्थापत्य अपूर्व है। 

भक्ति और इतिहास के पावन संगम के रूप में स्थित आमेर नगरी अपने विशाल प्रासादों व उन पर की गई स्थापत्य कला की आकर्षक पच्चीकारी के कारण पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। पत्थर के मेहराबों की काट-छाँट देखते ही बनती है। यहाँ का विशेष आकर्षण है डोली महल, जिसका आकार उस डोली (पालकी) की तरह है, जिनमें प्राचीन काल में राजपूती महिलाएँ आया-जाया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहाँ राजा महाराजा अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आँख-मिचौनी का खेल खेला करते थे। कहते हैं महाराजा मान सिंह की कई रानियाँ थीं और जब राजा मान सिंह युद्ध से वापस लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस रानी को सबसे पहले मिलने जाएँ। इसलिए जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में इधर-उधर घूमते थे और जो रानी सबसे पहले ढूँढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था।

गणेश पोल 

गणेश पोल, भी आमेर के इस विशाल किले में बनी मुख्य ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक है। किले के अंदर बने दीवान-ए-आम के दक्षिण की तरफ गणेश पोल स्थित है। गणेश पोल का निर्माण राजा जय सिंह द्धितीय ने करीब 1611 से 1667 ईसवी के बीच करवाया था।

गणेश पोल, राजस्थान की शान माने जाने वाले इस विशाल दुर्ग के बने 7 बेहद आर्कषक औऱ सुंदर द्धारों में से एक है। इस शानदार द्धार के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि, जब कोई भी सम्राट किसी युद्द को जीतकर आते हैं, किले के इस मुख्य द्धार से प्रवेश करते थे, जहां फूलों की वर्षा के साथ राजाओं का स्वागत किया जाता था।

दिल आराम बाग 

राजस्थान के इस सबसे विशाल दुर्ग के अंदर बना दिल आराम बाग इस किले की शोभा को और अधिक बढा़ रहा है। इस शानदार बाग का निर्माण करीब 18 वीं सदी में किया गया था। इस रमणीय बाग में सुंदर सरोवर, फव्वारे  बनाए गए हैं। दिल आराम बाग की सुंदरता को देखकर हर कोई मंत्रुमुग्ध हो जाता है। इसका रमणीय आर्कषण दिल को सुकून देने वाला है, इसलिए इसका नाम दिल आराम बाग रखा गया है।

दीवान-ए-खास 

दीवान-ए-खास भी इस भव्य किले के प्रमुख ऐतिहासिक संरचनाओं और आर्कषणों में से एक है। यह मनोरम संरचना मुख्य रुप से सम्राटों के मेहमानों द्धारा बनवाईं गईं थी, इसमें सम्राट अपने खास मेहमानों एवं दूसरे राजाओं के राजदूतों से मिलते थे।

चांद पोल दरवाजा 

जयुपर के पास स्थित इस विशाल आमेर दुर्ग में बना चांद पोल दरवाजा भी इस किले की प्रमुख ऐतिहासिक संरचनाओं में से एक माना जाता था। चांद पोल दरवाजा, पहले आम लोगों के प्रवेश के लिए था। यह आर्कषक दरवाजा, इस विशाल किले के पश्चिम की तरफ बना हुआ है। इस दिशा में चंद्रमा उदय की वजह से इसका नाम चांद पोल रखा गया था।

आमेर के किले का भूगोल 

आमेर किले के भूगोल का विवरण इस प्रकार है : 

प्रवेश द्वार 

यह महल चार मुख्य भागों में बंटा हुआ है जिनके प्रत्येक के प्रवेशद्वार एवं प्रांगण हैं। मुख्य प्रवेश सूरज पोल द्वार से है जिससे जलेब चौक में आते हैं। जलेब चौक प्रथम मुख्य प्रांगण है तथा बहुत बड़ा बना है। इसका विस्तार लगभग 100 मी लम्बा एवं 65 मी. चौड़ा है। प्रांगण में युद्ध में विजय पाने पर सेना का जलूस निकाला जाता था। ये जलूस राजसी परिवार की महिलायें जालीदार झरोखों से देखती थीं इस द्वार पर सन्तरी तैनात रहा करते थे क्योंकि ये द्वार दुर्ग प्रवेश का मुख्य द्वार था। यह द्वार पूर्वाभिमुख था एवं इससे उगते सूर्य की किरणें दुर्ग में प्रवेश पाती थीं, अतः इसे सूरज पोल कहा जाता था। सेना के घुड़सवार आदि एवं शाही गणमान्य व्यक्ति महल में इसी द्वार से प्रवेश पाते थे। 

प्रथम प्रांगण 

जलेबी चौक से एक शानदार सीढ़ीनुमा रास्ता महल के मुख्य प्रांगण को जाता है। यहां प्रवेश करते हुए दायीं ओर शिला देवी मन्दिर का रास्ता है। 

द्वितीय प्रांगण 

प्रथम प्रांगण से मुख्य सीढ़ी द्वारा द्वितीय प्रांगण में पहुँचते हैं, जहां दीवान-ए-आम बना हुआ है। इसका प्रयोग जनसाधारण के दरबार हेतु किया जाता था। दोहरे स्तंभों की कतार से घिरा दीवान-ए-आम संगमर्मर के एक ऊंचे चबूतरे पर बना लाल बलुआ पत्थर के 27 स्तंभों वाला हॉल है। इसके स्तंभों पर हाथी रूपी स्तंभशीर्ष बने हैं एवं उनके ऊपर चित्रों की श्रेणी बनी है। 

तृतीय प्रांगण 

तीसरे प्रांगण में महाराजा, उनके परिवार के सदस्यों एवं परिचरों के निजी कक्ष बने हुए हैं। इस प्रांगण का प्रवेश गणेश पोल द्वार से मिलता है। गणेश पोल पर उत्कृष्ट स्तर की चित्रकारी एवं शिल्पकारी है। इस प्रांगण में दो इमारतें एक दूसरे के आमने-सामने बनी हैं। इनके बीच में मुगल उद्यान शैली के बाग बने हुए हैं। प्रवेशद्वार के बायीं ओर की इमारत को जय मन्दिर कहते हैं। 

चतुर्थ प्रांगण 

चौथे प्रांगण में राजपरिवार की महिलायें (जनाना) निवास करती थीं। इनके अलावा रानियों की दासियाँ तथा राजा की उपस्त्रियाँ भी यहीं निवास किया करती थीं। इस प्रभाग में बहुत से निवास कक्ष हैं जिनमें प्रत्येक में एक-एक रानी रहती थीं, एवं राजा अपनी रुचि अनुसार प्रतिदिन किसी एक के यहाँ आते थे, किन्तु अन्य रानियों को इसकी भनक तक नहीं लगती थी कि राजा कब और किसके यहाँ पधारे हैं। सभी कक्ष एक ही गलियारे में खुलते थे।

आमेर के किले पर राज करने वाले राजा 

आमेर किले के निर्माण की शुरुआत 16वीं शताब्दी के अंत में राजा मान सिंह ने की थी। हालांकि, जो निर्माण अभी है उसे पूरा सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह प्रथम द्वारा पूरा किया गया था। राजा मान सिंह से लेकर सवाई जय सिंह द्वितीय और राजा जय सिंह प्रथम तक के शासन काल में इसे पूरा होने में 100 साल का समय लग गया था। आमेर के किले पर राज करने वाले प्रमुख शासकों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं : 

  • राजा मान सिंह
  • राजा सवाई जय सिंह द्वितीय
  • राजा जय सिंह प्रथम
  • राजा मिर्जा जय सिंह 

आमेर के किले को यूनेस्को विश्व धरोहर के रूप में घोषित किया जाना 

राजस्थान सरकार ने जनवरी 2011 में आमेर को विश्व धरोहर में शामिल किए जाने का प्रस्ताव भेजा था। उसके बाद UNESCO के आंकलन समिति के सदस्य जयपुर आए। इन्होंने राजस्थान सरकार के मंत्रियों और अधिकारीयों के साथ बैठक की। इसके बाद मई 2013 को UNESCO द्वारा आमेर फोर्ट को विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया गया।  

अन्तरराष्ट्रीय परिषद की रिपोर्ट में इन दुर्गों की इस श्रृंखला का सार्वभौमिक महत्व अतुलनीय बताया गया है। राजस्थान राज्य के इन 6 विशालकाय और वैभवशाली पहाड़ी किलों के रूप में 8वीं से 16वीं शताब्दी की राजपूत रियासतों (राजपूताना शैली के वास्तुशिल्प) की झलक मिलती है। 

आमेर के किले की बॉलीवुड की फिल्मों में शूटिंग 

आमेर के किले की सुंदरता को देखते हुए इसमें कई ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बनी फिल्मों की शूटिंग की जा चुकी है। इनमें से कुछ प्रमुख फिल्मों के नाम इस प्रकार हैं : 

  • मुगल ए आज़म 
  • जोधा अकबर 
  • शुद्ध देसी रोमांस 
  • भूल भुलैया 
  • द बेस्ट एग्ज़ॉटिक मॅरिगोल्ड होटल
  • नार्थ वेस्ट फ़्रन्टियर
  • बाजीराव मस्तानी 

आमेर के किले से जुड़े रोचक तथ्य

आमेर का इतिहास से जुड़े रोचक तथ्य इस प्रकार है : 

  • राजस्थान के इस सबसे विशाल आमेर के किले को 16 वीं शताब्दी में राजा मानसिंह द्धारा बनवाया गया था। इस विशाल किले का नाम अंबा माता के नाम पर रखा गया था।
  • हिन्दू एवं मुगलकालीन वास्तुशैली से निर्मित यह अनूठी संरचना अपनी भव्यता और आर्कषण की वजह से साल 2013 में यूनेस्को द्धारा वर्ल्ड हेरिटेज की साइट में शामिल की गई थी।
  • भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक इस आमेर के किले के परिसर में बनी महत्वपूर्ण संरचनाओं में शीश महल, दीवान-ए-आम, सुख निवास आदि शामिल हैं।
  • जयपुर के पास स्थित इस विशाल किले का निर्माण विशेष तौर पर राजशाही परिवार के रहने के लिए किया गया था। इस किले के परिसर में बनी ऐतिहासिक संरचनाओं में शीश महल सबसे मुख्य है। जो कि अपनी अद्भुत नक्काशी के लिए जाना जाता है, इसके साथ ही शीश महल दुनिया का सबसे बेहतरीन कांच घर भी माना जाता है।
  • जयपुर से करीब 11 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आमेर का किला कई शताब्दी पूर्व कछवाहों की राजधानी हुआ करती थी, लेकिन जयपुर शहर की स्थापना के बाद, नवनिर्मित शहर जयपुर कछवाहों की राजधानी बन गई थी।
  • आमेर के इस विशाल दुर्ग के अंदर 27 कचेहरी नामक एक भव्य इमारत भी बनी हुई है, जो कि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में से एक है।
  • भारत के महत्वपूर्ण किलों में शामिल आमेर के किले के सामने माओटा नामक एक बेहद खूबसूरत और आर्कषक झील भी है, जो कि इस किले की शोभा को और अधिक बढ़ा रही है।
  • साल 2007 के आंकड़े के मुताबिक उस साल यहां करीब 15 लाख से ज्यादा पर्यटक आमेर के किले की खूबसूरती को देखने आए थे।
  • इस विशाल दुर्ग के अंदर ही पर्यटकों के लिए एक आर्कषक बाजार भी लगता है, जहां पर सैलानी रंग-बिरंगे पत्थर एवं मोतियों से बनी वस्तुओं के अलावा आर्कषक हस्तशिल्प की वस्तुएं खरीद सकते हैं।

आमेर के किले में मशहूर लाइट एवं साउंड शो

आमेर के किले का मशहूर लाइट एंड साउंड शो ऐसे शानदार स्थान पर स्थापित किया गया है कि आप सामने आमेर किला और महल परिसर, बायीं ओर जयगढ़ और उसके पीछे खूबसूरत पहाड़ियों का अद्भुत दृश्य देख सकते हैं। यह आकर्षक ऐतिहासिक स्थल आमेर फोर्ट और माहौल को और भी खूबसूरत बना देता है। स्मारक की सुंदरता, शांत झील और तारों भरी रात भी जादू को बढ़ा देती है।

संगीत, उस्ताद सुल्तान खान और शुभा मुद्गल जैसे गायकों द्वारा तैयार किया गया है और शो की पटकथा प्रसिद्ध गुलज़ार द्वारा लिखी गई है और बॉलीवुड की सबसे विशिष्ट आवाज़ में अमिताभ बच्चन द्वारा सुनाई गई है। वह पूरे शो में राजपूत राजाओं की विभिन्न कहानियों और किंवदंतियों, उनकी परंपराओं और उनकी भव्य जीवनशैली का वर्णन करते हैं।

आमेर फोर्ट का यह आकर्षक नृत्य और ध्वनि आकर्षण देश भर के पर्यटकों को आकर्षित करता रहा है। लोग आते हैं और भारत की गौरवशाली विरासत को संजोए प्रकाश-प्रभाव और राजपूत राजाओं की वीरता और गौरव की कहानियों का आनंद लेते हैं। इस लंबे शो के दौरान, चमकदार और रंगीन रोशनी संरचना को रोशन करती है और माओटा झील पर खूबसूरती से प्रतिबिंबित करती है, जबकि इसकी चट्टानी दीवारें प्रकाश-प्रभाव के लिए एक ऊर्जावान पृष्ठभूमि प्रदान करती हैं।

आमेर किले के लाइट शो के लिए टिकट एवं शुल्क से जुड़ी जानकारी 

  • आमेर फोर्ट में लाइट एंड साउंड शो हर रात किले की तलहटी में माओटा झील पर स्थित केसर क्यारी गार्डन में शुरू होता है। अक्टूबर से फरवरी तक सर्दियों के दौरान, अंग्रेजी में शो शाम 6:30 बजे और हिंदी में 7:30 बजे शुरू होता है, मार्च से अप्रैल तक यह शाम 7:00 बजे और 8:00 बजे होता है, मई से सितंबर तक यह 7:30 बजे होता है। क्रमशः अपराह्न और 8:30 बजे। यह शो कुल मिलाकर 52 मिनट तक चलता है। शो देखने जा रहे लोगों को शो शुरू होने से कम से कम 25 मिनट पहले पहुंचने की सलाह दी जाती है।
  • आमेर फोर्ट के लाइट एंड साउंड शो का शुल्क जीएसटी सहित प्रति व्यक्ति 295 रुपये की कीमत पर बहुत सस्ती है। यह 7 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए निःशुल्क है।
  • शो के दौरान बेहद ठंड होती है, क्योंकि आप बाहर बैठे होते हैं और आपके आसपास पानी होता है, इसलिए आपके लिए सलाह दी जाती है कि आप उसी के अनुसार कपड़े पहनें। शो के दौरान फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी प्रतिबंधित है। इसके अलावा, शो शुरू होने से 25 मिनट पहले पहुंचना बेहतर है ताकि ठीक से बैठा जा सके और बाकी शो का आनंद लिया जा सके।

FAQs 

आमेर फोर्ट का पहला राजा कौन था?

आमेर के पहले राजा महाराजा मान सिंह थे।  

आमेर में कौन सा वंश था?

आमेर में कछवाह राजपूत वंश ने शासन किया था।  

आमेर के किले पर राज करने वाले राजा कौनसे थे?

आमेर के किले पर राज करने वाले प्रमुख शासकों के नाम क्रमश: इस प्रकार हैं : 
राजा मान सिंह
राजा सवाई जय सिंह द्वितीय
राजा जय सिंह प्रथम
राजा मिर्जा जय सिंह 

आशा है कि आपको इस ब्लाॅग में आमेर फोर्ट के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। अन्य दुर्ग और किलों का इतिहास जानने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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