सरकारी स्कूल के दसवीं और बारहवीं के जो छात्र परीक्षा में शामिल नहीं हैं, उन्हें स्कूल में वापस लाने के लिए स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट उन स्कूलों की जांच करेगा। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इससे उन स्टूडेंट्स की संख्या में कमी आएगी जो पढ़ाई के डर और अन्य कारणों की वजह से फाइनल एग्जाम नहीं दे पाते हैं।
अभी, अगर कोई भी स्टूडेंट तीन दिन से ज्यादा समय तक स्कूल नहीं आता है, तो राज्य के सभी सरकारी स्कूल संबंधित मुख्य शिक्षा कार्यालयों को ऐसे स्टूडेंट की रिपोर्ट समय-समय पर भेजते हैं। इस रिपोर्ट को भेजने के बाद संबंधित जिले के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास भेजी जाती है और टीचर्स की मदद से इन छात्रों के बारे में जानकारी एकत्र की जाती है। इस डेटा को एजुकेशन इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (EMIS) में भी फीड किया जाता है।
वहीं इस विषय पर एक शिक्षक का कहना है कि लगातार कहने के बाद भी कई छात्र रेगुलर स्कूल में नहीं आते हैं। इसके अलावा माता- पिता के अन्य जिलों में काम करने से उन बच्चों को ढूंढने में भी परेशानी होती है।
पिछले साल 50 हजार छात्रों ने छोड़े थे एग्जाम
पिछले साल, विभाग बारहवीं कक्षा में 50,000 से अधिक छात्रों ने लैंग्वेज एग्जाम में शामिल नहीं हुए थे। अधिकारियों ने कहा कि ऐसा इसलिए था क्योंकि जो छात्र नियमित रूप से स्कूल नहीं जाते थे।
एजुकेशन इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (EMIS) के साथ एक और समस्या यह है कि यह पता लगाने का कोई तरीका नहीं है कि क्या कोई छात्र दसवीं कक्षा के बाद पॉलिटेक्निक या भारतीय तकनीकी संस्थान (ITI) में शामिल हो गया है क्योंकि डेटाबेस केवल राज्य भर के स्कूलों को कवर करता है।
स्टूडेंट्स की समस्याओं के लिए दिए ये सुझाव
डायरेक्टली रिक्रूटेड पोस्ट ग्रेजुएट टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष ए रामू ने कहा कि स्टूडेंट्स को ट्रैक करने के लिए एक सही तरीका पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (PDS) है। रामू ने आगे कहा कि डिपार्टमेंट को हायर एजुकेशन डिपार्टमेंट के साथ ही स्टूडेंट्स के डेटाबेस को काॅलेजों को विस्तारित करना चाहिए। इसके अलावा स्कूल छोड़ने वाले स्टूडेंट्स की जानकारी कर उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए डिस्ट्रिक्ट-बेस्ड कमेटियां बनाई जानी चाहिए।
इसी और अन्य प्रकार के Leverage Edu न्यूज़ अपडेट्स के साथ बने रहिए।